इस बार जब सिरपुर की यात्रा पर जाना हुआ तो लक्ष्मण मंदिर, राम मंदिर और के
अलावा जिन स्थानों पर अधिक समय हमने बिताया, वह यहाँ अलग-
अलग जगह पर मिले विभिन्न बौद्ध विहारों की यात्रा थी जो अपने आप में बेहद रोमांचक
और यादगार रही। मेरे लिए यह गौरव का विषय है कि मैं उस प्रदेश की निवासी हूँ जहाँ
सिरपुर है और इसी सिरपुर में विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध विहार है।
पिछले अनेक वर्षों से की जा रही सिरपुर की खुदाई में हर बार
कुछ नया देखने को मिलता है यही कारण है कि सिरपुर की यात्रा मेरे लिए हमेशा एक अलग
और नया अनुभव देने वाला होता है। बस यहाँ
एक कमी बहुत खलती है और वह है ठहरने और भोजन की समुचित व्यवस्था का न होना। इतनी
भव्यता समेटे होने के बावजूद भी पर्यटन के रूप में इस क्षेत्र का जैसा विकास होना
चाहिए नहीं हो पा रहा है। शायद हम इसके विश्व धरोहर में शामिल होने की बाट जोह रहे
हैं।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 85 किलोमीटर की दूरी पर
स्थित सिरपुर में छठवीं शताब्दी के 184 टीलों को खुदाई के लिए तय किया गया था,
खुदाई अभी भी जारी है जिसमें शिवमंदिर, विष्णु मंदिर, बौद्ध विहार, लक्षमण
मंदिर, जैन विहार, राजमहल, सुरंग टीला, बाजार के साथ यज्ञशाला, स्तूप और रहवासी मकानों के अवशेष मिले हैं। आगे की खुदाई में न जाने और
क्या क्या मिलेगा।
केंद्र सरकार ने देश के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बौद्ध
सर्किट तैयार किया है। इसी बौद्ध सर्किट में छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक पुरातात्विक
स्थल सिरपुर को शामिल कर लिया गया है।। सिरपुर को बौद्ध सर्किट-3 में जगह दी गई
है। ज्ञात रहे कि बौद्ध सर्किट एक में गया,
वाराणसी, कुशीनगर, और
लुंबनी (नेपाल) की यात्रा शामिल है।
लुम्बिनी - जहाँ भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, बोधगया- जहाँ
उन्होंने आत्मज्ञान प्राप्त किया, सारनाथ, जहाँ उन्होंने प्रचार किया, कुशीनगर जहाँ उन्हें
मुक्ति मिली।
जैसा कि इतिहास में दर्ज है ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में चीनी
यात्री ह्वेनसांग सिरपुर आए थे। उन्होंने अपने यात्रा वृतांत में जिस राजधानी का
जिक्र किया है वह सिरपुर ही है। चीनी यात्री ह्वेनसांग की भारत यात्रा पर थामस
वार्ट्स ऑन युवांग चांग की ट्रेवल्स इन इंडिया नामक पुस्तक भी प्रकाशित हुई थी।
व्हेन सांग की यात्रा वृत्तांत में सिरपुर का उल्लेख है। ह्वेनसांग ने सन् 618
में छत्तीसगढ़ की पहली यात्रा की थी। जब
इस स्थान की खुदाई की गई तो वे सभी बातें सत्य पाई गई जिनका उल्लेख ह्वेनसांग ने
अपनी यात्रा वृत्तांत में किया है। उनके अनुसार यह तथ्य भी उजागर हुआ है कि भगवान
बुद्ध के चरण भी छत्तीसगढ़ में पड़े थे।
ह्वेनसांग ने श्रीपुर के दक्षिण की ओर एक पुराने बिहार एवं
अशोक स्तूप का वर्णन किया था,
जहाँ भगवान बुद्ध ने शास्त्रार्थ में विद्वानों को पराजित कर अपनी
आलौकिक शक्ति का प्रदर्शन किया था। इतिहासकारों के अनुसार यह बात भी प्रमाणित होती
है कि जहाँ- जहाँ भगवान बुद्ध के चरण पड़े वहाँ वहाँ अशोक स्तूप का निर्माण कराया
गया था। ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत में यह बात प्रमाणित भी होती है।
सिरपुर में अब तक 10 बौद्ध विहार और लगभग 10000 बौद्ध भिक्षुओं
के अध्ययन के पुख्ता प्रमाण मिल चुके हैं। इसके अलावा यहाँ कई बौद्ध स्तूप और
बौद्ध विद्वान नागार्जुन के आने के प्रमाण मिले हैं। यह स्थल गया के बौद्ध स्थल से
भी बड़ा है। अभी तक यह माना जाता रहा है कि नालंदा, तक्षशिला और पाटिल पुत्र ही शिक्षा के स्तंभ
रहे है तथा नालंदा का बौद्ध विहार ही सबसे बड़ा है। लेकिन सिरपुर में प्राप्त
बौद्ध विहारों ने इस बात को गलत साबित कर दिया है। क्योंकि अब तक नालंदा में चार
बौद्ध विहार मिले हैं, जबकि सिरपुर में दस बौद्ध विहार पाए
गए हैं। जहाँ छह- छह फुट की बुद्ध की
मूर्तियाँ भी मिली हैं। सबसे खास बात है कि सिरपुर के बौद्ध विहार दो मंजिल वाले
हैं जबकि नालंदा का विहार एक मंजिला ही हैं । इन विहारों में घूमते हुए आप इस स्थल
की भव्यता को महसूस कर सकते हैं। मैं तो सोचने पर मजबूर हो गई कि वाह क्या दौर रहा होगा और क्या उस दौर के लोग रहे होंगे
जिन्होंने ऐसी संरचना रची।
खुदाई में प्राप्त अवशेषों और उनके अध्ययन के बाद यह प्रमाणित
हुआ है कि प्राचीन समय में सिरपुर एक अतिविकसित और समृद्ध राजधानी थी, यहाँ से विदेशों के
साथ व्यापार किया जाता था। अवशेष बताते हैं कि यहाँ सोने-चाँदी के गहने बनाने के
साँचे थे। अस्पताल, था।
इस स्थान पर बंदरगाह होने के प्रमाण भी मिले हैं जो हजारों साल पहले यहाँ जहाज
चलने की बात को प्रमाणित करते हैं।
तीवर देव बौद्ध विहार
दक्षिण कोसल में 2002-03 के उत्खनन में प्राप्त अब तक के सबसे
बड़े विहार के रूप में तीवर देव बौद्धविहार का नाम लिया जाता है। तीवर देव
महाविहार विशाल और भव्य है। इसकी शिल्पकला अद्भुत है। यह बौद्ध विहार लगभग 902
वर्ग मीटर में फैला है। इसे दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम विहार के
मध्य में 16 अलंकृत प्रस्तर स्तंभों वाला मंण्डप है। इन पर ध्यान मुद्रा में बुद्ध, सिंह, मोर, चक्र आदि का उकेरे गए हैं।
गर्भ गृह के पश्चिम में भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है। इन
इस विहार में चारों ओर भिक्षुओं के रहने के लिए कमरे हैं। बीच में आंगन है।
गर्भगृह है। गर्भगृह के सामने वाले मंण्डप के चारों ओर गलियारा है। इस विहार में
जल निकासी के लिए भूमिगत नालियों के अवशेष मिले हैं। इस विहार के प्रवेश द्वार
हाथी तथा युगल मूर्तियों से सज्जित द्वार बेहद खूबसूरत है। सिरपुर से बौद्धधर्म से
संबंधित पाषाण प्रतिमाओं के अतिरिक्त धातु प्रतिमाएँ तथा मृण्मय पुरावशेष भी
उपलब्ध हुए हैं।
मध्यप्रदेश के स्थित साँची के स्तूप की तरह बौद्ध विहारों में
जातक कथाओं का अंकन है और पंचतंत्र की चित्रकथाएँ जैसे मगरमच्छ, वानर आदि की कथाएँ
उकेरी गई है। एक स्तंभ में कुम्हार द्वारा चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाने का दृश्य
उस दौर के व्यवसाय एवं उसके महत्त्व को दर्शाते हैं। सिरपुर की सभी मूर्तियाँ
पत्थर से बनी हुई है। यहाँ हंस और मयूर के चित्र बहुतायत से मिलते हैं। शिव
पार्वती और गणेश की प्रतिमा तथा महिषासुरमर्दिनी की मूर्तियों के साथ गंगा की
मूर्तियाँ भी है।
इस स्थान में विहार के साथ एक बौद्ध भिक्षुणी विहार भी स्थित
है। कहते हैं कि जब वज्रयान संप्रदाय का उद्धव हुआ तब से भिक्षुणियों के लिए अलग
विहार बनाकर उनके रहने की व्यवस्था की गयी। उत्खनन में वज्रयान का प्रतीक धातु का
वज्र भी प्राप्त हुआ है। साथ ही यहाँ बड़ी संख्या में सीपी तथा काँच की चूडियाँ
मिली है। प्राप्त मुद्राओं पर बौद्ध धर्म से संबंधित सूक्तियाँ अंकित है। बुद्ध के
अलावा अन्य मूर्तियों में सातवीं शताब्दी के बौद्ध बीजमंत्र उत्कीर्ण है। गंधेश्वर
मंदिर में मिली बुद्ध की प्रतिमा में आठवीं शताब्दी के अक्षरों में बौद्धमंत्र
उत्कीर्ण है। बताया जाता है कि आनंद प्रभु कुटी विहार का उपयोग बौद्ध
भिक्षु-भिक्षुणियों द्वारा आवास हेतु किया जाता था।
इस विहार में सीढ़ियाँ भी मिली हैं, जिससे अनुमान लगाया
गया कि यह विहार दो मंजिला रहा होगा। क्योंकि ह्वेनसांग ने 10,000 बौद्ध भिक्षुओं के सिरपुर में निवास करने का जिक्र किया है। हर मठ में
एक सीढ़ी है। जिससे ऊपर जाया जा सकता है। यहाँ एक प्रवेश द्वार है। इससे लगा कमरा
कोषागार लगता है। इसलिए कि कोषागार में जाने के लिए समीप ही एक कमरे की दीवार के
आधार के साथ खिड़कीनुमा पल्ला होने का संकेत मिलता है। अन्न भंडार और कोषागर की
व्यवस्था हर मठ में देखने को मिलती है। सामूहिक अध्ययन के लिए एक बड़ा कमरा है।
कुछ कमरे छोटे तथा कुछ बड़े हैं।
सिरपुर में सभी बौद्ध विहार उच्चकोटि की ईटों से निर्मित हैं।
विहारों की तल योजना में गुप्तकालीन मंदिर तथा आवासीय भवन का निर्माण किया गया है।
विहार में भिक्षुओं के ध्यान,
निवास, स्नान के अलावा अध्यापन की सुविधाएँ
थी। खुदाई में 43 रिहायशी कमरों के अवशेष मिले हैं। प्रत्येक विहार के सामने
बरामदा और सभागृह है। पीछे की ओर भिक्षुओं के निवास स्थल है। कुछ कमरे बड़े हैं,
कुछ बहुत ही छोटे हैं। महाशिवगुप्त बालार्जुन के शासन काल में आनंद
प्रभु नामक बौद्ध भिक्षु ने विहार का निर्माण कराया था। आनंद प्रभु कुटी विहार में
16 पत्थर के स्तंभ हैं। सभा मंडल, छज्जा और मूर्तियाँ इसी पर
आधारित हैं। बुद्ध की एक प्रतिमा है जो बंद कमरे में है। इस प्रतिमा के दक्षिण
दिशा में पद्मपाणि की पूर्ण आकार की प्रतिमा है। देव मंदिर के दक्षिण में गंगा की
और वाम में यमुना की प्रतिमा है। मठ के बरामदे में 14 कमरे हैं। सभी में आले हैं।
एक आला दरवाजे की सांकल के लिए, दूसरा दीपक के लिए, तीसरा ताले के लिए और चौथा वहाँ निवास करने वाले भिक्षुओं के सामान रखने
के लिए था।
स्वस्तिक विहार
पास ही एक और ध्वस्त विहार भी उत्खनन से प्रकाश में आया है। तल
योजना के आधार पर इसे स्वस्तिक विहार के नाम से जाना जाता है। यहाँ भी भूमिस्पर्श
मुद्रा में बुद्ध की प्रतिमा प्रस्थापित है। यह विहार भी बौद्ध भिक्षुओं के रहने
की व्यवस्था, उनके
ध्यान के लिए अलग अलग कमरे की व्यवस्था दिखाई देती है।
सबसे बड़ा बाजार
सबसे अनोखा है उत्खनन में प्राप्त विश्व के सबसे बड़े
सुव्यवस्थित बाजार को देखना,
जो यह बताता है कि छठी-सातवीं शताब्दी में सिरपुर एक अति विकसित
राजधानी थी जहाँ देश- विदेश से व्यापार होता था। खुदाई में अष्टधातु की मूर्तियाँ
बनाने के कारखाने के प्रमाण मिले हैं। इस कारखाने में धातुओं को गलाने की घरिया और
मूर्तियों को बनाने में प्रयुक्त होने वाली धातुओं की ईटें प्राप्त हुई हैं। सिरपुर के पास ही महानदी पर नदी बंदरगाह आज भी
विद्यमान है। इन प्रमाणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि पहले महानदी में पानी
की मात्रा ज्यादा होती होगी कि उसमें जहाज आया जाया करते थे।
सातवीं शताब्दी के
पश्चात इस क्षेत्र में जबरदस्त भूकंप आया,
जिसके कारण पूरा सिरपुर ध्वस्त हो गया। यहाँ के पुरातात्विक उत्खनन
में इस बाढ़ और भूकंप के प्रमाण के रूप में सुरंग टीले के मंदिरों में सीढ़ियों के
टेढ़े होने और मंदिरों व भवनों की दीवालों पर पानी के रुकने के साथ बाढ़ के महीन
रेत युक्त मिट्टी दीवारों के एक निश्चित दूरी पर जमने के निशान मिलते हैं।