- देवी नागरानीबचपन की यादों में शामिल है उस कॉन्वेंट स्कूल के दिन, जहाँ क्रिश्चियन माहौल में चारों ओर शिक्षिकाओं के स्थान पर वहाँ स्थापित मठवासिनी महिलाएँ हमें दो तीन बार गिरिजाघर ले जातीं, जहाँ हम स्कूल के कार्यक्रम के बीच प्रतिदिन दो बार घुटने टेककर, सभी दिशाओं में हाथों को माथे और छाती से लगाते हुए प्रार्थना करते। यह आदत दिल में इस कदर समा गई कि बाद में यह दिल की धड़कन के साथ घुलमिल गई।
आज 6 अप्रैल 2018 को, ‘होली नेम’ अस्पताल के cardiac थेरेपी सेंटर की ओर से मुझे ले जाने वाली गाड़ी की मेडिकल एस्कॉर्ट ड्राइवर ने वही किया, जब हम एक चर्च को पार कर रहे थे। उसकी आँखों की चमकीली नज़र और गाड़ी चलाते समय शांतिपूर्ण हावभाव ने मेरा ध्यान खींचा और मैं उसके साथ बातचीत करने के लिए लालायित हो उठी। मैं उसकी ड्राइविंग सीट के बगल में बैठी थी।
‘क्या मैं आपका नाम जान सकती हूँ?’ मैंने गुफ्तगू का आगाज़ किया।
इडेलका ... मुस्कुराते हुए उसने मेरी तरफ देखा।
यह एक भारतीय नाम ‘अलका’ की तरह लगता है’ ... मैंने बातचीत को लंबा करने के इरादे से कहा।
ओह, आप भारत से हैं। आप अच्छी अंग्रेजी बोल लेती हैं’। उसने मेरी ओर देखते हुए कहा।
ओह धन्यवाद। इतना कहकर मैं कुछ देर चुप रही।
cardic थेरेपी सेंटर का रास्ता करीब 18 मिनट का था। इसलिए मेरे पास उस महिला से बात करने और उसके बारे में और जानने का समय था। मौन के छोटे से अंतराल को तोड़ते हुए मैंने एक प्रश्न के साथ शुरुआत की….
‘आपको गाड़ी चलाना, लोगों को अलग- अलग जगहों से लेना, फिर उन्हें वापस छोड़ना, कभी-कभी उनकी मदद करने का यह काम कैसा लगता है? इस ठंड के मौसम में यह आसान नहीं है?’
‘हाँ मुझे पता है। मेरे पास एक पूर्णकालिक नौकरी है और यह मेरी अंशकालिक नौकरी है, सप्ताह में तीन बार, मंगलवार, गुरुवार और शनिवार। इसका मुझे अच्छा भुगतान मिल जाता है, इसलिए…’
‘फिर तो आप यकीनन घर देर से पहुँचती होंगी?’ मैंने अचानक यह अनुमान लगाना बंद कर दिया कि वह घुसपैठ करना पसंद नहीं कर सकती।
‘जी सच कहा’, पर हम परिवार के सब लोग मिलजुलकर सँभाल लेते हैं।
मैंने महसूस किया कि इस देश में सबको व्यस्त रहना अच्छा है, क्योंकि यह एक मजबूत वित्तीय स्थिति, अनुभव और नई चीजें सीखने के अवसर भी देता है।
‘क्या एक नौकरी से काम नहीं चल पाता?’ मैंने सवालिया नज़रों से उसकी ओर देखा।
‘जी नहीं, मुझे अपने परिवार और बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, इसलिए यह पार्ट टाइम कार्य कर रही हूँ।’
‘आपके कितने बच्चे हैं?’ मैंने एक तरह से माँ के दिल को छुआ।
‘छह बेटियाँ' और वह रहस्यमय ढंग से मुस्कुराई।
‘छह बेटियाँ...1’ मेरी प्रतिक्रिया पर उसने गर्दन मोड़कर मेरी ओर देखा।
‘हाँ... तीन अपनी और तीन गोद ली हुई ...’
‘दिलचस्प है... गोद ली हुई बेटियाँ?’ मैंने आँखों में तैरते कई सवालों के साथ उसकी ओर देखा। मेरी हैरान करने वाली प्रतिक्रिया को एक स्पष्ट पारदर्शी जवाब मिला, जब उसने कहा- “बस उन लड़कियों को अपनाना चाहती थी, जो अनाथ थीं या फिर जिनके सौतेले पिता थे।’
मेरा दिमाग पूरी तरह से असमंजस में था, उसके स्पष्ट जवाबों के बावजूद भी सीधे सोच नहीं पाई।
‘यह निर्णय आपका रहा या अपके पति का?’
‘मेरा…।’
‘उनका रिएक्शन क्या रहा उस समय?’
‘वे बिल्कुल भी तैयार नहीं थे, इस तथ्य के साथ कि हमारी अपनी बेटियाँ हैं, गोद क्यों लें? इसके अलावा वह इस कारण से बहुत अनिच्छुक थे कि इससे उनके खर्च और बच्चों की ज़रूरत से जुड़ी हर चीज़ की माँग बढ़ जाएगी।’
‘फिर...’
‘मैं अडिग थी और कुछ समय में हमने मिलकर तीन लड़कियों को अपनाया। पहले कुछ मुश्किल हुआ; लेकिन बाद में उन्होंने मुझे उन सभी कामों में मदद करनी शुरू कर दी, जो एक पिता को करनी चाहिए ।
‘वाह…. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि आज की दुनिया में, जब अपने चार या अधिकतम पाँच लोगों के परिवार का पालन-पोषण करते हुए हम थक से जाते हैं, इस जोड़े ने स्वेच्छा से यह जिम्मेदारी अपने कँधों पर ले ली।’
‘आपकी उम्र क्या है?’
‘मैं चालीस साल की हूँ और मेरे पति बयालीस साल के हैं।‘
‘और अब आप छह बेटियों की माँ हैं... अविश्वसनीय... फिर भी विश्वास करना पड़ता है।’
‘थैंक्यू…. वह शान से बड़बड़ाई।’
‘इसलिए आप उनकी देखभाल, उन्हें स्कूल भेजने और घर के काम के अलावा ये दो नौकरियाँ कर लेतीं हैं। आफरीन है आपको।’
‘हाँ बिलकुल सही। मैं कड़ी मेहनत करती हूँ, दो काम करती हूँ।’ वह मेरी तरफ मुड़ी और मेरी आँखों में झाँका, शायद मेरी प्रतिक्रिया देखना चाहती थी। अपनी बात जारी रखते हुए उसने कहा- ‘मैं सुबह पाँच बजे उठती हूँ और वह सभी काम करती हूँ ,जो मुझे करने की जरूरत है और फिर आठ बजे अपनी पूर्णकालिक नौकरी के लिए जाती हूँ।’
‘माई गॉड, आप यह सब कैसे मैनेज कर लेती हैं?’ मैं हैरान होते हुए अपने भाव प्रकट किए।
‘मेरे पति के सहयोग से, जो स्थिति के अनुरूप बन पाया है। वह रात में काम करता है और दिन में लड़कियों को स्कूल से लाता है, कभी-कभी खाना बनाता है… और कुछ अन्य काम जैसे खरीदारी, कपड़े धोने का काम भी करता है।’
‘आपकी बेटियाँ कितने साल की हैं?’
‘मेरी सबसे बड़ी दत्तक पुत्री अब 19 वर्ष की है, कॉलेज जा रही है। शाम को जब मैं घर लौटती हूँ, तो सभी मेरी मदद करने की कोशिश करतीं हैं।
‘मुझे उनके सभी कार्य करते हुए देखकर वे सभी भी मेरा हाथ बँटाते हैं, मुझे प्यार करते हैं, मेरी देखभाल करते हैं, जैसे कोई अन्य बच्चा करता है।
‘ वाह अति उत्तम ...कार्य ...-कहकर मैं मुस्कराई।
‘हाँ….’ और वो बिना मेरी ओर देखे ही मुस्कुरा दी।
‘अविश्वसनीय... क्या मैं आपका फोन नंबर ले सकती हूँ और अगर मैं आपकी बेटियों और आपके परिवार के संबंधों के तथ्यों के बारे में अधिक जानना चाहूँ तो क्या मैं आपको कॉल कर सकती हूँ?
ओह ज़रूर... इतना कहकर उसने अपना नंबर मुझे बताया।
मैंने एक कागज के टुकड़े पर लिखा
Idelka, फोन: 201 354 8501 (6 अप्रैल 2018)
मैं तब चुप थी, आधुनिक दिनों में इस तरह के महान कार्य के सभी आयामों और संभावनाओं के बारे में सोचकर अपने विचारों में खो गई ...
‘मेरे तीन बच्चे हैं और तीन गोद लिए हैं।”
एक झटके में कई सवाल उठ खड़े हुए कि उसने एक लड़के को गोद क्यों नहीं लिया, जैसा कि आम भारतीय मानसिकता वाले जोड़े करते हैं। लेकिन छह कन्याओं का विचार ही अब कृपा के सार का प्रसार कर रहा था, विचार की पवित्रता से दुनिया को और सुंदर बना रहा था, अनाथों को और सौतेले पिता के कुव्यवहार से एक महफूज़ छत के तले आश्रय देना... मैं बस चुपचाप इडेलका को देखने लगी।
‘क्या मैं आपसे एक और सवाल पूछ सकती हूँ इडेलका?’ मैं और अधिक अनौपचारिक हो गई । यह एक माँ की दूसरी माँ के बीच की की बात थी।
ज़रूर..
‘बेटा गोद लेने के बारे में क्यों नहीं सोचा...’
‘अरे नहीं, बिलकुल नहीं… आप जानती हैं, इसका मतलब यही है, कि लड़कियों के साथ लड़कियाँ सुरक्षित रह पाती हैं।’
मैं मन ही मन उसके विचारों की पारदर्शिता व बातों की शालीनता की प्रशंसा करती रही। तुरंत ही उसकी शिष्टता ने मुझे मदर टेरेसा से जोड़ दिया, जिन्होंने ऐसे कई बच्चों, अनाथों, बीमार बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी अपनी कन्धों पर ले ली थी और कुछ शहरों के विभिन्न हिस्सों में ऐसी कैथोलिक संस्थाएँ स्थापित करते हुए सेवाएँ देने के केंद्र खोले थे। मैं एक दो बार मुंबई के ‘विले पार्ले’ में स्थित एक केंद्र में एक दोस्त के साथ जा चुकी हूँ, जो एक बच्चा गोद लेना चाहती थी।
बच्चों को पालने में देखना वास्तव में दिल में सवालों के समंदर में गोते खाने वाला परिदृश्य है, जो मन को झकझोरने लगता है कि वे बच्चे वहाँ क्यों है जब उन्हें अपने माता-पिता की नर्म गोद में सुरक्षित और अपने घर के प्यार भरे वातावरण में उनसे लोरी सुनना चाहिए ।
ऐसा क्यों है कि उन्हें अस्वीकार कर दिया जाता है और कभी-कभी अनाथालय केंद्रों के दरवाजे पर, कचरे के डिब्बे के पास, या किसी बगीचे के एकांत कोने में बेंच पर छोड़ दिया जाता है। ये अज्ञात बच्चे रोते हैं, चीखते हैं, पर जन्म देनी वाली माएँ उन आवाजों को अनसुना कर देती हैं। मानवता का निर्मम चेहरा! एक माता-पिता बच्चे को खुले क्षेत्र में छोड़ने के लिए इतने पत्थर-दिल कैसे हो सकते हैं, कि वह उन्हें मातृत्व के प्यार से, देखभाल से एवं गोद की आनंदमय पनाह से वंचित कर दे।
‘आपका नाम क्या है ?’ इडेलका की आवाज ने अचानक मुझे मेरे विचारों के जाल से बाहर निकाल दिया...
‘देवी’…..मैंने कहा
अच्छा नाम है, याद रखने में आसान।
‘थैंक्सस इडेलका। मुझे खुशी है कि मैं तुमसे मिली और खुश हूँ सब जानकर। अगर मैं आपको किसी दिन फोन करूं तो चौंकना मत।
आपका स्वागत है देवीजी।
और एक कोमल झटके के साथ उसने वैन को चिकित्सा केंद्र के मुख्य द्वार के सामने रोक दिया। उसने मेरे लिए दरवाजा खोला और मुझे सुरक्षित उतारने में मदद की और प्रवेश द्वार तक ला छोड़ा।
थैंक्सस इडेलका ..मैंने हाथ मिलाया और एक बार फिर उससे किसी दिन उससे बात करने की अनुमति माँगी।
ओह ज़रूर लेकिन 7-30 के बाद। आपसे बात करके खुशी होगी।
मैं फिर भौतिक चिकित्सा के लिए नियत कमरे की ओर चल पड़ी।
21 दिसंबर 2021
आज 6 अप्रैल 2018 के साढ़े तीन साल के लंबे अंतराल के बाद, मैंने उसके फोन नंबर के साथ इडेल्का के बारे में कुछ पुराने कागजात देखे। एक फ्लैश में यादें ताज़ा हो गयीं। और छह बढ़ती लड़कियों के बारे में और जानने की मेरी उत्सुकता हर दिन की कार्य सूची में सर्वोच्च प्राथमिकता पा गई।
शाम को मैंने उसे फोन करने की कोशिश की। उसने फोन तो उठाया लेकिन नामालूम नंबर समझ कर डिस्कनेक्ट कर दिया। मेरे अगले प्रयास में उसने 'हैलो' कहा और मैंने उससे जुड़ने के लिए तुरंत ही कहा- क्या मैं इडेल्का से बात कर सकती हूँ?
‘बोल रही हूँ...’
‘हाय इडेलका, मैं देवी बोल रही हूँ। याद है आपने मुझे ‘होली नेम’ अस्पताल के कार्डियक थेरेपी सेंटर में जाते हुए नंबर दिया था। बहुत समय पहले की बात है। हमने आपके परिवार और आपकी छह लड़कियों के बारे में बात की, जिनमें से तीन आपने में गोद ली थी। भगवान का शुक्र है कि इसने मुझे आपसे जोड़ा। क्या तुम्हें याद है?
ओह, एक मिनट रुको, मैं याद करने की कोशिश कर रही हूँ। हाँ मुझे याद है। क्या हाल है? बहुत दिनों बाद आपकी आवाज़ सुनकर बहुत अच्छा लगा देवीजी।
मैं ठीक हूँ, इलाज के बाद मेरा दिल अच्छी तरह से काम कर रहा है और अब मैं न्यू जर्सी से न्यूयॉर्क आकर बसी हूँ।
ओह....
‘कैसी हैं आपकी बेटियाँ? लड़कियों के बारे में और जानना चाहता थी। मुझे लगता है कि वे अब तक 19 से 22-23 की उम्र के बीच की हुई होंगी। कृपया मुझे उनके बारे में और बताएँ।’
‘हाँ, वे ठीक हैं और सब खुश हैं। दो की पिछले साल शादी हुई, एक की अरेंज मैरिज और दूसरी की लव मैरिज। दो लड़कियाँ कार्यरत हैं और अन्य दो हाईस्कूल में हैं। मेरे पति को भी काम पर पदोन्नति मिली है; इसलिए सभी ने मुझे अपनी अंशकालिक अस्पताल की नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया है। अब मैं हास्पिटल का काम नहीं करती।’
‘इडेलका मेरा एक अनुरोध है, क्या आप मुझे लड़कियों के साथ अपनी फैमिली फोटो भेज सकती हैं। यदि आप बुरा न मानें, तो इस लेखन में संलग्न करना चाहती हूँ।’
‘अरे! कोई दिक्कत नही। मैं तुम्हें कल भेजूँगी; बल्कि मैं अपनी बड़ी बेटी को भेजने के लिए कहूँगी, क्योंकि वह तकनीकी रूप से अधिक कुशल है।’
‘धन्यवाद इडेलका। मेरे साथ सब साझा करने और मेरे कॉल का जवाब देने के लिए धन्यवाद। भगवान आपको परिवार सहित खुश रखे। शुभ रात्रि !’
‘सुश्री देवी जी आपको भी शुभ रात्रि !’
एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते हुए संवाद सम्पूर्ण करना एक सुखद अहसास था।
उसने मुझे ग्रुप फोटो भेजा, लेकिन इसे प्रकाशन न करने का अनुरोध भी किया। और मैं उसके प्रति ईमानदार होने के लिए बाध्य हूँ।
दिल के आईने में एक खूबसूरत तस्वीर अब भी निखर आती है।
6, अप्रैल 2022
email- dnangrani@gmail.com