अनकही: ऐसी बानी बोलिए - डॉ. रत्ना वर्मा
Mar 14, 2014
उदंती.com, मार्च- 2014
अनकही: ऐसी बानी बोलिए - डॉ. रत्ना वर्मा
ऐसी बानी बोलिए...
फागुनी गीत
कितने आजाद महिलाओं के सपने
दहलीज पर खड़ी औरत क्या सोचती है? नम आँखों से निहारती, आकाश का कोना-कोना उडऩे को आकुल, व्याकुल पंख तौलती है। तलाशती है राहें मुक्ति के द्वार की मुक्ति के द्वार की तलाश आज भी जारी है। वह कभी मुक्त नहीं हो सकी रुढिय़ों से,परम्पराओं से, सामाजिक विसंगतियों से, अपनी ही कारा में कैद, भारत की नारी आज भी अपने जीवन संघर्षों की लड़ाई लड़ रही है सदियों की गुलामी से उत्पीडि़त-प्रताडि़त, रुढिय़ों की शृंखलाओं में बंदी उसकी आँखों ने एक सपना जरुर देखा था। -जब देश आजाद होगा अपनी धरती, अपना आकाश अपने सामाजिक दायरों में वह भी सम्मानित होगी, उसके भी सपनों, उम्मीदों को नए पंख मिलेंगे, पर उनका यह सपना कभी साकार नहीं हो पाया, अपने अधूरे सपनो के सच होने की उम्मीद लिए महिलाएँ देश की स्वतंत्रता के संघर्ष में भी भागीदार बन जूझती रहीं सामाजिक, राजनीतिक, चुनौतियों से, अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए बलिवेदी पर चढ़ मृत्यु को भी गले लगाया पर हतभाग्य! देश को आजादी तो मिली पर राजनीतिक आजादी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भी मिला,पर अधूरा, नियमो कानूनों, में लिपटा हुआ हजारों लाखों सपनो के बीच नारी मुक्ति का सपना भी सच होने की आशा जागी थी, शांति घोष, दुर्गा भाभी, अजीजन बाई, इंदिरा, कमला नेहरु, जैसे अनगिनत नाम जिनमे शामिल थे। पर नारी मुक्ति के सपने कभी साकार नहीं हो पाए, उनकी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया, वे पहले भी सामाजिक, वर्जनाओं के भँवर में कैद थीं आज भी हैं, पहले सती प्रथा के नाम पर पति के साथ जला दिए जाने की कू्रर परंपरा थी, आज भी महिलाएँ जलाई जाती हैं कभी दहेज़ के नाम पर, तो कभी पुरुष प्रधान सामाजिक प्रताडऩा का शिकार होकर, बालिका विवाह की अमानवीय प्रथा में कितनी ही नन्हीं, मासूम बालिकाएँ बलिदान हो जाती थीं। आज भी अबोध, मासूम, नाबालिग बच्चियाँ दुष्कर्म और दुर्वव्यवहार का शिकार होती हैं। बेमौत मारी जाती हैं, भ्रूण हत्याएँ भी इसी कू्र, नृशंस, गुलाम मानसिकता का सजीव उदाहरण हैं। कभी महिलाओं ने सोचा था की जब उन्हें आजादी मिलेगी उनकी भी आवाज सुनी जाएगी, वे भी विकास की मुख्य धारा में शामिल होकर अपनी मंजिल प्राप्त कर पाएँगी, पर आज वे अपने ही देश में सुरक्षित नहीं हैं, पहले भी घर व समाज की चार दीवारों में आकुल-व्याकुल छटपटाती थीं। और आज भी स्वतंत्रता के 66 वर्षों के बाद भी वे चार दीवारों में बंदी रहने को विवश हैं क्योंकि बाहर की दुनियाँ उनके लिए निरापद नहीं है, यह कैसी बिडम्बना है! कैसी स्वतंत्रता है! जो मिल कर भी कभी फलीभूत नहीं हो सकी।

बेटियाँ
आलेख
-देवेन्द्र प्रकाश मिश्र
भारत-नेपाल सीमा पर उत्तर प्रदेश के दुधवा नेशनल पार्क के सघन वन आगोश में आबाद आदिवासी जनजाति थारू का समाज कहने के लिए महिला प्रधान है, किन्तु हकीकत में पितृ प्रधानता के कारण सत्ता पुरुषों के हाथों में रहती है, और वह अपनी हुकूमत चलाते हैं। इसके कारण थारू महिलाएँ हाड़तोड़ मेहनती कृषि कार्यो को करने के साथ ही पारिवारिक जीवन-निर्वहन के लिए घरेलू कार्य भी करती हैं। इसका मुख्य कारण है अशिक्षा और जागरूकता का अभाव। महिला उत्थान के लिए चलाई जाने वाली सरकारी योजनाएँ कागजों में सिमटती रही हैं। इसके कारण उनका समुचित लाभ न मिलने से थारू समाज की महिलाओं की स्थिति दयनीय ही बनी हुई है, और प्रथम पायदान पर होने के बाद भी वह दोयम दर्जे का नारकीय जीवन गुजार रही हैं।
एक बच्चे की जिम्मेदारी आप भी लें
अभिनव प्रयास- माटी समाज सेवी संस्था, जागरुकता अभियान के क्षेत्र में काम करती रही है। इसी कड़ी में गत कई वर्षों से यह संस्था बस्तर के जरुरतमंद बच्चों की शिक्षा के लिए धन एकत्रित करने का अभिनव प्रयास कर रही है। बस्तर कोण्डागाँव जिले के कुम्हारपारा ग्राम में बरसों से आदिवासियों के बीच काम रही 'साथी समाज सेवी संस्था' द्वारा संचालित स्कूल 'साथी राऊंड टेबल गुरूकुल' में ऐसे आदिवासी बच्चों को शिक्षा दी जाती है जिनके माता-पिता उन्हें पढ़ाने में असमर्थ होते हैं। इस स्कूल में पढऩे वाले बच्चों को आधुनिक तकनीकी शिक्षा के साथ-साथ परंपरागत कारीगरी की नि:शुल्क शिक्षा भी दी जाती है। प्रति वर्ष एक बच्चे की शिक्षा में लगभग चार हजार रुपये तक खर्च आता है। शिक्षा सबको मिले इस विचार से सहमत अनेक जागरुक सदस्य पिछले कई सालों से माटी समाज सेवी संस्था के माध्यम से 'साथी राऊंड टेबल गुरूकुल' के बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी लेते आ रहे हैं। प्रसन्नता की बात है कि नये साल से एक और सदस्य हमारे परिवार में शामिल हो गए हैं- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' नई दिल्ली, नोएडा से। पिछले कई वर्षों से अनुदान देने वाले अन्य सदस्यों के नाम हैं- प्रियंका-गगन सयाल, मेनचेस्टर (यू.के.), डॉ. प्रतिमा-अशोक चंद्राकर रायपुर, सुमन-शिवकुमार परगनिहा, रायपुर, अरुणा-नरेन्द्र तिवारी रायपुर, डॉ. रत्ना वर्मा रायपुर, राजेश चंद्रवंशी, रायपुर (पिता श्री अनुज चंद्रवंशी की स्मृति में), क्षितिज चंद्रवंशी, बैंगलोर (पिता श्री राकेश चंद्रवंशी की स्मृति में)। इस प्रयास में यदि आप भी शामिल होना चाहते हैं तो आपका तहे दिल से स्वागत है। आपके इस अल्प सहयोग से एक बच्चा शिक्षित होकर राष्ट्र की मुख्य धारा में शामिल तो होगा ही साथ ही देश के विकास में भागीदार भी बनेगा। तो आइए देश को शिक्षित बनाने में एक कदम हम भी बढ़ाएँ। सम्पर्क- माटी समाज सेवी संस्था, रायपुर (छ. ग.) 492 004, मोबा. 94255 24044, Email- drvermar@gmail.com
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