झोलाछाप
डॉक्टरों की गिरफ्त में...
-डा. रत्ना वर्मा
पिछले दिनों की बात है छत्तीसगढ़ में एक झोलाछाप डॉक्टर के इलाज ने साढ़े तीन साल की मासूम
पायल की जान ले ली। यह वह समय था जब पूरे देश में लोकसभा चुनाव की गहमा-गहमी थी और
पूरा प्रशासनिक अमला चुनाव सम्पन्न करने की तैयारी में व्यस्त था। ऐसे में मासूम
पायल के मौत की खबर सिर्फ खबर बन कर रह गई। हुआ यह था कि दुर्ग जिले के बलौदी के
पास के गाँव सिरवा जौरा के निवासी मुकेश देशमुख ने बेटी पायल को तेज बुखार आने पर
गाँव में बरसो से प्राइवेट प्रेक्टिस करने वाले एक डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने
बुखार की दवाई दे दी। पायल का बुखार एक दिन में उतर भी गया। लेकिन अगले ही दिन
पायल के पूरे शरीर में फफोले पड़ गए और उसकी हालत बिगडऩे लगी। घबराए माता-पिता
पायल को लेकर पहले दुर्ग के जिला अस्पताल ले गए, जहाँ डॉक्टरों ने
उसे वेंटिलेटर पर रख रायपुर भीमराव अंबेडकर अस्पताल रेफर कर दिया। लेकिन तब तक
बहुत देर हो चुकी थी लाख कोशिश करने के बाद भी मासूम पायल की जान नहीं बचायी जा
सकी। झोलाछाप
डॉक्टर की दवाई पीने से मौत हो जाने की यह कोई पहली घटना नहीं है,
इस प्रकार की घटनाएँ आज रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गईं
हैं। शर्तिया इलाज के नाम पर इस तरह के झोलाछाप डॉक्टर इन दिनों मीडिया का भरपूर
इस्तेमाल कर रहे हैं। अखबारों और टीवी में बड़े-बड़े विज्ञापन दे कर वे गंभीर से
गंभीर बीमारी को ठीक करने का दावा भी करते हैं। समाचार पत्रों में लगभग रोज ही
शर्तिया इलाज वाले विज्ञापनों की भरमार रहती है, इतना ही नहीं ,वे ऐसे
मरीजों का बयान भी दिलवाते हैं; जो यह कहते हैं कि अमुक दवाई और अमुक
डॉक्टर के इलाज से उनकी यह लाइलाज बीमारी ठीक हो गई। बस फिर क्या है लोग आसानी से
इनके चंगुल में आ भी जाते हैं। प्रश्न यह उठता है कि मरीज ऐसे झोलाछाप डॉक्टरों के
चंगुल में फँस कैसे
जाते हैंदरअसल बीमारी व्यक्ति को अंधविश्वासी बना देती है और सुनी सुनाई बातों के आधार पर
वे ऐसे डॉक्टरों के पास भागे चले जाते हैं। उन्हें लगता है कि जब उनके इलाज से
इतने लोग ठीक होने का दावा कर रहे हैं ,तो क्यों न मैं भी
एक बार आजमा कर देखूँ । क्या पता मैं भी ठीक हो जाऊँ। बस इसी भावनात्मक कमजोरी का फायदा
ऐसे झोलाछाप डॉक्टर तुरंत उठाते हैं। लोगों की यही मानसिकता ऐसे झोलाछाप डॉक्टरों
के लिए वरदान बन जाती है और उनका गोरखधंधा चल पड़ता है। लोगों का
ऐसा सोचना है कि झोलाछाप डॉक्टरों के चंगुल में सिर्फ गाँव के कम पढ़े-लिखे लोग ही
आते हैं; पर ऐसा सोचना गलत है। ऐसे हजारो झोलाछाप डॉक्टर फर्जी डिग्री
और गलत तरीके से लाइसेंस बनवाकर न सिर्फ गाँव- गाँव में बल्कि छोटे- बड़े सभी
शहरों में कुकुरमुत्तों की तरह उग आए हैं और अपनी फर्जी डिग्रियों के आधार पर जगह-
जगह अपने क्लीनिक
खोलकर आम जनता के स्वास्थ्य एवं उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। देश की राजधानी दिल्ली का एक मामला उस समय सामने
आया, जब पीडि़त ने अदालत की शरण ली- झोलाछाप डॉक्टर के इलाज में
एक महिला की मौत हो गई, इससे उसकी
दस साल की बेटी फ्रैंड पैरेंट्स के साथ रहने को मजबूर है। महिला के पति मनोज कुमार
ने इसकी शिकायत की और मामला हाईकोर्ट तक पहुँचा। हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस और दिल्ली
सरकार के डायरेक्टर हेल्थ सर्विसेज से जवाब माँगा। इसके जवाब में दिल्ली पुलिस ने
कहा कि जनवरी में झोलाछाप मामले में 10एफआईआर दर्ज किए गये हैं, वहीं डायरेक्टर हेल्थ सर्विसेज का कहना था कि उसके पास
साल 2012- 13 में वेस्ट
और नॉर्थ वेस्ट से कई शिकायतें आईं थीं, लेकिन उन्होंने इसकी जाँच इसलिए नहीं की; क्योंकि
उनके पास जाँच पर जाने के लिये कोई सरकारी वाहन नहीं था ! इस जवाब से कोर्ट काफी
नाराज है! और उन्होंने तुरंत कार्यवाई का आदेश दिया है। यह कितनी हास्यास्पद
स्थिति है कि यहाँ सरकार अपनी नाकामी की कहानी खुद ही बयान कर रही है। ज्ञात हो कि झोलाछाप
डॉक्टरों के खिलाफ दिल्ली सरकार के लिए पाँच एनजीओ संस्थाएँ काम करती है। इसके बावजूद ऐसे डॉक्टरों की संख्या
बढ़ती ही चली जा रही है। यह बहुत ही
दुखदायी और हमारे देश के लिए शर्म की बात है कि इतनी तरक्की-पसंद और आधुनिक तकनीक
का दम भरने वाले हमारे देश के लोग आज भी अंधविश्वासी और कमजोर हैं - विज्ञापनों की
चकाचौंध के झाँसे में आकर
बिना यह पता लगाए कि जिस डॉक्टर के पास वे इलाज के लिए गए हैं और वह जो दवाई
उन्हें प्रिस्क्राइब कर रहा है उस डॉक्टर के पास डॉक्टर की डिग्री है भी या
नहीं। डॉक्टर के पेशे के साथ यह विडम्बना
ही कही जाएगी कि जिन्हें दवाई और मर्ज के बारे में जानकारी ही नहीं है ,वह भला
किसी मरीज का इलाज कर ही कैसे सकता है।
प्रश्न यह
उठता है कि ऐसे झोलाछाप डॉक्टरों को क्या किसी का संरक्षण प्राप्त है? अप्रत्यक्ष रूप से
एक व्यापार के रूप में इस पेशे को बढ़ावा देने वाले कहीं हमारे अपने ही बीच के लोग
तो नहीं हैं ,जो अपने थोड़े से फायदे के लिए इन्हें प्रश्रय देते चले आ रहे
हैं। प्रत्यक्ष रुप में देखा जाए तो
झोलाछाप डॉक्टरों की लगातार बढ़ती संख्या के लिए सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य
सुविधाओं की कमी इसका एक बहुत बड़ा कारण है। यदि हमारे देश में सरकार अपनी घोषणाओं
और वादों के अनुसार अस्पताल, डॉक्टर, नर्स,
दवाइयाँ और अन्य स्वास्थ्य सुविधाएँ
उपलब्ध करवाए तो ऐसे झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाने की नौबत ही नहीं आए। दूसरी
महत्त्वपूर्ण बात- यदि सरकार इन तथाकथित डॉक्टरों पर तुरंत
कार्यवाई करे और प्राइवेट प्रेक्टिस के लिए लाइसेंस जारी करते समय उचित जाँच पड़ताल के बाद ही उन्हें लाइसेंस
जारी करे ,तो उनका बाजार इस तरह से पनपने ही नहीं पाता। अब तक होता यही
आया है कि जब कोई शिकायत सामने आती है, तो कार्रवाई का
आदेश जारी कर दिया जाता है,
मामले
भी दर्ज हो जाते हैं; पर बाद में यह जानकारी नहीं मिल पाती कि
जिन झोलाछाप डॉक्टरों के विरुद्ध मामले दर्ज किए गए थे ,उनका बाद में क्या
हुआ?
इस मामले
में छत्तीसगढ़ से एक अच्छी खबर यह है कि स्वास्थ्य विभाग के निर्देश पर रायपुर
जिला मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) के आदेश पर जिन 60 झोलाछाप डॉक्टरों
ने नर्सिग होम एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन के लिए ऑनलाइन-ऑफलाइन आवेदन किया था, उनका आवेदन खारिज
किया जा चुका है ।
इनमें
से कई तो ग्रामीण इलाकों में नर्सिग होम भी संचालित कर रहे हैं। ज्ञात हो कि
छत्तीसगढ़ शासन ने निजी नर्सिंग होम की मनमानियों पर रोक लगाने और झोलाछाप
डाक्टरों पर पाबंदी हेतु गत वर्ष प्रदेश में नर्सिंग होम एक्ट लागू कर दिया है। इस
एक्ट में एफआईआर का भी प्रावधान है। यही
नहीं लगभग एक हजार ऐसे झोलाछाप डॉक्टरों के विरुद्ध कार्रवाई करने की रूपरेखा तैयार
की जा चुकी है। विश्वास किया जाना चाहिए कि स्वास्थ्य विभाग जनता के स्वास्थ्य के
साथ खिलवाड़ करने वाले ऐसे नर्सिंग होम और झोलाछाप डॉक्टरों पर सख्त कार्यवाही
करते हुए उन्हें ऐसा दंड देगी कि आगे फिर कभी किसी मासूम पायल को गलत इलाज के नाम
पर अपनी जान से हाथ न धोना पड़े।