हममें से अधिकांश को महात्मा गांधी के चमत्कारिक व्यत्तित्व के दर्शन प्राप्त नहीं हुआ है। हमारी आज की जनसंख्या में से अधिकांश का जन्म महात्मा गांधी के स्वर्गवास के बाद हुआ है। अतएव हम जैसे लोगों को महात्मा गांधी का चरित्र व कृतित्व परियों का कहानी जैसा लगता है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने महात्मा गांधी के बारे में ठीक ही कहा था 'आने वाली पीढिय़ां आश्चर्य करेंगी कि ऐसा महापुरुष इस धरती पर वास्तव में हुआ था।' आइंस्टीन की भविष्यवाणी यथार्थपूर्ण थी। महात्मा गांधी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर सहज स्वीकृति के बजाय आश्चर्य होने का कारण है स्वतंत्र भारत का सामाजिक राजनीतिक वातावरण जिसमें हम जन्में, पले, बढ़े और जीवित हैं।
हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रत्येक क्रिया कलाप का एकमात्र अनिवार्य अंग भ्रष्टाचार है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से जिस एक चीज ने सबसे तेजी से प्रगति की है वह भ्रष्टाचार है। 1969 से तो 'गरीबी हटाओ' के शोर- शराबे में भ्रष्टाचार में अबाध रुप से बिजली की तेजी से वृद्धि हुई है। चाहे जन्म प्रमाणपत्र लेना हो या मृत्यु प्रमाणपत्र, मोपेड या कार का ड्राइविंग लाइसेन्स हो या पासपोर्ट, बिजली का कनेक्शन हो या पानी का- आम आदमी को यह सब रिश्वत देने से ही मिलते हैं। रिश्वत के बलबूते पर अयोग्य होते हुए भी आप पायलट बनकर सैकड़ों यात्रियों की जिन्दगी से खिलवाड़ करने का लाइसेन्स पा सकते हैं। भ्रष्टाचार की महिमा है कि पिछले चार दशकों में अपराधियों के संसद और विधानसभा के सदस्य चुने जाने में दिन- दूनी रात चौगुनी वृद्धि हुई है। चुनाव प्रक्रिया इतनी लचर है कि इमानदारी और जनसेवा के सहारे चुनाव जीतने की सोचना भी हस्यास्पद हो गया है। दूसरी तरफ नोटों की गठरी बांधे अपराधी के लिए चुनाव जीतना खेल हो गया है। भ्रष्टाचार का कमाल है कि आज कानून तोडऩे वाले अपराधी बड़ी संख्या में कानून बनाने वाले बन बैठे हैं।
ऐसे महौल में अन्ना हजारे के अनशन ने चार दिनों में एक ऐसी सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया जो इतिहास के पृष्ठों में अभी तक की सबसे ज्यादा भ्रष्ट सरकार के रुप में जानी जायेगी। पिछले 5-6 वर्षों में इस सरकार ने भ्रष्टाचार को अपने क्रिया- कलापों में सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए 2जी घोटाला, कामनवेल्थ संबंधित घोटाला इत्यादि एक के बाद एक लाखों- करोड़ों रूपए के घोटालों की अंतहीन कड़ी प्रस्तुत कर दी है। साथ ही पिछले 42 वर्षों से सिर्फ चुनाव घोषणा पत्रों में भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल कानून बनाने के झूठे वादे करके जनता को बहकाकर भ्रष्टाचारियों को यह सरकार सुरक्षा प्रदान करती रही है। इसलिए ऐसा लगने लगा था कि राजनीतिक और प्रशासनिक तंत्र के रुप में भ्रष्टाचार का ऐसा विशाल और मजबूत तंत्र खड़ा हो गया है जिसे गिराना असंभव है। इस परिप्रेक्ष में अन्ना हजारे ने अपने निर्मल चरित्र और आत्मबल की शक्ति पर जो कर दिखाया है वह एक ऐसा चमत्कार है जो इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा। साथ ही अन्ना हजारे की इस उपलब्धि ने महात्मा गांधी के चमत्कारिक व्यक्तित्व की अमोघ शक्ति से भी हमारा वास्तविक परिचय करा दिया है।
अन्ना हजारे के नैतिक बल की एक अत्यंत महत्वपूर्ण उपलब्धि है कि इसने भारत के मध्यम वर्ग को जगा दिया है। अपनी योग्यता और क्षमताओं के बलबूते पर समाज के उपयोगी सदस्य बनकर जीवन- यापन करने वाला मध्यम वर्ग समाज की रीढ़ की हड्डी होता है। उचित नेतृत्व से उत्प्रेरित होकर मध्यम वर्ग के आत्मबल से समाज में नैतिकता की ऐसी सुनामी उफनती है जो निरंकुशता और भ्रष्टाचार जैसे अनाचारों के सुदृढ़ पुराने किले को भी नेस्तनाबूद कर देती है। इसका प्रमाण पिछले कुछ हफ्तों से ट्यूनेशिया और इजिप्ट में देखा गया है और लीबिया, यमन, सीरिया तथा शेष मध्यपूर्व में देखा जा रहा है। अन्ना हजारे के साथ भी हमारा मध्यम वर्ग स्वत: प्रेरणा से जिस प्रकार बड़ी संख्या में जुड़ा उससे यह प्रमाणित हो गया है कि भ्रष्टाचार के उन्मूलन की चाहत देशव्यापी है और समाज में उसके लिए आवश्यक ऊर्जा भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
इस संदर्भ में हमें यह भी याद रखना चाहिए कि सरकार द्वारा अन्ना हजारे की लोकपाल कानून बनाने संबंधी मांगों को मान लेने का अर्थ यह नहीं है कि उनकी मुहिम सफल हो गई है। वास्तविकता तो ये है कि अभी तो सिर्फ भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की शुरूआत भर हुई है। भ्रष्टाचार के विरोध में संघर्ष अत्यन्त मुश्किल और लम्बा होगा। भ्रष्टाचार का दानव अत्यन्त विशाल, विकराल और बलवान है। अनशन समाप्त होने के दूसरे ही दिन से अन्ना हजारे और उनके साथियों को बदनाम करने के लिए जिस प्रकार के सुनियोजित प्रहार किए जा रहे हैं उससे यह स्पष्ट है कि अन्ना हजारे के अन्दोलन को छिन्न- भिन्न करने के प्रयास अभी और ज्यादा सघन और गंदे होते जाएंगे। ईमानदारी पर झूठ का कीचड़ उछालने में भ्रष्टाचारी बड़े माहिर होते हैं। स्वाभाविक ही है कि इस अन्दोलन से जुड़े लोगों को भी यह लगेगा कि बहुत कठिन है डगर पनघट की। फिर भी हमें यह भी विश्वास है कि अन्ना हजारे द्वारा चलाई जा रही मुहिम अंतत: सफल होगी। क्योंकि भारत के वैधानिक इतिहास में अन्ना हजारे के अन्दोलन से प्रायोजित लोकपाल कानून बनाने की क्रिया एक ऐसी अभूतपूर्व और अनूठी घटना है जिसको भ्रष्टाचार से बेहद त्रस्त जनता का सम्पूर्ण समर्थन प्राप्त है।
ऐसे महौल में अन्ना हजारे के अनशन ने चार दिनों में एक ऐसी सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया जो इतिहास के पृष्ठों में अभी तक की सबसे ज्यादा भ्रष्ट सरकार के रुप में जानी जायेगी। पिछले 5-6 वर्षों में इस सरकार ने भ्रष्टाचार को अपने क्रिया- कलापों में सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए 2जी घोटाला, कामनवेल्थ संबंधित घोटाला इत्यादि एक के बाद एक लाखों- करोड़ों रूपए के घोटालों की अंतहीन कड़ी प्रस्तुत कर दी है। साथ ही पिछले 42 वर्षों से सिर्फ चुनाव घोषणा पत्रों में भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल कानून बनाने के झूठे वादे करके जनता को बहकाकर भ्रष्टाचारियों को यह सरकार सुरक्षा प्रदान करती रही है। इसलिए ऐसा लगने लगा था कि राजनीतिक और प्रशासनिक तंत्र के रुप में भ्रष्टाचार का ऐसा विशाल और मजबूत तंत्र खड़ा हो गया है जिसे गिराना असंभव है। इस परिप्रेक्ष में अन्ना हजारे ने अपने निर्मल चरित्र और आत्मबल की शक्ति पर जो कर दिखाया है वह एक ऐसा चमत्कार है जो इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा। साथ ही अन्ना हजारे की इस उपलब्धि ने महात्मा गांधी के चमत्कारिक व्यक्तित्व की अमोघ शक्ति से भी हमारा वास्तविक परिचय करा दिया है।
अन्ना हजारे के नैतिक बल की एक अत्यंत महत्वपूर्ण उपलब्धि है कि इसने भारत के मध्यम वर्ग को जगा दिया है। अपनी योग्यता और क्षमताओं के बलबूते पर समाज के उपयोगी सदस्य बनकर जीवन- यापन करने वाला मध्यम वर्ग समाज की रीढ़ की हड्डी होता है। उचित नेतृत्व से उत्प्रेरित होकर मध्यम वर्ग के आत्मबल से समाज में नैतिकता की ऐसी सुनामी उफनती है जो निरंकुशता और भ्रष्टाचार जैसे अनाचारों के सुदृढ़ पुराने किले को भी नेस्तनाबूद कर देती है। इसका प्रमाण पिछले कुछ हफ्तों से ट्यूनेशिया और इजिप्ट में देखा गया है और लीबिया, यमन, सीरिया तथा शेष मध्यपूर्व में देखा जा रहा है। अन्ना हजारे के साथ भी हमारा मध्यम वर्ग स्वत: प्रेरणा से जिस प्रकार बड़ी संख्या में जुड़ा उससे यह प्रमाणित हो गया है कि भ्रष्टाचार के उन्मूलन की चाहत देशव्यापी है और समाज में उसके लिए आवश्यक ऊर्जा भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
इस संदर्भ में हमें यह भी याद रखना चाहिए कि सरकार द्वारा अन्ना हजारे की लोकपाल कानून बनाने संबंधी मांगों को मान लेने का अर्थ यह नहीं है कि उनकी मुहिम सफल हो गई है। वास्तविकता तो ये है कि अभी तो सिर्फ भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की शुरूआत भर हुई है। भ्रष्टाचार के विरोध में संघर्ष अत्यन्त मुश्किल और लम्बा होगा। भ्रष्टाचार का दानव अत्यन्त विशाल, विकराल और बलवान है। अनशन समाप्त होने के दूसरे ही दिन से अन्ना हजारे और उनके साथियों को बदनाम करने के लिए जिस प्रकार के सुनियोजित प्रहार किए जा रहे हैं उससे यह स्पष्ट है कि अन्ना हजारे के अन्दोलन को छिन्न- भिन्न करने के प्रयास अभी और ज्यादा सघन और गंदे होते जाएंगे। ईमानदारी पर झूठ का कीचड़ उछालने में भ्रष्टाचारी बड़े माहिर होते हैं। स्वाभाविक ही है कि इस अन्दोलन से जुड़े लोगों को भी यह लगेगा कि बहुत कठिन है डगर पनघट की। फिर भी हमें यह भी विश्वास है कि अन्ना हजारे द्वारा चलाई जा रही मुहिम अंतत: सफल होगी। क्योंकि भारत के वैधानिक इतिहास में अन्ना हजारे के अन्दोलन से प्रायोजित लोकपाल कानून बनाने की क्रिया एक ऐसी अभूतपूर्व और अनूठी घटना है जिसको भ्रष्टाचार से बेहद त्रस्त जनता का सम्पूर्ण समर्थन प्राप्त है।
अन्ना हजारे जिन्दाबाद!
- डॉ. रत्ना वर्मा
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