प्रथा
मरू-प्रदेश की भूमि में बहुत कम फल उपजते थे। अत: ईश्वर
ने अपने पैगम्बर को पृथ्वी पर यह नियम पहुंचाने के लिए कहा, प्रत्येक
व्यक्ति दिन में केवल एक ही फल खाए।
लोगों में मसीहा की बात मानी और दिन में केवल एक ही फल
खाना प्रारंभ कर दिया। यह प्रथा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रही। दिन में एक ही फल खाने
के कारण इलाके में फलों की कमी नहीं पड़ी। जो फल खाने से बच रहते थे उनके बीजों से
और भी कई वृक्ष पनपे। जल्द ही प्रदेश की भूमि उर्वर हो गयी और अन्य प्रदेशों के
लोग वहाँ बसने की चाह करने लगे।
लेकिन लोग दिन में एक ही फल खाने की प्रथा पर कायम रहे
क्योंकि उनके पूर्वजों के अनुसार मसीहा ने उन्हें ऐसा करने के लिए कहा था। दूसरे
प्रदेश से वहां आने वाले लोगों को भी उन्होंने फलों की बहुतायत का लाभ नहीं उठाने
दिया।
इसका परिणाम यह हुआ कि अधिकांश फल धरती पर गिरकर सडऩे
लगे। उनका घोर तिरस्कार हो रहा था।
ईश्वर को यह देखकर दु:ख पहुँचा। उसने पुन: पैगम्बर को
बुलाकर कहा, उन्हें
जाकर कहो कि वे जितने चाहें उतने फल खा सकते हैं। उन्हें फल अपने पड़ोसियों और
अन्य शहरों के लोगों से बाँटने के लिए कहो।
मसीहा ने प्रदेश के लोगों को ईश्वर का नया नियम बताया।
लेकिन नगरवासियों ने उसकी एक न सुनी और उस पर पत्थर फेंके। ईश्वर का बताया पुराना
नियम शताब्दियों से उनके मन और ह्रदय दोनों पर ही उत्कीर्ण हो चुका था।
समय गुज़रता गया। धीरे-धीरे नगर के
युवक इस पुरानी बर्बर और बेतुकी प्रथा पर प्रश्नचिह्न लगाने लगे। जब उन्होंने देखा
कि उनके बड़े-बुजुर्ग टस-से-मस होने के लिए तैयार नहीं हैं तो उन्होंने धर्म का ही
तिरस्कार कर दिया। अब वे मनचाही मात्रा में फल खा सकते थे और उन्हें भी खाने को दे
सकते थे जो उनसे वंचित थे। केवल स्थानीय देवालयों में ही कुछ ऐसे लोग बच गए थे जो
स्वयं को ईश्वर के अधिक समीप मानते थे और पुरानी प्रथाओं का त्याग नहीं करना चाहते
थे। सच तो यह है कि वे यह देख ही नहीं पा रहे थे कि दुनिया कितनी बदल गयी थी और
परिवर्तन सबके लिए अनिवार्य हो गया था। (पाउलो कोएलो के ब्लॉग से) www.hindizen.com
No comments:
Post a Comment