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Jul 1, 2025

मिसालः आधुनिक रायगढ़ के शिल्पी दानवीर सेठ किरोड़ीमल

  -  बसन्त राघव

 छत्तीसगढ़ दानवीरों का गढ़ रहा है। रायपुर में दाऊ कल्याण सिंह, बिलासपुर में पं. देवकीनन्दन दीक्षित और रायगढ़ में सेठ किरोड़ीमल। छत्तीसगढ़ के विकास में इन तीनों विभूतियों के अवदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता । इन्हीं का अनुसरण करते हुए शक्ति के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेश अग्रवाल ने हाल ही के वर्षों में नया बस स्टैंड के लिए अपनी बेशकीमती जमीन नगरपालिका शक्ति को दान कर एक मिसाल पेश की है, जो कि अनुकरणीय है। 

वर्तमान रायगढ़ छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी है, औद्योगिक नगरी के रूप में इसका तेजी से विकास हो रहा है। छत्तीसगढ़ के पूर्वी सीमान्त पर हावड़ा-बाम्बे रेल लाइन का यह जीवन्त नगर है। इसका एक दिलचस्प इतिहास है राजा चक्रधर सिंह और दानवीर किरोड़ीमल लोहारीवाला के नाम पर इसे विश्वविख्यात ख्याति मिली हैं, रायगढ़ राज्य की स्थापना सन् 1668 के आसपास महाराष्ट्र चान्दा से विस्थापित राजा मदन सिंह ने की थी। पहले बुनगा बाद में राजा ने नवागढ़ी में ‘सतखंडा’ की नींव डाली और राज्य को विकसित किया। बीसवीं सदी के शुरू में राजा चक्रधर सिंह ने उसे साहित्य और संगीत के लिए विख्यात किया। रायगढ़ नगर की प्रसिद्धि में एक और अमिट नाम है दानवीर सेठ किरोड़ीमल लाहरीवाले का, सच्चे अर्थों में वे आधुनिक रायगढ़ नगर के शिल्पी हैं। अगर उनके योगदान को हटाकर देखें, तो रायगढ़ एक व्यावसायिक सामान्य स्तर का शहर ही है। हालाँकि वर्तमान में वह एक औद्योगिक नगरी के रूप में तेजी से विकसित हो रहा है।
  सेठ किरोड़ीमल ने यहाँ पहली बार अधिकाधिक मात्रा में स्कूल, कॉलेज, पुस्तकालय, चिकित्सालय, बालमंदिर और बालसदन, भव्य मंदिर, धर्मशाला, भरत कूप, कुआ-बावली और कॉलोनियों का निर्माण कराया, इतना ही नहीं रायगढ़ शहर को औद्योगिक नगर के रूप में पहचान दिलाने वाला प्रदेश का प्रथम जूटमिल रायगढ़ में उन्होंने ही स्थापित किया। सेठ किरोड़ीमल ने अपने बुद्धि-चातुर्य से यहाँ  का माल कलकत्ता को भेजा। कठिन संघर्ष, व्यावसायिक बुद्धि के कारण उन्होंने अकूत सम्पत्ति प्राप्त की और अन्त में उसे जनता के हित में ही, सेवा कार्यों में लगा दिया। उनकी यह अप्रतिम सेवा, उन्हें महान दानवीरों की श्रेणी में रख दिया, उनकी सेवाएँ  क्या कभी भुलाई जा सकती है ? 
राजशाही खत्म होने के बाद सेठ किरोड़ीमल ने ही औद्योगिक नगर के रूप में रायगढ़ नगर की नींव रखी। सेठ किरोड़ीमल जैसे महादानी, समाजसेवक, विलक्षण व्यवसायी कौन थे, कहाँ से आए, उनका जन्म कहा हुआ, यह जानना बहुत दिलचस्प है। सेठ जी का जन्म हिसार (हरियाणा) के एक मध्यम वर्गीय परिवार में 15 जनवरी 1882 को हुआ था। कम आयु में ही उनमें कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश जागी। वे  कलकत्ता आकर छोटे-मोटे व्यापार करते थे, जहाँ  उनके भाग्य का सितारा चमका। प्रो. आर.के. पटेल के शब्दों में- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1936 से 1942 तक सेठ किरोड़ीमल जी ने जापान एवं मित्र राष्ट्रों को युद्ध की विभीषिका से कराहती जनता के लिए भारी मात्रा में खाद्यान्न दिया। उनकी दृष्टि में मानवता की सेवा ही सर्वोपरि थी। उनके हृदय में युद्ध के पक्ष-विपक्ष का भेद नहीं था। ‘‘मेरे पापा डॉ. बलदेव जब प्रोफेसर के. के तिवारी के आग्रह पर सेठ किरोड़ीमल के ऊपर एक लम्बा लेख  लिख रहे थे, तब पं. लोचन प्रसाद पांडेय के बन्धु पं. मुरलीधर पांडेय ने उन्हें बतलाया था- ‘‘भारत स्वतंत्र हुआ, जब अंग्रेज भारत छोड़कर विदेश जा रहे थे, तब हुकमरानों को कलकत्ता में एक यादगार पार्टी दी गई थी।  उसके प्रबन्धक थे श्री किरोड़ीमल। इससे प्रसन्न होकर अधिकारियों ने उन्हें कम्पनी के व्यवसाय में कुछ परसेंट का लाभ तय कर दिया था, इससे उन्होंने प्रभूत राशि कमाई। कठिन संघर्ष, व्यावसायिक तीक्ष्ण बुद्धिमत्ता ने ही उन्हें रायगढ़ आने के लिए उत्प्रेरित किया था। यहाँ उनका कारोबार बढ़ा और दिन दूनी रात चौगुनी कमाई होने लगी। उन्हें यहाँ  सब कुछ मिला; पर वे निःसंतान थे। अस्तु, अब उनका ध्यान परोपकार की ओर लगा।     
    सेठ किरोड़ीमल ने परोपकार के लिए अनेक महती कार्य किए हैं। कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं - अविभाज्य मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री रविशंकर शुक्ल एवं सेठ पालूराम धनानिया की प्रेरणा से उन्होंने रायगढ़ में 7 मार्च 1946 को गौरीशंकर मंदिर का शिलान्यास पं. शुक्ल के हाथों करवाया था। देश का प्रसिद्ध झूला- मेला की शुरुआत भी उन्होंने गौरीशंकर मंदिर से की थी। यह संगमरमर पत्थर से निर्मित विशाल मंदिर है, इसका शिल्प पूर्णतया राजस्थानी है। इसके गर्भगृह के दीवालों पर सत्यं के चित्र लोगों को पौराणिक गाथाओं की याद दिलाते है।
  30 लाख नगद एवं अपनी अन्य सम्पत्तियों के साथ 13 मई 1946 को तत्कालीन मुख्यमंत्री के हाथों ‘सेठ किरोड़ीमल धर्मादा ट्रस्ट’ की स्थापना कराई गई। रायगढ़ में ही नहीं उन्होंने देश के विभिन्न स्थानों- जैसे दिल्ली, मथुरा, मेहँदीपुर, (राजस्थान),  भिवानी (हरियाणा), पचमढ़ी, रायपुर, किरोड़ीमल नगर आदि नगरों में अनेक धर्मशाला,  रैन बसेरा एवं कॉलेज का निर्माण कराया, जो कि उनके लोकापकारी कार्यों का जीवन्त उदाहरण है. दिल्ली में सेठ किरोड़ीमल ट्रस्ट द्वारा स्थापित ‘किरोड़ीमल कालेज’ में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने अध्ययन किया था। उनके अलावा मदनलाल खुराना (दिल्ली के पूर्व मुख्य मंत्री), सतीश कौशिक, गिरिजा प्रसाद कोइराला (नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री), कुलभूषण खरबंदा, सुशांत सिंह और अश्वनी चाँद जैसे अनेक प्रसिद्ध व्यक्ति किरोड़ीमल कॉलेज के छात्र रह चुके हैं।
 रायगढ़ की बात चलती है तो मुझे सन् 1975 की याद आती है। उस समय हम लोग धर्मजयगढ़ में रहते थे और वही से जन्माष्टमी के दिन झूला मेला देखने के लिए सपरिवार रायगढ़ आए थे । उस समय पूरा शहर रोशनी से नहाया हुआ लग रहा था (आज भी झूलामेला में वही हाल रहता है) । झूलामेला देखने छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के अन्याय शहरों से लाखों श्रद्धालु आए हुए थे। आज भी भक्तों की संख्या लाखों में होती है और भीड़ इतनी रहती हैं कि स्टेशन से लेकर मंदिर तक आने में कहीं भी पाँव रखने की जगह नहीं रहती। मैं दो वर्ष पहले भी रायगढ़ आया था। पापा जी घर में नहीं थे। बीमार हालत में अकेले मम्मी ने मुझे के. जी. हास्पिटल रायगढ़ में भर्ती कराया था। यहीं मेरा निःशुल्क इलाज हुआ था। एक जुलाई 1947 को सेठ किरोड़ीमल ने महात्मा गांधी नेत्र चिकित्सालय का लोकार्पण राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन से करवाया था, (वे पं. मुकुटधर पांडेय के मित्रों में थे) नेत्र चिकित्सालय के समीप ही अशर्फी देवी महिला चिकित्सालय है सेठ किरोड़ीमल जी ने अपनी पत्नी के नाम से इसका निर्माण कराया था। इसका उद्घाटन भी पं. रविशंकर शुक्ल ने ही किया था। यह आधुनिक एक्सरे मशीनों से सर्व- सुविधायुक्त अस्पताल था। यहाँ निःशुल्क इलाज किया जाता है। पहले अस्पताल का सारा खर्च ट्रस्ट  द्वारा उठाया जाता था।
शिक्षा के क्षेत्र में सेठ जी अत्यंत उदार एवं जागरूक थे। मेरे जीवन की एक घटना मुझे याद हैं, वह आदर्श बाल मंदिर से जुड़ा हुआ है, नवांकुरों की शिक्षा के लिए इसे भी सेठ जी ने ही शुरू किया था। इसके एक प्रखंड में कथक नृत्य (ताडंव पक्ष) की शिक्षा पं. फिरतू महाराज यहाँ की बालिकाओं को वर्षों तक देते रहे। सन्  1975-76 की बात है पापा जी, जब स्थानांतरण में कोड़ातराई आए, तब उन्होंने अपना निवास रायगढ़ में रखा। उन्होंने स्कूल में दाखिला के लिए मुझे इसी बालमंदिर में लाए, वहाँ के वयोवृद्ध बोड़े, गुरुजी मेरा गठीला शरीर देखते ही, बिना कुछ जवाब- सवाल के कह दिया, यह लड़का कमजोर है, यहाँ नहीं ले सकते, पिता जी दुखी हुए , बोले- ‘‘बिना सवाल-जवाब के जाँचे-परखे आपने ऐसा कैसे कह दिया? क्या आपको पहलवानी कराना है। स्काउट मास्टर के नाम से प्रसिद्ध बोड़े सर के मन में चाहे जो रहा हो, जो भी परिस्थिति रही हो, उन्होंने मुझे भर्ती नहीं किया। मुझे सरस्वती शिशु मंदिर में दाखिला मिला। नटवर हाईस्कूल से मैंने मैट्रिक और किरोड़ीमल विज्ञान कला महाविद्यालय के पीजी बिल्डिंग से अपने बड़े भाई शरद के साथ हिन्दी में एम.ए तक की डिग्री ली। इस तरह मैं इस शहर से जुड़ा रहा।
नटवर स्कूल रायगढ़ के सामने खेल का बड़ा मैदान था, जो अब  कई प्रभावशील लोगों द्वारा काट-छाँटकर छोटा कर दिया गया है। खैर,  यह स्कूल और मैदान पंतगबाजी, जालीदार भवन भी सेठ जी की ही कृपा का फल हैं। यहाँ  यह भी ज्ञातव्य हो कि रायगढ़ के गणेशोत्सव में बाहर से आने वाले कला साधकों को  नटवर स्कूल में ठहराया जाता था। राजा भूपदेवसिंह  ने सन् 1906 में अपने बड़े बेटे नटवर सिंह के नाम पर इस स्कूल की स्थापना की थी । सन्  1954 में सेठ किरोड़ीमल ने इस स्कूल भवन का जीर्णोद्धार कराया था और इसे भव्यता प्रदान की। तब से इसे किरोड़ीमल नटवर हाईस्कूल के नाम से जाना जाता है।                           
    रायगढ़ के जिस कोने पर चले जाइए उनके यादगार के रूप में कई इमारतें सेठ किरोड़ीमल के नाम पर ही मिलेंगी। छत्तीसगढ़ ,मध्यप्रदेश, बिहार और उड़ीसा में तथा अन्यान्य जगहों पर सेठ किरोड़ीमल के नाम पर इमारतें खड़ी हैं। यदि पॉलिटेक्निक काँलेज रायगढ़ की चर्चा न की जाए, तो इस लेख का उद्देश्य अधूरा रह जाएगा। सेठ किरोड़ीमल ने रायगढ़ में मध्यप्रदेश के प्रथम पॉलिटेक्निक कॉलेज का निर्माण कराया था, जो कि आकार में किसी छोटे- मोटे विश्वविद्यालय का स्मरण कराता है।
पॉलिटेक्निक कालेज का शिलान्यास सन् 1955 में  म. प्र. के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल ने  किया था एवं उद्घाटन देश के प्रथम राष्ट्रपति डाँ०राजेंद्र प्रसाद ने 1956 में किया था। समारोह की अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार एवं पुरातत्त्ववेत्ता पं. लोचन प्रसाद पांडेय ने की थी। अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान कुल दो इंजीनियरिंग कालेज (रायपुर और बिलासपुर) , और कुल तीन पॉलिटेक्निक थे।  जिसमें किरोड़ीमल शासकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज रायगढ़ का नाम प्रमुख था। रायपुर और बिलासपुर इन दोनों कॉलेजों में एडमिशन नहीं हो पाने वाले छात्रों के सामने रायगढ़ का पॉलिटेक्निक कालेज ही विकल्प में बचता था। रायगढ़ के अतिरिक्त अन्य दो  पॉलिटेक्निक  कॉलेज धमतरी और दुर्ग में भी थे; लेकिन धमतरी का पॉलिटेक्निक कॉलेज प्राइवेट था। और यह भी सच था कि रायगढ़ पॉलिटेक्निक कॉलेज की बात ही कुछ और थी। इसकी भव्यता आते- जाते लोगों को अपनी ओर खींचती थी। रायगढ़ पॉलिटेक्निक कॉलेज के उद्घाटन के लिए किरोड़ीमल अपने मुनीम को लेकर जवाहरलाल नेहरू के यहाँ  गये थे। जवाहरलाल नेहरू के स्टाफ ने उन्हें भाव नहीं दिया।  किरोड़ीमल ने इसे अन्यथा नहीं लिया;  लेकिन मुनीम को यह सेठ जी का अपमान लगा। मुनीम ने सेठ जी को मारवाड़ी में कहा- ‘‘इब तो उद्घाटन राष्ट्रपति सेती होणा चईए।’’  और दोनों राष्ट्रपति को आमंत्रित करने राष्ट्रपति भवन चले गए। राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद जी स्पेशल ट्रेन से रायगढ़ आए थे और सेठ किरोड़ीमल ने महामहिम राजेंद्र प्रसाद जी से सोने की कैंची से फीता कटवाया था। सेठ किरोड़ीमल के संदर्भ में भारत के राष्ट्रपति महामहिम डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने उद्बोधन भाषण में कहा था- " देश को श्री किरोड़ीमल लुहारीवाला सदृश मानव सेवा में आस्था रखने वाले लोगों की आवश्यकता है, जो संख्या में भले ही कम हों; पर सामने आकर यदि ऐसा अनुकरणीय कार्य करें, तो राष्ट्र का कल्याण होगा।’’ 
 किरोडीमल पॉलीटेक्निक कॉलेज के पीछे दो बड़े हॉस्टल भी हैं। एक विश्वेश्वरैरया हॉस्टल  और उसके पीछे तिलक हॉस्टल । जिन्हें बनाने में आज करोड़ों रुपये लगेंगे। राजीव नयन शर्मा 1980 के छात्रसंघ अध्यक्ष के लिए चुने गए थे, उनके अनुसार उस समय यहाँ  लगभग 600  छात्र विद्याध्ययन हेतु रहा करते थे; लेकिन आज उसका उपयोग नहीं हो पा रहा है, खाली पड़ा हुआ है। जनहित में इसका उपयोग जरूरी है। वर्तमान में वहाँ सोलह सतरह सौ बच्चे पढ़ रहे हैं। इस लिहाज से छात्रों के हित में दोनों हॉस्टलों को काम में लिया जाना चाहिए। 
 छत्तीसगढ़ - मध्यप्रदेश का पॉलिटेक्निक कालेज होने की वजह से यहाँ  अब तक लाखों इंजीनियर तैयार हो चुके हैं, यहाँ विश्व प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री  डाँ० आर.जी. बुलदेव भी प्रथम प्राचार्य के रूप में सेवा दे चुके है।  इसका परिसर पेड़-पौधों से घिरा हुआ है।  रंग -बिरंगे फूल पौधे इसकी शोभा बढ़ाते हैं। इसके तीन खंड है, जिसमें शताधिक कमरे है और जहाँ  मौखिक, प्रैक्टिकल के साथ प्रायः सभी विषयों की पढ़ाई होती हैं। पिछले पचास- पचपन वर्षो  में यहाँ लाखों इंजीनियर निकल चुके हैं, और देश के विभिन्न भागों में सेठ किरोड़ीमल का नाम राष्ट्रव्यापी कर चुके हैं। इसी बिल्डिंग में एक ऑडिटोरियम भी हैं, जिसमें शहर तथा दूसरे शहरों के कवि, लेखक एवं कलाकार शिरकत करते हैं।
किरोड़ीमल विज्ञान कला महाविद्यालय एवं पॉलिटेक्निक कॉलेज रायगढ़ में आचार्य विनयमोहन शर्मा, कविवर रामेश्वर शुक्ल अंचल जैसे नामी-गिरामी  विद्वान्  प्राचार्य के रूप में कार्य कर चुके है । पं. प्रभुदयाल अग्निहोत्री जैसे संस्कृत के महापंडित भी प्रोफेसरी कर चुके है। इस विद्यालय से पं. मुकुटधर पांडेय और जन कवि आनंदी सहाय शुक्ल से भी गहरा सम्पर्क रहा है।
  वाकई सेठ किरोड़ीमल ने रायगढ़ को बसाया , सजाया- सँवारा। यहाँ  के लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्होंने बहुत से काम किए। अगर सेठ किरोड़ीमल नहीं होते तो रायगढ़ इतना पिछड़ा हुआ होता कि हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। आज का रायगढ़ अस्सी- पचासी साल पीछे चला जाता।  आज भी छत्तीसगढ़ दो मामलों में बहुत पिछड़ा हुआ है एक दो शिक्षा दूसरा स्वास्थ्य। उसके लिए हमको बाहर जाना होता है। उन्होंने उस समय देश के इने-गिने संस्थाओं की तर्ज पर यहाँ  हॉस्पिटल, कॉलेज और स्कूल बनवाए।

जनचेतना के अग्रदूत सेठ किरोड़ीमल ने सभी सुविधाओं से युक्त एक पुस्तकालय की भी स्थापना  1954 -55 में की थी। इसका निर्माण नेत्र चिकित्सालय और बूजी -भवन (धर्मशाला) के बीच किया था। इस पुस्तकालय का परिवर्धन पालूराम धनानिया कामर्स कॉलेज के प्राचार्य श्री नंदलाल शर्मा ने बड़ी निष्ठा से किया था। खेद है रख रखाव के अभाव में वह प्रायः सभी विषयों की पुस्तकों का विशाल ग्रंथालय भी दीमकों का आहार हो गया। धर्मशाला में ठहरने वाले यात्रियों के लिए ट्रस्ट की ओर से भोजन - पानी की व्यवस्था रहती थी, खेद है, इसका उपयोग व्यावसायिक परिसर के रूप में किया जा रहा है। सेठ जी द्वारा निर्मित कॉलोनियों में वर्षों से काबिज में से कुछ लोग स्थायी रूप से कब्जा कर चुके हैं; लेकिन प्रशासन अबतक इन पर रोक नहीं लगा पाया है।
   लोगों के द्वारा यह भी बताया जाता है कि भारत के भूतपूर्व रक्षा मंत्री और हरियाणा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री बंशीलाल अपने गर्दिश के दिनों में रोजी -रोटी की तलाश में रायगढ़ आए थे; लेकिन बात नहीं बनी और वे वापस  चले गए थे।
 वैसे छत्तीसगढ़ दानवीरों का गढ़ रहा है। रायपुर में दाऊ कल्याण सिंह, बिलासपुर में पं देवकीनन्दन दीक्षित और रायगढ़ में सेठ किरोड़ीमल। छत्तीसगढ़ के विकास में इन तीनों विभूतियों के अवदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता ।  इन्हीं का अनुसरण करते हुए शक्ति के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेश अग्रवाल ने हाल ही के वर्षों में नया बस स्टैंड के लिए अपनी बेशकीमती जमीन नगरपालिका शक्ति को दान कर एक मिसाल पेश की है, जो कि अनुकरणीय है। 
  आधुनिक रायगढ़ के इस महान शिल्पी का स्वर्गवास 2 नवम्बर 1965 को हुआ था, पर यश काया रूप से वे आज भी हमारे बीच जीवित हैं। ऐसे महान  धर्मवलम्बी  सेठ किरोड़ीमल का नाम, समाज द्वारा क्या कभी भुलाया जा सकता है ? रायगढ़ उनका सदैव ऋणी रहेगा।   
  सम्पर्कः  पंचवटी नगर, बोईरदादर, रायगढ़, छत्तीसगढ़, मो.न. 8319939396    Email.basantsao52@gmail.com

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