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पं. दीनदयाल उपाध्याय पर डाक टिकट जारी करते हुए अटल जी के साथ बृजलाल वर्मा |
बृजलाल वर्मा की जेल डायरी के अंश
(संपादन -डॉ.रत्ना वर्मा)
अटल जी जब भी आते
मेरे लिए खाना लाते
26 जून 1975 से इंदिरा गांधी द्वारा पूरे देश में आपात्काल लगाते ही कांग्रेस विरोधी राजनैतिक दलों के प्रमुख तथा सक्रिय कार्यकर्ताओं
को देश भर के विभिन्न जेलों में बंद कर दिया गया। मेरे बाबूजी (स्व. श्री बृजलाल
वर्मा ) भी उनमें से एक थे। आपात्काल के दौरान जेल में रहते हुए उन्होंने अपने जीवन की
यादों को डायरी के रुप में लिखना आरंभ किया और उन 22 महीनों में उन्होंने अपने बचपन से लेकर शिक्षा, वकालत, परिवार और फिर राजनीतिक जीवन की घटनाओं
को सिलसिलेवार लिखा है। यह जेल डायरी एक
प्रकार से उनका जीवन-वृत्तान्त है। रायपुर के अलावा सिहोर, जबलपुर और दिल्ली
की जेलों में भी रहे। जेल में रहते हुए उनकी तबियत खराब हो गई थी और उनका एक
ऑपरेशन भी हुआ था। दिल्ली सेन्ट्रल जेल में रहते हुए वे इलाज के लिए आल इंडिया
मेडिकल इंस्टीट्यूट दिल्ली में भर्ती थे। उस दौरान अटल बिहारी बाजपेयी अक्सर उनके स्वास्थ्य की जानकारी लेने तथा राजनीतिक गतिविधियों पर चर्चा
करने आया करते थे। अपनी जेल डायरी में उन्होंने अटल जी का कई जगह उल्लेख किया है।
कुछ अंश यहाँ अटल जी को श्रद्धांजलि स्वरूप प्रस्तुत है-
आल इंडिया मेडिकल
इंस्टीट्यूट दिल्ली
18-12-1976
कल आल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट दिल्ली के स्पेशलिस्ट प्रो.
सुरेन्द्र मानसिंह ने मेरी बीमारी की जाँच के बाद बताया कि आपके ऑपरेशन
(प्रोस्टेट) के वक्त ही इसमें खराबी आ गई है; अत: फिर से जो
नई तकनीक आई है, उससे ऑपरेशन करना पड़ेगा, लेकिन हम कह नहीं सकते कि हमें इसमें
सफलता मिल ही जाएगी। उनके अनुसार वे पुन: ऑपरेशन के पक्ष में नहीं दिख रहे थे; इसलिए जवाब दे दिया कि दो चार दिनों के बाद मुझे छुट्टी दे दी जाएगी। मैंने
सोचा था देर से ही सही भारत के इस सबसे बड़े और अच्छे अस्पताल में मेरा जब इलाज
होगा, तो मेरी तकलीफ दूर हो जाएगी; पर यहाँ भी भाग्य
ने मेरा साथ नहीं दिया। लगता है मुझे सारा जीवन इसी हालत में बिताना पड़ेगा।
मेरी बीमारी को लेकर
परिवार वालों ने रायपुर में ऑपरेशन न कराने की बात कही थी। चीफ मिनिस्टर सेठी ने
भिलाई अस्पताल में इलाज व ऑपरेशन के लिए भी
कहा था, पर चूँकि वहाँ सरकारी अस्पताल नहीं है ,अत: यह संभव नहीं हो सका। भला एक मीसा बंदी स्वतंत्र रूप से प्राइवेट अस्पताल
में कैसे इलाज करा सकता था?
अंत में रायपुर में ही डॉ. तिवारी ने अपने ढंग से सावधानी
बरतते हुए ऑपरेशन किया। ऑपरेशन के बाद असिस्टेण्ट डॉ. अग्रवाल (एम. एस.) ने बताया कि मेरे ऑपरेशन में बहुत परेशानी हुई है, पता ही नहीं चलता
था कि प्रोस्टेट ग्लैन्ड कहाँ है? बड़ी मुश्किल से प्रोस्ट्रेट ग्लैन्ड दिखे और ऑपरेशन किया
गया। खून भी बहुत बहा ,जो कि साधारण तौर से नहीं बहता। इसके
बाद यूरिन बूँद-बूँद टपकता ही रहता था, जिसका इलाज मेरे ऑपरेशन में हुई गड़बड़ी के कारण संभव ही नहीं दिख रहा था।
अब मैं बड़ी आशा से आल
इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट दिल्ली में इलाज के लिए आया, पर यहाँ भी जवाब मिल गया कि वे मुझे अच्छा नहीं कर सकते।
मैं तो सरकार को ही इसका दोषी मानता हूँ, मेरे मन के
मुताबिक जहाँ मेरा विश्वास था, वहाँ के अस्पताल या डॉक्टर से इलाज
कराने से इंकार कर दिया जबकि चीफ मिनिस्टर हुक्म दे सकते थे, भिलाई में इलाज
के लिए। जिस तरह से इस समय मेडिकल इंस्टिट्यूट दिल्ली में भेजा गया है उस समय भी भिलाई भेजा जा सकता था,
मेडिकल इंस्टिट्यूट दिल्ली भी पूर्ण रूप से सरकारी नहीं है, जब यहाँ इलाज हो सकता है तो भिलाई में
क्यों नहीं हो सकता था। पर उन्हें तो मुझे तंग करना था, सताना था।
मेरे साथ जो हुआ, यह राजनैतिक बैर हैं,
दुश्मनी है ,जो एक प्रजातांत्रिक देश में नहीं
होना चाहिए, किसी भी शासन को अपने विरोधियों के साथ गलत व्यवहार या गलत सलूक नहीं करना
चाहिए। विचारधाराओं में अंतर होता है, कार्य करने की रूपरेखा तथा देश को किस दिशा की ओर ले जाना
है इसमें अंतर रहता है, लेकिन कोई व्यक्तिगत द्वेष या दुश्मनी नहीं होती। यह हमारा दुर्भाग्य है कि यह
देश ऐसे लोगों के हाथ में पिछले 30 वर्षों से है जिसने देश को शासन को अपनी बपौती
बना लिया है।
18-12-1976
आज अटल बिहारी वाजपेयी जी
मुझसे मिलने अस्पताल आये। इससे पहले भी वे तीन-चार बार आकर मिल चुके हैं। उन्होंने
बताया कि करुणानिधि सभी
विरोधी दलों की मीटिंग करके इस मीसा तथा आपात्कालीन स्थिति का अंत करने हेतु चर्चा कर
रहे हैं। सभी विरोधी दलों के नेताओं ने एक प्रस्ताव पास भी किया। यह भी जानकारी दी कि इसी के बाद दूसरे दिन
दिसंबर की 16 और 17 तारीख को पाटिल द्वारा बुलाई गई चारों विरोधी दलों कांग्रेस
(पुरानी), जनसंघ, भारतीय लोक दल तथा समाजवादी पार्टी के
सभी प्रमुख लोग जो बाहर थे मिले और इस निश्चय पर पहुँचे कि हम सब एक दल में शामिल
हो जाएँगे। अपनी-अपनी कार्यकारिणी में भी इसका प्रस्ताव पास कर लेंगे और उसका नाम 'जनता कांग्रेस’ होगा। इस नए दल का झंडा दो रंग का
होगा -ऊपर केसरिया नीचे हरा तथा बीच में हल और चक्र होगा। इस पर
सब लोग एक मत हो गए। सिद्धांतों पर
भी एकमत हो गए तथा कार्यक्रमों
पर भी कोई मतभेद नहीं रहा। इसकी जानकारी जयप्रकाश जी को देने के लिए एक व्यक्ति
चला भी गया है; लेकिन इस नई
पार्टी के अध्यक्ष, सेक्रेटरी के संबंध में साफ बात नहीं हुई । इस बारे में अटल जी से मालूम हुआ
कि जहाँ तक मुझे जानकारी है, भारतीय लोकदल के मुखिया चौधरी
चरणसिंह को ही अध्यक्ष बनाएँगे तथा जनसंघ के किसी नेता को जनरल सेक्रेटरी, बाकी सभी दलों के
लोगों को भी एक- एक पद दिया जाएगा। इसका ऐलान होना अभी बाकी है, क्योंकि ऐलान करने में कांग्रेस कई तरह की बाधाएँ खड़ी कर सकता है। उन्होंने
बताया कि समाचार पत्रों में भी यह जानकारी भेज दी गई है। मीटिंग में सभी का रूख अच्छा था ।सभी एक होने के मत में थे। समाजवादी
यह चाहते थे कि उनका नाम पार्टी के नाम के साथ आ जाए।
जनसंघ का रुख खुलकर सामने
आया कि चाहे जो भी नाम हो,
चाहे जैसा भी झंडा हो सबको एक मंच पर आना जरूरी है। अब देखना यह है कि इसका ऐलान
कब किया जाता है
चारों दलों में एकता तथा एक पार्टी वाली बात
सबसे पहले चरणसिंहजी ने की थी, वे उस बात पर अड़े थे कि सब अपना-अपना अस्तित्व खत्म करके
एक नया दल बना लें ,जिसमें मैं जरा भी कोई अडंग़ा नहीं
डालूँगा, मुझे न कोई पद चाहिए न ही कोई शर्त ही रखूँगा; लेकिन जब इस पर
सब राजी हो गए, तो उन्हीं ने पद के संबंध में सबसे
ज्यादा अडंग़ा डालाकि किसे मिलाएँ और किसे न मिलाएँ। जनसंघ या आर.एस.एस. की क्या
रूपरेखा होगी, इस पर बहुत ज्यादा तूल दिया । इसे लेकर जयप्रकाशजी को बड़ी
पीड़ा हुई। उसी प्रकार से समाजवादी दल ने भी अपने प्रतिनिधित्व तथा अपनी पार्टी के
प्रोग्राम व समाजवाद के नाम पर कई प्रकार का उल्लेख करके एकता में बाधा डाली।
कांग्रेस (पुरानी) ने भी अपने नाम को किसी
भी कीमत में छोडऩा नहीं चाहा और यही कहते रहे कि सभी कांग्रेस में शामिल हो जाएँ।
इन्हीं सबके कारण एकता होने में इतनी देर लगी। मैं समझ सकता हूँ कि इस कारण से हमारे समर्थक तथा
पार्टी के लोगों को, जो जेल के भीतर और बाहर हैं, उन्हें भी बहुत पीड़ा हुई होगी। कई तो इन्हीं मतभेदों या विवाद के कारण
इंदिरा कांग्रेस में चले गए। आम जनता में भी
इस बात की प्रतिक्रिया अच्छी नहीं रही।
अगर हम चारों विरोधी दल इस आपात्काल व मीसा के विरोध में दृढ़ होकर एक
पार्टी जल्द बनाकर ऐलान कर देते, तो लोगों को, कार्यकर्ताओं को बहुत बल मिलता और संगठन की शक्ति बहुत ज्यादा ताकतवर तथा
प्रभावशाली होती। हमने अपने 30 वर्ष यूँ हीं गवाँ दिए और कांग्रेस (सत्ता) के खिलाफ एक
अच्छा मोर्चा नहीं बना पाए, इसी से जनमानस
में हमारा अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा। जब भी हमने मोर्चा बनाया जैसे गुजरात, जबलपुर, भोपाल में लोगों
ने साथ दिया, पर यह कमजोरी हम विरोधी दलों की ज्यादा है कि हमने अपना रूप जनता के सामने
अच्छा नहीं रखा, इसीसे मात खाते रहें। अब जयप्रकाश
सरीखे नेता हमारे मार्गदर्शन के लिए आगे आएँ हैं। इसी तरह आचार्य जे.बी. कृपलानी,
मुरारजी भाई और अटल जी जैसे स्वाभिमानी और
प्रतिभाशाली जन नेता हमारे साथ हैं तथा सारा युवा वर्ग भी साथ में है, तो फिर काहे का
डर। सब एक होकर एक बड़ी ताकतवर पार्टी बन
जाएँ, तो इस अन्यायी शासन, नौकरशाही और तानाशाही प्रवृत्ति को खत्म करने से हमें कोई नहीं रोक सकता।
आखिर हमने प्रजातंत्र के
लिए ही आजादी की लड़ाई लड़ी है। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने प्रजातंत्र को ही आगे बढ़ाकर ग्राम स्वराज्य तक ले जाने
पर जोर दिया और उसी नारे की बदौलत सारे ग्रामवासियों ने स्वतंत्रता आंदोलन में तन-
मन- धन से साथ दिया किग्राम स्वतंत्र होगा, प्रजातंत्र का असली रूप विकेन्द्रीकरण
के रूप में ग्राम-ग्राम में घर-घर में दिखेगा।
संविधान के इस संशोधन ने तो हमारा सारा नागरिक मूलभूत अधिकार ही खत्म कर
दिया है, साथ ही न्याय पालिका को भी भ्रष्टकरके उसके अधिकारों को
छीनकर सारा अधिकार कार्यपालिका को देकर संविधान का पूरा असल ढाँचा ही बदल दिया।
22-12-1976
कल मुझे अस्पताल से
डिस्चार्ज किया जाना है। यहाँ मुझे एक माह
रखा गया और अंत में यही पाया कि पहले ही ऑपरेशन के वक्त जो गलती हुई है वह अब सुधारा नहीं जा सकता। दूसरे ऑपरेशन में रिस्क है; इसलिए नहीं किया गया। अब मुझे रबर का बैग हमेशा पहने रहने पड़ेगा। इस मीसा ने
हमेशा के लिए मुझे एक बीमारी दे दी है। वह
जिंदगी भर मुझे याद रहेगी। इसे मैं अपना दुर्भाग्य कहूँ या सरकार की ओर से ज्यादती
कहूँ, क्योंकि मेरी इच्छा के मुताबिक जहाँ
मुझे इलाज कराना था, वहाँ इलाज कराने नहीं दिया गया, जबकि मनुष्यता के
नाते यह किया जाना चाहिए। पर इस सरकार में जो मुख्य पदों पर आसीन है, उन्हें मनुष्यता छू तक नहीं गई है और आम नागरिक को और खासतौर से अपने से
विरोधी विचार वालों को तो वे आदमी समझते ही नहीं।
आज डॉ. मानसिंह मुझसे मिलने आए और बड़ी हमदर्दी के साथ कहा कि 'मैं आपकी कुछ भी
मदद करने में असमर्थ रहा, मुझे दु:ख है कि आप इतनी दूर आशा से आए, निराश होकर जा रहे हैं। ’ फिर उन्होंने मुझे यू.एस.ए. का पता तथा उसका विवरण भी दिया तथा लंदन का भी
पूरा डिटेल दिया; क्योंकि वहाँ का जो यूरिन बैग आता है ,वह अच्छा रहता है, ज्यादा दिन टिकता है। डॉक्टर मानसिंह
ने एक अच्छे डॉक्टर होने का फर्ज अदा किया और मुझे भी पूर्ण संतोष हुआ कि उन्होंने
मेरी जो जाँच की है ,उसमें न कोई जल्दबाजी की है और न किसी
किस्म की लापरवाही ही की है।
मैंने अपने इस इलाज
संबंधी बातों को लेकर गृह विभाग दिल्ली तथा अपने प्रान्त के मुख्यमंत्री पं.
श्यामाचरण शुक्ला और चीफ सेक्रेटरी को भी पत्र भेजा है कि मुझे किसी और जगह, जहाँ इसका इलाज हो सकता है भेजा जाए, चाहे वह जसलोक
अस्पताल बंबई हो या फिर मुझे इलाज के लिए
जेल से मुक्त कर दिया जाए ,जिससे मैं कहीं भी जाकर अपना इलाज करा
सकूँ। देखे सरकार क्या करती है। मुझे तो उनसे कोई आशा नहीं है कि वे कुछ इस ओर
ध्यान देंगे।
22-12-1976
शाम को 5 बजे माननीय अटलजी मेरे पास पुन: आए और उन्होंने बतलाया कि डॉ. मानसिंह
का कहना है किजो मेरी शिकायत
प्रोस्टेट ग्लैन्ड संबंधी थी,
उसे ठीक कर दिया गया
है। यह सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह क्या बात है? इतना बड़ा डॉक्टर
ऐसी झूठी बात इतने बड़े आदमी से कैसे कह सकता है। जबकि 4 घंटे पहले ही उन्होंने
मुझे यही कहा कि वे उसे ठीक नहीं कर सकते, क्या अटलजी को सुनने में गलतफहमी हुई।
देखें कल मैं उनसे तथा एम.एस. से मिलकर चर्चा करूँगा तभी बात साफ होगी।
23-12-1976 को मेडिकल सुपरिटेण्डेण्ट ने मुझे बुलाया तथा मुझसे मेरी दरखास्तों के संबंध से बात की, जो कि मैंने होम मिनिस्ट्री सेंटर तथा म.प्र. के चीफ मिनिस्टर को भी दी है, इन्हीं के जरिये वहाँ भेजेंगे। कहा है तथा मुझे एक हफ्ता और अस्पताल
में रहने के लिए कहा।
23-12-1976
आज एम.एस. से मिलकर आने
के बाद कुछ सुस्ती के कारण लेटा हुआ था, तभी करीब 11.30
बजे मेरे सामने राजमाता विजया राजे सिंधिया
ग्वालियर मुझसे मिलने आईं। यहाँ एक और राजा बीमार है, उन्हें वे देखने आई थीं, जब उन्हें मालूम हुआ कि मैं भी यहाँ हूँ, तो वे मेरे पास भी पहुँचीं। खड़े-खड़े ही उन्होंने दो तीन मिनट बात की और कहने
लगी कि उन्होंने राजनीति छोड़ दी है, ऐसा उनके गुरु ने आज्ञा दी है। मैंने इसका विरोध
किया और कहा कि ऐसा हो नहीं हो सकता। आपको साथ में
चलना होगा पर वे नहीं- नहीं ही कहती रहीं। मैंने जब कहा कि ईश्वर हमारा साथ देगा, ऐसा करना और
सरकार की कार्यवाही के कारण डरकर चुप्पी साध लेना तथा गुरु की आज्ञा की आड़ लेने को मैं सिर्फ
एक बहाना ही मानता हूँ। क्या गुरु इस प्रकार से
आज्ञा देंगे ,जिसमें यह कहा जाएगा कि अन्याय, अत्याचार का
विरोध करने के बजाय चुप बैठ जाओ। हम डरकर भय से, चुप्पी साध लें, वह कहाँ तक ठीक है। मैं दो तीन मिनट में क्या बात करता और मैं कटु बात भी नहीं
कहना चाहता था; क्योंकि मैंने उन्हें पूज्य माना है और बड़ा माना है।
एक समय था कि हमें उन्होंने ही आश्वासन, प्रोत्साहन व
साहस दिया था कि हम एक अत्याचारी चीफ मिनिस्टर पं. द्वारका प्रसाद मिश्र को सत्ता
से हटाने में कामयाब हुए थे। मैं राजमाता जी की आज्ञा व आदेश से ही जनसंघ में आया; क्योंकि मैंने नजदीक से जनसंघ को देखा था और पाया था कि यही एक ऐसा भारतीय दल
है जहाँ लोग ईमानदारी से
नि:स्वार्थ होकर जनहित को मुख्य रूप से ध्यान रखकर कार्य करते हैं। इसलिए मैं अपने
सभी साथियों सहित, जनसंघ में खुशी-खुशी दाखिल हुआ। जनसंघ ने हम सब साथियों का उचित सम्मान किया, और अभी भी उनका
स्नेह तथा सौजन्य हमारे साथ है। पर ऐसे नाजुक समय में राजमाता विजयाराजे सिंधिया
का राजनीति से अलग होने की बात कहना कुछ ठीक नहीं लगता। वे एक क्षत्रिय नारी हैं तथा समझदार हैं। इस प्रकार से अत्याचार के आगे अपना सिर झुका
देना, कायरता है और कायरता दुनिया में सबसे बड़ा पाप है, जिसे ईश्वर भी
क्षमा नहीं करेगा। सार्वजनिक कार्यों में, राजनीति में उतार-चढ़ाव तो होते रहते हैं; पर इस उतार चढ़ाव में जिसने निर्भय
होकर दृढ़ता से उसका मुकाबला नहीं किया, सामना नहीं किया, कायरता दिखलाई, वह मानव धर्म के विरुद्ध है, ऐसे ही कारणों से हिन्दू धर्म का नाश
हुआ है, राष्ट्र में हमारी गौरवशाली परिपाटी थी, संस्कृति थी उसका हनन हुआ, जो हमारा चरित्र
था ,उसका नाश हुआ है। अत: हम सबको मिलकर मुकाबला करना होगा। विश्वास है राजमाता जी
अपना मत बदल लेंगी।
मनुष्य की परीक्षा अच्छे
दिनों में नहीं, खराब दिनों में ही, मुसीबतों में ही होती है। सुख के तो
सभी साथी होते हैं; पर जो दु:ख में मुसीबत में साथ रहे, वही साथी है। यह बात जरूर है। शुरू में राजमाता जी ने जब
शासन का विरोध किया था तो दृढ़ता तथा वीरता का परिचय दिया था और तब हम सब भी इनके
साथ आ गए। अब जबकि देश की
हालत अत्यंत शोचनीय है, हमारा अस्तित्व ही खतरे में है, हमारी स्वतंत्रता ही खत्म कर दी गई है, हमारे अधिकार से
खत्म हो गए, तब इनका मुकाबला न करके उससे विमुख होना कायरता है।
(जनसंघ, कांग्रेस (0), भारतीय क्रांति दल,
समाजवादी पार्टी ने मिलकर बनाया एकदल)
भारतीय जनता पार्टी का
जन्म प्रजातंत्र की रक्षा व तानाशाही को खत्म करने के लिए हुआ है। 'राष्ट्रपिता
गाँधी जी’ के बतलाए मार्ग सत्य और अहिंसा पर चलते हुए, जिसमें उन्होंने कहा है कि जनहित, देशहित, प्रजा के
अधिकारों की रक्षा के लिए मनुष्य को अपना सब कुछ बलिदान कर देना चाहिए। जब तक
मनुष्य में आत्मशक्ति, स्वाभिमान, अत्याचार और अनाचार, अन्याय का विरोध करने की शक्ति नहीं है, वह मनुष्य नहीं जानवर है। जो मनुष्य
अत्याचार, अन्याय देखकर चुप हैं,
उससे ज्यादा पापी और कोई नहीं है। हमें अन्याय के प्रतिकार
के लिए बलिदान देना होगा। सत्य और अहिंसा, कमजोरों का नहीं वीरों का अस्त्र है, निर्भय, ताकतवर व
स्वाभिमानों का अस्त्र है। जनता पार्टी का
आधार यही है, इसी रास्ते से चलते हुए हमारी योजना बनेगी तथा कार्य होंगे।
28-12-1976
आज शाम लगभग साढ़े छह बजे
अटल जी पुनः मुझसे मिलने आए, पिछले सप्ताह वे
दिल्ली से बाहर थे, अत: 5-6 दिनों से मिलने नहीं आ पाए
थे; अन्यथा वे दो चार दिनों के अंतराल में मुझसे मिलने अस्पताल आ ही जाते हैं, साथ ही बहुत
प्रेम से मेरे लिए कुछ न कुछ खाने की वस्तुएँ भी लाते
हैं। उनके दिल में मेरे प्रति कितना प्यार
है, यह मुझे महसूस होता है। इतने बड़े भारतीय तथा अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त
नेता का प्रेम पाकर मैं अपने को बहुत ही भाग्यशाली मानता हूँ। उनका सहज, सरल स्वाभाविक
रूप आत्मीयता व बड़प्पन का परिचय देता है। मैं उनका हमेशा आभारी रहूँगा। पिछली बार
जब वे आए थे, तो उन्होंने मुझे चारों पार्टी के मिलने का शुभ समाचार दे ही दिया था। आज
उन्होंने बताया कि इन चारो दलों के एक होने
के संदर्भ में जो वैधानिक कार्यवाही, कार्यकारिणी समिति में पास करने को लेकर है, वह भी 15 दिनों
में पूरी कर ली जाएगी। कांग्रेस के नाम को
लेकर लोगों में कुछ हिचक है; लेकिन देश व पार्टी के सामने जिस तरह
की परिस्थितियाँ हैं; उसे देखकर बीमारी दूर करने के लिए
जिस प्रकार डॉक्टर की दी हुई कड़वी दवाई हम खुशी से पीते हैं ,उसी तरह इसे भी पी लेना होगा। सबका एक मन से एक होना देशहित में जरूरी है।
झंडा दो रंग का केसरिया और हरा रहेगा ।जिसके बीच में चक्र और हल होगा। नाम होगा जनता कांग्रेस। आदर्श, गाँधी जी के
ग्राम स्वराज्य का होगा अर्थात राजनैतिक, आर्थिक व सामाजिक
रूप से सत्ता का पूर्णरूपेण विकेन्द्रीकरण। प्रजातंत्र की रक्षा करना बुनियादी कदम
होगा, जिसके लिए हम सभी चारों दलों को एक होना अत्यंत आवश्यक है।
करुणानिधि द्वारा पार्टी के मुद्दे तय
करने के लिए जो मीटिंग बुलाई गई थी। उसमें कहा गया
कि श्रीमती इंदिरा गाँधी से बात करें, उन्होंने यह भी बताया कि अशोक मेहता जी ने पार्टी की ओर से
बात करने हेतु प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था, परंतु
प्रधानमंत्री का जवाब निराशाजनक था। जानकारी मिली कि प्रधानमंत्री बात करने को
राजी नहीं हैं तथा वे चाहती हैं कि यदि हम उनके किसी भी कार्यक्रम का विरोध न करते
हुए उनका समर्थन करेंगे ,तब वे बात करेंगी। तब विरोधी पार्टियों
ने इसका जवाब भी भेज दिया कि प्रधानमंत्री अगर बिना शर्त बात करने को तैयार हों ,तभी हम लोग (विरोधी दल) बात करने को तैयार हैं।
हमें आशा थी कि पिछले
दिनों पवनार आश्रम में जो तीन दिवसीय सर्वोदय सम्मेलन आचार्य विनोबा भावे के
निर्देशन में हुआ, उसमें कुछ हल निकलेगा पर; उन्होनें भी साफ जवाब दे दिया कि
सर्वोदयी लोग राजनीति में भाग लिये बगैर जनहित का कार्य करेंगे। इस तरह आचार्य
भावे ने अपने को इस मामले से अलग-थलग कर लिया। जबकि वे उक्त सम्मेलन का मसविदा
तैयार करके इंदिरा गाँधी से मिलने के लिए भटकते रहे थे, पर इंदिरा गाँधी
के पास उनकी बात सुनने के लिए वक्त नहीं था। इसके बाद दूसरे सम्मेलन की भी चर्चा
चली पर उसकी भी सुनवाई नहीं हुई। फिर आचार्य जी ने गोवध रोकने के लिए आमरण अनशन का
एलान किया, उनके समाचार पत्र में इस अनशन का समाचार प्रकाशित हुआ। इस पर पुलिस ने आश्रम
को घेर कर तलाशी ली व समाचार पत्र जब्त कर लिया। लेकिन विनोबा जी तब भी चुप रहे, और अब तो
उन्होंने हमेशा के लिए अपने को तमाम
विचारों तथा तर्क करने से अलग कर लिया।
कम्युनिस्ट सी.पी.आई. भी
कांग्रेस के साथ थी, लेकिन इंदिरा गाँधी ने मतलब निकलते
ही उन्हें भी जवाब दे दिया। दोनों एक दूसरे का उपयोग करके अपना-अपना काम साधना
चाहते थे, सी.पी.एम. ने अच्छा किया जो उन्होंने स्वयं को दूर रखा पर सी.पी.आई. ने सरकार
को आँख मूंदकर समर्थन करके अपनी दुर्गति कर ली, आखिर में उसी सरकार ने उसे लात मार
दिया। डी.एम.के. भी अब सँभल गया है, ऐसा लगता है ;पर देखे वह विरोध में कहाँ तक टिकता है। अकाली दल तो साथ में रहेगा ही।
1970 में पुराने कांग्रेस से अलग जो पार्टी बनी, उस नई कांग्रेस ने सत्ता के बल पर इंदिरा कांग्रेस बना लिया और उसे ही असली
कांग्रेस का रूप दे रही है, जो कि धोखा है और आमतौर से झूठा बयान
है। हिन्दू महासभा के नेता स्वामी
श्रद्धानंद, महामना मालवीय, सावरकर जी जैसे लोगों ने वर्षों आजादी के नाम पर यातनाएँ सही हैं तथा बलिदान दिया है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक के लोग
सन् 1921 से 1930 तक लगातार कांग्रेस आंदोलन में साथ रहकर जेल गये। उसके अधिष्ठïता हेडगेवार खुद
आजादी के आंदोलन में जेल गये। ऐसे न जाने कितने हजारों लोगों ने बलिदान दिया पर
इंदिरा गाँधी ऐसा व्यवहार कर रही हैं, मानों उन्होंने ही सारा बलिदान दिया
और बाकी लोगों ने ब्रिटेन का साथ दिया।
जबकि सत्य यह है कि मुस्लिम लींग तथा कम्युनिस्टों ने 1942 में खुलकर
अंग्रेजों का साथ दिया तथा गाँधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया। यह ऐतिहासिक
सत्य है। उसे भी इंदिरा गाँधी छिपा रही हैं; क्योंकि वे उक्त
दोनों दल के साथ मिलकर कार्य कर रही हैं। यह फरेब और झूठ ज्यादा दिन नहीं चलेगा, आज नहीं तो कल ये
सारे तथ्य सामने आ ही जाएँगे।
आज इंदिरा गाँधी विरोधी
दलों से बातचीत न करके यह कह रहीं हैं कि अपनी माँगों के लिए आपात्काल के पहले विरोधी दलों ने जो कुछ भी किया, वह सब राष्ट्र विरोधी,
गलतव देशद्रोह था, यह कहाँ तक उचित है। वे चाहती तो किसी
भी मसले पर चर्चा करके अपना मत रख सकती हैं तथा जिन लोगों ने आगजनी, मारकाट, हिंसा की है उसे
सजा दे सकती है, लेकिन अपनी माँगों को लेकर जो अहिंसक
आंदोलन था, चाहे वह आंदोलन धरना के रूप में हो, प्रचार के रूप में हो, सभा के रूप में
हो, प्रदर्शन या रैली
के रूप में हो, उसे राष्ट्र विरोधी कहना बिल्कुल गलत है। एक समय था जब लोगों ने नाज़ी तरीका यूरोप में देखा था, वही सब अब भारत
में भी दिखाई दे रहा है। लेकिन वे जान लें
कि प्रचार के सभी साधनों को अपने हक में करके सिर्फ अपना प्रचार कर, अपनी सत्ता मजबूत
कर रहीं हैं वह ज्यादा दिनों तक टिकेगा नहीं।
1-1-1977
आज प्रात: 9 बजे
विद्याचरण शुक्ला (राज्यमंत्री केन्द्र शासन) मुझसे अस्पताल में मिलने आए। 15-20 मिनट मुझसे
बातचीत की और कहा कि मेरी बीमारी तथा मेरी समस्या के संबंध में वे अपने बड़े भाई
पं. श्यामाचरण शुक्ला मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश से चर्चा करेंगे, जो कि आज-कल में दिल्ली आ रहे हैं। विद्याचरण का मत था कि ऐसी बीमारी की
स्थिति में सरकार को मुझे रिहा कर देना चाहिए; क्योंकि जब कई
अन्य मीसाबंदियों को, जो बीमार थे रिहा कर दिया गया है, तो फिर मुझे रिहा करने में क्या
आपत्ति होनी चाहिए।
मुझे बीमार जानकर वे यहाँ
आकर स्वत: मिले, यह उनकी मनुष्यता का परिचय देता है। साथ ही मेरे पिताजी
तथा उनके पिताजी के समय से हमारे जो घरेलू संबंध थे, उस नाते भी उनका यहाँ आना उनकी सदाशयता को दर्शाता है। मुझे अच्छा लगा कि पार्टी विरोधी होते
हुए भी मानवता के नाते वे मुझसे मिलने आए और मेरा हाल- चाल पूछा। केन्द्र तथा
प्रान्त को मैंने अपनी बीमारी के इलाज संबंधित जो दरखास्त दीगई हैं, उसकी कॉपी देने
की बात भी वे जाते- जाते कह गए।
इधर जेल में आते ही 30-12-1976 से 1-1-1977 तक
मैं लगातार हृदय रोग से भी पीडि़त हूँ। 1973 के बाद फिर से इस प्रकार दर्द हृदय में हुआ, इससे मैं बिस्तर
पर पड़ गया था, चलना फिरना बंद हो गया था तथा डॉक्टरों ने 15 दिनों के लिए बिस्तर से उठकर
चलने की पूर्ण मनाही कर दी थी।
इस समय भी मैं हृदय रोग
के कारण बिस्तर पर पड़ा हूँ,
डॉक्टर इलाज कर रहे हैं। जबकि रायपुर में प्रोस्टेट के
आपरेशन में जो गलती हुई थी, उसके इलाज के लिए बैंगलोर या बंबई ले
जाने की बात मेडिकल सुपरिटेंडेंट ने सरकार को लिखकर भेज दी थी। लापरवाही के कारण व सही इलाज उपलब्ध
न कराने के कारण मैं साल भर से परेशान हूँ। मुझे यह बीमारी जेल में हुई और जेल में
रहते हुए ही आपरेशन हुआ, सरकार का फर्ज है कि वह मेरा स्वास्थ्य ठीक रखें। पर सही इलाज के लिए सही जगह
भेजने में भी वह कोई रुचि नहीं दिखा रही है।
7-1-1977
आज शाम अचानक जेल से एक
अधिकारी आया और उसने जानकारी दी कि मुझे सरकार ने बिना शर्त एक माह के लिए पेरोल
में छोडऩे का आर्डर भेजा है। मैं हृदय रोग से बिस्तर पर पड़ा था, मुझे डॉक्टरों ने
15 दिन तक बिस्तर पर पूर्ण आराम के लिए आज्ञा दी थी, मैं बहुत कमजोरी की हालत में पड़ा था, ऐसी स्थिति में
कैसे यह पेरोल का आर्डर? जबकि मैंने पेरोल माँगा भी नहीं था और
अब यदि चाहूँ तो भी मेरा स्वास्थ्य ऐसा नहीं है कि मैं अस्पताल से या कमरे से बाहर
जा सकूँ। तब मैंने जेल अधिकारी को लिखकर भेजा कि मैं ऐसी हालत में पेरोल पर नहीं
जा सकता, यह भी कि जब मैंने पेरोल माँगा नहीं है, तो क्यों दिया
गया। जबकि सरकार को तो मैंने यह लिखा है
कि वह मेरा इलाज जहाँ भी इसकी व्यवस्था है, वहाँ कराए या
फिर मुझे रिहा करे, जिससे मैं अपनी इच्छा अनुसार इलाज
करा सकूँगा। ऐसा न करके वह अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए मुझे पेरोल दे रही है, वह भी एक माह के
लिए। यह जानते हुए कि मैं अभी चलने फिरने लायक नहीं हूँ। अत: मैंने जेल
सुपरिटेंडेंट को पेरोल में जाने से इंकार का खत लिखित में भेज दिया। साथ ही इसकी
जानकारी अस्पताल मेडिकल सुपरिन्टेन्डेण्ट को भी लिखकर दे दिया।
आज ही बलौदा बाजार से
मेरे साथी चक्रपाणि शुक्ला भी मेरी
बीमारी का हाल सुनकर मिलने आए।
हार्ट अटैक का समाचार
सुनकर अटल जी आज फिर मुझसे मिलने आए। उन्हें इस बात
का बड़ा सदमा लगा कि सरकार क्यों इस प्रकार से एक बीमार मीसा निरुद्ध के साथ गलत व्यवहार कर रही है।
बिना इलाज की व्यवस्था किए पेरोल का ऑर्डर भेजना उन्हें भी अच्छा नहीं लगा। मेरे
यह बताने पर कि मैंने पेरोल में जाने से
इंकार का पत्र सरकार को भेजा है, उन्हें भी ठीक लगा।
उनका भी यही कहना है कि या तो वे इलाज कराने जहाँ भी उचित व्यवस्था है, वहाँ भेजें; क्योंकि उन्हीं की लापरवाही तथा गलती के कारण मैं तकलीफ पा
रहा हूँ या फिर रिहा करें,
जिससे चाहे जहाँ जाकर इलाज करा सकें। अब देखें केंद्र सरकार
की होम मिनिस्ट्री तथा प्रान्त के चीफ मिनिस्टर मेर पेरोल पर न जाने के निर्णय पर
क्या रुख अख्तियार करती है।
बाद में जेल अधिकारियों
से मुझे यह भी पता चला कि वे मुझे फिर से जबलपुर सेंट्रल भेजने का ऑर्डर
29-12-1976 को भेज चुके थे,
फिर अनायास दो दिनों बाद उन्होंने पेरोल का आर्डर क्यों भेजा ,यह समझ से परे है। अब जो भी हो वे हमें जैसा रखेंगे रहना पड़ेगा। पर यह पूरा
विश्वास है कि इस तरह के अत्याचार पूर्ण
व्यवहार व तौर- तरीकों से कोई भी शासन ज्यादा दिन तक टिक नहीं सकता।
9-1-1977
आज अटल जी का पत्र मिला
कि उनकी भी तबियत कुछ खराब है, थोड़ा-थोड़ा रोज बुखार आ जाता है। मुझे बड़ी चिन्ता हुई।
मैं सोचने लगा कि कम से कम हमारा एक मुख्य जिम्मेदार आदमी बाहर तो है ,जो कि हम लोगों की समस्या को हल करने में लगे हैं साथ ही अन्य विरोधी दलों तथा
जयप्रकाश जी से सम्पर्क कर एक नए दल के निर्माण
लगे हैं। आज वे भी बीमार हो गये।
आज यह समाचार भी मिला कि
सरकार तथा विरोधी दल के बीच पिछले दिनों जो पत्र व्यवहार हुआ है उससे लगता है कि
दोनों इस आपात्कालीन स्थिति तथा मीसा के राजनैतिक बंदी
के मसले को हल करने को तैयार हो गये हैं और बिना शर्त बात होगी यह तय हुआ है। यह
एक शुभ संकेत है।
10-1-1977
शाम को 5 बजे तबियत खराब
होने के बावजूद अटल जी फिर मुझसे मिलने आए, और सभी राजनैतिक गतिविधियों के बारे
में बताया, मेरी तबियत के बारे में भी पूछा। उन्होंने बताया कि चारों दलों का मेल हो जाने
में कोई कठिनाई नहीं है, कांग्रेस (पुरानी ) ने कार्यकारणी में एक मत से प्रस्ताव पास कर लिया है तथा
मार्च में भारतीय स्तर पर एक सम्मेलन भी रखा है। बी.एल.डी. और समाजवादी भी अपनी
कार्यकारिणी में प्रस्ताव पास कर ही कर लेंगे और हम तो राजी ही हैं। आसार अच्छे
हैं।
कम्युनिस्टों को तो
इंदिरा गाँधी ने अलग कर ही दिया है। उनके
रुख से अब सभी विरोधी दलों को पता चल गया कि इंदिरा गाँधी का राजनैतिक, सामाजिक तथा
व्यक्तिगत चरित्र क्या है। वहाँ ईमानदारी की राजनीति नहीं है, सत्ता की राजनीति
है।
11-1-1977
पिछले 8-10 दिनों से
लगातार समाचार-पत्र में इंदिरा गांधी
द्वारा यह प्रचार किया जा रहा है कि विरोधी दल देश की प्रगति के लिए घातक है। साथ
में वे यह भी कह रहीं हैं कि वह
प्रजातंत्र को किसी भी हालत में खत्म नहीं करना चाहती। वे तथा रक्षामंत्री बंसीलाल
लगातार यह नारा लगा रहे हैं कि देश तभी आगे बढ़ेगा जबकि केन्द्र का शासन शक्तिशाली
रहेगा, केन्द्र को ज्यादा से ज्यादा अधिकार मिलेगा तथा संविधान (फेडरल) संघीय न रहकर केन्द्रीय रूप हो जाए। हमारे
देश के जितने भी महान महापुरुष थे जैसे
लोकमान्य तिलक, सुभाष चंद्र बोस, महामना मालवीय, स्वामी श्रद्धानंद, सरदार पटेल, चक्रवर्ती राज गोपालाचार्य, सी.आर.दास तथा सरदार भगत सिंह, आजाद आदि ये सभी
राग द्वेष से दूर निर्भय व्यक्ति थे, अन्याय के
प्रतिकार में सबसे आगे रहते थे। वैसे महान लोग अब गिनती के ही रह गए हैं जैसे
आचार्य जे.बी. कृपलानी, मोरार जी भाई
तथा अटल बिहारी वाजपेयी एवं चंद्रशेखर
आदि। इन्हीं पर आज देश की आशाएँ टिकी हैं। जयप्रकाश नारायण पर सबकी निगाहें लगी
हैं, वे यदि हमारे अगुवा तथा मार्ग दर्शक बन जाएँ, तो हमारे बहुत
से कार्य सफल हो जाएँगे।
12-1-1977 मध्यप्रदेश की जेलों की याद
इंदिरा गाँधी यह कहकर
लोगों में झूठा प्रचार कर रहीं हैं कि कुछ प्रमुख राजनैतिक नेताओं को छोड़कर सभी
को छोड़ दिया है। तथा कुछ गिने- चुने लोग ही जेलों में 'मीसा’ के अंतर्गत बंद हैं। लेकिन सत्य यह है कि एक लाख से भी अधिक लोग जेल में हैं।
जेलों में उनके साथ जिस तरह से व्यवहार हो रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। इस
मामले में मध्यप्रदेश सरकार अन्य प्रान्तों की सरकार से आगे है। वहाँ तो कहीं न
कहीं रोज राजनैतिक बंदियों पर लाठियाँ चलती है और शिकायत पर कुछ नहीं होता है। कोई
फर्क नहीं। राजनैतिक बंदियों को किस क्लास में रखा जाए ,इसका कोई नियम नहीं। बहुत कम को ए.बी. क्लास दिया गया है। समाज व संस्थानों
में जो अच्छे-अच्छे पदों पर है ,जैसे- डॉक्टर, वकील उन्हें सी
क्लास दिया गया है। मेरे बारे में खुद आई.जी.जेल ने कहा कि आपके बारे में भी चीफ
मिनिस्टर तथा मिनिस्टर कहते हैं कि उन्हें क्यों अन्य कैदियों से ज्यादा सहूलियत
देते हो। यह बात मुझसे सिवनी जेल में आईजी ने कहा था।
सिवनी जेल में पं.
रविशंकर शुक्ला, पं. द्वारका प्रसाद मिश्रा तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस, उनके भाई
शरदचंद्र बोस रह चुके हैं वहीं मैं भी था और अपने को भाग्यवान मानता हूँ किजिन
महान पुरुषों ने जहाँ अपना जेल जीवन बिताया ,वहाँ मुझे भी
रहने का मौका मिला। जिस जेल में कभी प्रतिभाशाली तथा बड़े-बड़े नेताओं को रखने की
व्यवस्था थी ,उसे आज तोड़-फोड़ कर एक साधारण जेल बना दिया गया है, वहाँ आज कोई भी
सुविधा नहीं है। वही हाल जबलपुर जेल का भी है ,जहाँ कुछ ऐसे
स्थान थे जहाँ राजनैतिक बंदियों तथा अंग्रेज बंदियों को रखने की जगह अलग से बनी थी, अस्पताल भी अच्छा
था, उसकी भी व्यवस्था
सरकार ने खराब कर दी। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश के जेलों की जो हालत है, वह सभी प्रान्तों से बदत्तर है।
18-1-1977
बंबई में आल इंडिया जनसंघ
की कार्यकारिणी की बैठक, जो तारीख 22-23 को होगी, उसके लिए मैंने अटलजी के आदेश के अनुसार अपनी भी राय लिखी, तथा महामंत्री
त्यागी जी को देने के लिए भेज दिया। यूँ तो मैंने पहले भी अटलजी तथा भंडारी जी से
चारों दल, कांग्रेस (0) भारतीय क्रांति दल, समाजवादी तथा जनसंघ के एक होने के बारे में चर्चा कर चुका
हूँ, वे मेरे अधिकतर विचारों से सहमत भी हैं, पर समाजवादी तथा
भारतीय क्रांति दल जो अलग विचार रखते हैं ,उनपर भी मैंने
अपनी राय लिखी है। पद पर तो कोई भी रहे कोई एतराज नहीं ,जब एक होना ही है ,तो कौन किस पद को सँभाले कोई अहम प्रश्न नहीं है। लेकिन
सिद्धांतों पर ज्यादा ध्यान देना पड़ेगा ,क्योंकि जैसा हम
चाहते हैं कि भारतीय संस्कृति के आधार पर हमारी योजना तथा कार्य करने की शैली बने।
जहाँ तक भाषा का सवाल है ,तो हमारा देश ग्रामीणों, कृषकों का है और
कम राजनैतिक सूझबूझ वाले हैं; इसलिए ऐसी भाषा का उपयोग करें कि हर
ग्रामीण सहजता से उसे समझ सके।
हम समाजवादी शब्द का
उपयोग 30-40 वर्षों से करते आ रहे हैं, लेकिन उसके बाद भी हम उसका सही मतलब
बतलाने में असफल रहे हैं, क्योंकि इसका उपयोग कम्युनिस्ट, फासिस्ट, हिटलर मुसौलनी, लेलिन,
स्टेलिन माऊ और जवाहरलाल ने भी किया। सभी ने उसका अलग-अलग
अर्थ लगाया। अब रूस को खुश करने के लिए इंदिरा गाँधी ने भी उसे अपने संविधान में
जोड़ दिया है। अत: हम इसका उपयोग न करें तो अच्छा है, ऐसा मेरा सुझाव
है, लेकिन समाजवादी
इस पर जोर दे रहे हैं। जबकि हम समझाने की कोशिश कर रहे हैं यह राष्ट्रहित में नहीं
है; क्योंकि हमारी जो राष्ट्रीयकृत संस्थाएँ भिलाई, राऊरकेला, दुर्गापुर तथा पेपर
मिल, चावल मिल, अनाज का व्यापार है, वहाँ नौकरशाही का राज है। राजाओं का राज भले ही खत्म कर दिया गया है; लेकिन अब सरकारी आई.सी.एस. व बड़े-बड़े सरकारी अधिकारियों के रूप में नए राजा जगह-जगह बैठा दिए गए हैं। इन
सबसे देश में सिर्फ गरीबी ही बढ़ रही है फायदा कुछ नहीं हो रहा है। इन्हीं सब
कारणों से मैंने गाँधीजी के ग्राम स्वराज्य वाली छोटे योजनाओं की बात लिखी
है। हम शब्दों और नारों के चक्कर में न पड़े
तथा इन सरकारी नौकरशाही की योजनाओं व उनके विचारों में अपना समय नष्ट न करें। हम
ग्रामीण देश के निवासी हैं,
मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है, अत: इन सब बातों पर विचार करके ही योजना बनाएँ। अब देखना है कि आगे क्या होता
है।
एक पार्टी का ऐलान जयप्रकाश जी जल्दी ही कर
देंगे ऐसा विश्वास है।
(आगामी अंक में जारी)