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Sep 9, 2018

मुंबई की आर्ट-डेको इमारतें विश्व धरोहर

मुंबई की आर्ट-डेको इमारतें विश्व धरोहर
                                         - जाहिद खान
किसी भी देश की पहचान उसकी संस्कृति तथा सांस्कृतिक, प्राकृतिक व ऐतिहासिक धरोहर से होती है। यह धरोहर न सिर्फ उसे विशिष्टता प्रदान करती है बल्कि दूसरे देशों से उसे अलग भी दिखलाती है। हमारे देश में हर तरफ ऐसी सांस्कृतिक, प्राकृतिक और ऐतिहासिक छटाएँ बिखरी पड़ी हैं। प्राचीन स्मारक, मूर्ति शिल्प, पेंटिंग, शिलालेख, प्राचीन गुफाएँ, वास्तुशिल्प, ऐतिहासिक इमारतें, राष्ट्रीय उद्यान, प्राचीन मंदिर, अछूते वन, पहाड़, विशाल रेगिस्तान, खूबसूरत समुद्र तट, शांत द्वीप समूह और आलीशान किले।

इनमें से कुछ धरोहर ऐसी हैं, जिनका दुनिया में कोई मुकाबला नहीं। ऐसी ही अनमोल धरोहर दक्षिण मुंबई की विशेष शैली में बनीं 19वीं सदी की दर्जनों विक्टोरिया गॉथिक और 20वीं सदी की आर्ट डेको इमारतें हैं जिन्हें अब विश्व विरासत का दर्जा मिल गया है। यूनेस्को की विश्व विरासत समिति ने हाल ही में बहरीन की राजधानी मनामा में हुई अपनी 42वीं बैठक में विक्टोरिया गॉथिक और आर्ट डेको इमारतों को अपनी विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया है। एलिफेंटा और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस स्टेशन के बाद मुंबई को यह तीसरा विश्व गौरव मिला है। इस घोषणा के साथ ही भारत में विश्व धरोहर स्थलों की सूची में 37 स्थान हो जाएँगे। यही नहीं, सबसे अधिक 5 धरोहर स्थलों के साथ महाराष्ट्र पहला राज्य हो जाएगा। ओवल ग्राउंड के साथ यह परिसर मियामी (अमेरिका) के बाद विश्व का एकमात्र ऐसा इलाका है, जहां समुद्र तट पर अन्य विक्टोरियन गॉथिक इमारतों के साथ बड़ी तादाद में बेहतरीन आर्ट डेको इमारतें मौजूद हैं। इनकी संख्या तकरीबन 39 होगी। यूनेस्को के इस फैसले के साथ ही मुंबई की पहचान अंतर्राष्ट्रीय फलक पर और भी मज़बूती के साथ दर्ज हो गई है।
विक्टोरिया गॉथिक और आर्ट डेको इमारतों को विश्व धरोहर की फेहरिस्त में शामिल करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार बीते चार साल से लगातार कोशिश कर रही थीं। युनेस्को को प्रस्ताव तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने साल 2012 में ही भेज दिया था। कोशिश अकेली सरकार की नहीं थी, बल्कि इसमें मुंबई के नागरिक भी जुड़े हुए थे। सही बात तो यह है कि उन्होंने ही इसकी सर्वप्रथम पहल की थी। यूडीआरआई, काला घोड़ा एसोसिएशन, ओवल कूपरेज रेसिडेंट्स एसोसिएशन, ओवल ट्रस्ट, नरीमन पॉइंट चर्चगेट सिटिज़न एसोसिएशन, हेरिटेज माइल एसोसिएशन, फेडरेशन ऑफ रेसिडेंट्स ट्रस्ट, आब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन और एमएमआर हेरिटेज कंज़र्वेशन सोसायटी जैसे संगठनों ने इसके लिए जमकर मेहनत की और बाकायदा एक अभियान चलाया। यूनेस्को की समिति जब इन स्थलों का दौरा करने मुंबई आई तो जानी-मानी वास्तु रचनाकार आभा नारायण लांबा और नगर विकास विभाग के प्रधान सचिव नितिन करीर ने मुंबई का पक्ष मज़बूती से रखा। आभा नारायण लांबा ने मुंबई के दावे का शानदार डोज़ियर बनाया और चौदह साल तक लगातार कोशिश करती रहीं कि ये इमारतें विश्व धरोहर में शामिल हो जाएँ। अंतत: ये कोशिशें रंग लार्इं और अंतर्राष्ट्रीय स्मारक और स्थल परिषद् की सिफारिश पर विक्टोरिया गॉथिक और आर्ट डेको इमारतों को विश्व विरासत की फेहरिस्त में शामिल कर लिया।
विश्व धरोहर सूची में किसी जगह का शामिल होना ही ये बताता है कि उस जगह की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कितनी कीमत होगी। युनेस्को की सूची में शामिल होने के बाद निश्चित तौर पर मुंबई में पर्यटकों की संख्या और बढ़ेगी।

आर्ट डेको इमारतों की बात करें, तो ये इमारतें मुंबई के वास्तुकला का अलंकार हैं। आर्ट डेको इमारतें (बॉम्बे डेको) दरअसल, युरोप और अमेरिका में 1920 और 1930 के दशक में फैले स्थापत्य आंदोलन की देन हैं। दक्षिण मुंबई में चर्चगेट स्टेशन और मंत्रालय के बीच स्थित अंडाकार क्रिकेट ग्राउंड ओवल मैदान के नाम से मशहूर है। ओवल मैदान के दाहिनी ओर करीब एक ही शैली में कतार से आर्ट डेको या मुंबई डेको शैली में बनी 125 से अधिक इमारतें हैं। इनका निर्माण प्रथम विश्व युद्ध खत्म होने के बाद साल 1920 से 1935 के बीच हुआ। उस समय मुंबई के नवधनाढ्यों द्वारा बनवाई गई इन इमारतों की शृंखला ओवल मैदान के किनारे तक ही सीमित नहीं रही। समुद्री ज़मीन पाटकर एक ही शैली की ये आर्ट डेको इमारतें मरीन ड्राइव पर भी बनाई गर्इं। ये आज भी नरीमन पॉइंट से गिरगांव चौपाटी तक खड़ी दिखाई देती हैं। इस शैली की इमारतों को विभिन्न वास्तुकारों ने डिज़ाइन किया था। आर्ट डेको इमारतों में रीगल सिनेमा, रजब महल, इंडिया इंश्योरेंस बिल्डिंग, न्यू एम्पायर सिनेमा, क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया, इंप्रेस कोर्ट, सूना महल, ओशियाना, इरोस सिनेमा और मरीन ड्राइव की कई रिहाइशी इमारतें शामिल हैं। कुछ आर्ट डेको इमारतें मुंबई के उत्तरी क्षेत्र में भी हैं।

ओवल मैदान के बार्इं ओर विक्टोरियन गॉथिक शैली की पुरानी बेहद खूबसूरत इमारतें हैं। इन इमारतों को सर गिल्बर्ट स्कॉट, जेम्स टिबशॉ और ले. कर्नल जेम्स फुलर जैसी हस्तियों ने डिज़ाइन किया था। इनका निर्माण ज़्यादातर 19वीं सदी के उत्तरार्ध में हुआ था। फोर्ट क्षेत्र की विक्टोरियन शैली की इमारतों का वैभव चमत्कृत कर देने वाला है। इन इमारतों में मुंबई हाई कोर्ट, मुंबई विश्वविद्यालय, एलफिंस्टन कॉलेज, डेविड ससून लाइब्रोरी, छत्रपति शिवाजी वास्तु संग्रहालय, पुराना सचिवालय, नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट, पश्चिम रेल मुख्यालय, क्रॉफर्ड मार्केट, सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज व एशियाटिक लाइब्रोरी और महाराष्ट्र पुलिस मुख्यालय प्रमुख हैं। 19वीं सदी की ये इमारतें ओल्ड बांबे फोर्ट की दीवारों से घिरी हुई थीं। बाद में दीवारें गिरा दी गर्इं, लेकिन इलाके के नाम के साथ फोर्ट शब्द जुडा रह गया। 11वीं सदी में विकसित युरोपियन शैली की इन इमारतों में गॉथिक शैली का वास्तुशिल्प है। इमारतों में लेसेंट खिड़कियाँ और दागे हुए काँच का भरपूर इस्तेमाल किया गया है, जो इन्हें बेहद आकर्षक बनाता है। मुंबई में हर साल आने वाले लाखों पर्यटक इन्हें देखकर कहीं खो से जाते हैं।

यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत में शामिल कर लिए जाने के बाद कोई भी जगह या स्मारक पूरी दुनिया की धरोहर बन जाता है। इन विश्व स्मारकों का संरक्षण यूनेस्को के इंटरनेशनल वर्ल्ड हेरिटेज प्रोग्राम के तहत किया जाता है। वह इनका प्रचार-प्रसार करती है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा पर्यटक इन स्मारकों के इतिहास, स्थापत्य कला, वास्तु कला और प्राकृतिक खूबसूरती से वाकिफ हों। विश्व विरासत की सूची में शामिल होने का एक फायदा यह भी होता है कि उससे दुनिया भर के पर्यटक उस तरफ आकर्षित होते हैं। अब केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार की सामूहिक ज़िम्मेदारी बनती है कि वे दक्षिण मुंबई की इन शानदार इमारतों को सहेजने और सँवारने के लिए एक व्यापक कार्य योजना बनाए। न सिर्फ सरकार बल्कि हर भारतीय नागरिक की भी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वह अपनी अनमोल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को सहेज कर रखे। इनके महत्व को खुद समझे और आने वाली पीढ़ियों को भी इनकी अहमियत समझाए। एक महत्वपूर्ण बात और, जो भी विदेशी पर्यटक इन ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को देखने आए, उन्हें यहाँ सुरक्षा, अपनत्व और विश्वास का माहौल मिले। वे जब अपने देश वापिस लौटकर जाएँ, तो भारत की एक अच्छी छवि और यादें उनके संग हों। (स्रोत फीचर्स) 

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