धारा 370 की समाप्ति और सुषमा स्वराज का जाना…
-
डॉ. रत्ना वर्मा
जम्मू कश्मीर में धारा 370 के हठते ही मन में जो पहला विचार उठता है, कि कभी धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला यह प्रदेश क्या
आतंकवाद से मुक्त होकर फिर पहले जैसा खूबसूरत हो पाएगा? बरसों से बंदूक के साए में जी रहे कश्मीरवासी क्या सुकून
की जिंदगी बसर कर पाएँगे? और पर्यटन की इच्छा रखने
वाले हम जैसे लोग जो आतंक के डर से वहाँ जाने से डरते हैं क्या बेखौफ होकर उन
खूबसूरत वादियों में घूम पाएँगे?
डलझील में
तैरते वे खूबसूरत शिकारे, बर्फ से ढकीं पहाडिय़ाँ, पहलगाँम, गुलमर्ग, सोनमर्ग और चीनार के
पेड़ों के साथ-साथ चलते घोड़ों की सवारी, मुगल गार्डन, शालीमार्ग गार्डन, निशातबाग और बेहद खूबसूरत रंग- बिरंगे फूलों के साथ
रसीले फल... क्या अब इन सबका आनंद हम बिना बंदूक के साए में निडर होकर ले पाएँगे।
सवाल ढेर सारे हैं; पर मोदी सरकार के इस
साहसिक फैसले से एक उम्मीद तो जगी है कि आतंकवाद का खात्मा होगा और अलगाववाद का
जरिया बन चुके इस अनुच्छेद के हटते ही कश्मीर की तस्वीर बदलेगी। कश्मीर के जो
हालात पिछले कई दशकों से इतने खराब हो चुके थे, उससे तो ऐसा लगने लगा था कि वहाँ के कट्टरपंथी नेता एक अलग ही दुनिया बसाने का
सपना देख रहे हैं, जिसको हवा देने का काम
पड़ोसी देश पाकिस्तान बखूबी कर रहा था। ऐसे में कश्मीर पर यह बड़ी पहल अगस्त में
आई एक और क्रांति की तरह है, क्योंकि अनुच्छेद 370
हटाने के साथ ही 35ए को निष्प्रभावी करके जम्मू-कश्मीर को राष्ट्र्र की मुख्यधारा
में जोडऩे के साथ राष्ट्रीय एकता की दिशा
में एक बड़ा कदम है। एक निशान-एक विधान की भावना वाले इस फैसले से केवल कश्मीर का
समुचित विकास ही सुनिश्चित नहीं होगा, बल्कि कश्मीर के आम लोगों को शेष भारत से जुडऩे का अवसर भी मिलेगा। दूसरी सबसे
बड़ी बात लद्दाख, जम्मू-कश्मीर से अलग
होकर बिना विधानसभा वाला केन्द्र शासित प्रदेश बनेगा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा
युक्त केन्द्र शासित प्रदेश।
इन सब मामलों में सबसे अच्छी बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत ने
दुनिया को यह समझाने में बड़ी सफलता हासिल की है कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है
और वे इसे सुलझा लेंगे। यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन को
छोड़कर लगभग सभी स्थायी एवं अस्थायी सदस्यों ने जम्मू कश्मीर सम्बंधी भारत के
फैसले का समर्थन किया है। यद्यपि रास्ता आसान नहीं है; क्योंकि कई पीढिय़ों से कश्मीर और कश्मीरवासियों ने
दहशत के साए में जैसी जि़न्दगी गुज़ारी है उसे सामान्य
होने में समय लगेगा। इसके लिए बहुत धैर्य और संयम की जरूरत है। जो इस धारा के हटाए
जाने के समर्थक नहीं हैं, उन विरोधियों के लिए भी
यह चिंतन का समय है। यह बात किसी पार्टी की नहीं है, बात देश के उस हिस्से की है जो भारत का है; पर भारत का होते हुए भी वह अलग- थलग पड़ा हुआ है।
अब तक जम्मू-कश्मीर के नागरिक दोहरी नागरिकता में जी रहे थे। इस राज्य का अपना
अलग झंडा भी था। 370 हटने के साथ ये सब तो समाप्त तो होगा ही और भी कई पाबंदियाँ
हैं, जो समाप्त हो जाएँगी- जैसे- सुप्रीम
कोर्ट के आदेश जम्मू-कश्मीर में मान्य नहीं होते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। रक्षा,
विदेश, तथा संचार विभाग को छोड़कर अन्य मामलों में अभी तक
जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सहमति के बिना केन्द्र का कानून लागू नहीं कर सकता था
परंतु अब केन्द्र सरकार अपने कानून लागू कर सकेगी। इससे पहले विधानसभा का कार्यकाल
6 साल का होता था पर अब 5 वर्षों का हो जाएगा। कश्मीर में हिन्दू-सिख अल्पसंख्यकों
को 16 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता था जो अब मिलने लगेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि
जम्मू कश्मीर के नागरिकों को भी सामान्य और बेहतर जीवन जीने के लिए वे समस्त
सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँगी जिनपर प्रत्येक भारतीय का हक है। इन सबके साथ- पर्यटन, रोजगार, व्यापार और शिक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भारी बदलाव के संकेत सरकार दे
रही है। जाहिर है इससे वहाँ की तस्वीर और भी बेहतर होगी।
उम्मीद तो यही है कि पूरा देश यदि एकजुट होकर साथ चलेगा तो निश्चित ही बाहरी
विरोधी शक्तियों को हम हरा देंगे तथा राज्य में स्थिरता और शांति को बढ़ावा
मिलेगा। बंदूक के साए में पलने वाले कश्मीर में फूलों की खुशबू मँहकेगी और फिज़़ा
में प्यार के गीत गुंजेंगे...
अगस्त माह में इस बड़ी क्रांति के तुरंत बाद देश को एक बहुत बड़ी क्षति हुई है, वह है सुषमा स्वराज का निधन। उनके आखिरी ट्वीट को
पढ़ कर ऐसा लगा मानो वे इस पल के इंतजार में साँसें ले रही थीं। धारा 370 के हटते
ही उन्होंने मोदी जी को बधाई देते हुए लिखा - 'प्रधानमंत्री
जी आपका हार्दिक अभिनन्दन। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। मैं अपने जीवनकाल में इस दिन
को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी।‘
सुषमा स्वराज एक प्रखर और प्रभावशाली नेता होने के साथ एक मुखर वक्ता थीं।
राजनीतिक जीवन में वे अपनी विशिष्ट भाषण शैली के लिए भी जानी जाती थीं। हिन्दी से
उन्हें प्रेम था साथ ही संस्कृत पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी। यह बात उनके भाषणों में
साफ नजऱ आती थी। हिन्दी में सजे और सधे हुए शब्दों से संसद से लेकर यूनाइटेड नेशन
तक में उनके भाषणों ने करोड़ों लोगों के मन को छुआ है। वे जब भी बोलतीं थीं पक्ष
में हों या विपक्ष में हर कोई उनकी बातों को ध्यान से सुनता था।
दिल्ली में मुख्यमंत्री के पद से लेकर उन्होंने कई राजनीतिक पदों को बखूबी
सम्भाला; परंतु विदेश मंत्री के तौर पर
उनके कार्यकाल को स्वर्णिम काल के रूप में जाना जाएगा। प्रधानमंत्री को उनकी
योग्यता का भान था, तभी उन्होंने इतनी
महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी उन्हें सौंपी थी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया भी। सहज सरल जीवन जीने वाली और सबकी मदद के लिए
हमेशा तत्पर रहने वाली नेत्री के रूप में उन्होंने सबका दिल जीत लिया था। एक ट्वीट
से दूर देश में बैठे लोगों को मदद पहुँचाने वाली वे पहली विदेश मंत्री थीं।
उन्होंने बिना किसी भेदभाव के सबकी सहायता की। उनकी उपलब्धियों, उनकी अच्छाइयों और उनके द्वारा देश के लिए किए गए
कामों की सूची बहुत लम्बी हैं।6 अगस्त 2019 को उनके देहांत के साथ ही भारतीय राजनीति का एक अध्याय समाप्त हो
गया। उनकी कमी हमेशा खलती रहेगी। उन्हें सादर नमन...