- पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)
आदमी का धरती पर पदार्पण व्यक्तिगत रूप से होता है, किंतु उसके आने का प्रयोजन समष्टिगत होता है। और इसके लिए यह आवश्यक है कि वह अपना अहं त्यागकर हृदय में ईश्वर को समाहित कर उसकी रचना के प्रति अपना सार्थक सहयोग प्रदान करे। पर यह अपने अहं को तिरोहत किए बिना संभव ही नहीं। इसे ही अंग्रेजी में इगो (EGO) कहा गया है। इगो यानी एजिंग गॉड आउट (Edging God out) अर्थात् अहं प्रवेश करते ही ईश्वर विदा हो जाते हैं, क्योंकि हृदय में इन दोनों में से केवल एक का ही निवास संभव है।
सुकरात समुद्र तट पर टहल रहे थे। तभी उनकी नजर एक रोते बच्चे पर पड़ी। वे उसके पास गए और प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेरकर पूछा : बालक तुम क्यों रो रहे हो।
लड़के ने कहा : ये जो मेरे हाथ में प्याला है, मैं इसमें समुद्र को भरना चाहता हूँ। पर यह समुद्र मेरे प्याले में समा ही नहीं रहा। मैं कोशिश करते -करते हार गया हूँ।
बच्चे की बात सुनकर सुकरात विस्मय में चले गए और स्वयं भी बच्चे के साथ ही साथ रोने लगे। अब पूछने की बारी बच्चे की थी। बच्चे ने कहा : आप भी मेरे ही तरह रोने लगे हैं। पर आपका प्याला कहाँ है।
सुकरात ने जवाब दिया : बालक, तुम छोटे से प्याले में समुद्र भरना चाहते हो और मैं अपनी छोटी सी बुद्धि में सारे संसार की जानकारी भरना चाहता हूँ। आज तुमने मुझे समझा दिया कि समुद्र प्याले में नहीं समा सकता है। मैं व्यर्थ ही इतने सालों से बैचेन रहा।
सुकरात की यह बात सुनकर बच्चे ने प्याले को दूर समुद्र में फेंक दिया और बोला : सागर अगर तुम मेरे प्याले में नहीं समा सकते तो मेरा प्याला तो तुम में समा ही सकता है।
इतना सुनना मात्र था कि सुकरात खुद बच्चे के पैरों पर गिर पड़े और बोले : तुम्हारे कारण आज बहुत ही कीमती सूत्र मेरे हाथ लगा है। सुकरात ने आगे अपनी बात कहना जारी रखा और वह यह कि :
हे परमात्मा आप तो सारा का सारा मुझ में नहीं समा सकते, लेकिन मैं तो सारा का सारा आप में लीन हो ही सकता हूँ।
ईश्वर की खोज में भटकते सुकरात को शायद यही संदेश ईश्वर स्वयं बालक के माध्यम से देना चाहते थे, सो खुद उस बालक में समा गए। सुकरात का सारा का सारा अभिमान ध्वस्त करवाया।
जिस सुकरात को मिलने के लिए सम्राट समय की प्रतीक्षा में रहा करते थे आज वह सुकरात बच्चे के चरणों में लोट कर रो रहे थे।
प्रसंग का आशय स्पष्ट है और वह यह कि ईश्वर जब आपको अपने शरण में लेता है तो आपके अंदर का ‘मैं’ सबसे पहले मिटाता है। या यों कहें कि जब आपके अंदर का ‘मैं’ मिटता है तो तभी आप पर ईश्वर की कृपा होती है।
दंभ कबहुँ नहिं कीजिए दंभ पतन आधार
दंभ चढ़ा सिर रावणा प्रभु कीन्ह संहार
41 comments:
पिताश्री इस लेख के माध्यम से आपने सरल भाषा व उदाहरण के साथ EGO को समझाया है। बहुत ही स्पष्ट है 🙏
अति सुंदर । सच है सीखने की कोई उम्र नहीं होती
हम हर समय किसी से कुछ ना कुछ सीख सकते हैं
सुकरात अपनी सुकराती पद्धति के लिए जाने जाते हैं, जो आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करने के लिए प्रश्न पूछने पर जोर देती है। उनका एक प्रसिद्ध उद्धरण है, "एकमात्र सच्चा ज्ञान यह जानने में है कि आप कुछ नहीं जानते।"
Thanks for explaining this deep philosophy in simple language....
Had read about Socrates long ago in school. Gud wisdom thots are recalled after reading this. Shun ego is the bottomline. A small child made him realise his self worth. Reminds me of Gurbani too which my mom quoted many times🙏🏼
प्रिय हेमंत, हार्दिक आभार सहित सस्नेह
Dear Vandana, Thanks very much for quick response. Regards
जब मैं था तब हरि नहीं ;अब हरि हैं मैं नहीं।
प्रेम गली अति सांकरी; तामे दो न समाहि।।
बहुत ही सुंदर आलेख। बगैर अहं का नाश हुए, परमपिता से साक्षात्कार हो ही नहीं सकता। उन परमसृष्टा को दीनता पसंद है, अभिमान नहीं।
एक बेहद सार्थक संदेश देते हुए आलेख के लिए हृदय से आभार!
शिक्षा ग्रहण करने की क्षमता है तो सीखने के साधन बहुत मिल जाते हैंl आत्मगार्विता सीखने में बाधक है यह आपने बिल्कुल स्पष्ट कर दिया हैl साधुवाद!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है।
EGO (Edging God out)
मुकेश कुमार सिंह
प्रिय मुकेश, हार्दिक आभार। सस्नेह
आदरणीय, EGO का अर्थ ही है Edging God Out. दिल में दो न समाय। प्रतिक्रिया प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार सहित सादर
प्रिय मंगल स्वरूप, सही कहा। ईश्वर की प्राप्ति अहंकारी होकर सर्वथा असंभव है। हार्दिक आभार। सस्नेह
आदणीय सर,
सरल शब्दों में अति उत्तम संदेश।
इगो यानी एजिंग गॉड आउट (Edging God out) अर्थात् अहं प्रवेश करते ही ईश्वर विदा हो जाते हैं, क्योंकि हृदय में इन दोनों में से केवल एक का ही निवास संभव है।
धन्यवाद।
Dear Daisy, Thanks very much for your quick response. Message regarding getting rid of ego is loud and clear in all religions. Regards
Excellent writing
Waah.. Ego to 10 sir wale Ravan ka bhi nhi tik paya tha. Kahe ka EGO palna..badhiya explanation lekh me sir
🤗
बहुत ही सुन्दर उदारहण एक बालक की सोच और बड़े की सीख🙏
बहुत सुन्दर और सरल शब्दो मे इंसान अपने अहं को कैसे निकाल सकता है, ज्ञाव वर्धन के लिये बारम्बार 🙏🙏
हार्दिक आभार मित्र
हार्दिक आभार मित्र
Dear Rajnikant, absolutely correct.
दंभ कबहुँ नहिं कीजिए दंभ पतन आधार / दंभ चढ़ा सिर रावणा प्रभु कीन्ह संहार
Thanks very much
Dear Mahesh, Thanks very very much.
Thanks very much
प्रिय बंधु किशोर भाई,
बिल्कुल सही कहा आपने। जियो ऐसे जैसे कल विदा होना हो और सीखो ऐसे जैसे धरती पर आजीवन रहना हो।
यही सार्थक जीवन का मूल मंत्र है। हार्दिक आभार सहित सादर
आदरणीय भाईसाब,आपकी कलम के कमाल को सलाम।आपका हर लेख दिल को छू जाता है।सीधे दिल से दिल तक।अहम और वहम ही इंसान को ले डूबता है।इन दोनो पर काबू पा ले तो कई समस्याओं का समाधान हो जाए।आपकी रचनाओं का इंतजार रहता है।जय श्री राम।
महोदय, अद्भुत,अहँ को तिरोहित करने प्रृकृति हर पल संदेश देती रहती है चाहे बालक हो, पशु पक्षी हो,आसंमा से गिरती बुन्दे,या पेड का अन्तिम पत्ता,....सुकरात का दर्शन जीवन राह दिखाता ही रहता है धन्य हैं हम सब,🌷🌹🙏
सुंदर संदेश देता ज्ञानवर्धक आलेख। अहं मनुष्य की बुद्धि के विनाश का कारण है। आपने सरल सहज रूप में अहं की प्रवृत्ति को दूर करने की बात कही है। आपके आलेख हमेशा प्रभावशाली होते है तथा मन पर अपना प्रभाव छोड़ जाते है। आभार सुदर्शन रत्नाकर
प्रिय अनिल भाई, आप तो न केवल मेरे कालेज जीवन के सहपाठी रहे हैं, बल्कि सेवा काल के भी अभिन्न सखा रहे हैं। भेल के सांस्कृतिक राजदूत। हार्दिक आभार। सस्नेह
प्रिय शरद, तुम जैसे पाठक विरले होते हैं और इस युग में कठिनाई से मिलते हैं। हार्दिक आभार। सस्नेह
आदरणीया, आप जैसे सुधि पाठक सौभाग्य से मिलते हैं। सो मेरा परम सौभाग्य। हार्दिक आभार सहित सादर
हार्दिक आभार मित्र
हार्दिक आभार मित्र
अहंकार ग्यान मार्ग मे सबसे बड़ी बाधा है। इसीलिए भक्ति मार्ग से प्रभु सुलभ है जहा अहंकार नही समर्पण भाव है। आप ने भी सहज भाव से इसकी पुष्टि की है। सादर ..
बहुत हि ज्ञान बर्धक लेख! किसी भी हादसा से कुछ ना कुछ सीखने को मिलता.
इस एन राय
प्रिय राजेश भाई, सही कहा आपने। ईश्वर तो प्रेम स्वरूप है, इसमें अहंकार का कोई स्थान नहीं। हार्दिक आभार सहित सादर
बच्चे सहज होते हैं इसलिए वे आसानी से सीख पाते हैं
हमें भी अपने जीवन में सहज रहना चाहिए
धन्यवाद
आदरणीय, हार्दिक आभार सहित सादर
प्रिय विजेंद्र, सही कहा. हार्दिक आभार। सस्नेह
मेरे दिल के किसी कोने में एक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देखकर दुनिया बड़ा होने से डरता है
जिस प्रकार की सीखने की कोई उम्र नहीं होती उसी प्रकार सिखाने वाले या गुरु की की भी कोई उम्र नहीं होती । दोनों ही स्थिति हमें आत्मज्ञान वह चिंतन की तरफ़ ले जाने में सक्षम है ।जोशी जी , आपने सुकरात के उदाहरण को संग्रहित करके बहुत ही सरल शब्दों में आदमी के अहम या ईगो को बाहर कर परमात्मा तक पहुँचने के मार्ग का वर्णन अपने शब्दों में कहा है। बहुत ही प्रभावशाली प्रस्तुति , आपको साधुवाद ।
मुकेश अरोरा नोएडा।
प्रिय भाई मुकेश, बिल्कुल सही. ज्ञान एकमात्र विश्वसनीय मित्र जो अंतिम पल तक साथ देता है, सो इसका सम्मान किया जाना ही चाहिये। अहंकार तो विनम्रता का शत्रु, जो हमें पतन की ओर धकेल देता है। सो पूरी सावधानी अनिवार्य।
हार्दिक आभार सहित
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