उदंती.com,
वर्ष 2, अंक 11, जून 2010
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प्रकृति अपनी उन्नति और विकास में रुकना नहीं जानती और अपना अभिशाप प्रत्येक अकर्मण्यता पर लगाती है। - गेटे
**************- अनकही: धरती माता क्रोधित है
- पर्यावरण : क्या अंतरिक्ष तक बनेगी चलित सीढ़ी? - डॉ. अरविंदगुप्ते
- मनोविज्ञान: हमारे मन का आईना है सपना - रश्मि वर्मा
- न्यूज चैनल: मिक्स मसाला का दौर- जहां खबरें बिकती हैं - संजयद्विवेदी
- विज्ञान: कुदरती एयरकंडीशनर - विकास तिवारी
- इतिहास: मेरे देश की धरती सोना उगले.. - शास्त्री जे सी फिलिप
- शोध: क्या मनुष्य ईश्वर बनना चाहता है? - उदंती फीचर्स
- जरा सोचें: पानी बचाने के लिए बिल - सुजाता साहा
- यात्रा संस्मरण: एक सुंदर स्वप्न समाप्त हो गया - राजीव कुमार धौम्या
- बातचीत: डर से परे ही आजादी है - रेणु राकेश
- वाह भई वाह
- कहानी: चॉकलेट -परितोष चक्रवर्ती
- 21वीं सदी के व्यंग्यकार / 14 वीं कड़ी: सावधान! मैं आत्मकथा लिख रहा हूं - रामेश्वर वैष्णव
- कविता : वापसी, चुपके चुपके - अबदुल कलाम
- लघुकथाएं : अप्रत्याशित, विकल्प - शकुन्तला किरण
- किताबें : 99 साल पुरानी गलती...
- मौसम: लैला' ओ लैला कैसी तू लैला...
- इस अंक के लेखक
- आपके पत्र/ इनबाक्स
- रंगबिरंगी दुनिया
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2 comments:
Udanti hasil hui, samagri rochak evam pathneey aur jaankari ka bhandaar. shubhkamanon sahit..
Devi Nangrani
पढने मे मन कही खो सा गया,बधाई हो
डॉ. मंजरी शुक्ल
manjarisblog.blogspot.com
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