डाक टिकटों पर छाई अभिनेत्रियाँ
डाक टिकटों की अपनी एक मनमोहक दुनिया है। दुनिया भर में
विभिन्न विशिष्ट विषयों, घटनाओं व विभूतियों पर हर साल
सैकड़ों डाक टिकट जारी किए जाते हैं। भारतीय डाक विभाग भी प्रति वर्ष 50
से ज्यादा स्मारक डाक टिकट जारी करता है। डाक टिकट भी फिल्मी दुनिया के सौंदर्य से
अछूते नहीं रहे हैं और तमाम अभिनेता-अभिनेत्रियाँ, गायकों
इत्यादि को डाक-टिकटों पर स्थान मिला है। बॉलीवुड के क्षेत्र में डाक विभाग ने
पहला डाक टिकट 30 अप्रेल,
1971 को जारी किया था। यह डाक टिकट मशहूर निर्देशक दादा साहब
फाल्के पर था। उसके बाद बॉलीवुड से जुड़ी तमाम हस्तियों पर डाक टिकट जारी हुए।
इनमें अभिनेता पृथ्वीराज कपूर, राज कपूर,
गुरूदत्त, गायक
कुंदन लाल सहगल, मुकेश, किशोर
कुमार, मोहम्मद रफी, हेमंत
कुमार और बेगम अख्तर एवं निर्देशक सत्यजित रे तथा बिमल रॉय को डाक टिकटों पर स्थान
देकर सम्मानित कर चुका है। इसके अलावा दीनानाथ मंगेशकर,
एम.जी. रामचंद्रन, शिवाजी
गणेशन, वी. शातांराम, सिनेमा के
सौ वर्ष, सत्यजित रे की फिल्म पथेर पंचाली
इत्यादि पर भी डाक टिकट जारी हो चुके हैं।
यदि अभिनेत्रियों की बात की जाए
तो अभी तक भारत में बामुश्किल 9
अभिनेत्रियों को डाक टिकटों पर स्थान मिला है। इनमें अभिनेत्री नर्गिस दत्त,
मधुबाला, देविका
रानी, कानन देवी, मीना
कुमारी, नूतन, सावित्री,
लीला नायडू, बेगम
अख्तर का नाम शामिल है। फिल्म अभिनेत्रियों में डाक टिकट पर सर्वप्रथम स्थान पाने
का सम्मान नर्गिस दत्त ने प्राप्त किया। 30 दिसंबर,
1993 को अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री नर्गिस दत्त पर 1
रुपये मूल्य का स्मारक डाक टिकट जारी किया गया। नर्गिस दत्त ने राजकपूर के साथ
मिलकर परदे पर प्रेम को एक नई परिभाषा दी। दोनों ने कुल सोलह फिल्मों में साथ काम
किया और भारत में ही नहीं विदेशों में भी यह जोड़ी काफी लोकप्रिय हुई। बाद में
नर्गिस दत्त ने सुनील दत्त से शादी कर ली और न केवल फिल्म्स को बल्कि फिल्मी दुनिया को ही अलविदा
कर दिया। नर्गिस दत्त की कई बेहतरीन फिल्में आज भी रुचि के साथ पसंद की जाती हैं।
नर्गिस दत्त को पद्मश्री से सम्मानित प्रथम हिंदी अभिनेत्री होने का भी गौरव
प्राप्त है।
भारतीय सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री मधुबाला की याद में 19
मार्च, 2008 को भारतीय डाक विभाग द्वारा 5
रुपये मूल्य का स्मारक डाक टिकट जारी किया गया। नर्गिस दत्त के बाद मधुबाला
बॉलीवुड की दूसरी अभिनेत्री हुईं , जिनके
सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया। मधुबाला पर जारी डाक टिकट तो सोने के डाक टिकट
रूप में भी ढाला जा चुका है। मुमताज जहान बेगम देहलवी उर्फ मधुबाला का जन्म 14
फरवरी, 1933 को हुआ था। मधुबाला ने 13 वर्ष की
आयु में अभिनय की दुनिया में कदम रखा। उन्हें पहली बार निर्देशक केदार शर्मा ने
फिल्म नीलकमल में ब्रेक दिया। मुगले आजम में अभिनय द्वारा मधुबाला का नाम जुबान-जुबान
पर चढ़ गया। इस फिल्म में दिलीप कुमार अभिनेता थे। मधुबाला का 36
साल की आयु में 23 फरवरी,
1969 को दिल की बीमारी से निधन हो गया। मधुबाला पर डाक टिकट जारी
होने के अवसर पर अभिनेता मनोज कुमार के शब्द गौरतलब हैं- फिल्म इंडस्ट्री ने कई
खूबसूरत अदाकाराएँ दी हैं, लेकिन
मधुबाला की बात ही कुछ और थी। मधुबाला खूबसूरत ही नहीं ;
बल्कि एक नेक-दिल इंसान थीं। आज भी मुझे उनकी हँसी और गालों
पर पडऩे वाले डिंपल याद आते हैं। मैंने उनसे सुन्दर कोई दूसरी अभिनेत्री आज तक
नहीं देखी। एक सदी में एक मधुबाला पैदा होती है।
भारतीय डाक विभाग ने दिल्ली में आयोजित इण्डिपेक्स-2011
के दौरान 13 फरवरी,
2011 को विख्यात भारतीय नायिकाएँ शीर्षक से अपने जमाने की 6
मशहूर फिल्म अभिनेत्रियों, देविका
रानी, कानन देवी, मीना
कुमारी, नूतन, सावित्री,
लीला नायडू पर 5 रुपये
मूल्य वर्ग के डाक टिकट जारी किए। इन पर एक मिनिएचर शीट भी जारी की गई। वेट ऑफसेट
प्रक्रिया द्वारा ये डाक टिकटें इंडिया सिक्यूरिटी प्रेस,
नासिक मे प्रति डाक टिकट 4 लाख की
संख्या में मुद्रित की गईं।
देविका रानी अपने जमाने की मशहूर फिल्मी अदाकारा तथा
बाम्बे टाकीज की पूर्व प्रबंधक थीं। देविका रानी भारत की साउंड फिल्मों के प्रथम
दशक में छायी रहीं और 1950 के बाद वाली फिल्मी नायिकाओं के लिए
आदर्श बन गई। वे मद्रास के सर्जन जनरल कर्नल चौधरी की बेटी तथा टैगोर के भाई की
नातिन थीं। उन्होंने रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामैटिक आर्ट्स
एवं रायल अकादमी ऑफ म्यूजिक (लंदन) में पढ़ाई की और वास्तुकला में स्नातक की
डिग्री प्राप्त की। वे पैसली वस्त्रों की सफल डिजाइनर थीं। 1929
में उन्होंने हिमांशु राय से शादी की। उनकी पहली फिल्म के निर्माता हिमांशु राय और
निर्देशक थे ऑस्टैन, जो प्रपंच पाश(1929)
के कॉस्ट्यूम डिजाइनर (और संभवत: एक अतिरिक्त कलाकार) थे। यह
फिल्म जर्मनी में संपादित की गई थी, वहाँ
देविका रानी को फ्रिंट्ज लैंग, जी.
डब्ल्यू. पब्स्ट एवं स्टेनबर्ग को कार्य करते हुए देखने का अवसर मिला और डेरब्लाऊ
एन्गेल (1930) के सेट पर मर्नेल डेट्रिच की सहायक
भी रहीं। उन्होंने मैक्स रीनहार्ड के साथ भी कुछ समय के लिए कार्य किया। बीबीसी के
एक पहले भारतीय प्रसारण में देविका रानी के गायन (15 मई,
1933) की प्रस्तुति भी की गई थी। जब 1933 के बाद
यूरोपीय सह-निर्माण में विशेषत: जर्मनी के साथ कठिनाई आई तो ये दम्पती
भारत लौट आए। उन्होंने हिमांशु राय की पहली अंग्रेजी में बनाई गई ध्वनियुक्त फिल्म
कर्मा में अभिनय किया और इसे अंग्रेजी संवादों वाली भारत की पहली बोलती फिल्म के
रूप में बेचा गया। इस दम्पती ने 1934 में
बाम्बे टॉकीज की शुरुआत की। अछूत कन्या में उनकी मेहराबी भौहें,
मालाएँ और अस्पष्ट राजस्थानीनुमा-शैली,
घुटनों तक लम्बी ड्रेस आदि हिन्दी सिनेमा के लिए ग्रामीण
सुदंरी की पहचान बन गई। हिमांशु राय की मृत्यु (1940) होने
तक वे और अशोक कुमार स्टूडियो के स्टार बने रहे और 1945 में
रिटायर होने तक देविका रानी ने स्टूडियो का प्रबंधन सँभाला।
बाद में उन्होंने रूस के प्रवासी पेंटर स्वेटोस्लाव रोरिक से शादी की। देविका रानी
पर डाक विभाग ने 13 फरवरी,
2011 को 5 रुपये
मूल्य का स्मारक डाक टिकट जारी किया ।
कानन देवी एक अभिनेत्री और गायिका थीं,
उन्होंने काननबाला के नाम से शुरुआत की थी। जयदेव में
बाल-कलाकार के रूप में शुरुआत करते हुए कानन देवी ने राधा फिल्म्स
के साथ अनुबंध में कार्य किया, जहाँ
उन्होंने ज्योतिष बैनर्जी की फिल्मों में अभिनय किया। पीसी बरुआ देवदास (1935)
में पारो की भूमिका के लिए उनसे अभिनय नहीं करा पाये ;
लेकिन उनकी अगली फिल्म मुक्ति में उन्होंने प्रमुख पात्र की
भूमिका निभाई, जिससे वे स्टार बन गईं और न्यू
थिएटर्स से
उनके लम्बे सम्बन्ध की शुरुआत हुई। विद्यापति और
के.सी.डे. के साथ उनके युग्म गीतों की सफलता ने उन्हें 1937-40
में इस स्टूडियो की सर्वोच्च सितारा बना दिया। उन्होंने संगीत का अध्ययन नहीं किया
था; लेकिन फिल्मों में आने के बाद उन्होंने उस्ताद अल्लारक्खा
से लखनऊ में कुछ समय के लिए संगीत की शिक्षा ली। उन्हें मेगाफोन ग्रामोफोन में
गायिका की नौकरी मिली और भीष्मदेव चटर्जी से संगीत की आगे की शिक्षा पाई,
सम्भवत: इनकी विशेष बंगाली शैली उन्हीं की बदौलत थी। उसके
बाद उन्होंने आनंदी दस्तीदार से रवींद्र संगीत की शिक्षा पाई। वे राय चंद बरल को
अपना सच्चा गुरु मानती थीं। वे न्यू थिएटर्स की ऐसी प्रमुख अदाकारा थीं
जिन्हें रंगमंच का कोई पिछला अनुभव नहीं था। बंगाली फिल्मों में उनका प्रभाव मराठी
सिनेमा मे शांता आप्टे के समकक्ष था। सामान्यत: द्रुत ताल में उनकी गायन शैली को
आज भी स्टूडियो युग (विशेषत: विद्यापति, स्ट्रीट
सिंगर, सापूरे) की बड़ी हिट शैली के रूप में पहचाना जाता है।
बाद में उन्होने न्यू थिएटर से इस्तीफा दे दिया (1941) और
बंगाली एवं हिन्दी फिल्मों में स्वतंत्र रूप से कार्य करने लगीं। वे श्रीमती पिक्स
के साथ मिलकर निर्माता (1949) बन गईं और
बाद में अनन्या के साथ संयुक्त रूप से सब्यसाची की शुरुआत की। कानन देवी ने सबरे
अमी नोमी (1973) नाम से आत्मकथा भी लिखी। कानन देवी
पर डाक विभाग ने 13 फरवरी,
2011 को 5 रुपये
मूल्य का स्मारक डाक टिकट जारी किया।
मीना कुमारी अपने दौर की मशहूर अदाकारा थीं। मीना कुमारी
का जन्म बाम्बे में हुआ। वे पारसी थिएटर अभिनेता, गायक एवं
संगीत शिक्षक अली बख्श एवं नर्तकी इकबाल बेगम की संतानों में एक थीं। बुरे दिन
देखने के बाद और रुपतारा स्टूडियो के पास रहते हुए अली बख्श ने अपनी तीन बेटियों
को फिल्मों में लाने का फैसला किया। उनकी मँझली बेटी महजबीन को 6
वर्ष की उम्र में फिल्मों में लिया गया और उनका नाम बेबी मीना रखा गया। विजय भट्ट
द्वारा उन्हें लेदरफेस में अभिनय का मौका दिया गया। बाद में भट्ट की बड़ी संगीतमय
फिल्म बैजू बावरा के लिए उन्हें मीना कुमारी नाम दिया गया। उन्होंने होमी वाडिया
और नानाभाई भट्ट की पौराणिक फिल्मों में अभिनय किया। 50
के दशक में कॉमेडी (मिस मेरी) और सामाजिक (परिणीता) फिल्मों में अभिनय के लिए
मशहूर उन्होंने दो बीघा जमीन में उत्कृष्ट अभिनय किया। उनके प्रमुख किरदारों का
निर्माण कमाल अमरोही की दायरा, बिमल रॉय
की यहूदी और गुरुदत्त की साहिब बीबी और गुलाम जैसी फिल्मों से हुआ और
इसकी पराकाष्ठा उनकी सबसे मशहूर फिल्म पाकीजा में दिखी। उन्होंने कमाल अमरोही से
शादी की, जिन्होंने उनकी कुछ उत्कृष्ट फिल्मों
का निर्देशन किया। इस दंपत्ति ने उनके द्वारा संयुक्त रूप से रूपकल्पित फिल्म
पाकीजा को 1979 में आखिरकार मीना कुमारी की मृत्यु
से पहले पूरा किया। मीना कुमारी नाज के उपनाम से उर्दू कविता लिखती थीं,
जिसके संकलन तनहा चाँद को गुलजार द्वारा पूरा किया गया और
उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित किया गया। उनमें से कुछ गानों को मीना कुमारी ने गाया
भी था। मीना कुमारी पर डाक विभाग ने 13 फरवरी,
2011 को 5 रुपये
मूल्य का स्मारक डाक टिकट जारी किया।
नूतन 60 के दशक
में हिन्दी फिल्मों की सबसे बड़ी स्टार थीं। नूतन को उनकी माँ शोभना समर्थ ‘हमारी
बेटी’से फिल्मों में लाई। उनकी फिल्मी छवि को विमल रॉय
(सुजाता, बंदिनी) तथा रॉय की परंपरा के अन्य
जैसे ऋषिकेश मुखर्जी (अनाड़ी), बिमल दत्त
(कस्तूरी) और सुधेन्दु रॉय (सौदागर) ने निखारा। उन्हें हल्की व गंभीर दोनों
प्रकार की फिल्मों में समान रूप से अभिनय करने के लिए जाना जाता था। उन्होंने
सरस्वती चंद्र से तेरे घर के सामने तक तथा किशोर कुमार एवं देव आनंद से अशोक कुमार
एवं बलराज साहनी के साथ निभाए गए किरदारों में सहजता से खुद को ढाला। उन्होंने
फिल्मिस्तान की संगीतमय फिल्म पेइंग गेस्ट जैसी फिल्मों के रोमांटिक किरदारों को
सहजता से निभाया और बाद के वर्षों में चरित्र भूमिकाओं को भी उतनी ही उत्कृष्टता
से निभाया। सुजाता, सीमा और बंदिनी जैसी फिल्मों में
अपनी भूमिका से उन्होंने अपने अभिनय को शानदार अनोखापन दिया। नूतन पर डाक विभाग ने
13 फरवरी, 2011 को 5
रुपये मूल्य का स्मारक डाक टिकट जारी किया।
तेलुगु-तमिल अभिनेत्री एवं निर्देशक सावित्री का जन्म
आंध्रप्रदेश के गुंटुर जिले के चिर्रवूरू में एक संपा परिवार में हुआ। उन्होंने
सिस्ता पूर्णय्या स्वामी के शिक्षण में संगीत और नृत्य का अध्ययन किया और
विजयवाड़ा में सार्वजनिक रूप से बाल कलाकार के रूप में कुछ प्रदर्शन भी किए।
एन.टी.आर., के.जग्गय्या आदि द्वारा संचालित
थिएटर कंपनियों में काम करने के बाद उन्होंने नवभारत नाट्य मंडली के नाम से अपनी
मंडली शुरू की। उन्होंने बूची बाबू के नाटक आत्म वचन में अभिनय किया। एल.वी.
प्रसाद की संसारम से शुरुआत करने के बाद उन्होंने के. वी. रेड्डी की पाताल भैरवी
आदि में छोटी भूमिकाएँ निभाई। उसके बाद पेल्लि चेसी चौडू के अभिनय से वे स्टार बन
गई और अर्धांगी एवं मिस्सम्मा के अभिनय ने उनके अभिनय की साख को प्रतिष्ठित कर
दिया। उन्होंने कोरियोग्राफर एवं निर्देशक राघवय्या की कई फिल्मों में अभिनय किया।
उन्होंने अधिकांशत: जैमिनी गणेशन के साथ अभिनय किया और बाद में उनसे शादी कर
ली। निर्माता एवं निर्देशक के रूप में (1968-71) उन्हें
वाणिज्यिक रूप से कोई खास सफलता नहीं मिली, लेकिन
उन्हें पौराणिक एवं सामाजिक फिल्मों में उनकी भूमिकाओं के लिए याद किया जाता है।
सावित्री पर डाक विभाग ने 13 फरवरी,
2011 को 5 रुपये
मूल्य का स्मारक डाक टिकट जारी किया।
लीला नायडू ने मर्चेंट-आइवरी प्रोडक्शन की पहली फिल्म
हाउस होल्डर सहित बहुत कम हिन्दी एवं अंग्रेजी फिल्मों में अभिनय किया है। 1954
मे उन्हें फेमिना मिस इंडिया के रूप में चुना गया। वोग में उन्हें महारानी गायत्री
देवी के साथ विश्व की दस सबसे सुंदर महिलाओं की सूची में भी स्थान मिला। उन्हें
उत्तम सौंदर्य और कोमल अभिनय शैली के लिए याद किया जाता है। लीला नायडू का जन्म
मुंबई में आंध्र प्रदेश के विख्यात नाभिकीय भौतिकशास्त्री
डॉ. पत्तिपाटी रामय्या और स्विस-फ्रेंच मूल की भारत-विद्याविद् डॉ. मार्थे नायडू
के यहाँ हुआ। लीला नायडू ने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत बलराज साहनी की नायिका बनकर
1960 में अनुराधा (ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित) फिल्म
से की। इस फिल्म में अपने अभिनय के लिए लीला नायडू को आलोचकों से भी प्रशंसा मिली।
उन्होंने आर. के. नायर द्वारा निर्देशित ये रास्ते हैं प्यार के (1963)
में लीक से हटकर व्याभिचारी पत्नी की भूमिका भी निभाई। लीला
नायडू ने मर्चेंट-आइवरी की फिल्म द गुरु (1969) में
मेहमान भूमिका निभाई। 1985 में उन्होंने फिल्मों में वापसी की
और श्याम बेनेगल की पीरियड फिल्म त्रिकाल में गोवा की कुलमाता की भूमिका निभाई और
उन्होंने आखिरी बार प्रदीप किशन द्वारा निर्देशित इलैक्ट्रिक मून (1992)
में अभिनय किया। 28 जुलाई 2009
को मुंबई में लीला नायडू का निधन हो गया। लीला नायडू पर डाक विभाग ने 13
फरवरी, 2011 को 5
रुपये मूल्य का स्मारक डाक टिकट जारी किया।
फिल्म और संगीत की दुनिया से जुड़ी एक अन्य शख्शियत,
जिन पर डाक टिकट जारी हुआ वह बेगम अख्तर हैं। 6
अक्टूबर, 1914 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में
जन्मीं बेगम अख्तर को गायकी विरासत में मिली थी। उनकी माँ मुश्तरी बाई दरबारी
गायिका थीं। अख्तरी का बचपन से ही संगीत की ओर झुकाव था। सात साल की उम्र में ही
उन्हें उस समय के तमाम लोकप्रिय गीत याद थे। बेगम अख्तर को स्कूल एक कैदखाना लगता
था और मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लगता था। उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और पूरी तरह
सुरों में रम गई। उस ज़माने के कई संगीतकारों और उस्तादों से गायकी की तालीम
ली। उस्ताद अता मुहम्मद खान ने उन्हें ख्याल, ठुमरी,
दादरा और गजल गायकी की तालीम दी। बेगम अख्तर की लगन देखकर
उनकी माँ उन्हे कलकत्ता ले गईं, जहाँ जल्द
ही मेगाफोन, एचएमवी जैसी कंपनियों में गाने का
मौका मिल गया। बेगम अख्तर ने पहली रिकॉर्डिंग में दादरा और ग़ज़ल
दोनों रिकार्ड कराए। एचएमवी ने बहजाद लखनवी की गजल दीवाना बनाना है तो दीवाना बना
दे, वरना कहीं तकदीर तमाशा न बना दे,
बेगम अख्तर की आवाज में रिकॉर्ड की। यह गजल इतनी लोकप्रिय हुई
कि रिकॉडर्स का स्टॉक ही खत्म हो गया। बेगम अख्तर ने थिएटर के साथ-साथ फिल्मों में
गाने और अभिनय भी किए। कलकत्ता की ईस्ट इंडिया फिल्म कंपनी ने उन्हें सबसे पहले
साइन किया। उनकी पहली फिल्म थी नल दमयंती (1933)। उसी साल
दो और फिल्में रिलीज हुई। फिर 1934 में
मुमताज बेगम और अमीना, 1935 में जवानी का नशा और नसीब का चक्कर
जैसी फिल्में आईं।
आकर्षक व्यक्तित्व और सुरीली आवाज ने बेगम अख्तर को
स्टार बना दिया था। बेगम अख्तर बाद में फिल्म और थिएटर की ग्लैमर भरी दुनिया से
दूर हो गईं और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रति समर्पित हो गईं। वे ऑल इंडिया
रेडियो की भी नियमित गायिका थीं। ग़ज़ल को लोकप्रिय बनाने और आम आदमी से
जोडऩे में बेगम अख्तर का बहुत बड़ा योगदान है। वर्ष 1945
में जब बेगम अख्तर अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थीं, तब
उन्होंने संगीत से रिश्ता तोड़ लिया और काकोरी के नवाब इश्तियाक अहमद अब्बासी से
निकाह कर लिया। अपने शौहर की शह पर 1949 में वो
एक बार फिर ऑल इंडिया रेडियो की लखनऊ शाखा से जुड़ गईं और मरते दम तक जुड़ी रहीं। 26
अक्टूबर, 1974 को अहमदाबाद में स्टेज पर गाते हुए
उन्हें दिल का दौरा पड़ा और चार दिन
बाद 30 अक्टूबर,
1974 को बेगम अख्तर इस दुनिया से रूखसत हो गईं। बेगम अख्तर की
स्मृति में डाक विभाग ने 1994 में दो
रुपये मूल्य वर्ग का डाक टिकट जारी किया।
फिल्म और संगीत की दुनिया समृद्ध है। इससे जुड़े तमाम
लोग दुनिया भर में डाक टिकटों पर स्थान पा रहे हैं, सो भारत
भी इससे अछूता नहीं है। आने वाले दिनों में अन्य भारतीय अभिनेत्रियों पर भी डाक
टिकट जारी हों, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।
संपर्क: निदेशक, डाक सेवाएँ,
इलाहाबाद पिरक्षेत्र, टाइप 5,
निदेशक बंगला, जीपीओ
कैम्पस, सिविल लाइन्स,
इलाहाबाद (उ.प्र.)-211001, मो.08004928599, Email- kkyadav.y@rediffmail.com
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