पक्षियों का स्वर्ग सात ताल और पंगोट
छाया एवं आलेख- सीजर सेनगुप्त
कठफोड़वा पेड़ की टहनी पर सबसे पहले फोटो खिंचवाने के लिये तैयार बैठा था। करीब बीस तस्वीरें लेने के बाद हमें एहसास हुआ, कि उस जैसे कई और कठफोड़वे हमारे आस- पास मौजूद थे... हम उन्हें देखने के लिये
अलग- अलग दिशाओं में बिखर गये। जब तक हम घनें जंगलों से होते हुये पहाड़ी पर चढ़ते रहे, सफेद गले वाली हंसने वाली चिडिय़ा की आवाज सारे जंगल में गूंजती रही।
मेरी आंख कब लगी मुझे पता ही नहीं चला। बारिश की ठंडी- ठंडी बूंदों ने नाक भिगो कर मानो मुझे जगाया हो! खिड़की से बाहर झांका तो मुझे हवा के झौके पर सवार ठंडक महसूस हुई। इन पहाड़ी रास्तों पर हमारी कार ठीक- ठाक रफ्तार से आगे बढ़ रही थी...मैंने अपनी घड़ी पर नजर डाली...सुबह के साढ़े छह बजे थे और हम काठगोदाम पहुंच चुके थे। सुबह की ताजी हवा से आती मिट्टी की सौंधी- सौंधी महक बता रही थी कि यहां अभी कुछ देर पहले बारिश हो चुकी थी। ये सारा माहौल बहुत अच्छा लग रहा था। लेकिन साथ ही चिंता भी सता रही थी, कि कहीं बारिश हमारी इस यात्रा के मुख्य उद्देश्य पर ही पानी न फेर दे... दरअसल हम हिमालय की वादियों में बसे पंगोट और सात ताल में परिंदों को देखने के मकसद से आये थे।
हफ्ते के आखिर में परिंदों को देखने के लिये (महाराष्ट्र के) पश्चिमी घाटों में भटकना हमारा रूटीन बन गया था। राकेश धरेश्वर और क्लीमेंट फ्रांसिस के लिखे यात्रा वर्णन ने हिमालय में पाये जाने वाले तरह- तरह के खूबसूरत परिंदों के बारे में, हमारे मन में पहले ही काफी उत्सुकता जगा दी थी। करीब दो महिने पहले मुम्बई से कर्जत लौटते हुये कॉफी की चुस्कियों के दौरान परिंदों को देखने के इस खास अभियान की योजना बना ली गयी थी। अपने- अपने कामों से छुट्टियां ले पाना एक बड़ी कसरत के जैसा था। आखिर तक हम तीनों का कुछ भी तय नहीं था। हालांकि हम सभी ने सोचा था कि इस खास मौके के लिये हम सबसे अच्छे उपकरण (कैमरा, दूरबीन) ले जायेंगे पर ये सब, खासतौर पर मेरे लिये संभ
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व दिखाई नहीं दे रहा था। मैं और अमित अपनी पुरानी दूरबीनों (पुराने उपकरणों) के सहारे ही थे। पर पराग अपने नये 7 डी और 500 एमएम प्राइम को पाकर इतना खुश था कि उसने अपनी 100- 400 एमएम के लैंस इस खास मौके के लिये मुझे उधार दे दिये। फिर क्या था, मेरा काम तो हो गया।
हमारी फ्लाईट अच्छी खासी लेट हो चुकी थी। रनवे पर हमारा जहाज नौवें नंबर पर था। हवाई जहाज के अंदर बैठे- बैठे मुझे अभी से अगले कुछ दिनों के परम आनंद के बारे में सपने आने लगे थे। झटके से मेरी नींद टूटी तो पाया कि एक घंटे के इंतजार के बाद जाकर अब कहीं हम उड़ान भरने वाले थे। जब तक हम दिल्ली पहुंचे आधी रात हो चुकी थी। दिल्ली में रात बिताने का हमारा कोई इरादा नहीं था। हमारी फिक्र और चिंताओं को मात देते हुये हमने ड्राइवर को हमारा इंतजार करते पाया। उसके मुंह से 'गुड ईवनिंग सर' सुनते ही अमित बेफिक्र हो गया। 'पंगोट पहुंचने में आठ से नौ घंटे का समय लगेगा' हमारे ड्राइवर ने घोषणा की। सारी रात सफर में बीतने वाली थी। आरामदायक टोयोटा इनोवा की बड़ी खाली जगहों में हमारा सामान बड़ी आसानी से समा गया। मेरी आंख कब लगी मुझे पता ही नहीं चला। बारिश की ठंडी- ठंडी बूंदों ने नाक भिगोकर मानो मुझे नींद से जगाया हो... काठगोदाम...
पंगोट का 'जंगल लोर बर्डिंग कैम्प हमारे लिये सुखद आश्चर्य के जैसा था। जहां हमारी कार रूकी वहां रिजॉर्ट के नाम पर सिर्फ एक साइन बोर्ड था... रिसॉर्ट का दूर- दूर तक कहीं कोई नामो- निशान नहीं था। जल्द ही मुझे ये एहसास हो गया, कि रिसॉर्ट पहाड़ी की ढलान पर बनाया गया था...और उसके रिसेप्शन तक पहुंचने के लिये हमें कुछ कदम नीचे उतरना था। रिजॉर्ट के रिसेप्शन पर जिस गर्मजोशी के साथ हमारा स्वागत हुआ उसे देखकर हमारी खुशी दुगनी हो गयी। मैं जिंदगी में पहली बार ऐसा रिजॉर्ट देख रहा था जो खासतौर से पक्षी विहार यानी परिंदों में दिलचस्पी रखने वालों के लिये बनाया गया था। जैसे ही मैं अंदर गया मेरी नजर छज्जे पर पड़ी। उस पर दो और लोग बड़ी आसानी से रह सकते थे... मैंने अपना बिस्तर वहीं लगाने का फैसला किया। लकड़ी से बने इस कॉटेज की सजावट बड़े ही खास अंदाज में की गयी थी। जिसे बयान करना मुश्किल था... सब कुछ बड़ा ही जादुई... एक अजीब तरह ही उन्मुक्तता (मस्ती) से सराबोर था। उस पर गर्म- गर्म
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कॉफी सोने पर सुहागा। कॉफी खत्म होते ही मैंने अगले कुछ दिनों के लिये कैमरे पर लैंस फिट कर दिया था। अचानक पीछे से आवाज आयी 'गुड मॉर्निंग सर अगर आप तैयार हों तो हम रवाना हो सकते हैं'! मुड़कर देखा तो इस पूरे सफर का सबसे खास सदस्य हमारे सामने खड़ा था... हरी लामा जिसे इस इलाके में परिंदों के एन्साइक्लोपीडिया के नाम से जाना जाता था।
पंगोट, एक छोटा सा, बेहद खूबसूरत गांव है। जो नैनीताल से 15, कठगोदाम से 50 और जाने माने कॉर्बेट नेशनल पार्क के करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर है। लामा ने कहा 'हम पहले वुडपैकर प्वाइंट पर जायेंगे' ...हमारी पंगोट की यात्रा शुरू हो चुकी थी।
जिस जगह पर लामा हमें ले गया वह बहुत ही कमाल की जगह थी। मैं कार से उतरकर ट्राइपाड पर कैमरा कस ही रहा था कि लामा की फुसफुसाहट मेरे कानों में पड़ी, 'वुडपैकर...एकदम नजदीक में' हम दौड़कर उस तक पहुंचे, वह एक पेड़ की टहनी की ओर इशारा कर रहा था। एक बेहद आकर्षक Rufous Bellied woodpecker पेड़ की टहनी पर सबसे पहले फोटो खिंचवाने के लिये तैयार बैठा था। उसकी करीब बीस तस्वीरें लेने के बाद हमें एहसास हुआ, कि उस जैसे कई और कठफोड़वे हमा
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रे आस- पास मौजूद थे... हम उन्हें देखने के लिये अलग- अलग दिशाओं में बिखर गये। जब तक हम घनें जंगलों से होते हुये पहाड़ी पर चढ़ते रहे, सफेद गले वाली हंसने वाली चिडिय़ा की आवाज सारे जंगल में गूंजती रही। एक ग्रेट बारबेट हमें लगातार पुकार रही थी। मेरे सामने एक ऊंचे पेड़ पर Rufous Bellied woodpecker का एक जोड़ा एक दूसरे से शरारत कर रहा था... मैं बहुत देर तक उस जोड़े को देखता रहा। तभी मेरा ध्यान अपनी ओर खींचने के लिये Verditer Flycatcher वहां से गुजरा। मैंने देखा पराग अपने कैमरे से उसकी तस्वीरें ले रहा था। मैं कठफोड़वे की ओर मुड़ा किन्तु वे उड़ चुके थे। मैंने कुछ चहचाहट सुनी... बड़ी मुश्किल से मैं समझ पाया कि एक भूरे रंग का कठफोड़वा बड़े जोरों से अपनी चोंच एक पेड़ पर मार रहा था। मैंने कुछ तस्वीरें लीं... फिर मुझे मौका मिला कि मैं अपना ट्राईपॉड तीन अलग- अलग जगहों पर रखकर तस्वीरें ले सकूं। उस समय मुझे पता नहीं था कि तस्वीरें कैसी आयेंगी... फिर भी मैंने कुछ तस्वीरें लीं और बाद में जब तस्वीरें देखीं तो दिल खुश हो गया।हमने वहां काफी समय बिताया। फिर हमें भूख सताने लगी तो हम अपने बेस कैम्प यानी रिसॉर्र्ट लौट आये। लंच के बाद परिंदों के साथ शाम बिताने के लिये हम फिर एक बार तैयार थे। इस बार हमें इस खुले इलाके में आने के लिये बहुत दूर तक सफर करना पड़ा। ये इलाकाRed billed blue magpies से भरा पड़ा था। घास में आवाज करते कुछ कीड़ों और इक्का- दुक्का हिमालयी बुलबुलों ने सूरज ढलने तक हमारा मनोरंजन किया। पहले ही दिन इतने सारे Lifer (Lifer ऐसे दुर्लभ परिंदों के लिये इस्तेमाल होता है, जिन्हें देखने का मौका किस्मत वालों को जिंदगी में शायद एक ही बार मिलता है) देख पाने की उम्मीद हम में से किसी को नहीं थी। जब हम रिसॉर्ट लौटे तो बेहद खुश थे।
शाम कॉफी, गपशप, पहले दिन दिखाई दिये परिंदों की लिस्ट तैयार करने में, अपने- अपने लैपटॉप पर तस्वीरों की डाऊनलोड और बैटरियों के लिये चार्जिंग प्वाइंट ढूंढने में समय कब बीता पता ही नहीं चला। रात के खाने का समय हो चला था....
पंगोट में हमारा काम अभी खत्म नहीं हुआ था। अगली सुबह Cheer pheasant की तलाश में हम और भी आगे गये। मुझे नहीं लगता कि लामा की मदद के बिना मुझे उस Cheer pheasant की इतनी भी झलक मिल पाती, जो मुझे उस रोज मिली थी। लामा की आंखें बाज के जैसी तेज थी! 'साहब उधर देखिये' उसने उंगली से इशारा किया। यहां तक कि दूरबीन की मदद से भी उन्हें देख पाना मुश्किल था। पर उनकी एक झलक पाकर ही हम सब खिल गये थे। Whiskered Yuhinas बार- बार उस पेड़ की टहनी पर आ रही थी, जो उसी ढलान पर था, जहां हम खड़े थे... तभी मुझे Himalayan Griffon दिखाई दी जिसका मुझे न जाने कब से इंतजार था। मैं हमेशा से हिमालय की वादियों की पृष्ठभूमि में उड़ान भरती Griffon की तस्वीर लेना चाहता था... वह तस्वीर एक सपना सच होने के जैसे होती... पर बदकिस्मती से मेरा हाथ हिल गया। वापसी में हमनें फिर एक बार कठफोड़वे से मिलने की सोची।
लंच के बाद हम सात ताल जाने वाले थे। पंगोट पूरी दुनियां से कटा हुआ था... सिर्फ कुछ ही जगहों पर मोबाइल के सिगनल मिलते थे। रास्ते में हम नैनीताल में रूके। अमित को कुछ पैसे निकालने थे, पराग को एसिडिटी की दवाईयां लेनी थी और मुझे अपने घर फोन करना था। इससे पहले कि हम सात ताल जाते लामा ने हमें नैनीताल डम्पिंग ग्राउंड के बारे में बताया, डम्पिंग ग्राउंड
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पहुंचकर इतने सारे Steppe Eagles को मंडराते देखकर हमें बड़ी हैरानी हुई। सच कहूं तो मैंने पहली बारSteppe Eagles की तस्वीरें ली थीं। सात ताल पहुंचते- पहुंचते शाम हो गयी थी। मुझे सामने के पेड़ पर बैठा एक Lesser Yellow naped Woodpecker दिखाई दिया। पर अंधेरा इतना हो चुका था, कि मैंने बैग खोलकर कैमरा निकालने की कोशिश नहीं की। हम सात ताल के बर्डिंग कैम्प रिसॉर्ट पहुंचे। ये जमीन से 4400 फीट की ऊंचाई पर भक्तुरा (Bhakgutra) गांव में था। इस बार रहने का इंतजाम टैंट में किया गया था। अंदर की सजावट बेहद खूबसूरत थी, बिस्तर आरामदेह था, गर्म पानी का इंतजाम और टैंट के अंदर आधुनिक शॉवर की कल्पना मैंने तो नहीं की थी।अगली सुबह सात बजे फोटोग्राफी रिजॉर्ट और उसके आस- पास के इलाकों में ही चलती रही। एक Grey Tree Pie अपनी तीखी आवाज में चीखता रहा। लामा जानता था कि उसे अभी इंतजार करना पड़ेगा... शायद घंटों तक... और उसने किया भी। उसने हमें पास ही की एक जगह दिखाई थी, जहां हमनें करीब दो घंटे बिताये। कुछ Bar Tailed Tree Creepers ने हमें उलझाये रखा जबकि Black Headed Jays अपने आपको नजर अंदाज होते देखते रहे। मुझे यकीन था कि वे मन ही मन जल रहे थे।
अगर लामा हमें लक्ष्मण ताल के बारे में नहीं बताता तो हम सारा दिन यहीं गुजार देते... यद्यपि शुरू में लक्ष्मण ताल इतनी खास नहीं लगी...पर जल्दी ही हम ये मान गये कि हमनें अपनी जिंदगी में अब तक ऐसी मुग्ध कर देने वाली जगह नहीं देखी थी। यही वह जगह थी जहां हमने पंगोट और सात ताल की सबसे
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ज्यादा और सबसे खूबसूरत तस्वीरें लीं। मैंने लामा का शुक्रिया अदा किया इतना सुंदर 'स्टूडियो' दिखाने के लिये... हां मैंने इस जगह को यही नाम दिया था... हम करीब आठ घंटों तक वहां बैठे रहे और हमें जरा भी थकान नहीं हुई... होती भी कैसे! आखिर वहां अपनी जिंदगी का सबसे खूबसूरत अनुभव जो लिया था... दस Lifer देखने का। वो भी एक ही दिन में। अगले दिन का कार्यक्रम बन चुका था। इस इलाके में ज्यादा से ज्यादा तस्वीरें निकालना। हमनें अगला सारा दिन इसी जगह पर बिताया। हमारे Lifers की संख्या बढ़कर अब 81 हो चुकी थी, और हम अब तक करीब 105 प्रजातियों की पहचान कर चुके थे। सपनों सी सुंदर हमारी हिमालय यात्रा अब खत्म हो चली थी। अगले दिन हमें दिल्ली से मुम्बई की फ्लाईट पकडऩी थी...।
याद नहीं मुझे कब नींद आ गयी। रास्ता रोके खड़ी एक टाटा सूमो के बेहूदा हॉर्न से मेरी आंख खुल गयी। खिड़की से बाहर झांका तो गर्म हवा का एक थपेड़ा मेरे मुंह पर आया। कार अब रूक चुकी थी... मैंने घड़ी देखी सुबह के साढ़े ग्यारह बजे थे... हम दिल्ली पहुंच चुके थे...। (www.dudhwalive.com से )
लेखक के बारे में -![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhK0PKg6_D1VmtJTuiroOQUqu1gacvrYrTS7iKWRaji9mTmilwhhxDW7LKSK04TetpJh-1kzx2ZWdJbtXtHjk9NHtAlE3gvwoqX_fKX6hphxIM4kB2GuN-zNg5IjM9iuy46BkxJyQt4Shil/s200/Caesar+Sengupta.bmp)
लेखक वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर हैं, पेशे से डाक्टर व एक बड़ी व प्रतिष्ठित 'थायरोकेयर लैबोरेटरी' के जनरल मैनेजर हैं। असम के डिब्रूगढ़ में शिक्षा, मौजूदा समय में मुम्बई महाराष्ट्र में निवास।
संपर्क- 404-ए, इसरानी टावर,
सेक्टर-15, CBD बेलापुर,
नवी मुम्बई- 400614
मो.09 819839821,
Email-workcaesar@gmail।com
www.drcaesarphotography.com
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कैसे पहुंचें?
1. सड़क के रास्ते दिल्ली से कठगोदाम होते हुये नैनीताल : 8 घंटे
2. सड़क के रास्ते दिल्ली से रामनगर(कॉर्बेट नेशनल पार्क) होते हुये कलढुंगी: 07:30 घंटे
3. पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से (प्रस्थान रात 22:45 बजे) कठगोदाम (आगमन सुबह 06:15 बजे) जाने वाली वातानुकूलित ट्रेन और फिर वहां से सड़क के रास्ते नैनीताल होते हुये पंगोट : 2 घंटे
4. पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से (प्रस्थान रात 22:45 बजे) रामनगर (आगमन सुबह 05:00 बजे) जाने वाली वातानुकूलित ट्रेन और फिर वहां से सड़क के रास्ते कलाडूगंज होते हुये पंगोट : 02:30 घंटे
Sat Tal Birding Camp, Sat Tal - www.sattalbirdingcamp.com
कैसे पहुंचें?
1. सड़क के रास्ते दिल्ली से मोरादाबाद होते हुये हल्द्वानी और भीमताल : 7 घंटे.
2. पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से (प्रस्थान रात 22:45 बजे) कठगोदाम (आगमन सुबह 06:15 बजे) जाने वाली वातानुकूलित ट्रेन. और फिर वहां से सड़क के रास्ते भीमताल होते हुये: 1 घंटे की यात्रा.
3. पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से (प्रस्थान रात 22:45 बजे) रामनगर (आगमन सुबह 05:00 बजे) जाने वाली वातानुकूलित ट्रेन. और फिर वहां से सड़क के रास्ते हल्द्वानी और भीमताल होते हुये सात ताल 3 घंटे की यात्रा.
मेहरगांव पहुंचने पर सात ताल की ओर बढ़िये...2 किलोमीटर के बाद मुड़ने पर बाईं ओर एक बोर्ड लगा दिखाई देगा... जिस पर लिखा होगा "Sat Tal Birding Camp"
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Telefax: (+91 120) 2551963, 2524878, 2524874
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