एक प्रशासक, एक कवि, एक चित्रकार, और एक
आलोचक- ये चारों एक ऊँट के साथ रेगिस्तान से गुज़र रहे थे।
एक रात यूँही वक्त बिताने के लिए उन्होंने सोचा कि वे यात्रा
के साथी अपने ऊँट का वर्णन करें।
प्रशासक टेंट में गया और दस मिनट में उसने ऊँट के महत्त्व को दर्शाने
वाला एक व्यवस्थित और वस्तुनिष्ठ निबन्ध लिख दिया।
कवि ने भी लगभग दस मिनट में ही अनुपम छंदों में यह लिख दिया
कि ऊँट किस प्रकार एक उत्कृष्ट प्राणी है। चित्रकार ने भी अपनी तूलिका उठाई और कुछ सधे हुए स्ट्रोक्स
लगाकर ऊँट की बेहतरीन छवि की रचना कर दी। अब आलोचक की बारी थी। वह कागज़-कलम लेकर टेंट में चला गया। उसे भीतर गए दो घंटे बीत गए. बाहर बैठे तीनों लोग बेहद उकता चुके
थे।
वह बाहर आया और बोला, मैंने ज्यादा देर
नहीं लगाई... अंतत: मैंने इस जानवर के कुछ नुस्ख खोज ही लिये। इसकी चाल बड़ी बेंढगी है। यह ज़रा भी आरामदेह नहीं है। बदसूरत
भी है
इसके साथ ही उसने अपने दोस्तों को कागज़ का एक पुलिंदा थमा
दिया। उस पर लिखा था आदर्श ऊँट- जैसा ईश्वर को रचना चाहिए था।(पाउलो कोएलो के
ब्लॉग से) (हिन्दी ज़ेन से)
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