मोपे रंग ना डारो साँवरिया...
- गोवर्धन यादव
फागुनी गीत लोक साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण गीत विधा है
जो लोक हृदय में स्पंदन करने वाले भावों, सुर,
लय, एवं ताल के साथ अभिव्यक्त होता
है। इसकी भाषा सरल सहज और जन जीवन के
होंठो पर थिरकती रहती है। इसका क्षेत्र बहुत व्यापक है फागुन के माह में गाए जाने
के कारण हम इसे फागुनी गीत कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
वसंत पंचमी के पर्व को उल्लासपूर्वक मनाए जाने के साथ ही
फागुनी गीत गाए जाने की शुरुआत हो जाती है। फागुन का अर्थ ही है मधुमास। मधुमास
याने वह ऋतु जिसमें सर्वत्र माधुर्य ही माधुर्य हो। सौंदर्य ही सौंदर्य हो वृक्ष
पर नए-नए पत्तों की झालरें सज गई हों कलिया चटक रही हों शीतल सुगंधित हवा प्रवहमान
हो रही हो कोयल अपनी सुरीली तान छेड़ रही हो लोकमन के आल्हाद से मुखरित वसंत की
महक और फागुनी बहक के स्वर ही जिसका लालित्य हो। ऐसी मदहोश कर देने वाली ऋतु में
होरी धमार फाग की महफिलें जमने लगती है। रात्रि की शुरुआत के साथ ढोलक की थाप और
झांझ-मंजिरों की झनझनाहट के साथ फ़ाग गायन का क्रम शुरूहो
जाता है।
वसंत मे सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में आ जाता है।
फल-फूलों की नई सृष्टि के साथ ऋतु भी अमृतप्राणा हो जाती हैए इसलिए होली के पर्व
को 'मन्वन्तरारम्भ'भी कहा
गया है। मुक्त स्वच्छन्द परिहास का त्योहार है यह नाचने-गाने हँसी ठिठौली और
मौज-मस्ती की त्रिवेणी भी इसे कहा जा सकता है सुप्त मन की कन्दराओं में पड़े
ईष्या-द्वेष राग-विराग जैसे निम्न विचारों को निकाल फ़ेकने का सुन्दर अवसर प्रदान
करने वाला पर्व भी इसे हम कह सकते हैं।
रंग भरी होली जीवन की रंगीनी प्रकट करती है। होलिकोत्सव
के मधुर मिलन पर मुँह को काला-पीला करने का जो उत्साह-उल्लास होता है रंग की भरी
बाल्टी एक-दूसरे पर फेकने की जो उमंग होती है वे सब जीवन की सजीवता प्रकट करते है।
वास्तव में होली का त्योहार व्यक्ति के तन को ही नहीं अपितु मन को भी प्रेम और
उमंग से रंग देता है। फिर होली का उल्लेख हो तो बरसाना की होली को कैसे भूला जा
सकता है जहाँ कृष्ण स्वयं राधा के संग होली खेलते हैं और उसी में सराबोर होकर अपने
भक्तों को भी परमानंद प्रदान करते है।
फाग में गाए जाने वाले गीतों में हल्के-फुल्के व्यंग्यों
की बौछार होंठों पर मुस्कान ला देती है। यही इस पर्व की सार्थकता है। लोकसाहित्य
में फाग गीतों का इतना विपुल भंडार है। लेकिन तेजी से बदलते परिवेश ने कफी कुछ लील
लिया है। आज जरुरत है उन सब गीतों को सहेजने की और उन रसिक-गवैयों की जो इनको स्वर
दे सकें।
जैसा कि आप जानते ही हैं कि इस पर्व में
हँसी-मजाक-ठिठौली और मौज-मस्ती का आलम सभी के सिर चढ़कर बोलता है। इसी के अनुरूप
गीतों को पिरोया जाता है। फाग गीतों की कुछ बानगी देखिए-
मैं होली कैसे खेलूँगी या साँवरिया
के संग
कोरे-कोरे कलस मँगाए वामें घोरो रंग
भर पिचकारी ऐसी मारी, सारी हो
गई तंग/ मैं…।
नैनन सुरमादान्तनमिस्सी रंग होत बदरंग
मसक गुलाल मले मुख ऊपर ,बुरो
कृष्ण को संग/मैं
तबला बाजे-सारंगी बाजे और बाजे मिरदंग
कान्हाजी की बंसी बाजे राधाजी के संग/मैं
चुनरी भिगोये, लहंगा
भिगोए, भिगोए किनारी रंग
सूरदास को कहाँ भिगोए काली कांवरी अंग/मैं
2
मोपे रंग ना डारो साँवरिया
मैं तो पहले ही अतर में डूबी लला
कौन गाँव की तुम हो गोरी कौन के रंग में डूबी भला
नदिया पार की रहने वाली कृष्ण के रंग में डूबी भला
काहे को गोरी होरी में निकली काहे को रंग से भागो भला
सैंया हमारे घर में नैइया, उन्हई को ढूँढ़न
निकली भला
फ़ागुन
महिना रंग रंगीलो , तन मन सब रंग डारो भला
भीगी
चुनरिया सैंइयां जो देखे आवन न देहें देहरी लला
जो तुम्हरे
सैंया रुठ जाये, रंगों से तर कर दइयो भला
3
आज बिरज मे होरी रे रसिया
होरि रे रसिया बर जोरि रे रसिया
4
ब्रज में हरि होरि मचाई
होरि मचाई कैसे फाग मचाई
बिंदी भाल नयन बिच कजरा, नख बेसर
पहनाई
छीन लई मुरली पितांबर, सिरपे
चुनरी ओढाई
लालजी को ललनी बनाईण्.; ब्रज
में...
हँसी-ठिठौली पर कुछ पारंपरिक रचनाएँ-
1
मोती खोय गया नथ बेसर का, हरियाला
मोती बेसर का
अरी ऐरी ननदिया नाक का बेसर खोय गया
मोहे सुबहा हुआ छोटे देवर का,
हरियाला मोती बेसर का
2
अनबोलो रहो न जाए, ननद बाई,
भैया तुम्हारे अनबोलना
अरे हाँ... भौजी मेरी रसोई बनाए,
नमक मत डारियो...
अरे आपहि बोले झकमार
अरे हाँ ननद बाई, अलोने-अलोने
ही वे खाए...
अरे मुख से न बोले बेईमान
3
कहाँ बिताई सारी रात रे... बोलो बालम
मेरे आँगन में तुलसी को बिरवा,
खा लेवो ना तुलसी दुहाई रे
काहे को खाऊँ तुलसी दुहाई,
मर जाए सौतन हरजाई रे...
सांची बोलो बालम...
4
चुनरी बिन फाग न होय, राजा ले
दे लहर की चुनरी...;
(आदि-आदि)
हँसी की यह खनक की गूँज
पूरे देश में सुनी जा सकती है। इस छटा को देखकर यही कहा जा सकता है कि होली तो एक
है। लेकिन उसके रंग अनेक हैं। ये सारे रंग चमकते रहें। दमकते रहें। और हम इसी तरह
मौज-मस्ती मनाते रहें। लेकिन हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि कोई कारण ऐसा
उत्पन्न न हो जाये जिससे यह बदरंग हो जाए। याद रखें..इस सांस्कृतिक त्योहार की गरिमा
जीवन की गरिमा में है। होली के इस अवसर पर इस तरह गुनगुना उठें।
लाल-लाल टेसू फूल रहे फागुन संग
होली के रंग-रंगे छटा-छिटकाए हैं।
वहाँ मधुकाज आए बैठे मधुकर पुंज
मलय पवन उपवन वन छाए हैं।
हँसी-ठिटौली करैं बूढ़े औ बारे सब
देख-देखि इन्हैं कवित्त बनि आयो है।