Feb 23, 2018
धीरे- धीरे बहती एक पतली सी उथली धारा...
धीरे- धीरे
बहती एक पतली सी
उथली धारा...
-डॉ. रत्ना वर्मा
सोशल मीडिया अब विचारों के आदान-प्रदान
का एक बहुत बड़ा माध्यम बन गया है। कुछ सार्थक बहस और चर्चा भी यहाँ हो जाती है।
पत्रकारिता के पुराने सहयोगी निकष परमार (स्व. नारायणलाल
परमार के पुत्र)
की वॉल पर पिछले दिनों छत्तीसगढ़ की
नदी पैरी के चित्र के साथ नदी के लेकर लिखी उनकी चार पंक्तियों ने सोचने पर मजबूर
कर दिया कि हम विकास की किसी राह पर चल रहे हैं। निकष ने लिखा हैं- “पैरी
नदी के बारे में ज्यादा नहीं जानता; लेकिन इससे एक
भावनात्मक लगाव है; क्योंकि पापाजी के
बचपन का एक हिस्सा इसके आसपास बीता। गरियाबंद में वे प्राइमरी स्कूल पढ़े और
पांडुका में उन्होंने पढ़ाया। इसी दौरान उन्होंने उपन्यास लिखे। उनकी बातों में
पैरी नदी का जिक्रआता था। अभी दोस्तों के साथ उधर से गुजरना हुआ। रुककर नदी में
उतरे। एक पतली सी उथली धारा धीरे-धीरे बह रही थी।
पानी इतना साफ कि उसके भीतर किताबें रखकर पढ़ी जा सकती थीं। नर्सरी के बच्चों को
वहाँ पिकनिक पर ले जाना चाहिए उन्हें प्रकृति से प्यार हो जाएगा।”
सही
कहा,
बच्चों को वहाँ ले जाना चाहिए। मुझे
अपना बचपन याद आ रहा है- हमें स्कूल और
कॉलेज से पिकनिक के लिए आस- पास के चिडिय़ाघर, संग्रहालय, कोई
पुरातत्त्व- स्थल या नदी
किनारे किसी बाँध पर ले जाया जाता था। प्रकृति के साथ-साथ
अपनी संस्कृति को जानने- समझने का इससे अच्छा
कोई माध्यम हो ही नहीं सकता। ऐसा नहीं है कि आज के बच्चों को पिकनिक पर नहीं ले
जाते,
ले जाते, पर
आज विदेशों की सैर करवाते हैं, ट्रेकिंग पर ले
जाते हैं- और इन सबके लिए
पैकेज टूर बनाया जाता है। जिन अभिभावकों की ताकत उस पैकेज टूर का खर्च वहन करने की
है उनके बच्चे तो विदेश तक घूम आते हैं, भले ही उन्होंने
अपने शहर का संग्रहालय तक न देखा हो। जब पूरी शिक्षा व्यवस्था ने व्यवसाय का रूप
ले लिया है तो बाकी चीजों के बारे में क्या कहें।
तो
बात हमारी नदियों की हो रही थी। भारतीय सभ्यता का मूल हमारी नदियाँ हैं। इन जीवनदायी
नदियों को हम रेगिस्तान में बदलते जा रहे हैं। नदी पहाड़, जंगल, कला- संस्कृति
आदि को बचाने की बात या चिंता हमेशा ही की जाती है। पाठ्य पुस्तकों में भी सब पढ़ाया जाता है।
पर्यावरण और संस्कृति की चिंता करने वाले देश के अनेक मनीषियों ने तो इन सबके लिए
अपना जीवन ही समर्पित कर दिया है। पर प्रकृति की रक्षा के लिए इतना ही प्रयास
पर्याप्त नहीं है। अन्यथा हमारे पर्यावरण चिंतक यह रिपोर्ट क्यों देते कि निकट
भविष्य में पीने के पानी का संकट तो आने ही वाला है, उसके
साथ समूची धरती पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
हमारी
छत्तीसगढ़ सरकार ने भी प्रयास शुरू किए हैं। ईशा फाउंडेशन के साथ मिलकर नदियों को
बचाने के प्रयास की खबरें हैं। नदियों के दोनों तरफ एक किलोमीटर के दायरे में पेड़
लगाकर नदियों को बचाने की योजना है। दरअसल पेड़ लगाना,
पेड़ों को बचाना प्रकृति को हर मुसीबत
से बचाना है;
क्योंकि जहाँ कभी घने जंगल थे, वे भी अब घट रहे
हैं। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार तेजी से कटते साल वनों के कारण
बस्तर के जंगल का अस्तित्व संकट में है। आँकड़ों के मुताबिक 2001
में जहाँ बस्तर में 8202 वर्ग किमी क्षेत्र
वनों से आच्छादित था, वहीं 2017
में यह रकबा कम होकर 4224 वर्ग किमी पर ही
सिमट गया है। इतनी बड़ी संख्या में कम होते वनों का कारण अतिक्रमण, अवैध
कटाई,
खनन, सिंचाई
परियोजनाओं के लिए उपयोग शामिल है, वहीं बढ़ती आबादी
का बस्तर के साल वनों पर खासा दबाव पड़ा है। यदि यह रफ्तार जारी रही तो एक दिन
आएगा कि बस्तर जो कभी घने जंगल के लिए जाना जाता था,
उजाड़ और बंजर हो जाएगा।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmyntEFNTAaP9xDmzvAGtZnuv3_sErJAB1MQusmsTIy_93POUn3bTbN19oSWjLCSHGtlArG9fMLJLHSe6hZ0Rd6DRoLzEAWH2LZmk9RKnQ0GYpcVBREqb9NO5DpQEZCDUySIUyt5w9dxrT/s200/mahanadi-%25C3%25A6%25C3%25B7%25C3%25AA.jpg)
तो
जरूरत वृहद पैमाने पर कदम उठाने की है, सबको जगाने और
जागने की है,
सिर्फ सरकार की ओर ताकने की नहीं।
छत्तीसगढ़ की पैरी नदी की एक पतली-सी उथली धारा, जो
धीरे-
धीरे बह रही है, को
देखकर हुई चिंता को जन-जन की चिंता का
विषय बनाया जाए। हम सब जिम्मेदार हैं अपनी प्रकृति की बर्बादी के लिए तो सबको
मिलकर ही समाधान निकालना होगा। हमारी जीवनदायी इन नदियों पर सिर्फ कुम्भ जैसे भव्य
आयोजन करके,
लाखों दीप जलाकर, इनकी
प्राचीनता का मात्र गुणगान करने से हम इन्हें नहीं बचा सकते। नदियों को जीवनोपयोगी
बनाए रखने के लिए इनका सही तरकी से संरक्षण, संवर्धन हो ऐसा
प्रयास करना होगा। नदियाँ हमारी जीवन-रेखा
हैं। इनकी उपेक्षा करना जीवन की उपेक्षा करना है।
पकौड़े और चाय में बहुत स्कोप है साहेब
"साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार सार को गहि रहै थोथा दे उड़ाय।। "
सार सार को गहि रहै थोथा दे उड़ाय।। "
कबीर दास जी भले ही यह कह गए हों,लेकिन आज सोशल मीडिया का ज़माना है, जहाँ किसी भी बात पर
ट्रेण्डिंग और ट्रोलिंग
का चलन है। कहने का आशय तो आप समझ ही चुके
होंगे। जी हाँ, विषय है
मोदी जी का वह बयान, जिसमें वो "पकौड़े बेचने" को रोजगार की संज्ञा दे रहे हैं। हालाँकि इस पर देश भर में
विभिन्न प्रतिक्रियाएँ आईं; लेकिन सबसे अधिक ध्यान आकर्षित किया देश के पूर्व वित्त
मंत्री पी चिदंबरम के बयान ने, जिसमें वे इस क्रम में भीख माँगने को भी रोजगार कह रहे हैं।
विपक्ष में होने के नाते उनसे अपनी विरोधी पार्टी के प्रधानमंत्री के बयानों का
विरोध अपेक्षित भी है और स्वीकार्य भी; किन्तु देश के
भूतपूर्व वित्त मंत्री होने के नाते उनका विरोध तर्कयुक्त एवं युक्तिसंगत हो, इसकी भी अपेक्षा है। यह तो असंभव है कि वे
रोजगार और भीख माँगने के अन्तर को न समझते हों ;लेकिन फिर भी इस प्रकार के स्तरहीनतर्कों से
विरोध केवल राजनीति के गिरते स्तर कोही दर्शाता है।
सिर्फ चिदंबरम ही
नहीं देश के अनेक नौजवानों ने पकौड़ों के ठेले लगाकर प्रधानमंत्री के इस बयान का
विरोध किया। हार्दिक पटेल ने तो सभी हदें पार करते हुए यहाँ तक कहा कि इस प्रकार की
सलाह तो एक चाय वाला ही दे सकता है। वैसे ‘आरक्षण की भीख’ के अधिकार के लिएलड़ने वाले एक 24 साल के नौजवान से भी शायद इससे बेहतर
प्रतिक्रिया की अपेक्षा नहीं थी।
दरअसल जो लोग इस प्रकार की बयानबाजी कर रहे हैं, वे यह भूल रहे हैं कि इस धरती के हर मानव का सिर उठाकर स्वाभिमान से अपनी जीविका कमाना केवल उसका अधिकार नहीं है, जिसके लिए वे सरकार को जिम्मेदार मानते हैं; बल्कि यह तो उसका स्वयं अपने और अपने परिवार के प्रति उसका दायित्वभी है।
"गरीब पैदा होना आपकी गलती नहीं है; लेकिन गरीब मरना आपका अपराध है" बिलगेट्स, माइक्रोसोफ्ट के अध्यक्ष एवं पर्सनल कम्प्यूटर क्रांति के अग्रिम उद्यमी के यह शब्द अपने भीतर कहने के लिए कम लेकिन समझने के लिए काफी कुछ समेटे हैं।
यह बात सही है कि हमारे देश में बेरोजगारी एक बहुत ही बड़ी समस्या है; लेकिन पूरे विश्व में एक हमारे ही देश में बेरोजगारी की समस्या हो, ऐसा नहीं है।
लेकिन यहाँ हम केवल अपने देश की बात करते हैं। तो सबसे मूल प्रश्न यह है कि स्वामी विवेकानन्द के इस देश का नौजवान आज आत्मनिर्भर होने के लिए सरकार पर निर्भर क्यों है? वो युवा जो अपनी भुजाओं की ताकत से अपना ही नहीं बल्कि देश का भविष्य भी बदल सकता है, वह आज अपनी क्षमताओं, अपनी ताकत, अपनी योग्यता, अपने स्वाभिमान सभी कुछ ताक पर रखकरएक चपरासी तक की सरकारी नौकरी के लिए लाखों की संख्या में आवेदन क्यों करता है? जिस देश में जाति व्यवस्था आज भी केवल एक राजनैतिक हथियार नहीं; बल्कि समाज में अमीर- गरीब से परे ऊँच-नीच का आधार है उस देश में ब्राह्मण ,राजपूत, ठाकुर आदि जातियों तक के युवकों में सरकारी चपरासी तक बनने की होड़ क्यों लग जाती है?
ईमानदारी से सोच कर देखिए, यह समस्या बेरोजगारी की नहीं; मक्कारी की है जनाब!
क्योंकि आज सबको हराम दाड़ लग चुकी है। सबको बिना काम के बिना मेहनत के सरकारी तनख्वाह चाहिए और इसलिए प्रधानमंत्री का यह बयान उन लोगों को ही बुरा लगा, जो बेरोजगार बैठकर सरकार और अपने नसीब को तो कोस सकते हैं, जातिऔर धर्म का कार्ड खेल सकते हैं; लेकिन गीता पर विश्वास नहीं रखते, कर्म से अपना और अपने देश का नसीब बदलने में नहीं देश को कोसने में समय बरबाद कर सकते हैं।
शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि रिलायंस समूह ,जो कि आज देश का सबसे बड़ाऔद्योगिक घराना है, उसकी शुरुआत पकौड़े बेचने से हुई थी। जी हाँ अपने शुरुआती दिनों में धीरूभाई अम्बानी सप्ताहांत में गिरनार की पहाड़ियों परतीर्थ यात्रियों को पकौड़े बेचा करते थे! स्वयं गाँधीजी कहते थे कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता सोच होती है।
आज जरूरत देश के नौजवानों को अपनी सोच बदलने की
है। आज समय इंतजार करने कानहीं उठ खड़े होने का है। एक दिन में कोई टाटा -बिड़ला नहीं बनता और न ही बिनासंघर्ष के कोई
अदानी या अम्बानी बनता है। बिल गेट्स धीरूभाई अम्बानी, जमशेदजी टाटा जैसे लोगों ने अपनी अपनी सरकारों
कीओर ताकने के बजाय खुद अपने लिए ही नहीं
बल्कि देश में लाखों लोगों के लिएरोजगार के अवसर पैदा कर दिए।दरअसल जो लोग इस प्रकार की बयानबाजी कर रहे हैं, वे यह भूल रहे हैं कि इस धरती के हर मानव का सिर उठाकर स्वाभिमान से अपनी जीविका कमाना केवल उसका अधिकार नहीं है, जिसके लिए वे सरकार को जिम्मेदार मानते हैं; बल्कि यह तो उसका स्वयं अपने और अपने परिवार के प्रति उसका दायित्वभी है।
"गरीब पैदा होना आपकी गलती नहीं है; लेकिन गरीब मरना आपका अपराध है" बिलगेट्स, माइक्रोसोफ्ट के अध्यक्ष एवं पर्सनल कम्प्यूटर क्रांति के अग्रिम उद्यमी के यह शब्द अपने भीतर कहने के लिए कम लेकिन समझने के लिए काफी कुछ समेटे हैं।
यह बात सही है कि हमारे देश में बेरोजगारी एक बहुत ही बड़ी समस्या है; लेकिन पूरे विश्व में एक हमारे ही देश में बेरोजगारी की समस्या हो, ऐसा नहीं है।
लेकिन यहाँ हम केवल अपने देश की बात करते हैं। तो सबसे मूल प्रश्न यह है कि स्वामी विवेकानन्द के इस देश का नौजवान आज आत्मनिर्भर होने के लिए सरकार पर निर्भर क्यों है? वो युवा जो अपनी भुजाओं की ताकत से अपना ही नहीं बल्कि देश का भविष्य भी बदल सकता है, वह आज अपनी क्षमताओं, अपनी ताकत, अपनी योग्यता, अपने स्वाभिमान सभी कुछ ताक पर रखकरएक चपरासी तक की सरकारी नौकरी के लिए लाखों की संख्या में आवेदन क्यों करता है? जिस देश में जाति व्यवस्था आज भी केवल एक राजनैतिक हथियार नहीं; बल्कि समाज में अमीर- गरीब से परे ऊँच-नीच का आधार है उस देश में ब्राह्मण ,राजपूत, ठाकुर आदि जातियों तक के युवकों में सरकारी चपरासी तक बनने की होड़ क्यों लग जाती है?
ईमानदारी से सोच कर देखिए, यह समस्या बेरोजगारी की नहीं; मक्कारी की है जनाब!
क्योंकि आज सबको हराम दाड़ लग चुकी है। सबको बिना काम के बिना मेहनत के सरकारी तनख्वाह चाहिए और इसलिए प्रधानमंत्री का यह बयान उन लोगों को ही बुरा लगा, जो बेरोजगार बैठकर सरकार और अपने नसीब को तो कोस सकते हैं, जातिऔर धर्म का कार्ड खेल सकते हैं; लेकिन गीता पर विश्वास नहीं रखते, कर्म से अपना और अपने देश का नसीब बदलने में नहीं देश को कोसने में समय बरबाद कर सकते हैं।
शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि रिलायंस समूह ,जो कि आज देश का सबसे बड़ाऔद्योगिक घराना है, उसकी शुरुआत पकौड़े बेचने से हुई थी। जी हाँ अपने शुरुआती दिनों में धीरूभाई अम्बानी सप्ताहांत में गिरनार की पहाड़ियों परतीर्थ यात्रियों को पकौड़े बेचा करते थे! स्वयं गाँधीजी कहते थे कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता सोच होती है।
तो आवश्यकता है देश के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री की बात समझने की न कि तर्क हीन बातें करने की।
इस बात को समझने की, कि जीतने वाले कोई अलग काम नहीं करते ;बल्कि उसी काम को "अलग तरीके" से करते हैं, शिव खेड़ा ।
वैसे भी अगर इस देश का एक नौजवान पकौड़े बेचकर विश्व के पटल पर अपनी दस्तकदे सकता है और एक चाय वाला प्रधानमंत्री बन सकता है, तो विशेष बात यह है किभारत में अभी भी पकौड़े और चाय में बहुत स्कोप है।
और मोदी जी के विरोधियों को एक सलाह कि वे मोदी विरोध जरा सँभलकर
करें; क्योंकि मोदी भारतीय चाय, खिचड़ी और योग को विश्व में स्वीकार्यता दिलाने
का श्रेय पहले ही ले चुके हैं अब उनके विरोधी भारतीय
पकौड़ों को भी वैश्विक पहचान दिलाने का श्रेय
उन्हीं के नाम करने पर तुले हैं।
सम्पर्कः C/O Bobby Readymade Garments, Phalka Bazar,
Lashkar, walior, MP- 474001, Mob
- 9200050232, Email-
drneelammahendra@hotmail.com, drneelammahendra@gmail.com
शुद्ध हवा के साथ घर भी सुन्दर
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। सबसे ज्यादा खतरनाक तो ये है कि बाहर ही नहीं, घर के अन्दर भी हवा ज़हरीली होती जा रही है। हवा में मौजूद कण साँसों
में घुलकर लोगों को बीमार बना रहे हैं। प्रदूषण से कोई भी अछूता नहीं है और हर आम-ओ-खास इससे
डरा हुआ भी है। इसी डर ने लोगों को पौधों से प्यार करना सिखा दिया है। जिन लोगों
के घर में कभी एक गमला नहीं होता था, उनकी
बालकनी और छत पर मिनी गार्डन सज रहे हैं। घर के भीतर की हवा को शुद्ध रखने के लिये
लोग कमरों में गमले रख रहे हैं और बोनसाई पौधे लगा रहे हैं। वर्ल्ड हेल्थ
ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल
विश्व भर में करीब 4.3 मिलियन
लोग इंडोर पॉल्यूशन से मर जाते हैं। मतलब साफ है कि इंडोर हो या आउटडोर, पॉल्यूशन जानलेवा ही है।
घर
के भीतर की हवा अशुद्ध हो रही है ,तो एयर प्यूरीफायर
का नया चलन देखने को मिल रहा है।यह इन्तजाम जेब पर तो भारी पड़ता ही है, बिजली
की खपत भी बढ़ जाती है। ऐसे में पौधों को लगाकर घर की हवा को शुद्ध बनाए रखने का
चलन तेजी से बढ़ रहा है। इससे स्वस्थ साँसें तो मिलती ही हैं, घर
भी सुन्दर दिखाई देता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इंडोर एयर की कॉम्पोजिशन बाहर
की प्रदूषित हवा से अलग होती है। जहाँ बाहर की हवा में प्रदूषण को पार्टिकुलेट
मैटर,
कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन
और सल्फर डाइऑक्साइड के स्तर को माप कर पता किया जा सकता है,
वहीं घर में इसका पता वोलाटाइल ऑर्गेनिक कम्पाउंड्स, बायो
एयरोसोल्स और नाइट्रस ऑक्साइड से चलता है।
इंडोर पॉल्यूशन पर काबू पाया जा सकता है
वल्लभभाई पटेल ‘चेस्ट इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनोलॉजी’ विभाग के हेड डॉ.राज कुमार का कहना है कि जो पॉल्यूटेंट बाहर होते हैं, वही हमारे घर के अन्दर भी होते हैं लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि उनकी डेंसिटी इंडोर में कम रहती है;लेकिन सबसे अच्छी बात ये है कि इंडोर पॉल्यूशन पर काबू पाया जा सकता है। जहाँ आउटडोर पॉल्यूशन के लिए सरकार और दूसरी एजेंसियाँ ही समाधान ढूँढ़ सकती हैं। इंडोर पॉल्यूशन को काबू करना खुद के हाथ में है। इसके लिये आप एलोवेरा और क्रिजैंथेमस जैसे पौधे लगा सकते हैं। ये जहरीले पदार्थों को फिल्टर करते हैं और ऑक्सीजन के स्तर को बढ़ाते हैं।
प्रदूषण से बचना है तो इन पौधों को लाएँ घर
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2tSGDuq_mxIbenUXZVXiPxQn4h9GVm9h-E_bUGxhuZUFlzSV2t1Pg7uUiwHZvf-PsJRr_ke-yH64AdqP1vlhi0FmnsuJzfl_klR7Hm3iATkWns1MTfK8dDE5EoDeIQfAaFLFV_qDMv_ZI/s200/Ficus-elastica-edt.jpg)
एलोवेरा: इस पौधे को घर में
रखने से यह कार्बन डाइऑक्साइड, फॉर्मेल्डिहाइड और
कार्बन मोनोऑक्साइड को अवशोषित कर लेता है। यह 9
एयर प्यूरीफायर के बराबर काम करता है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgLVQEXIqduslrO2nIR_KkX_sNuzAhuzsUM3nkkn7z1GW0PVJTLn0v95eGdgeP4dlJgrczMitH5RDO4K8jv06tdXgcaRwlkuXw4H1xSnxd_7jTynfRbOYfcrsk3h9MJsRAhQrfxMwvtFRoO/s200/indoor+plants.jpg)
इंग्लिश ईवी: इस पौधे के बारे
में कहा जाता है कि 6 घण्टे के भीतर ये 58
प्रतिशत तक हवा को शुद्ध कर सकता है।
स्पाइडर प्लांट: यह पौधा कम रोशनी
में फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए जाना जाता है। यह
फॉर्मेल्डिहाइड,
कार्बन मोनोऑक्साइड, गैसोलिन
और स्टाइरिन को हवा से अवशोषित करता है। एक पौधा 200
स्क्वायर मीटर तक के स्पेस में हवा को शुद्ध कर सकता है।
स्नेक प्लांट: स्पाइडर प्लांट की
तरह ही,
स्नेक प्लांट भी काफी टिकाऊ होता है।
यह भी कम रोशनी में फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया को पूरा कर लेता है। आप इसे बेडरूम
में लगा सकते हैं क्योंकि, यह रात में ऑक्सीजन
पैदा करता है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiI5DvM0xi1atgpUo0o19ZoDIhZCE6Wc0nl_hAvYYG4OkJhodbrt2sQ1QoTXyE1agulBNx8ZcdGX-1kSaPu6TSyrbKR38-H9JF9oR0sps60Ob_xgdZFTTaAqoCa7tRWMmWAPOWkGNAhhkxM/s200/indoor+plants-2.jpg)
बोस्टन फर्न: ये पौधा इंडोर एयर
पॉल्यूटेंट्स को दूर करने में काफी कारगर है। यह हवा से बेंजीन, फॉर्मेल्डिहाइड
और जाइलिन को खत्म कर हवा को शुद्ध बनाता है। इसे हेंगिंग बास्केट्स में भी उगाया
जा सकता है।
एरेका पाम: इसे बैम्बू पाम, गोल्डन
केन पाम और यलो पाम भी कहते हैं। नासा की रिपोर्ट के मुताबिक, ये
पौधा हवा से जाइलिन और टालुइन को खत्म करता है। यह एक प्रभावी ह्यूमिडिफायर भी है, जो
वातावरण में नमी को बनाए रखता है।
महिलाओं और बच्चों को सबसे ज्यादा खतरा
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgLVQEXIqduslrO2nIR_KkX_sNuzAhuzsUM3nkkn7z1GW0PVJTLn0v95eGdgeP4dlJgrczMitH5RDO4K8jv06tdXgcaRwlkuXw4H1xSnxd_7jTynfRbOYfcrsk3h9MJsRAhQrfxMwvtFRoO/s200/indoor+plants.jpg)
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiuotzkN0jfRnO2blnfmjjOIsBK3I_sTULGan4Lfeunm38-OrOe2N9ZvSO3rsFX0acpuSAHinv6sUd5iRAucWlJzssaz5s4PeC0BbgSHxVQ-uDo5iwkl4bZKXL2yncqS4ioq1CWXIycoyg/s200/english-ivy-indoor-best-plants-.jpg)
50 गज की
छत पर गार्डन
जनकपुरी
के दिल्ली हाट के निवासी राकेश शर्मा ने अपनी 50
गज की छत पर पूरा गार्डन बनाया हुआ है। उन्होंने करीब 20
औषधीय पौधे लगाए हैं। टोकरियों में पौधे और चिड़ियों के घोंसले उन्होंने सजा रखे
हैं।
उन्होंने
बताया कि उनका खुद का अनुभव है कि सुबह के समय पौधों को निहारने से आँखों की रोशनी
बढ़ती है। शर्मा ने बताया कि उन्होंने अपने घर में श्यामा तुलसी, गिलोय, घृतकुमारी, धनिया, पुदीना, पत्थर
चट,
बेलपत्र, लेमन
ग्रास,
करी पत्ता, अदरक, हल्दी, कपूर, तुलसी, ब्राह्मी, अश्वगंधा
आदि औषधीय पौधे लगाए हैं। (इंडिया
वॉटर पोर्टल से साभार- स्रोत-नवोदय
टाइम)
अहमदाबाद अब विश्व धरोहर शहर
अहमदाबाद अब विश्व धरोहर शहर
- जाहिद खान
किसी
भी देश की पहचान उसकी संस्कृति और सांस्कृतिक, प्राकृतिक
व ऐतिहासिक धरोहरों से होती है जो उसे दूसरे देशों से अलग दिखलाती हैं। हमारे देश
में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक ऐसी सांस्कृतिक, प्राकृतिक
और ऐतिहासिक छटाएँ बिखरी पड़ी हैं कि विदेशी पर्यटक उन्हें देखकर मंत्रमुग्ध हो जाएँ।
प्राचीन स्मारक,
मूर्ति शिल्प, पेंटिंग, शिलालेख, प्राचीन
गुफाएँ,
वास्तुशिल्प, ऐतिहासिक
इमारतें,
राष्ट्रीय उद्यान, प्राचीन
मंदिर,
अछूते वन, पहाड़, विशाल
रेगिस्तान,
खूबसूरत समुद्र तट, शांत
द्वीप समूह और भव्य किले। यह धरोहर सचमुच बेमिसाल है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg20NCQmB-ouAy3SvhWwsqGAk8YefNP17pgJbrmVgewuwLQkWyVzKiuhb20xSKQux6bLdvK4055fALu0ViuBxzXRgEflep89U1dZnqDNJXCzrKSCau2x8MW1m4oKqnWRvssI4A15NFb_OeX/s200/Ahmedabad-edt.jpg)
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVXbrY2XRCzV413n5T1YuEVSGmt9CXvdPEhKQMTSZPzXrxxRxr1HaFRpOUCoHrxWiOzCkWJ_qUsgSRt7HG6MtchXQSDFX8lOPjN8F2rRk6oKmZFBVmaQHEtVmngt2SLea_GoGXAmNIFeHJ/s200/ahmedabad-hathisingh-na-dera-edt.jpg)
अहमदाबाद
शहर को विश्व धरोहर की फेहरिस्त में शामिल करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें
बीते सात साल से लगातार कोशिश कर रहे थे। गुजरात सरकार ने अहमदाबाद को वर्ल्ड
हैरिटेज सिटी का दर्जा प्रदान करने के लिए 31 मार्च, 2011 में
इस शहर का विस्तृत विवरण तैयार कर एक प्रस्ताव विश्व विरासत केन्द्र को भेजा था।
प्रस्ताव में अहमदाबाद के अभूतपूर्व सार्वभौम मूल्यों का उल्लेख करते हुए पिछली कई
सदियों से इस शहर की अनोखी बसाहट, आर्थिक, वाणिज्यिक
और सांस्कृतिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के साथ विभिन्न समुदायों के लोगों के बीच
सहअस्तित्व की भावना का खास तौर से उल्लेख था। यही नहीं प्रस्ताव में अहमदाबाद के
परकोटा क्षेत्र में बने ओटले (चबूतरे), पोल और उनकी गलियाँ, पोलों
में रहने वाले लोगों के रहन-सहन को भी शामिल
किया गया था। लकड़ी व स्थानीय ईंटों से तैयार किए गए पोल के मकान अपनी बनावट और
नक्काशी के लिए अनूठी पहचान रखते हैं। इन मकानों के आँगन की खासियत है कि ये
वातावरण को नियंत्रित करने में मददगार साबित होते हैं। पोलों की गलियों का आपसी
जुड़ाव भी अनूठा है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpjT3Hty7bEeHpfF8QaSXv4UX5aFiCM2jFsDRY7PQP2hrOMEQbpSjSeGgnQT4QkEdywXdLHZDR5FSw_0mD7RJ6hePCjtoN7uqFHwir1rc74_4ZHR8_edzQTv3pevoxFYzZV3Pli_YW_WSk/s200/jhulti+minar-edt.jpg)
अहमदाबाद
शहर की स्थापना तत्कालीन मुगल शासक अहमद शाह अब्दाली ने आज से छह सदी पहले 1411 में
की थी। ज़ाहिर है कि उन्हीं के नाम पर बाद में इस शहर का नाम अहमदाबाद पड़ा।
अहमदाबाद
न सिर्फ ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि स्थापत्य कला
के लिहाज़ से भी इसकी एक अलग अहमियत है। चारों ओर दीवारों से घिरे इस ऐतिहासिक शहर
में दस दरवाज़े हैं और 29 ऐतिहासिक महत्व के
स्मारक हैं,
जिनके संरक्षण की ज़िम्मेदारी भारतीय
पुरातात्त्विक सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) पर
है। देश के दीगर ऐतिहासिक शहरों की बनिस्बत इन स्मारकों के संरक्षण का काम यहाँ
बेहतरीन है। इस शहर के स्मारकों की नक्काशी व बनावट लाजवाब है। इनको देखकर अतीत का
पूरा परिदृश्य साकार हो जाता है। जामा मस्जिद, रानी
रूपमती की मस्जिद, झूलती मीनारें, हट्टी
सिंह का जैन मंदिर, शाही बाग पैलेस, कांकरिया
झील,
भद्र का किला, सीदी
सैयद की मस्जिद,
साबरमती आश्रम, लोथल, अदलज
की बाव,
मोढेरा का सूर्य मंदिर, तीन
दरवाज़ा,
सीदी बशीर मस्जिद, नल
सरोवर,
विजय विलास पैलेस आदि सांस्कृतिक
विविधता को प्रदर्शित करने वाले ये स्थल और स्मारक देशी-विदेशी
सैलानियों को अपनी खूबसूरती से अचंभित कर देते हैं।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfEiNSfefRkIHwXGDQlsTvaZ_TOa0VnhnHtDF2Kk1RPz3SiXCA5hAdHXnOqa-xBLqj6Vks4LkWoFoOIZmvkKR2rBR8d64-DzUJdX4IPIKkl8RqTtITxfx-nSJTbhM-a_iB4-rWyS9FuzF1/s200/aham-+Pole-edt.jpg)
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अब
जबकि अहमदाबाद को विश्व धरोहर का दर्जा मिल गया है, तो
केंद्र व राज्य सरकार दोनों की ये सामूहिक ज़िम्मेदारी बनती है कि वे इस शहर के
ऐतिहासिक स्मारकों और पर्यटक स्थलों को और भी ज़्यादा बेहतर तरीके से सहेजने और
संवारने के लिए एक व्यापक कार्ययोजना बनाएँ ताकि ये अनमोल धरोहर हमारी आने वाली पीढ़ियों के
लिए भी सुरक्षित रहें। विश्व विरासत की सूची में शामिल होने के बाद, निश्चित
तौर पर ज़िम्मेदारियों में भी इजाफा होता है। ज़िम्मेदारियाँ न सिर्फ सरकार की बढ़ी
हैं,
बल्कि हर भारतीय नागरिक की यह
ज़िम्मेदारी बनती है कि वह अपनी इन अनमोल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजे।
(स्रोत
फीचर्स)
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