- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1
नदी का तीर
हुआ निर्मल नीर
हर ली पीर।
2
तुम जो बोलीं-
बातों के दरिया में
मिसरी घोली।
3
समेटा गया-
न सुधियों का जाल
सिहरा ताल।
4
छोटी- सी चूक
अधूरा- सा जीवन
बाकी थी हूक।
5
दूर है गाँव
बची केवल धूप
कहीं न छाँव।
6
वही है मीत
रोम- रोम में बसी
जिसके प्रीत।
7
परदेस में
उठी तुमको पीर
मैं था अधीर।
8
माँगी तुमने
जब रब से दुआ,
मन था चुआ।
9
माथा जो छुआ
हृदय- सागर में
जाने क्या हुआ !
10
जागी उमंग
बज उठी हो जैसे
जलतरंग।
11
समय गया
कुछ पल ठहर
उठी लहर।
12
जी भर जियो
मिला जो प्रेमरस
बाँट दो, पियो।
13
नयन-जल
पिघला गई कोई
पीर अतल।
14
पोंछो ये पलकें
मोतियों भरे हैं ये
सागर छलके।
15
मिली न पाती
संदेसा दे गया था
तेरा ये मन।
16
मृग बावरा
है नाभि में कस्तूरी
कभी न जाने।
17
इन नैनों से
आज अमृत चुआ
ये कैसे छुआ ?
18
जीवन- घट
जब जितना ढरे
उतना भरे।
19
काँटे जो मिले
जीवन के गुलाब
उन्हीं में खिले।
20
मन में छल
तो छलकेगा कैसे
सुधा का घट।
21
वीणा के तार
कसोगे सही तभी
गूँजेगा राग।
22
निर्मोही जग
सदा पीर ही बाँटे
सबको काटे।
23
प्राणों का पंछी
अकेला उड़ चला
साँझ हो गई।
24
क्रौंच- सा मन
व्यथा-बाण-आहत
करो जतन।
संपर्क:
मो. 09313727493,
Email- rdkamboj@gmail.com
1
नदी का तीर
हुआ निर्मल नीर
हर ली पीर।
2
तुम जो बोलीं-
बातों के दरिया में
मिसरी घोली।
3
समेटा गया-
न सुधियों का जाल
सिहरा ताल।
4
छोटी- सी चूक
अधूरा- सा जीवन
बाकी थी हूक।
5
दूर है गाँव
बची केवल धूप
कहीं न छाँव।
6
वही है मीत
रोम- रोम में बसी
जिसके प्रीत।
7
परदेस में
उठी तुमको पीर
मैं था अधीर।
8
माँगी तुमने
जब रब से दुआ,
मन था चुआ।
9
माथा जो छुआ
हृदय- सागर में
जाने क्या हुआ !
10
जागी उमंग
बज उठी हो जैसे
जलतरंग।
11
समय गया
कुछ पल ठहर
उठी लहर।
12
जी भर जियो
मिला जो प्रेमरस
बाँट दो, पियो।
13
नयन-जल
पिघला गई कोई
पीर अतल।
14
पोंछो ये पलकें
मोतियों भरे हैं ये
सागर छलके।
15
मिली न पाती
संदेसा दे गया था
तेरा ये मन।
16
मृग बावरा
है नाभि में कस्तूरी
कभी न जाने।
17
इन नैनों से
आज अमृत चुआ
ये कैसे छुआ ?
18
जीवन- घट
जब जितना ढरे
उतना भरे।
19
काँटे जो मिले
जीवन के गुलाब
उन्हीं में खिले।
20
मन में छल
तो छलकेगा कैसे
सुधा का घट।
21
वीणा के तार
कसोगे सही तभी
गूँजेगा राग।
22
निर्मोही जग
सदा पीर ही बाँटे
सबको काटे।
23
प्राणों का पंछी
अकेला उड़ चला
साँझ हो गई।
24
क्रौंच- सा मन
व्यथा-बाण-आहत
करो जतन।
संपर्क:
मो. 09313727493,
Email- rdkamboj@gmail.com
13 comments:
shbdon ki mithas bhavon ka pravah man ko chhuti baten aapki visheshta hai jab bhi mene aapko padha hai hamesha hi sikha hai .
har bar aapke haiku nahi bulandiyon ko chhute hain.
bahut bahut badhai
saader
rachana
हिमांशु जी के ये हाइकु भावपूर्ण और कवितामयी रस लिए हुए हैं, हाइकु कविता का एक बहुत छोटा रूप है जिसमे अपनी बात कहना 'गागर में सागर' भरने जैसा कार्य है। हिमांशु जी ने सचमुच अपने इन हाइकु में 'गागर में सागर' भरने का सद्प्रयास किया है और वे सफल भी रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ये भावहीन नहीं हैं, शुष्क नहीं हैं और कविता का रस लिए हुए हैं…
वाह ! सारे हाइकु बहुत खूबसूरत.
बधाई!
हिमांशु जी,
जीवन के विभिन्न रसों से सिक्त सारे हाइकु मन को हर्षित कर गए ....बहुत सारी शुभकामनाएं...
sabhi haikoo eak disha ka nirdeshan karate huye prateet huye,sukh-dukh,Phul-kante,apnapan-prayapan khub chalka hai in haikuon men...kambojai ji ko bahut-2 badhai..
Bahut umda haiku lage..vaah!!!
हिमांशुजी का हर हाइकु… झरोखा है मन का … भीगे नयन का…नवरंग जीवन का,
वैसे तो हर हाइकू एक से बढ़ कर एक है.. लेकिन ये कुछ विशिष्ट रूप से अच्छे लगे.
"मन में छल तो छलकेगा कैसे सुधा का घट" यह एक ऐसी सच्ची बात है जो हर जगह, हर हाल में हर किसी के साथ अकाट्य सत्य है... और "मिली न पाती संदेसा दे गया था तेरा ये मन " सच ही तो है.. मन के तार जुड़े हों तो मन लिखता है ,मन कहता है और मन पढ़ता है वहाँ किसी और माध्यम की कोई आवश्यकता ही नहीं महसूस होती .. "तुम जो बोलीं बातों के दरिया में मिसरी घोली" मिसरी से मीठे बोल की उपमा तो सुनी थी... लेकिन "बातों के दरिया में मिसरी" यह तो एकदम अनूठी कल्पना है.... बहुत ही सार्थक रचनाएँ...
आदरणीय हिमांशु सर !
प्रणाम !
आप के हाइकू एक पाठशाला कि मानिंद है , कई हाइकू तो दिल को छू लेने वाले है जो मन कि गहराइयों तक उतरते है , साधुवाद ! जो उम्दा हाइकू का रस्सावदन करवाया !
अआभर !
सादर !
सभी हाईकु आनन्द दायी हैं पढते हुये काव्य रस मे बह गये। चंद शब्दों मे चकित करने क्ला जादू है आपकी कलम मे।
समेटा गया-
न सुधियों का जाल
सिहरा ताल।
4
छोटी- सी चूक
अधूरा- सा जीवन
बाकी थी हूक।
और भी कई बहुत अच्छे लगे। बधाई आपको।
काम्बोज भाई,
काव्य में भावना प्रधान होना बहुत ज़रूरी होता है ताकि मधुरता बनी रहे भले रचना शिक्षाप्रद हो आशावादी हो या फिर व्यथा या पीड़ा के भाव हो. आपके काव्य में सदैव कोमल शब्द और भाव होते हैं जो मन को छू जाते हैं...
काँटे जो मिले
जीवन के गुलाब
उन्हीं में खिले।
मन में छल
तो छलकेगा कैसे
सुधा का घट।
सभी हाइकु बहुत अछे लगे, बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं.
सच में -हिमांशु जी के हाइकु नीरस और उबाऊ नहीं हैं।कविता जैसा रसास्वादन लेते हुए शुरू से लेकर अंत तक पढ़ लिए जाते है। हरएक में अनोखापन है।एक हाइकु तो मैं ही गुनगुना रही हूं ---
जागी उमंग
बज उठी हो जैसे
जलतरंग ।
सुधा भार्गव
हिमांशुजी के भी हाइकू सुन्दर व भावपूर्ण हैं । समेटा गया न सुधियों का... , छोटी सी चूक..,दूर है गाँव...,जागी उमंग,,आदि रचनाएं सीदे मन में उतर जातीं हैं ।
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