फूल को देखने का सुख
- अख्तर अली
फूल हमें आस्तिक बनाते है उससे बड़ी बात ये है कि फूल हमें बेहतर इंसान बनाते है। फूल प्रेम को जगाते है, प्रेम का अहसास कराते है, दो हृदय को जोड़ते हैं। रिश्तों की नदी पर पुल बन जाते है फूल।
जिस समय हम फूल को देखते है उस समय हमारे अंदर एक बाग खिल रहा होता है। फूल संसार में हर आदमी को सुंदर नहीं लगते, इस संसार में हर आदमी फूलों को देखता भी नहीं है। फूलों को वही निहारता है जो स्वयं अंदर से कोमल हो। क्रोधी और जिद्दी इंसान को फूल कभी प्रभावित नहीं करते। फूलों की सुंदरता आप के भीतर पहले से मौजूद होनी चाहिये। फूलों को देखने का नियम है कि इन्हें आंख से नहीं मन से देखा जाता है। आंख का कोई मन नहीं होता लेकिन मन की अपनी आंखें होती है। जो व्यक्ति अंदर से सूखा है उसे नदी का प्रवाह कभी गीला नहीं करता। अर्थशास्त्र का छात्र फूल को तोड़ता है, दर्शनशास्त्र का छात्र उसे दूर से निहारता है। कुछ लोग ऐसे होते है जिन्हें राह चलते किसी घर की मुंड़ेर पर खिला फूल दिखाई दे देता है और कुछ लोग ऐसे होते है जिन्हें बाग में भी फूल दिखाई नहीं देता। बगीचे में उन्हें कीचड़ दिखाई देता है, टूटी हुई बेंच दिखाई देती है, फैला हुआ कचरा दिखाई देता है,फल्ली वाला दिखाई देता है, फुग्गे वाला दिखाई देता है, अंधेरे में बैठा जोड़ा तक दिखाई दे देता है लेकिन फूल जो वहां सबसे ज्यादा मात्रा में है वे दिखाई नहीं देते। यह देखने का संकट सम्पूर्ण विश्व में तेजी से पैर पसार रहा है। दरअसल वास्तव में यह विचारधारा का संकट है। विचार हीन व्यक्ति बाग में भी फूलों की सुंदरता को नहीं देख पाता है जबकि विचारवान व्यक्ति के अंदर ही एक बाग मौजूद रहता है जिसमें सोच के फूल खिले रहते हैं।
खिला हुआ फूल प्रकाशित कविता है जिसके रचियता भगवान है, यह ऐसी रचना है जिसकी समीक्षा तो की जा सकती है लेकिन आलोचना नहीं। बनावट, आकार, रंग, सुगंध इन सब का मिश्रण फूल में इतना जबरदस्त होता है कि कला प्रेमियों को चाहिये कि वे सामूहिक रूप से पौधों के सामने खड़े होकर भगवान के सम्मान में ताली बजाये। फूल कुदरत के कारखाने का अद्भुत प्रोडक्ट है, लेकिन बाजार का आयटम नहीं। इसे मन के गमले में उगाया जाता है पैसे देकर खरीदा नहीं जाता। उगाया गया फूल प्रेमिका है और खरीदा गया फूल वेश्या। बनावट, आकार, रंग और सुगंध के आगे भी फूल की और बहुत से विशेषतांए है जो उसके फूलपन को बरकरार रखती है। फूल पाठशाला है, जहां सुगंध फैलाने का पाठ पढ़ाया जाता है। फूल को देखने का सुख, सब सुखों में श्रेष्ठतम सुख है। जिस समय हम फूल को देखते हंै उस समय हम भगवान का ध्यान कर रहे होते हैं। जब हम कोई अच्छी फिल्म देख रहे होते हैं तब हमारे जेहन में उसके निर्देशक का विचार भी आता रहता है। कविता पढ़ते समय उससे कवि को अलग नहीं किया जा सकता। फूल को देखना एक सुंदर अहसास है और फूल को देखते हुए आदमी को देखना सुंदरतम। फूल लघु पत्रिका है, कला फिल्म है। जाकिर हुसैन का तबला है, बिसमिल्ला खां की शहनाई है फूल। समय के जिस क्षण में हम फूल को देख रहे होते हैं वह क्षण जीवन के तमाम क्षणों में सबसे महत्वपूर्ण और कीमती क्षण होता है क्योंकि उस क्षण हम जरा रूमानी हो जाते हंै, लचीले हो जाते हैं, भावुक हो जाते हैं, उस समय हमारा दंभ मर चुका होता है हमारी लालच मिट चुकी होती है, आंखों से गुस्सा गुम हो चुका होता है और होंठो पर मुस्कान विराज चुकी होती है। यही तो वो भाव है जो हमारे इंसान होने को सार्थक करते है। बगीचे में टाईम पास करने के लिये आते है वे आदमी है लेकिन उन में जो फूल से जुड़ जाते है वे इंसान है। हम पैदा भले आदमी के रूप में हो पर मरना इंसान बन कर चाहिये।
ऊपर चांद और नीचे फूल। भगवान की ये दो अनुपम कृति आस्था के सेंसेक्स में जबरदस्त उछाल दर्ज कराती है। अरबों-खरबों की लागत से भी ऐसा कारखाना स्थापित नहीं किया जा सकता जिसमें फूलों का उत्पादन हो सकता हो। फूल हमें आस्तिक बनाते है उससे बड़ी बात ये है कि फूल हमें बेहतर इंसान बनाते है। फूल प्रेम को जगाते है, प्रेम का अहसास कराते है, दो हृदय को जोड़ते हैं। रिश्तों की नदी पर पुल बन जाते है फूल। फूल खिल खिल कर कह रहे है - कोमल बनिये, सुगंध बिखेरिये। फूलों की इस अपील पर गंभीरता पूर्वक विचार किया जाना चाहिये, उनके आह्वान पर चल पडऩा चाहिये। कोमलता फूल की वाणी है, सुगंध उसकी भाषा। फूलों की भाषा सीखना होगा क्योंकि इसमें रस है। मंच पर किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति का सम्मान उसे फूल देकर किया जाता है। गांव की लड़की सज संवर कर एक फूल अपने बालों में लगा लेती है ये फूल का सम्मान है। फूल की व्याख्या उतनी आसान नहीं है जितनी उसकी उपलब्धता हैं। फूलों की अपनी दुनियां है, अपना इतिहास है, अपना अनुशाासन है, अपना संविधान है। फूलों की संसद कभी प्रस्ताव पारित कर खुश्बू के संविधान में संशोधन नहीं करती। ये फूलों का चरित्र ही है जिसने गुलशन को शोहरत दिलाई है। नफरत के अनेकों कारणों का जवाब है फूल।
फूल लयात्मक गीत है, तुकान्त कविता है, मौसम के पन्ने पर लिखा नवगीत है। गुलशन के दफ्तर में फूल की नियुक्ति ने सुगंध को अंतराष्ट्रीय पहचान दिलाई है। अगर आपने कभी फूल को फूल के अंदाज में नहीं देखा होगा तो आज ही यह सौभाग्य प्राप्त करिये, समय का कोई भरोसा नहीं। इससे पहले की लोग आप पर फूल डाले आप फूल पर न्योछावर हो जाईये। उठिये और बिना समय गंवाए नजदीक के बाग में जाईये, और अनेको बार देखे हुए उन फूलों को मेरी नजर से देखिये आपको फूल मंगल गीत गाते हुए दिखाई देंगे। फूल बोलते हुए, झूमते हुए, नाचते हुए दिखाई देंगे। उस समय आपको सब बदला बदला दिखाई देगा। दरअसल यह परिवर्तन उस समय आपके अंदर हो रहा होगा। कुछ ही क्षण में आपको ऐसा लगेगा कि आप स्वयं एक फूल हो गये हंै।
जिस समय आप फूल को देख रहे होते हैं उस समय आप वो नहीं रहते हैं जो आप हैं, बल्कि उस समय आप जो नहीं हैं वो हो जाते हो। नहीं होने का हो जाना ही क्रंाति है और ये क्रांति एक क्षण में हो जाती है। एकाएक आपको पूरी दुनियां सुंदर महसूस होने लगती है, सब से प्रेम करने का मन करने लगता है। लालच आस पास भी नहीं फटकती। भाषा एकदम शालीन हो जाती है। बच्चों और नौकरों पर चीखने वाला व्यक्ति गाने लगता है। जीवन के चित्र में फूल रंग भर देते है। फूलों में सिर्फ शिल्प ही नहीं है उनका कथ्य भी है। फूल जीवन की सार्थकता समझा जाते हैं। आप महसूस करिये ये समूचा विश्व एक बगीचा है इसमें रंग-रंग के फूल खिले हैं और आप इसके माली हैं। आप उन पौधों को सीचो जिसमें फूल खिलते हैं, एक दिन आप महसूस करोगे कि आपके अंदर एक उपवन आकार ले रहा है। आपकी सोच बदल जायेगी, आपके शब्द नये अर्थ देने लगेंगे, आप जहां भी जाओगे वातावरण को सुगंधित कर दोगे। आप ऐसे मुकाम पर पहुंच जाओगे जहा फूलों की भाषा समझ में आने लगेगी। तब आप आंख बंद किये बैठे रहोगे और फूल आपको संबोधित करेंगे। फूलों का व्याख्यान आपको ऐसा इंसान बना देगा जिसकी दुनियां को बहुत जरूरत है। आप अपना सब कुछ औरों को दे दो और उसके बदले कोई कामना मत करो, आप देखोगे कि देने के बाद भी आपका खजाना भरा का भरा रहेगा, ये मानव के लिये फूलों का पैगाम है। ये मात्र उपदेश नहीं बल्कि फूलों का भोगा हुआ यथार्थ है। फूलों का तो बस यही काम है कि जहां रहो उस जगह को महका दो। फूलों की कोई पार्र्र्टी नहीं होती, कोई घोषणा पत्र नहीं होता, कोई प्रशिक्षण शिविर नहीं होता। इन्हें सिर्फ देना आता है, इनके पास जो भी होता है वह उसे औरो पर उंडेल देते है और खाली होते ही पुन: भर जाते है। वही भरायेगा जो खाली है। खाली होकर भर जाने का यह फार्मूला हर क्षेत्र में लागू होता है।
फूलों की सफलता उनके स्वभाव में छिपी है। फूलों के स्वभाव में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इनमें नरमी बहुत सख्ती के साथ शामिल है। अपने इस स्वभाव को फूल कभी नहीं छोड़ते चाहे जो हो जाये और दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि ये सिर्फ देना जानते है, औरो के काम आना जानते है उसके बदले में ये कोई आशा नहीं करते। डाल पर खिला फूल सिर्फ फूल नहीं है बल्कि वह मंच पर बैठा संत है जो प्रवचन दे रहा है। हमें उससे लौ लगानी होगी, उसको आत्मसात करना होगा, उसकी खुशबू में सराबोर हो जाना होगा, उसके रंग में रंग जाना होगा, खुद को उसके स्वभाव में ढालना होगा, दूसरे के काम आने के लिये अपनी डाल से बिछड़ जाना होगा।
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