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Jul 1, 2025

जीवन दर्शनः ज़ोहनेरिज़्म : एक कुख्यात अवधारणा

  - विजय जोशी  

(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)

वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से
मैं एतिबार न करता तो क्या करता
 पिछले दिनों तथ्यों को तोड़ मरोड़कर  भारत को बदनाम करने के परिप्रेक्ष्य में जॉर्ज सोरोस का कुख्यात नाम सुर्खियों में रहा है। झूठ को सफाई के साथ इस हद तक परोसने का गोबेल्स (द्वितीय विश्वयुद्ध) प्रयास कि सच ज़मींदोज़ हो जाए, उसे कहते हैं ज़ोहनेरिज़्म।
- इस कुख्यात शब्द को गढ़ा गया था जेम्स के. ग्लासमेन द्वारा जिसका अर्थ है : वैज्ञानिक रूप से अनभिज्ञ जनता को गलत निष्कर्ष पर ले जाने के लिए सच का दुरुपयोग।
- ज़ोहनेरिज़्म की अवधारणा है लोगों को भ्रमित करने के लिए सरल तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करने के बारे में।
- 1997 में युवा छात्र नाथन ज़ोहनर ने अपने सहपाठियों के सामने अपना विज्ञान मेला प्रोजेक्ट प्रस्तुत किया, जिसमें एक अत्यधिक जहरीले रसायन को इसके रोजमर्रा के उपयोग से प्रतिबंधित करने की माँग की गई , जो था हाइड्रोजन मोनोऑक्साइड।
- अपनी पूरी प्रस्तुति के दौरान ज़ोहनर ने अपने दर्शकों को वैज्ञानिक रूप से सही सबूत प्रदान किए कि इस रसायन पर प्रतिबंध क्यों लगाया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि डाइहाइड्रोजन मोनोऑक्साइड:
- गैस के रूप में होने पर गंभीर जलन होती है।
- धातु का विघटन और जंग लगना।
- अनगिनत लोगों की मौत।
- सेवन से अत्यधिक पेशाब और सूजन।
- यदि इस पर निर्भर हैं तो रसायन आपको मारने में सक्षम।
- फिर उन्होंने अपने सहपाठियों से पूछा कि क्या वे वास्तव में इस पर  प्रतिबंध चाहते हैं।
- उपस्थित 50 बच्चों में से 43 बच्चों ने इस स्पष्ट रूप से जहरीले रसायन पर प्रतिबंध लगाने के लिए मतदान किया। हालाँकि  इस रसायन को आमतौर पर बिल्कुल भी जहरीला नहीं माना जाता है।
- वास्तव में डाइहाइड्रोजन मोनोऑक्साइड तो पानी के अलावा और कुछ नहीं है।
- नाथन ज़ोहनर का प्रयोग पानी पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास नहीं था; बल्कि यह बात साबित करने के लिए कि लोग वास्तव में कितने भोले-भाले हो सकते हैं।
- साथ ही ज़ोहनर ने अपनी बात कहने के लिए जिन बिंदुओं का इस्तेमाल किया, वे सभी तथ्यात्मक रूप से 100% सही थे। उसने सही तथ्यों को छोड़कर सारी जानकारी को अपने पक्ष में कर लिया।
- पत्रकार जेम्स के. ग्लासमैन ने ‘ज़ोहनेरिज़्म’ शब्द का प्रयोग वैज्ञानिक रूप से अज्ञानी जनता को गलत निष्कर्ष पर ले जाने के लिए एक सच का ‘दुरुपयोग’ करने के लिए किया।
- यह तथ्य कि लोग गुमराह हो सकते हैं और इतनी आसानी से गुमराह हो सकते हैं ,अत्यधिक परेशान करने वाला है। यह आपके विचार से कहीं अधिक बार होता है, खासकर जब राजनेता, षड्यंत्र सिद्धांतकार आदि लोगों को झूठे दावों पर विश्वास करने के लिए सिद्ध तथ्यों का उपयोग करते हैं।
- हमारे देश में इस कुख्यात अवधारणा का सर्वाधिक उपयोग किया गया है खासतौर पर राजनेताओं द्वारा जनता को मूर्ख बनाकर लोक लुभावन नारे तथा फ्रीबीज़ के मायाजाल में उलझाकर सरकार बना लेने तक में। गो यह बात दूसरी है कि उसी भोली- भाली जनता को ही आगे चलकर इसकी कीमत चुकानी पड़ती है और देश गड्ढे में। कीमत चुकानी पड़ेगी आगत पीढ़ी को। 
बदन पे जिस के शराफत का पैरहन देखा
वो आदमी भी यहाँ हम ने बदचलन देखा

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