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Jun 5, 2010

उदंती.com, जून 2010


उदंती.com,
वर्ष 2, अंक 11, जून 2010
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प्रकृति अपनी उन्नति और विकास में रुकना नहीं जानती और अपना अभिशाप प्रत्येक अकर्मण्यता पर लगाती है। - गेटे
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2 comments:

Devi Nangrani said...

Udanti hasil hui, samagri rochak evam pathneey aur jaankari ka bhandaar. shubhkamanon sahit..
Devi Nangrani

Dr.Manjari said...

पढने मे मन कही खो सा गया,बधाई हो

डॉ. मंजरी शुक्ल

manjarisblog.blogspot.com