बटन बंद करने की योग्यता
- विजय जोशी
(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)
(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)
एट्सो
(एबिलिटी
टू स्विच आफ)
यानी बटन बंद करने की योग्यता, इस
दर्शन से मुझे हाइडलबर्ग सीमेंट्स, जर्मनी की भारत इकाई के निदेशक श्री
जमशेद कूपर ने अवगत कराया। दो दशक पूर्व तक न तो हमारे पास मोबाइल थे और न ई- मेल, तब
भी हम प्रगति और विकास कर पा रहे थे।
आज संस्थाएँ चतुर हो गई हैं। केवल एक लेप टाप व मोबाइल की सुविधा प्रदान कर
उन्होंने हमें हमारे प्रियजनों के साथ बिताए जाने वाले पलों को हमसे छीन लिया है।
सोचिए, मोबाइल पर एक रिंग बजते ही हम अपने बच्चों से
बात करना छोड़ की- पेड पर उँगलियाँ चलाते हुए स्क्रीन पर नजर गड़ा
देते हैं, मानों संसार के धराशायी हो जाने जैसा कोई
समाचार प्रतीक्षारत हो और जिसे जानकर कार्यवाही करना हमारे उत्तरदायित्व का अंग
हो।
आज
तक कुछ ही लोग समझ पाए हैं कि टेक्नालॉजी
ने उनके साथ क्या कर दिया। कंपनियाँ या संस्थाएँ मुस्कुरा रही हैं कि मात्र 8
घंटे के दाम देकर वे आपको 24 घंटों के लिए बंधक बना चुकी हैं।
इस
दिशा में सबसे पहला कदम वाक्सवेगन नामक जर्मन कंपनी ने उठाया, जब
वर्कर्स की मांग पर पहली शिफ्ट समाप्ति के 30 मिनट पूर्व से अगली शिफ्ट शुरू होने
के 30
मिनट बाद तक अपने सर्वर बंद करना आरंभ कर दिया। कंपनी का उद्देश्य उनसे काम लेने
का था। जर्मनीवासी निजी जीवन में टेक्नालॉजी के इस अतिक्रमण को लेकर काफी
संवेदनशील हो गए हैं।
यह
सच है कि संवाद की सुविधा से उत्पादकता में अभिवृद्धि हो रही है लेकिन दूसरी ओर यह
चिंता बढऩे का कारण भी बन रही है। मेल या मोबाइल से अंतरंगता हमें अपनों से दूर ले
जा रही है। हम एक बार आगत मेल का अवलोकन करने के बाद भी बार-बार
इन-बाक्स
को आदतन क्लिक करते रहते हैं। और तो और खाली इन बाक्स अब हमें किसी हद तक अवसाद की
ओर भी ले जाने लगा है।
एरोस
नामक फ्रेंच कंपनी ने पाया कि वर्कर्स आंतरिक संदेशों पर ही कई घंटे बर्बाद कर
देते हैं अत:
उनके यहाँ इस सुविधा में कटौती करते
हुए 2014
से आंतरिक ई-
मेल संवाद पर पूरी तरह प्रतिबंध का निर्णय ले लिया गया है। एक
सर्वे के मुताबिक 100 % में से केवल 15 % ई- मेल ही उपयोगी थीं। एक
अन्य डिटर्जेंट कंपनी हेंकल ने तो क्रिसमस एवं नववर्ष के बीच केवल अत्यावश्यक मेल
की अनुमति ही प्रदान की है।
एक
अन्य विद्वान ओर्ता ओसोरियो ने कहा कि जब मैं स्काटलेंड से अपने 90
वर्षीय पिता के साथ छुट्टी मनाकर लौटा तो एक अद्भुत अनुभव से मेरा साक्षात्कार
हुआ। बच्चे वहाँ पर वर्तमान उपकरण जैसे लैपटाप, मेल, टी.वी. की
सुविधा के अभाव में गंभीर पढ़ाई की ओर उन्मुख हुए। आपस में खूब बातचीत की, जल्दी
उठना आरंभ किया और वे उपकरण के बदले अपने उस पिता के साथ थे, जो
उन्हें वहाँ पर आसानी से उपलब्ध भी था।
मेरे
विद्वान मित्र श्री जमशेद आगे कहते हैं कि पिछले एक वर्ष में मैंने भी बटन बंद कर
पाने की योग्यता के गुण का विकास अपने व्यक्तित्व में करने का प्रयास किया है। मैं
घर पहुँचने के पश्चात न तो लेपटाप को छूता हूँ और न मोबाइल को। और यदि छूना आवश्यक
हो भी जाए तो एक लंबे अंतराल के बाद। इसी को कहते है बटन बंद करने की योग्यता का
सिद्धांत।
सम्पर्कः 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक
सेतु के पास)
भोपाल- 462023, मो. 09826042641,
email- v.joshi415@gmail.com
2 comments:
आज के परिप्रेषय में सार्थक।
महोदय, हार्दिक धन्यवाद।
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