फलों का सरताज सेब
- डॉ. ओ. पी. वर्मा
पूरा विश्व सेब को फलों का सरताज या 'किंग ऑफ
फ्रूट्स' मानता
है। सेब सर्वव्याप्त, स्वास्थ्यप्रद और स्वादिष्ट फल है।
इसकी उत्पत्ति केप्सियन सी और ब्लेक
सी के बीच घने उपवन में हुई है। आज यह स्थान कजाखस्थान में आता है, लेकिन
अब सेब की पैदावार पूरे विश्व में होती है।
विश्व में सेब की 7500 प्रजातियां पाई जाती है। रेड डेलीशियस, गोल्डन
डेलीशियस, ग्रेनी
स्मिथ, मेकिंटोश, जोनाथन, गाला और
फ्यूजी आदि इसकी प्रमुख किस्में हैं। चीन, अमेरिका, तुर्की, पॉलेन्ड और इटली इसके प्रमुख उत्पादक देश
हैं।
भले आज पूरा विश्व कश्मीर और हिमाचल
प्रदेश के सेबो का दीवाना हो, लेकिन भारत में सेब का इतिहास मात्र 100 वर्ष
पुराना ही है। भारत में सेब को लाने का श्रेय सैमुअल इवान स्टोक्स (जन्म - 16 अगस्त, 1882 मृत्यु -
14
मई, 1946) नाम के अमेरिकन को जाता है। उन्हें
भारत में सेब क्रांति का अग्रदूत कहा जाता है।
पोषक तत्वों का अनूठा संगम
सेब में कैलोरी कम होती है। इसमें
सोडियम, संत्रप्त
वसा या कॉलेस्ट्रोल बिलकुल नहीं होता है। सेब में विटामिन-सी और बीटाकेरोटीन
पर्याप्त मात्रा में होता है। इसमें फ्लेवोनॉयड और पॉलीफेनोल्स प्रजाति के अनेक
एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं। इसकी एंटीऑक्सीडेंट क्षमता 5900 टी.ई.
होती है। सेब में पाये जाने वाले प्रमुख फ्लेवोनॉयड्स क्युअरसेटिन, एपिकेटेचिन, प्रोसायनिडिन
बी-12
हैं। इसमें बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन जैसे राइबोफ्लेविन, थायमिन, पाइरिडोक्सीन
प्रचुर मात्रा में होते हैं। पोटेशियम, फोस्फोरस और कैल्शियम खनिज तत्वों में
प्रमुख हैं।
हालांकि सेब में फाइबर की मात्रा
बहुत अधिक नहीं होती है। 100 ग्राम सेब में 2-3 ग्राम ही
फाइबर होता है, जिसमें
50प्रतिशत
पेक्टिन होता है। लेकिन यह फाइबर सेब के अन्य पोषक तत्व के साथ मिल कर रक्त में
फैट्स और कॉलेस्टेरोल की क्षमता को कई गुना बढ़ा देता है। सेब की रक्त के फैट्स को
कम करने की क्षमता फाइबर से भरपूर कई अन्य खाद्य पदार्थों से भी अधिक होती है।
लेकिन हृदय रोग में पूरा फायदा लेने के लिए आपको सिर्फ पेक्टिन लेने से काम नहीं
चलेगा, बल्कि
आपको पूरा सेब खाना पड़ेगा।
सेब के चमत्कारी गुण
पॉवरफुल पॉलीफेनॉल्स: पिछले वर्षों
में सबसे अधिक शोध पॉलीफेनोल्स पर हुई है। सेब में इन पॉलीफेनोल्स का अनूठा
सन्तुलित देखने को मिलता है, शायद इसीलिए सेब खाने वाले लोगों से रोग भी
डरते है। सेब में क्युअरसेटिन नाम का फ्लेवोनॉल प्रमुख फाइटोन्युट्रियेन्ट है, जो गूदे
से ज्यादा इसके छलके में होता है। इसके साथ केम्फेरोल और माइरिसेटिन भी महत्वपूर्ण
हैं। क्लोरोजेनिक एसिड सेब का प्रमुख फिनोलिक एसिड है, जो गूदे
और छिलके में समान रूप से पाया जाता है। सेब की लाल रंगत का राज हमेशा एंथोसायनिन
होता है, जो
अधिकतर छिलके में ही सिमित रहता है। यदि सेब पूरा लाल है या लाल रंग बहुत गहरा है, तो उसमें
एंथोसायनिन बहुत अधिक होता है। सेब में एपिकेटेचिन प्रमुख केटेचिन पॉलीफेनोल्स
होता है। सेब के बीज में मुख्य पॉलीफेनोल्स फ्लोरिड्जिन ( 98% ) होता
है। सेब के गूदे में कुल पॉलीफेनोल्स 1-7 ग्राम प्रति किलो हिसाब से होते
हैं। विदित रहे कि सेब के छिलके में प्रकाश संश्लेषण क्रिया करने वाली कोशिकाएं
सूर्य की V-B
किरणों के प्रति बहुत संवेदनशील होती है और छिलके में विद्यमान अधिकांश
पॉलीफेनोल्स UV-B
किरणों को सोख लेती हैं। इस तरह पॉलीफेनोल्स सेब के लिए प्राकृतिक सनस्क्रीन की
तरह काम करते हैं।
आपने देखा होगा कि सेब के टूटने या
कटने से उसका गूदा भूरा होने लगता है और खराब हो जाता है। शोधकर्ता इसका कारण
पॉलीफेनोल ऑक्सीडेज एंजाइम को मानते हैं, जो सेब के टूटने या फटने पर पॉलीफेनोल्स का
ऑक्सीडाइज करने लगते हैं। या यूँ समझ लीजिये कि सेब में जंग लगने लगता है, जिसके
फलस्वरूप गूदा भूरा और काला पडऩे लगता है। भूरा और खराब होने पर सेब इथाइलीन गैस
भी छोडऩे लगता है,
जो दूसरे सेबों को भी खराब करता है। आपने कहावत सुनी होगी कि
एक सड़ा हुआ सेब पूरी डलिया के सेब खराब कर देता है। इसलिए सेब की पेकिंग और परिवहन में बहुत
एहतिहात रखनी पड़ती है। और आजकल सेबों पर वेक्स पॉलिशिंग भी इसीलिए की जाती
है।
ऑसम एंटीऑक्सीडेंट: सेब के अधिकांश पॉलीफेनोल्स
शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट माने गये हैं। ये खासतौर पर कोशिका-भित्ति के फैट्स को
ऑक्सीडाइज होने से बचाते हैं। यह गुण हृदय और रक्त-परिवहन संस्थान के लिए बहुत
महत्वपूर्ण है, क्योंकि
रक्त-वाहिकाओं की आंतरिक सतह की कोशिकाओं में फैट्स के ऑक्सीडाइज होने से वाहिकाओं
के बंद होने और अन्य विकारों का जोखिम
रहता है। और ये पॉलीफेनोल्स फैट्स को
ऑक्सीडाइज होने से बचाते हैं और सेब को हृदय हितैषी का दर्जा दिलाते हैं।
सेब के शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट
अस्थमा और फेफड़े के कैसर का खतरा भी कम करते हैं। पॉलीफेनोल्स के साथ सेब में 8
मिलीग्राम विटामिन-सी भी होता है। यह मात्रा बहुत सामान्य है, लेकिन फिर
भी बहुत खास है क्योंकि विटामिन-सी के पुनर्चक्रण के लिए फ्लेवोनॉयड्स बहुत जरूरी
होते हैं। और सेब में ये फ्लेवोनॉयड्स भरपूर होते हैं।
डायबिटीज डेमेजर: पिछले कुछ वर्षों
में हुई शोध के अनुसार डायबिटीज के नियंत्रण में सेब का महत्व अचानक बढ़ गया है।
सेब में पॉलीफेनोल्स कई स्तर पर शर्करा के पाचन और अवशोषण को प्रभावित करते हैं और
रक्त में ग्लूकोज के स्तर को बखूबी नियंत्रित रखने की कोशीश करते हैं। ये जादुई
पॉलीफेनोल्स इस तरह कार्य करते हैं।
- ये शर्करा के पाचन में गतिरोध पैदा करते हैं।
सेब में विद्यमान क्युअरसेटिन और अन्य फ्लोवोनॉयड शर्करा को पचाने वाले एंजाइम्स
अल्फा-अमाइलेज और अल्फा-ग्लूकोसाइडेज को बाधित करते हैं। ये एंजाइम्स जटिल शर्करा
का विघटन करके सरल कार्ब ग्लूकोज में परिवर्तित करते हैं। जब ये एंजाइम्स बाधित
होते हैं, तो
स्वाभाविक है कि रक्त में ग्लूकोज का स्तर नहीं बढ़ेगा।
- पॉलीफेनोल्स आंत में ग्लूकोज का अवशोषण की
गति को कम करते हैं, जिससे रक्त में ग्लूकोज धीरे-धीरे बढ़ती है।
- ये पेनक्रियास के बीटा सेल्स को इंसुलिन
बनाने के लिए प्रेरित करते हैं, और इंसुलिन के रिसेप्टर्स को उत्साहित करते
हैं ताकि इंसुलिन ग्लूकोज को कोशिका में ज्वलन और ऊर्जा बनाने के लिए भेजता है।
रक्त-प्रवाह से ग्लूकोज को कोशिका में भेजने के लिए कोशिका के इन्सुलिन रिसेप्टर्स
का इन्सुलिन के चिपकना और कोशिका के मधु-द्वार को खोलना जरूरी होता है। आप यूँ
समझें कि इन्सुलिन हार्मोन मधु-द्वार को खोलने की कुंजी का कार्य करता है। इस तरह
सेब में विद्यमान पॉलीफेनोल्स रक्त शर्करा के नियंत्रण में मदद करते हैं।
हार्ट हीलर: सेब में जल-घुलनशील
पेक्टिन और पॉलीफेनोल्स का अनूठा मिश्रण इसे हृदय के लिए हितकारी बनाता है। नियमित
सेब का सेवन करने से कॉलेस्टेरोल और बुरा एल.डी.एल. कॉलेस्टेरोल कम होने लगता है।
रक्त और रक्त-वाहिका की आंतरिक सतह की कोशिका-भित्ति में फैट्स का ऑक्सीडेशन कम
होना कई हृदय रोगों से बचाव की मुख्य कड़ी है।
सेब में विद्यमान क्युअरसेटिन के
प्रबल प्रदाहरोधी गुण भी हृदय रोग से बचाव में खास स्थान रखते हैं। इसीलिए नियमित
सेब खाने से शरीर में सी.आर.पी. (जो शरीर में इन्फ्लेमेशन का एक मार्कर है) कम
होता है और हृदय रोग का जोखिम कम करता है। इस सर्वव्याप्त और स्वादिष्ट फल में
प्रकृति ने हमें कितने हृदय-हितैषी पोषक तत्व एक साथ दिये हैं। पोषक तत्वों का ऐसा
विचित्र संगम बहुत कम देखने को मिलता है। शायद इसीलिए हमारे बुद्धिमान पूर्वज कहते
आये हैं कि रोज एक सेब खाने से आप चिकित्सक से दूर रहेंगे। मैं तो यही कहूँगा कि
जो नित प्राणायाम करत है और सेब फल
खाये
कबहु न मिलिहै बैदराज से
रोग न कोई होये
कैंसर किलर: हालांकि सेब कई तरह के
(आंत और स्तन कैंसर) कैंसर में लाभदायक माना जाता है, लेकिन
फेफड़े को कैंसर में यह विशेष महत्वपूर्ण है। सेब निश्चित रूप से फेफड़े के कैंसर
का जोखिम कम करता है। इसके लिए पॉलीफेनोल्स के एंटीऑक्सीडेंट्स और प्रदाहरोधी गुण
जिम्मेदार माने गये हैं। शोधकर्ताओं ने हजारों लोगों पर शोध किया है। लोगों को दो
श्रेणियों में बांटा गया, एक श्रेणी को सेब को छोड़ कर अन्य फल और
सब्जियां खिलाई गई तो दूसरी श्रेणी को सिर्फ सेब खिलाये गये। शोधकर्ताओं ने पाया
कि सेब खाने वाली श्रेणी में फेफड़े के कैंसर का जोखिम आश्चर्यजनक रूप से कम हुआ
था। शोधकर्ता इन नतीजों का स्पष्टीकरण नहीं ढूँढ़ पा रहे हैं और मानते हैं कि अभी
और शोध की आवश्यकता है।
अन्य: नई शोध से कुछ ऐसे संकेत मिल
रहे हैं कि सेब अस्थमा का जोखिम भी बहुत कम कर देता है। इसके लिए भी पॉलीफेनोल्स
के एंटीऑक्सीडेंट्स और प्रदाहरोधी गुण जिम्मेदार माने गये हैं। लेकिन शोधकर्ता
मानते हैं कि सेब में पॉलीफेनोल्स के अलावा भी कोई अन्य ऐसा तत्व भी है जो अस्थमा
के लिए फायदेमंद है। सेब अल्झाइमर और रेटीना के मेक्यूलर डीजनरेशन में भी गुणकारी
माना गया है। फास्फोरस और लौह प्रधान होने से यह मस्तिष्क और शरीर की मांसपेशियों
में शक्ति का नव संचार कर इन्हें सुदृढ़ बनाता है। अनुसंधानकर्ता मानते हैं कि सेब
खाने से बड़ी आंत में क्लोस्ट्रिडियेल और बेक्टिरियोड्स नामक जीवाणु की
संख्या काफी कम हो जाती है। इससे बड़ी आंत
का चयापचय में भी बदलाव आता है और कई फायदे होते हैं।
वो तीन सेब जिन्होंने बदल दी दुनिया:
तीन सेबों ने इस दुनिया का स्वरूप बदल कर रख दिया है। यूनानी पौराणिक कथाओं के
अनुसार पहला सेब तो ईव ने आदम को खिलाया, जो इस धरा पर मानव संसार का कारण बना। यदि
आदम और ईव ने ईडन गार्डन में वह वर्जित
सेब नहीं खाया होता तो शायद आज मेरा और आपका अस्तित्व भी नहीं होता। दूसरा सेब सर
आइजक न्यूटन के सिर पर गिरा जिससे उनका सिर घूमने लगा और उन्होंने गुरुत्वाकर्षण
का सिद्धांत बनाया, जिसके कारण विज्ञान ने इतनी तरक्की की और चांद पर भी फतह
हासिल की। तीसरा एप्पल स्टीव जोब्स की कल्पना में पैदा हुआ, जिसकी वजह
से आज आप और हम मेक कम्प्यूटर, आईफोन, आईपेड, आईट्यून और आईपोड इस्तेमाल कर रहे हैं।
लेखक अपने बारे में: मैंने एम.बी.बी.एस. मार्च 1973 में
आर.एन.टी. मेडीकल कालेज, उदयपुर से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया है। 1884 में
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, इंग्लैन्ड
से एम.आर.एस.एच. की उपाधि प्राप्त की। मार्च 1976 से अक्टूबर 2010 तक
राजकीय सेवा में चिकित्सा अधिकारी के पद पर कार्य किया।
अलसी चेतना यात्रा नामक संस्था की
स्थापना की। पिछले पांच वर्षो से आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक, चमत्कारी
और दिव्य भोजन अलसी की जागरूकता के लिए कार्य कर रहा हूँ। कई वर्कशाप और सेमीनार
आयोजित किये। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अलसी और अन्य विषयों पर लेख प्रकाशित
हुए। रेडियो व टेलीविजन पर कार्य कर प्रस्तुत किये। संस्था की ओर से मुफ्त वितरण
हेतु अलसी महिमा नामक पुस्तक प्रकाशित की।
2010
में अंत में अलसी का अलख जगाने के उदेश्य से अलसी-रथ द्वारा चेतना- यात्राएं
निकाली, जिनमें
राजस्थान और मध्य प्रदेश में सभी बड़े-बड़े शहरों में प्रोग्राम, सेमीनार
और पत्रकार वार्ताएं आयोजित की। इन
यात्राओं में हमने 7000 किलोमीटर का सफर अलसी-रथ पर किया। सन् 1981 से 1993 तक विदेश
में रहा। लीबिया और ब्रिटेन में कार्य किया और यूरोप, माल्टा, मिस्र, पाकिस्तान, कुवैत और दुबई की यात्राएं की।
संपर्क:
वैभव हॉस्पीटल और रिसर्च इन्स्टिट्यूट, 7-बी-43, महावीर नगर तृतीय, कोटा
राजस्थान,