विनोद साव, डॉ. साधना अग्रवाल,जीवन यदु, छगनलाल सोनी, विनय शरण सिंह व माझी अनंत |
- विनोद साव
खैरागढ़ गोलबाजार के बाफना भवन में हम पहुँच गए थे। हमने सभागार का दरवाजा जैसे ही खोला, तो सामने मंच सजा हुआ था जिस पर प्रसिद्ध गीतकार जीवन यदु विराजमान थे। वे देखते ही खड़े होकर भाव-विह्वल हो बोल उठे कि “हमारे अगले सत्र के मुख्य अतिथि आ गए हैं व्यंग्यकार भाई विनोद साव।” खैरागढ़ जैसे कस्बे में भी एक चमक -धमक वाला एक निजी सुन्दर सभागार बन गया है। यहाँ छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन ने चार दिवसीय युवा रचना शिविर लगाया था। इस शिविर में छत्तीसगढ़ से आए महाविद्यालयीन विद्यार्थियों, शोधार्थियों से लेकर चालीस वर्ष की उम्र तक के रचनाकार शामिल हुए थे, जो भिन्न विधाओं के कलमकार थे। इसके पहले अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन, धमतरी द्वारा संचालित ऐसा ही एक शिविर था जहाँ व्यंग्य पाठ के लिए आमंत्रित हुआ था। तब सम्मलेन के अध्यक्ष ललित सुरजन जी थे। अब उनकी आत्मीय यादें शेष हैं। अब ये जिम्मेदारियाँ वर्तमान अध्यक्ष रवि श्रीवास्तव और प्रबंध मंत्री राजेंद्र चांडक जी पूरी गंभीरता से निभा रहे हैं। राजेंद्र जी भारतीय सांस्कृतिक निधि रायपुर अध्याय के संयोजक भी हैं।
मुझे यहाँ दो सत्रों के लिए आमंत्रित किया गया था जिसमें एक व्यंग्य का सत्र था और दूसरा यात्रा- वृत्तान्त का। व्यंग्य से कम समय में मुझे यात्रा-वृत्तान्त के लेखक के रूप में मान्यता मिल गई है। ऐसा लगा कि इन दोनों सत्रों का आयोजन कहीं मेरी स्थापना के कारण तो संभव नहीं हो गया। मेरी जानकारी में यह पहला अवसर था, जब हिंदी साहित्य में कथेतर गद्य की एक महत्त्वपूर्ण विधा ‘यात्रा-वृत्तान्त’ पर किसी संस्था द्वारा कोई विमर्श रखा गया हो... और इस संस्था द्वारा व्यंग्य पर एक सत्र का भी पहली बार कोई आयोजन रखा गया था। यह किसी भी साहित्यिक संस्था द्वारा परम्परागत आयोजनों से आगे बढ़कर साहित्य के नवोन्मेष को स्वीकारने की एक अच्छी पहल है।
दोनों सत्रों के युवा रचनाकार बड़े उत्साहित थे, क्योंकि उन्हें भी इन सत्रों में भाग लेने के अवसर कभी मिले नहीं थे, इसलिए इस नवोन्मेष के प्रति उनकी जिज्ञासा भी बढ़ी थी। मेरा परिचय देकर मुझे प्रस्तुत करते समय जीवन यदु ने मुझे अपने यात्रा- वृत्तान्त के कुछ अंश पढने की हिदायत भी दे दी थी। सत्र की आरंभिक भूमिका इसकी संचालिका डॉ. साधना अग्रवाल ने बाँध दी थी। अंत में आभार प्रदर्शन प्रो. देवमाईत मिंज ने करते हुए बताया कि वे देव लकरा के नाम से मेरी फेसबुक फ्रेंड हैं और मेरे यात्रा- वृत्तान्तों को खूब पढ़ती हैं।
जिस तरह हमारे साहित्य संसार में कहानी की चर्चा प्रेमचंद के बिना और व्यंग्य की चर्चा परसाई के बिना पूरी नहीं होती, वैसे ही यात्रा वृत्तांत की चर्चा हो और बुद्धिष्ट यायावर राहुल सांकृत्यायन की चर्चा न हो यह संभव नहीं है। वे अक्सर यात्रा के महत्त्व को बताने के लिए 18 वीं सदी के दिल्ली के एक सूफ़ी शायर ख्वाजा मीर दर्द का ये शेर फ़रमाया करते थे जो आज भी लोगों की जुबान पर है:
“सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ
जिन्दगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ...
राहुल जी की यात्राएँ कोई भौगोलिक दूरियों को तय करने वाली यात्राएँ नहीं थीं। उन्होंने उस भूखंड के इतिहास को देखने के अलावा उसकी स्थानीयता से संवाद करना सिखाया था, जो इन यात्राओं की आत्मा होती है। ये बातें मैं खैरागढ़ में कह रहा था। तब बरबस ही मुझे यहाँ के रहवासी इंदिरा विश्वविद्यालय के प्रो.गोरेलाल चंदेल याद आ गए, जिन्होंने मेरे यात्रावृत्त ‘मेनलैंड का आदमी’ की समीक्षा करते हुए लिखा है कि “यात्रा -वृत्तांत लेखन की दृष्टि स्थान विशेष की भौगोलिकता के साथ सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विशेषताओं को पकड़ने में कामयाब होती है और उस स्थान की धड़कन की एक एक गति को अपने संस्मरण का हिस्सा बनाने में यह दृष्टि सफल होती है। यात्रा- संस्मरण की भाषा नीरसता, उबाऊपन, एक पैनी दृष्टि, गहन निरीक्षण आत्मीयता का भाव और भारत को धर्म, जाति, भाषा परे से समग्रता में देखने की कोशिश होती है।”
ललित सुरजन, सतीश जायसवाल, उर्मिला शुक्ल यात्रा- वृत्तान्तों के अच्छे लेखक हैं। ललित जी का एक संग्रह है ‘शरणार्थी शिविर में विवाह गीत।’ वे लिखते हैं कि “एक दिन ग्रीस में कार्यरत फिलिस्तीनी श्रमिकों के संघ के प्रतिनिधि मुझसे मिलने आए। उन्होंने मुझे फिलिस्तीनी विवाह गीतों की एक सीडी भेंट की और आग्रह किया कि इसकी प्रतियाँ मैं भारत लौटकर अपने मित्रों को भेंट दूं और बताऊँ कि साठ साल से अधिक समय तक लगातार शरणार्थी जीवन जीते हुए, हर पल इजराइली हमलों की आशंका के बीच साँस लेते हुए, हजारों बेकसूरों की मौत के बाद भी किस तरह फिलिस्तीन की जनता ने अपनी जिजीविषा को बचा रखा है, कि मौत के साये में दिन गुजारते हुए वे अपने संगीत से, गीतों से ताकत पाते हैं।” मेरे संग्रह का ‘ब्लर्ब’ लिखते हुए ललित जी ने ‘Tourist और ‘traveler पर्यटक और सैलानी’ को अलग अलग नज़रिए से देखा है और मुझे सही अर्थों में ‘सैलानी’ माना है। यात्रा-संस्मरणों में इन दोनों शब्दों की बड़ी भूमिका है। टूरिस्ट जहाँ दूर खड़े होकर स्थान विशेष को देखता है वहीं सैलानी स्थानीय ज़िंदगी के साथ जुडकर सब कुछ देखता है। टूरिस्ट की नज़र स्थान विशेष पर, टूरिस्ट प्लेस की ओर होती है। ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व के स्थानों पर प्रभावी दृष्टि टिकी होती है, जबकि सैलानी स्थानीय ज़िंदगी को, स्थानीय संस्कृति और खान-पान, पहनावे और वेशभूषा को, बाज़ार और हाट को, रिक्शा और ऑटो को, सबको देखता है ओर उसके भीतर ज़िंदगी की तलाश करता है। ज़िंदगी की धड़कन को सुनने का प्रयास करता है।”
डेढ़ घंटे के इस सत्र में उपस्थित युवाओं ने कई प्रश्न किए, जिनसे उनकी उत्साहजनक भागीदारी प्रमाणित हुई।
सम्पर्कः मुक्तनगर, दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001, ई-मेल: vinod.sao1955@gmail.com, मो. 9009884014
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