सृष्टि अपर्टमेंट्स की 9वीं मंज़िल की बाल्कनी में खड़े नन्हे नीटू ने मानसी से पूछा-"माँ गौरैया कैसी होती है?"
मानसी ने बताया "गौरैया एक चिड़िया होती है।"
"माँ गौरैया कहाँ रहती है?"
"गौरैया पेड़ों पर रहती है और फुदक-फुदक कर चूँ-चूँ बोलती है।"
" पेड़ तो हमारे अपर्टमेंट्स में नहीं है माँ, फिर गौरैया कहाँ रहती होगी? कहाँ चूँ-चूँ बोलती होगी? नीटू ने परेशान हो कर पूछा।
"आँगन में चूँ-चूँ बोलती है गौरैया" मानसी ने बात टालते हुए कहा।
"आँगन क्या होता है माँ?" नीटू ने अगला प्रश्न बिना देरी किए दागा।
ऑफ़िस से थककर चूर हो लौटी मानसी में नीटू के प्रश्नों की रेलगाड़ी को हरी झंडी दिखाने की-की ताब नहीथी। उसने अपने चारों ओर उगे कंक्रीट के जंगल पर एक चुभती निगाह डाली और नीटू को लेकर कमरे में आ गई। नीटू अब भी मचल रहा था-"माँ मुझे गौरैया देखनी ही है।"
"अभी दिखाती हूँ बेटे।" कहकर मानसी ने तुरंत लैपटॉप आन किया। गूगल खोलते ही गौरैया सामने थी। फुदकती गौरैया देख नीटू ताली बजाने लगा।
अगले दिन क्लास में टीचर पढ़ा रही थीं।
"शेर के घर को माँद कहते हैं।"
"चूहे के घर को बिल कहते हैं।"
"मधुमक्खी के घर को छत्ता कहते हैं।"
"गौरैया के घर को ..."-टीचर के वाक्य को बीच में ही काट कर नीटू चिल्लाया-"गौरैया के घर को गूगल कहते हैं।"
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