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Aug 10, 2019

रक्षाबंधन

पावन प्रेम का प्रतीक 
डॉ. पूर्णिमा राय
रक्षा बन्धन गया, बहना का ले प्यार।
दिवस 'पूर्णिमा' कर सजे,रक्षाबंधन तार।।
आत्मीयता और स्नेह के बंधन से रिश्तों को मजबूती प्रदान करने का पर्व रक्षाबंधन श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। भारतीय समाज में व्यापकता और गहराई से समाए हुए इस पर्व के दिन लड़कियाँ और महिलाएँ पूजा की थाली सजाकर अपने भाई को राखी बाँधने के लिए जाती है।अभीष्ट देवता की पूजा करने के बाद रोली या हल्दी का टीका लगाकर भाई की आरती उतारती है और दाहिनी कलाई पर राखी बाँधती हैं।इसके बदले में भाई बहन की रक्षा का वचन लेता है और उसे उपहार में कोई धनराशि या कोई अमूल्य वस्तु प्रदान करता है।
रक्षाबंधन तार, राखियाँ प्यारी चमके
शाश्वत केवल प्यार, बहन के मुख पे दमके।
राखी के रंग-बिरंगे धागे बहन-भाई के रिश्ते को दृढ़ता प्रदान करते हैं।बहन-भाई के प्रेम का सूचक यह त्यौहार देशकाल, भाषा-जाति की सीमाओं से परे गुरु- शिष्य कि रिश्ते को भी राखी के पवित्र धागों में बाँधता है। कहते हैं जब कभी शिष्य गुरुकुल से शिक्षा लेकर विदा होता था तो शिष्य अपने गुरु का आशीर्वाद पाने के लिए अपने आचार्य को राखी बाँधता  था। इतना ही नहीं गुरु भी शिष्य को राखी बाँधता था ताकि वह प्राप्त ज्ञान को अपने जीवन में बखूबी अमलीजामा पहनाए।
राखी का उपहार,मुझे यह दे दो भिक्षा
महके आँगन -प्यार, बहन की हरदम रक्षा।।
दो परिवारों और फूलों को जोड़ने वाला पर्व रक्षाबन्धन कब शुरू हुआ कोई नहीं जानता; लेकिन पौराणिक मान्यता के अनुसार जब देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ तब देवता दानवों को हावी होते देखकर घबरा गए। देवता इंद्र उस समय बृहस्पति के पास गए उस वक्त इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र किया और अपने पति के हाथ में बाँध दिया। लोगों का विश्वास है कि इसी धागे की मंत्र शक्ति से देवता विजयी हुए। धन शक्ति हर्ष और विजय से समर्थ यह धागा रक्षा कवच का काम करता है।श्रीमद्भागवत् में वामन अवतार के अनुसार जब राजा बलि ने 100 यज्ञ पूरे कर लिए और स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयास किया तो इंद्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की तब भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेश धारण करके राजा बलि से भिक्षा मांमाँने गए गुरु के बार-बार मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि भगवान विष्णु को दान में दे दी। उस वक्त भी श्रावण मास की पूर्णिमा का ही दिन था भगवान् विष्णु ने तीन पग में सारा आकाश -पाताल और धरती को नाप लिया एवं राजा बलि को रसातल में भेज दिया। राजा बलि ने अपनी दृढ़ भक्ति से भगवान विष्णु को अपने पास रहने का वचन ले लिया। जब भगवान विष्णु घर नहीं पहुँचे ,तो लक्ष्मी जी परेशान होकर नारद मुनि के पास गई। नारद मुनि ने उन्हें एक उपाय बताया।लक्ष्मी जी ने नारद मुनि के उपाय के अनुसार राजा बलि को रक्षाबंधन बाँधकर भाई बना लिया और अपने पति को वापस ले आई।
कहते हैं रक्षाबंधन का दिन केरल तमिलनाडु,महाराष्ट्र और उड़ीसा के यज्ञोपवीत ब्राह्मणों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है इस दिन में वह नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषि यों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं अर्थात बीते समय की पापों को, कलुषित भावनाओं को त्याग कर नया जीवन जीने की प्रतिज्ञा करते हैं।
मनमोहक राखी चमक,फैली चारों ओर।
बहन-प्रेम के सामने,किसका चलता जोर।।
किसका चलता जोर,बदल गई मन भावना।
ये रेशम की डोर,फैलाये सद् भावना।।
देखें जो इतिहास,मिला कर्मवती को हक।
जागे मन विश्वास,धर्म भाई मनमोहक।।
मेवाड़ के राजा बहादुर शाह ने जब मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया तब रानी कर्मवती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को धर्म भाई बनाया था और अपने राज्य की रक्षा करने के लिए राखी और पत्र भेजा था। हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी हिन्दू बहन कर्मवती की रक्षा की थी। सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पोरसको राखी बाँधी थी और मुँह बोला भाई बनाया था और वचन लिया था कि वह युद्ध में उसके पति सिकंदर को नहीं मारेगा इसी के फलस्वरूप पोरस ने युद्ध में सिकंदर के प्राणों की रक्षा की थी। महाभारत में भी रक्षाबंधन का उल्लेख हुआ है जब पांडव युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूँ।तब भगवान कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना को राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी कहते हैं द्रौपदी ने भी कृष्ण को राखी बाँधी थी और कुंती ने अभिमन्यु को राखी बाँधी थी।

वर्तमान संदर्भ में देखें तो आज रक्षाबंधन के त्योहार के प्रति जो जज्बा, जुनून, आस्था, विश्वास और प्रेम धीरे-धीरे कम होता नजर रहा है। यही कहना चाहूँगी ,हर एक भाई से हरेक बहन से कि भाई -बहन का रिश्ता अपनी पवित्रता में असीम है, इस पवित्रता को कभी भी कलुषित मत होने दें। आज वक्त की कमी सबको खलती है; लेकिन वक्त भी उसी का होता है जो वक्त के साथ चलता है।अगर कभी बहन के पास समय ना हो ,तो भाई को खुद उसके पास जाना चाहिए और अगर कभी भाई समय ना दे पाए तो बहन को उसके प्रति अपने प्रेम को प्रदर्शित करते हुए बिना किसी नोकझोंक के राखी बाँधने पहुँच जाना चाहिए। धन दौलत की चकाचौंध में रिश्तों के बीच में दूरियाँ रही है। धन दौलत कभी टिकता नहीं है पर जो बहन भाई का प्यार है वह अजर -अमर है।  यह ना सोचतेहुए कि मैं गरीब हूँ या मैं अमीर हूँ अपने भाई को क्या तोहफा दूँ या अपनी बहन को राखी के बदले में क्या उपहार दूँ।इन भावनाओं से ऊपर उठकर सच्चे मन की प्रेम भावना से रिश्तों को मजबूत बनाएँ।जिस प्रकार लक्ष्मण जी ने सीता माता की रक्षा की थी उसी प्रकार लक्ष्मण जैसा भाई बन जाए।हर एक बहन को तोहफे में धन नहीं चाहिए, उपहार नहीं चाहिए। उसे चाहिए माता-पिता की सेवा क्योंकि बहने विवाह के पश्चात दूर चली जाती हैं पर वह अपने भाई से यही चाहती हैं कि उनके माता-पिता को वह सभी सुख दे ताकि उनके माता-पिता कभी भी किसी के आगे हाथ झुकाने के लिए मजबूर ना हो जाए यही तोहफ़ा सबसे बड़ा तोहफा है। मेरा भाई भी मेरे लिए दुनिया का सबसे प्यारा भाई है तो यही कहूँगी-
भाई मेरा सबसे न्यारा, मैं उसकी प्यारी बहना।
दूर कभी मत जाना भैया, मुझको बस इतना कहना।।

सम्पर्कः 55 गोकुल एवेन्यू,मजीठा रोड,अमृतसर १४३००१
drpurnima01.dpr@gmail.com

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