भीमायन अस्पृश्यता की पीड़ा को बयान करती पुस्तक
-दीपाली शुक्ला
भीमायन अस्पृश्यता के अनुभव यह किताब एक दस्तावेज है, जिसमें डॉ.भीमराव रामजी अंबेडकर अपनी जीवनगाथा को, जीवन में मिली भेदभाव की पीड़ा को, तिरस्कार को बयान करते हैं। आज जब जातिगत भेदभाव एक विशाल पेड़ की तरह मजबूती से समाज में अपनी जड़ें जमाये हुए है, ऐसा बहुधा सुनने को मिलता है कि अब पहले जैसे स्थितियां नहीं रहीं। पर सच्चाई यह भी है कि जातियों के बीच असमानता और तिरस्कार का भाव साफतौर पर वर्तमान में भी दिखाई देता है।
भीमायन अस्पृश्यता के अनुभव यह किताब एक दस्तावेज है, जिसमें डॉ.भीमराव रामजी अंबेडकर अपनी जीवनगाथा को, जीवन में मिली भेदभाव की पीड़ा को, तिरस्कार को बयान करते हैं। आज जब जातिगत भेदभाव एक विशाल पेड़ की तरह मजबूती से समाज में अपनी जड़ें जमाये हुए है, ऐसा बहुधा सुनने को मिलता है कि अब पहले जैसे स्थितियां नहीं रहीं। पर सच्चाई यह भी है कि जातियों के बीच असमानता और तिरस्कार का भाव साफतौर पर वर्तमान में भी दिखाई देता है।

इस किताब में डॉ. अंबेडकर का जीवन यानी उनके बचपन से लेकर संविधान
बनाने वाली ड्राफ्टिंग कमेटी तक की खास घटनाओं को हालिया घटनाओं के साथ
मिलाते हुए पिरोया गया है।
नन्हे भीम को कक्षा में बैठने के लिए
बोरा घर से लाना पड़ता है। स्कूल में पीने के पानी के लिए तरसना पड़ता है।
उसकी पीड़ा को इन शब्दों से समझा जा सकता है,
कुएं पर बच्चे और हौद पर जानवर,
पेट फूटने तक पी सकते हैं पानी।
पर तब गांव रेगिस्तान बन जाता है
जब प्यास बुझाना चाहूं अपनी।
भेदभाव
का दंश केवल स्कूल तक ही सीमित नहीं है बल्कि हर एक छोटी- बड़ी बात में यह
बना रहता है। अपने पिता से मिलने जा रहे बच्चों को मसूर स्टेशन से
गोरेगांव जाने के लिए बैलगाड़ी बड़ी मुश्किल से मिलती है। अछूत होने के
कारण गाड़ीवान गाड़ी चलाने से इंकार कर देता है और दोगुने किराये पर मानता
है। जिस सातारा जिले में दस बरस की उम्र में भीम का सामना जात- पांत की
सच्चाई से हुआ था, वहीं सन 2008 में एक दलित की हत्या इसलिए कर दी गयी,
क्योंकि वह अपनी जमीन पर कुआं खोद रहा था। सवर्ण नहीं चाहते थे कि गांव में
दलित की जमीन पर कुआं हो। पानी के लिए जंग में दलितों को जीवन से हाथ धोना
पड़ा।
महाड़ सत्याग्रह के द्वारा डॉ. अंबेडकर ने सार्वजनिक जलस्रोतों, जैसे
कुओं, हौद से दलितों को पानी मिलने के संघर्ष की शुरुआत की थी। चवडार हौज
से हिंदुओं के साथ-साथ बाकी धर्म के लोगों को पानी लेने की इजाजत थी। यहां
तक कि पशु-पक्षी भी पानी पी सकते थे लेकिन अछूतों को इससे वंचित किया गया
था। 25 दिसंबर 1927 को दूसरे महाड़ सत्याग्रह में दस हजार लोग शामिल हुए।
अंबेडकर ता-जिंदगी एक न्यायपूर्ण समाज के लिए लड़ते रहे। वे चाहते थे
कि अछूत जातियां राजनीति में उतरें, अपने हक के लिए लड़ें। वे संविधान की
ड्राफ्टिंग समिति के सदस्य थे। संविधान में प्रत्येक नागरिक को समानता का
अधिकार है लेकिन इसके बावजूद भी समाज में नीची जातियों के साथ होने वाला
दुव्र्यवहार जारी है।
डॉ. अंबेडकर के जीवन की घटनाओं को कथासूत्र में पिरोया है
श्रीविद्याराजन और एस आनंद ने। वहीं इसके चित्र बनाये हैं दुर्गाबाई व्याम
और सुभाष व्याम ने। यह ग्राफिक पुस्तक है। दुर्गाबाई व्याम और सुभाष व्याम
ने गोंड-परधान शैली के चित्रों को इतनी खूबसूरती से उकेरा है कि कहानी के
साथ-साथ पूरा परिवेश पढऩे वाले की आंखों में घूमने लगता है।
किताब का नाम- भीमायन
प्रकाशक- एकलव्य और नवयान
कला- दुर्गाबाई व्याम, सुभाष व्याम
कथा- श्रीविद्या नटराजन, एस आनंद
अंग्रेजी से अनुवाद- टुलटुल विश्वास
मूल्य- 210 रुपए।
भीमायन के बारे में यह जानकारी भोपाल से दीपाली शुक्ला ने भेजा है। इस
किताब की जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे, उनकी इस मंशा को हम सलाम
करते हैं। किताब का ऑर्डर उनके मेल पर किया जा सकता है। dplshukla9@gmail.com
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