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Apr 21, 2020

उदंती.com, अप्रैल 2020

उदंती.com, अप्रैल 2020
वर्ष-12, अंक-9९


खुद के लिये जीने वाले की ओर कोई ध्यान नहीं देता पर जब आप दूसरों के लिये जीना सीख लेते हैं तो वे आपके लिये जीते हैं।     
                           - परमहंस योगानंद



कोरोना विशेष


कोरोना .... देखना हम जीतेंगे

 कोरोना .... देखना हम जीतेंगे

 –डॉ. रत्ना वर्मा
पिछले कुछ दशकों से हम सब सुनते आ रहे हैं  कि महाप्रलय आने वाला है और एक दिन पूरी दुनिया खत्म हो जाएगी। पिछले वर्षों में एक के बाद एक बहुत सारी प्रकृतिक आपदाएँ दुनिया भर में आती रहीं- चाहे वह सुनामी हो , भूकंप हो,  बाढ़ हो, गर्मी हो या सूखा। ये आपदाएँ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में आती रही हैं और दुनिया के अलग अलग हिस्से में आपदा रूपी प्रलय से नुकसान होताहा है। इस बार कोरोना वायरस नामक इस आपदा ने पूरी दुनिया में तबाही मचा दी है।
बाकी सभी आपदाओं में तो तबाही के बाद बचे हुए लोगों को सहायता पहुँचाने का इंतजाम पूरी दुनिया के लोग कर लेते हैं और तबाही वाला इलाका फिर से साँसें लेने लगता है,  लेकिन कोरोना जैसी महामारी में कोई किसी को सहायता नहीं पहुँचा पा रहा है यह एक ऐसा प्रलय है,  जिसमें इंसान को खुद ही अपनी सहायता करनी होगी। इस आपदा से बचने का एकमात्र उपाय मानव से मानव की दूरी ही है। संक्रमित व्यक्ति की पहचान के बाद उसे बाकी लोगों से अलग कर देना ही इस बीमारी से बचने का अभी तक का अकेला तरीका है।
आज जब कोरोना का कहर प्रलय बनकर मानव जीवन को खत्म करने पर उतारू है और बचने का कोई और उपाय दिखाई नहीं दे रहा है, तब सबको घर में कैद रहना ही इस वायरस के संक्रमण से  बचने का सबसे बड़ा उपाया र आता है। यही वजह है कि सब घरों में कैद हैं कोरोना से अपने को दूर रखने का प्रयास कर रहे हैं।
आज हम सब जिस मानसिकता में जी रहे हैं, उससे  हम सबको अपने और अपनों के  जीवन का मोल समझ में आ रहा है। य बात अलग है कि सबके बाद भी कुछ लोग जीवन का मतलब समझना नहीं चाहते और अपने साथ- साथ दूसरों को भी मुसीबत में डाल रहे हैं। यदि  जमात और तबलीग के मामले नहीं होते, तो आज भारत अधिक सुरक्षित होता। भारत में इतने लम्बे समय तक लॉकडाउन की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। तब हमें बस इतना करना होता कि बाहरी देशों के यात्रियों को भारत आने से रोक दिया जाता। इतनी-सी सावधानी हम भारतवासियों को  कोरोना से मुक्त रख सकती थी; पर अफसोस ऐसा हो सका।
इसके बाद भी  भारत ने जो उपाय  करोना से बचने के लिए अपनाए हैं, उसकी सराहना पूरी दुनिया कर रही है। ऐसी विकट घड़ी में भारतवासियों ने जिस धैर्य और शांति के साथ इस आपदा का सामना किया है और  वे शासन द्वारा जारी गाइडलाइन का पालन  कर रहे हैं,वह सराहनीय है। चूँकि इस वायरस से बचाव के लिए कोई दवाई नहीं है; अतः सामाजिक दूरी इससे बचाव का एकमात्र उपाय है। इस विषम संकट की घड़ी में, जब तक लाकडाउन  है, जब तक हम घरों में हैं, तब तक इस वायरस से बचे रहेंगे। लेकिन प्रश्न फिर भी उठता है कि कब तक?  क्या कुछ समय में इस वायरस से बचाव की दवाई खोज ली जाएगी? क्या यह वायरस कुछ समय बाद खत्म हो जाएगा? चीन में  जहाँ इस वायरस के खत्म होने का दावा किया जा रहा था, वहाँ फिर इस बेमुराद ने  पाँव पसार लिये हैं। 
दूसरी तरफ हम सब देख ही रहे हैं कि विश्व के सबसे विकसित देशों में कोरोना से लगातार बढ़ते मौत के आँकड़ें इस बात की ओर इशारा करते हैं कि आर्थिक प्रगति के मायने सुरक्षित जीवन नहीं होता। एक दूसरे से होड़ लगाते हुए आगे बढ़ते जाना, उन्नति का प्रतीक नहीं है। ऐसी उन्नति, ऐसी प्रगति किस काम की,  जिससे जीवन ही खतरे में पड़ जाए। लोग बस धन कमाने में लगे रहते हैं बगैर यह सोचे समझे कि इस धन को जोड़ते हुए, वे कौन-सा  बहुमूल्य धन खो रहे हैं!
कोरोना ने आज सबको जीवन का एक बहुत बड़ा सबक दिया है कि जितनी आवश्यकता हो, उतना अर्जन करते हुए, प्रकृति के अनुकूल जीवन जीना ही असली जीवन है। कोरोना के चलते जीवन कितना सहज हो चला है, सब अनुभव कर रहे हैं। वाहनों का चलना बंद हैं , ट्रेन बंद हैं, हवाई जहाज बंद हैं और पर्यावरण के लिए सबसे नुकसानदेह कल-कारखाने बंद हैं, तो जाहिर है कि जानलेवा प्रदूषण भी बंद है। लोगों ने अपनी आवश्यकताएँ कम कर ली हैं। घर के सारे काम सब मिलकर खुद कर रहे हैं। बाहर के जं फूड बंद हैं, तो लोगों की सेहत अच्छी हो गई है। डाक्टर, नर्स, पुलिस , प्रशासन सब कोरोना से लड़ाई लड़ रहे हैं । खबरों की ओर नर दौड़ाओ तो लूट -खसोट, मार -काट, चोरी डकैती सब जैसे अपराध कम हो गए हैं। है न अच्छी बात! जब हम अपने देश के लिए लड़ते हैं, तो सिर्फ देश नजर आता है, ऐसे ही हालात अभी भी हैं, हम इस समय भी देश के लिए लड़ रहे हैं। मन्दिर, गुरुद्वारे , धार्मिक संस्थान, स्वयंसेवी संस्थाएँ  हज़ारों लोगों को भोजन करा रहे हैं या राशन भिजवा रहे हैं। प्रशासन अपने स्तर से जनसेवा के लिए जुटा है। डॉकटर, पुलिस , सफ़ाई कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की सहायता कर रहे हैं। पुलिस का आज जैसा समर्पण कभी देखने में  नहीं आया। बस दु:ख  है तो इस बात का कि जब आशाराम, राम रहीम से लेकर  रामपाल तक तथाकथित धर्मगुरु सलाखों के पीछे  पहुँचा दिये, तो राष्ट्र्द्रोही गतिविधियों में लिप्त लोग लुकाछिपी  का खेल क्यों खेल रहे हैं! कोरोना योद्धा पत्थर खा रहे हैं, मानवता के तथाकथित छद्म बुद्धिजीवियों की बोलती बन्द है। इसके विरोध में अब कोई पुरस्कार  नहीं लौटा रहा। धनराशि को लौटाने की हिम्मत इन लोगों ने कभी नहीं दिखाई। अब यह संकट एक सकारात्मक सोच भी लेकर आया है, वह है एकजुटता। हमारा दृढ़  विश्वास है कि भारत कोरोना को पछाड़ने में ज़रूर सफल होगा।

भारत सबसे बेहतर

भारत सबसे बेहतर 

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक
कोरोना से पीड़ित सारे देशों के आँकड़ें देखें तो भारत शायद सबसे कम पीड़ित देशों की श्रेणी में आएगा। दुनिया के पहले दस देशों में अमेरिका से लेकर बेल्जियम तक के नाम हैं लेकिन भारत का कहीं भी जिक्र तक नहीं है। यदि भारत की जनसंख्या के हिसाब से देखा जाए तो माना जाएगा कि कोरोना भारत में अभी तक घुस नहीं पाया है, उसने बस भारत को छुआ भर है, जैसे उड़ती हुई चील किसी पर झपट्टा मार देती है। भारत की आबादी अमेरिका से लगभग पाँच गुना ज्यादा है। वहां 16000 से ज्यादा लोग मर गए लेकिन भारत में यह आँकड़ा दो-ढाई सौ तक ही पहुँचा है, वह भी सरकारी ढील और जमातियों की मूर्खता के कारण। अमेरिकी गणित यदि भारत पर लागू करें तो यह आंकड़ा 80 हजार तक पहुँच सकता था लेकिन भारत ने कोरोना के सांड के सींग जमकर पकड़ रखे हैं। वह उसे इधर-उधर भागने नहीं दे रहा है। इसके लिए भारत की अनुशासित और धैर्यवान जनता तो श्रेय की पात्र है ही, हमारी केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारें भी अपूर्व सतर्कता का परिचय दे रही हैं। हमारे देश के दानदाताओं ने अपनी तिजोरियों के मुँह खोल दिए हैं। किसी के भी भूखे मरने की खबर नहीं है। सबका इलाज हो रहा है। हमारे डॉक्टर और नर्स अपनी जान खतरे में डालकर मरीजों की सेवा कर रहे हैं। हरियाणा सरकार ने उनके वेतन और दुगुने करके एक मिसाल पेश की है। सभी सरकारों को हरियाणा का अनुकरण करना चाहिए। यही सुविधा सरकारी कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों को भी दी जानी चाहिए। ठीक हुए मरीजों के प्लाज्मासे यदि केरल में सफलता मिलती है तो देश के सारे कोरोना-मरीजों को यह तुरंत उपलब्ध करवाया जाए। पिछले हफ्ते कई मुख्यमंत्रियों से इस बारे में मेरी बात हुई थी। जिन जिलों में कोरोना नहीं पहुँचा है, उनमें किसानों को अपनी फसलें कटवाने और उन्हें बाजारों तक पहुँचवाने के बारे में सरकारें कुछ ठोस कदम उठा सकती हैं। कोरोना की जाँच के लिए हमारे वैज्ञानिक डॉक्टरों ने कई सस्ते और प्रामाणिक उपकरण ढूँढ निकाले हैं। सरकार भीलवाड़ा पद्धति पर लाखों लोगों की जाँच प्रतिदिन क्यों नहीं करवा सकती है ? शहरों में अटके हुए मजदूरों को अगर यात्रा करना है तो पहले उनकी जाँच का इंतजाम भी जरुरी है। मुझे आश्चर्य है कि हिन्दी के कुछ बड़े अखबारों के सिवाय कोई भी सरकारी और गैर-सरकारी टीवी और रेडियो चैनल हमारे घरेलू नुस्खों पर जोर नहीं दे रहा है। इसी तरह भारत में एक-दूसरे से दूरी बनाए रखने, ताज़ा खाना खाने, नमस्ते या सलाम करने की परंपरा का भी प्रचार ठीक से नहीं हो रहा हे। भारतीय संस्कृति के इन सहज उपायों का लाभ सारे संसार को मिले, ऐसी हमारी कोशिश क्यों नहीं है
भारत का विश्व रुप
कोरोना कमोबेश दुनिया के सभी देशों में फैल गया है। चीन और भारत दुनिया के सबसे बड़े देश हैं लेकिन जब हम सारी दुनिया के आँकड़ें देखते हैं तो हमें लगता है कि इस कोरोना के राक्षस से लड़ने में भारत सारी दुनिया में सबसे आगे है। इस कोरोना-विरोधी युद्ध का आरंभ यदि फरवरी या मार्च के पहले सप्ताह में ही हो जाता तो भारत की स्वस्थता पर सारी दुनिया दाँतों तले अपनी उँगली दबा लेती। अब भी भारत के करोड़ों लोग जिस धैर्य और संयम का परिचय दे रहे हैं, वह विलक्षण हैं। लाखों प्रवासी मजदूर अपने गाँवों की तरफ लौटते-लौटते रास्ते में ही अटक गए। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के आदेश का पालन किया और पिछले दो हफ्तों से वे तंबुओं और शिविरों में अपना वक्त गुजार रहे हैं। सारी सरकारें और स्वयंसेवी संगठन दिन-रात उनकी मदद में लगे हुए हैं। हमारे नेता लोग काफी दब्बू और घर-घुस्सू सिद्ध हो रहे हैं लेकिन उनकी तारीफ करनी पड़ेगी कि इस संकट के समय में वे घटिया राजनीति नहीं कर रहे हैं। क्या यह कम महत्त्वपूर्ण खबर है कि लगभग सारे गैर-भाजपाई मुख्यमंत्रियों ने तालाबंदी बढ़ाने की बात आगे होकर कही है ? देश में जहाँ-जहाँ कर्फ्यू लगा हुआ है, वहाँ-वहाँ सरकारी कर्मचारी और स्वयंसेवक लोग घरों में जाकर मुफ्त सामान बाँट रहे हैं। लाखों लोगों को रेसाई की गैस-टंकी और खाद्य-सामग्री घर-बैठे मिल रही है। कोरोना-मरीजों की एकांत चिकित्सा के लिए दर्जनों शहरों और रेल के डिब्बों में हजारों जगह बना ली गई हैं। कोरोना के सस्ते जाँच-यंत्र, सांस-यंत्र, सस्ती मुखपट्टियाँ, घरेलू नुस्खे और दवाइयाँ भी लोगों को मिलने लगी हैं। दुनिया के कई देश अब भारत से दवाइयाँ मँगा रहे हैं। भारत इन सब कोरोनाग्रस्त देशों का त्राता-सा बन गया है। दूसरी तालाबंदी के दौरान भारत जो ढील देगा और सख्तियाँ करेगा, दुनिया के दूसरे देश उससे प्रेरणा लेंगे। यह कोरोना-संकट तीसरे विश्व-युद्ध की तरह पृथ्वी पर अवतरित हुआ है। दुनिया की महाशक्तियों का इसने दम फुला दिया है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रुस और चीन जैसी महाशक्तियाँ आज त्राहि-माम, त्राहि-माम कर रही हैं। ऐसे विकट समय में भारत विश्व की आशा बनकर उभर रहा है। इस मौके पर भारत की सांस्कृतिक परंपराओं, (नमस्ते और स्पर्श-भेद), ताजा और शाकाहारी भोजन-पद्धति तथा घरेलू नुस्खों का अनुशीलन सारा संसार करना चाहेगा। 
कोरोना को भारत मात देकर रहेगा
सरकार ने घोषणा की है कि आवश्यक माल ढोनेवाले ट्रकों पर कोई पाबंदी नहीं होगी। उनके ड्राइवरों को तंग नहीं किया जाएगा। मालगाड़ियाँ चल ही रही हैं। राज्य सरकारें अपने-अपने किसानों को फसल काटने और बेचने की सुविधा देने पर विचार कर रही हैं। यदि शहरों के कारखाने भी कुछ हद तक चालू कर दिए जाएँ तो प्रवासी मजदूरों की समस्या भी सुलझेगी। जो अपने गाँवों में लौटना चाहते हैं, उनका इंतजाम भी किया जाए। करोड़ों गरीबी रेखावाले लोगों को राशन और नकद रुपए सरकार ने पहुँचा दिए हैं। समाजसेवी संस्थाओं ने भी अपने खजाने खोल दिए हैं। दो लाख से ज्यादा लोगों की जाँच हो चुकी है। सैकड़ों कोरोना मरीज स्वस्थ होकर घर लौट चुके हैं। करोड़ों मुखौटे बंट रहे हैं। लोग शारीरिक दूरी बनाकर रखने में पूरी सावधानी बरत रहे हैं। कुछ प्रतिबंधों के साथ रेलें और जहाज भी चलाए जा सकते हैं। अगले दो हफ्तों में भारत कोरोना को मात देकर ही रहेगा।  
कोरोनाः हार की शुरुआत
कोरोना पर भारत ने जैसी लगाम लगाई है, वह सारी दुनिया के लिए आश्चर्य और ईर्ष्या का विषय हो सकता है। सारी दुनिया में इस महामारी से लगभग डेढ़ लाख लोग मर चुके हैं और 22 लाख से ज्यादा संक्रमित हो चुके हैं। जिन देशों में हताहतों की संख्या भारत से कई गुना ज्यादा है, उनकी जनसंख्या भारत के मुकाबले बहुत कम है। यदि वे देश भारत के बराबर बड़े होते तो हताहतों की यह संख्या उन देशों में भारत से कई सौ गुना ज्यादा हो जाती। आज तक भारत में मृतकों की संख्या लगभग 450 है और संक्रमितों की संख्या 15 हजार से भी कम है। 80 प्रतिशत से अधिक लोग ठीक हो चुके हैं। यदि जमाते-तबलीग की मूर्खता नहीं होती तो अभी तक तो तालाबंदी कभी की उठ गई होती। अब भी पता नहीं क्यों, हमारे कुछ मुसलमान भाई अफवाहों और गलतफहमियों के शिकार हो रहे हैं। कोरोना तो उनको मार ही रहा है, वे भी खुद को मौत के कुंए में ढकेल रहे हैं। हमारे नेता लोग उनसे सीधा संवाद क्यों नहीं करते ?
लगभग साढ़े तीन सौ जिलों में तो एक भी संक्रमित रोगी नहीं मिला है। कुछ दर्जन जिले जिनमें मुंबई, दिल्ली, इंदौर जैसे जिले शामिल हैं, उनमें ठीक समय पर कार्रवाई हो जाती तो भारत सारी दुनिया के लिए आदर्श राष्ट्र बन जाता। यह तब होता जबकि भारत संपन्न राष्ट्र नहीं है। उसकी स्वास्थ्य सेवाएं इटली, फ्रांस और अमेरिका के मुकाबले बहुत कमजोर हैं। उसमें साफ-सफाई की भी कमी है। इसके बावजूद भारत में यह कोरोना वायरस क्यों मात खा रहा है ? इसका मूल श्रेय भारत की जनता और हमारी सरकारों को है। केंद्र और राज्यों की सरकारों ने जो तालाबंदी घोषित की है, उसका लोग जी-जान से पालन कर रहे हैं। कुछ जमातियों द्वारा फैलाई जा रही अफवाहों को छोड़ दें तो सभी मज़हबों, सभी जातियों, सभी वर्गों, सभी प्रांतों और सभी दलों के लोग एकजुट होकर कोरोना का मुकाबला कर रहे हैं।
अब कोरोना के जांच यंत्र लाखों की संख्या में भारत में आ चुके हैं। हमारे डाक्टर और नर्सें जिस वीरता और त्याग का परिचय दे रहे हैं, वह सारी दुनिया के लिए आदर्श है। किस देश में मरीज उन पर हमला कर रहे हैं ? भारत की कुनैन की दवाई अब दुनिया के 55 देशों में पहुँच गई है। अब शीघ्र ही भारत सरकार किसानों, मजदूरों और व्यापारियों के लिए समुचित सुविधाएं मुहय्या करनेवाली है। रिजर्व बैंक ने देश के काम-धँधों में जान फूंकने के लिए 50 हजार करोड़ रु. की राशि की घोषणा की है। जाहिर है कि कोरोना की हार की शुरुआत हो चुकी है।

विज्ञान नहीं अध्यात्म से जीतता भारत

विज्ञान नहीं अध्यात्म से जीतता भारत
-डॉ. नीलम महेन्द्र 
मानव ही मानव का दुश्मन बन जाएगा
किसने सोचा था ऐसा दौर भी आएगा।
जो धर्म मनुष्य को मानवता की राह दिखाता था
उसकी आड़ में ही मनुष्य को हैवान बनाया जाएगा।
इंसानियत को शर्मशार करने खुद इन्सान ही आगे आएगा
किसने सोचा था कि वक्त इतना बदल जाएगा

शक्ति कोई भी हो दिशाहीन हो जाए तो विनाशकारी ही होती है लेकिन यदि उसे सही दिशा दी जाए तो सृजनकारी सिद्ध होती है। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री ने 5 अप्रैल को सभी देशवासियों से एकसाथ दीपक जलाने का आह्वन किया जिसे पूरे देशवासियों का भरपूर समर्थन भी मिला।। जो लोग कोरोना से भारत की लड़ाई में प्रधानमंत्री के इस कदम का वैज्ञानिक उत्तर खोजने में लगे हैं वे निराश हो सकते हैं क्योंकि विज्ञान के पास आज भी अनेक प्रश्नों के उत्तर नहीं हैं। हाँ लेकिन संभव है कि दीपक की लौ से निकलने वाली ऊर्जा देश के 130 करोड़ लोगों की ऊर्जा को एक सकारात्मक शक्ति का वो आध्यात्मिक बल प्रदान करे जो इस वैश्विक आपदा से निकलने में भारत को संबल दे। क्योंकि संकट के इस समय भारत जैसे अपार जनसंख्या लेकिन सीमित संसाधनों वाले देश की अगर कोई सबसे बड़ी शक्ति, सबसे बड़ा हथियार है जो कोरोना जैसी महामारी से लड़ सकता है तो वो है हमारी "एकता"। और इसी एकता के दम पर हम जीत भी रहे थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेष दूत डॉ डेविड नाबरो ने भी अपने ताज़ा बयान में कहा कि भारत में लॉक डाउन को जल्दी लागू करना एक दूरदर्शी सोच थी, साथ ही यह सरकार का एक साहसिक फैसला था। इस फैसले से भारत को कोरोना वायरस के खिलाफ मजबूती से लड़ाई लड़ने का मौका मिला।
लेकिन जब भारत में सबकुछ सही चल रहा थाजब इटलीब्रिटेनस्पेनअमेरिका जैसे विकसित एवं समृद्ध वैश्विक शक्तियाँ कोरोना के आगे घुटने टेक चुकी थींजब विश्व की आर्थिक शक्तियाँ अपने यहाँ कोविड 19 से होने वाली मौतों को रोकने में बेबस नज़र आ रही थींतब 130 करोड़ की आबादी वाले इस देश में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या लगभग 500 के आसपास थी और इस बीमारी के चलते मरने वालों की संख्या 20 से भीकम थीतो अचानक तब्लीगी मरकज़ की लापरवाही सामने आती है जो केंद्र और राज्य सरकारों के निर्देशों की धज्जियाँ उड़ाते हुए निज़ामुद्दीन की मस्जिद में 3500 से ज्यादा लोगों के साथ एक सामूहिक कार्यक्रम का आयोजन करती है। 16 मार्च को दिल्ली के मुख्यमंत्री 50 से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध लगाते हैं, 22 मार्च को प्रधानमंत्री जनता कर्फ्यू की अपील करते हुए कोरोना की रोकथाम के लिए सोशल डिस्टनसिंग का महत्व बताते हैं लेकिन मार्च के आखरी सप्ताह तक इस मस्जिद में 2500 से भी ज्यादा लोग सरकारी आदेशों का मख़ौल उड़ाते इकट्ठा रहते हुए पाए जाते हैं। सरकारी सूत्रों के अनुसार मस्जिद को खाली कराने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को सामने आना पड़ा था क्योंकि ये स्थानीय प्रशासन की नहीं सुन रहे थे। पूरे देश के लिए यह दृश्य दुर्भाग्यजनक था जब सरकार और प्रशासन इनके आगे बेबस नज़र आया। और अब जब इन लोगों की जांच की जा रही है तो अबतक इनमें से 300 से अधिक कोरोना से संक्रमित पाए गए हैं और बाकी में से कितने संक्रमित होंगे उनकी तलाश जारी है। जो खबरें सामने आ रही हैं वो केवल
निराशाजनक ही नहीं शर्मनाक भी हैं क्योंकि इस मकरज़ की वजह से इस महामारी ने हमारे देश के कश्मीर से लेकर अंडमान तक अपने पैर पसार लिए हैं। देश में कोविड 19 का आंकड़ा अब चार दिन के भीतर ही 3000 को पार कर चुका है, 75 लोगों की
इस बीमारी के चलते जान जा चुकी है और इस तब्लीगी जमात की मरकज़ से निकलने वाले लोगों के जरिए देश के 17 राज्यों में कोरोना महामारी अपनी दस्तक दे चुकी है। देश में पहली बार एक ही दिन में कोरोना के 600 से ऊपर नए मामले दर्ज किए गए।बात केवल इतनी ही होती तो उसे अज्ञानता नादानी या लापरवाही कहा जा सकता था लेकिन जब इलाज करने वाले डॉक्टरों, पैरा मेडिकल स्टाफ और पुलिसकर्मियों पर पत्थरों से हमला किया जाता है या फिर उन पर थूका जाता है जबकि यह पता हो कि यह बीमारी इसी के जरिए फैलती है या फिर महिला डॉक्टरों और नरसों के साथ अश्लील हरकतें करने की खबरें सामने आती हैं तो
प्रश्न केवल इरादों का नहीं रह जाता। ऐसे आचरण से सवाल उठते हैं सोच पर, परवरिश पर, नैतिकता पर, सामाजिक मूल्यों पर, मानवीय संवेदनाओं पर। किंतु इन सवालों से पहले सवाल तो ऐसे पशुवत आचरण करने वाले लोगों के इंसान होने पर ही लगता है। क्योंकि आइसोलेशन वार्ड में इनकी गुंडागर्दी करती हुई तस्वीरें कैद होती हैं तो कहीं फलों, सब्ज़ियों और नोटों पर इनके थूक लगाते हुए वीडियो वायरल होते हैं। ये कैसा व्यवहार है? ये कौन सी सोच है? ये कौन से लोग हैं जो किसी अनुशासन को नहीं मानना चाहते? ये किसी नियम किसी कानून किसी सरकारी आदेश को नहीं मानते। अगर मानते हैं तो फतवे मानते हैं। जो
लोग कुछ समय पहले तक संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रहे थे वो आज संविधान की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। पूरा देश लॉक डाउन का पालन करता है लेकिन इनसे सोशल डिस्टनसिंग की उम्मीद करते ही पत्थरबाजी और गुंडागर्दी हो जाती है। लेकिन ऐसा खेदजनक व्यवहार करते वक्त ये लोग भूल जाते हैं कि इन हरक़तों से ये अगर किसी को सबसे अधिक नुकसान पहुँचा रहे हैं तो खुद को और अपनी पहचान को। चंद मुट्ठी भर लोगों की वजह से पूरी कौम बदनाम हो जाती है। कुछ जाहिल लोग पूरी जमात को जिल्लत का एहसास करा देते हैं। लेकिन समझने वाली बात यह है कि असली गुनहगार वो मौलवी और मौलाना होते हैं जो इन लोगों को ऐसी हरकतें करने के लिए उकसाते हैं।  तब्लीगी जमात के मौलाना साद का वो वीडियो पूरे देश ने सुना जिसमें वो
 तब्लीगी जमात के लोगों को कोरोना महामारी के विषय में अपना विशेष ज्ञान बाँट रहे थे। दरअसल किसी समुदाय विशेष के ऐसे ठेकेदार अपने राजनैतिक हित साधने के लिए लोगों का फायदा उठाते हैं।
काश ये लोग समझ पाते कि इनके कंधो पर देश की नहीं तो कम से कम अपनी कौम की तो जिम्मेदारी है। कम पढ़े लिखे लोगों की अज्ञानता का फायदा उठाकर उनको ऐसी हरकतों के लिए उकसा कर ये देश का नुकसान तो बाद में करते हैं पहले अपनी कौम और अपनी पहचान का करते हैं। उन्हें समझना चाहिए कि आज मोबाइल फोन और सोशल मीडिया का जमाना है और जमाना
बदल रहा है। सच्चाई वीडियो सहित बेनकाब हो जाती है। शायद इसलिए उसी समुदाय के लोग खुद को तब्लीगी जमात से अलग करने और उनकी हरकतों पर लानत देने वालों में सबसे आगे थे। सरकारें भी ठोस कदम उठा रही हैं। यही आवश्यक भी है कि ऐसे लोगों का उन्हीं की कौम में सामाजिक बहिष्कार हो साथ ही उन पर कानूनी शिकंजा कसे ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनावृत्ति रुके। इन घटनाओं पर सख्ती से तुरंत अंकुश लगना बेहद जरूरी है क्योंकि वर्तमान परिस्थितियों में हमने देखा कि तब्लीगी जमात की सरकारी आदेशों की नाफरमानी से कैसे हम एक जीतती हुई लड़ाई हारने की कगार पर पहुचं गए। लेकिन ये अंत नहीं मध्यांतर है क्योंकि ये वो भारत है जहाँ की सनातन संस्कृति निराशा के अन्धकार को विश्वास के प्रकाश से ओझल कर देती है। आखिर अँधेरा कैसा भी हो एक छोटा सा दीपक उसे हरा देता है तो भारत में तो उम्मीद की सवा सौ करोड़ किरणें मौजूद हैं। 

क़ातिल कोरोना का क़हर

क़ातिल कोरोना का क़हर

 जेन्नी शबनम

भारत तथा विश्व की वर्तमान परिस्थिति पर ध्यान दें तो ऐसा लग रहा है कि प्रकृति हमें चेतावनी दे रही है कि अब बहुत हुआअब तो चेत जाओवापस लौट जाओ अपनी-अपनी जड़ों की तरफजिससे प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर एक सुन्दर दुनिया निर्मित हो सके। सिर्फ भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व आधुनिकता की दौड़ में इस तरह उलझ चुका है कि थोड़ी देर रुककर चिन्तनमननआत्मविश्लेषण करने को तैयार नहीं है। अगर ज़रा देर रुके तो शेष दुनिया न जाने कितनी आगे निकल जाएगीकितना कुछ छूट जाएगाजाने कितना नुकसान हो जाएगा। पैसापदप्रतिष्ठापहचानपहुँच आदि सफलता के नए मानदंड बन गए हैं। सफल होना तभी संभव है जब प्रतिस्पर्धा की दौड़ में खुद को सबसे आगे रखा जाए। प्रतिस्पर्धा में जीतना ही आज के समय में दुनिया जीतने का मंत्र है।  
जीव जंतु तो सदैव अपनी प्रकृति के साथ ही जीवन जीते हैंभले ही आज के समय में उन्हें हम मनुष्यों ने प्रकृति से दूर किया है।  परन्तु मनुष्य प्रकृति के विरुद्ध प्रकृति को हथियार बना कर विजयी होना चाहता है। इस कारण एक तरफ प्रकृति का दोहन हो रहा है तो दूसरी तरफ हम प्रकृति से दूर होते चले गए हैं। हम भूल गए हैं कि मनुष्य हो या कोई भी जीव जंतुसभी प्रकृति के अंग हैं और प्रकृति पर ही निर्भर हैं। प्राकृतिक संसाधन हमें प्रचुर मात्रा में मिला है लेकिन हमारी प्रवृत्ति ने हमें आज विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। हमारी जीवन शैली ऐसी हो चुकी है कि हम एक दिन भी सिर्फ प्रकृति के साथ नहीं गुजार सकते। अप्राकृतिक जीवन चर्या के कारण हमारी शारीरिक क्षमताएँ धीरे-धीरे कम हो रही हैं। हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित हो गई है जिससे रोग प्रतिरोधक शक्ति भी कम हो गई है।  
सभी जानते हैं कि हानिकारक जीवाणु (बैक्टीरिया) हो या कोई भी विषाणु (वायरस) इसका प्रसार संक्रमण के माध्यम से ही होता है। कोरोना वायरस के संक्रमण से आज पूरी दुनिया संकट में है और असहाय महसूस कर रही है। अज्ञानतामूढ़ताभयलापरवाहीअतार्किकताअसंवेदनशीलता आदि के कारण जिस तरह कोरोना का संक्रमण बढ़ता जा रहा हैनिःसंदेह यह न सिर्फ चिंता का विषय है बल्कि हमारी विफलता भी है। कोरोना से मौत का आँकड़ा प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। टी वी और अखबार के समाचार के मुताबिक़ सिर्फ चीन जहाँ से कोरोना के संक्रमण की शुरुआत हुई थीवहाँ स्थिति नियंत्रण में है। शेष अन्य देशों की स्थिति गंभीर होती जा रही है।  
आम जनता को कोरोना की भयावहता का अनुमान शुरू में नहीं हुआ था। मार्च 22 को जब एक दिन का जनता कर्फ्यू लगा और तालीथालीघंटी आदि बजाने का आह्वाहन प्रधानमंत्री जी ने कियातब इसका भय लोगों में बढ़ा। फिर भी काफी सारे लोगों के लिए ताली-थाली-घंटी बजाना मनोरंजन का अवसर रहा और वे अपने-अपने घरों से निकलकर मानो उत्सव मनाने लगे। यूँ जैसे ताले-थाली-घंटी पीटने से कोरोना की हत्या की जा रही होया यह कोई जादू टोना हो जिससे कि कोरोना समाप्त हो जाएगा। अप्रैल 5 को जब प्रधानमन्त्री जी ने रात के 9 बजे घर की बत्ती बुझाकर दीया जलाने को कहातो लोगों ने इसे दीपोत्सव बना दिया। दीये भी जलाए गएआतिशबाजी भी खूब हुईमोदी जी के लिए खूब नारे लगे। यूँ लग रहा था मानो यह कोई त्योहार हो। अगर प्रधानमन्त्री जी एक दीया जलाकरजो लोग इस महामारी में मारे गए हैंउनके लिए 2 मिनट का मौन रखने को कहते तो शायद लोग इसे गंभीरता से लेते और भीड़ इकट्ठी कर न पटाखे फोड़ते न दिवाली मनाते। हम भारतीय इतने असंवेदनशील कैसे होते जा रहे हैंकोरोना कोई एक राक्षस नहीं है जिसे भीड़ इकट्ठी कर अग्नि से डरा कर ललकारा जाए और वो मनुष्यों की एकजुटता और उद्घोष से डर कर भाग जाए।  
प्रधानमन्त्री जी द्वारा लॉकडाउन की घोषणा किए जाने के बाद जिस तरह अफवाहों का बाज़ार गर्म हुआ उससे कोरोना का संक्रमण और भी फ़ैल गया।अधिकतर लोग बाज़ार से महीनों का सामान घर में भरने लगे। जिससे बाज़ार में ज़रूरी सामानों की किल्लत हो गई और दुकानों में भीड़ इकट्ठी होने लगी। चारो  तरफ अफरातफरी का माहौल हो गया। क्वारंटाइनआइसोलेशनसोशल डिस्टेनसिंगघर से बाहर न निकलना आदि को लेकर ढ़ेरों भ्रांतियाँ फैलने लगी. लोग भय और आशंका से पलायन करने लगेजिससे ट्रेनबस इत्यादि में संक्रमण और फैलने लगा।  
जनवरी के अंत में जब भारत में पहला कोरोना का मामला आया तभी सरकार को ठोस कदम उठाना चाहिए था। विदेशों से जितने भी लोग आ रहे थे उसी समय उन्हें कोरोंटाइन करना चाहिए था। देश में जितने भी समारोहसम्मलेनसभा का आयोजन जिसमें भीड़ इकट्ठी होनी थीतुरंत बंद कर देना चाहिए था।कोरोना का मामला आने के बाद भी ढ़ेरों सरकारी कार्यक्रम हुए जिनमें देश विदेश से लोगों ने शिरकत कीकहीं भी किसी तरह की भीड़ इकत्रित होने पर पाबंदी नहीं लगाई गई। लगभग दो महीने से थोड़े कम दिन में जब कोरोना का संक्रमण का फैलाव बहुत ज्यादा हुआ और मौत का सिलसिला शुरू हुआ तब सरकार जाग्रत हुई। इतने विलम्ब से लॉकडाउन के निर्णय का कारण समझ से परे है। क्योंकि वास्तविक स्थिति का अंदाजा तो स्वास्थ्य मंत्रालय के पास रहा ही होगा। अगर स्वास्थ्य मंत्रालय इसकी भयावहता से अनभिज्ञ था तो यह भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश के लिए शर्म की बात है।  
लॉकडाउन होने के बाद भी दिल्ली से पलायन करने के लिए हज़ारों की संख्या में लोग एकत्र हो गए। इनमें दूसरे राज्यों से आए दिहाड़ी मज़दूरों की संख्या ज्यादा थी। निःसंदेह अफ़वाहों और सरकार के प्रति अविश्वसनीयता के कारण वे सभी ऐसा करने के लिए विवश हुए होंगे। न काम हैन अनाज हैन पैसा हैन घर हैऐसे में कोई क्या करेसरकार खाना देगी यह गारंटी कौन किसे देगरीबों की सुविधा का ध्यान कभी किसी सरकार ने रखा ही कबहालाँकि पहली बार यह हुआ है कि दिल्ली में सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की स्थिति आश्चर्यजनक रूप से बहुत अच्छी हुई है। रैनबसेरासस्ता खाना आदि का प्रबंध उत्तम हुआ है। फिर भी राजनीतिनेता और सरकार पर विश्वास शीघ्र नहीं होता है। ऐसे में उन्हें यही विकल्प सूझा होगा कि किसी तरह अपने-अपने घर चले जाएँ ताकि कम से कम ज़िंदा तो रह सकें। इनमें सभी जातिधर्म और तबके के लोग शामिल थे। लॉकडाउन की घोषणा होने के बाद सुरक्षित तरीके से सरकार अपने खर्च पर सभी को अपने-अपने गाँव या शहर पहुँचा देती तो समस्याएँ इतनी विकराल रूप नहीं लेती। शेल्टर में रहकर कोई कितने दिन समय काट सकता है?  
निज़ामुद्दीन स्थित मरकज में तब्लीगी जमात के लोगों की गतिविधियाँ बेहद शर्मनाक है। लॉकडाउन के बावज़ूद वे सभी इतनी बड़ी संख्या में साथ रह रहे थे। जब उन्हें जबरन जाँच के लिए ले जाया जा रहा था तब और अस्पताल में जाने के बाद जिस तरह की घिनौनी हरकत कर रहे हैंउन्हें कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए। सरकार द्वारा निवेदन और चेतावनी के बावजूद निज़ामुद्दीन के अलावा देश में कई स्थानों पर अब भी भीड़ इकट्ठी हो रही है। कई जगह स्वास्थ्यकर्मियों एवं पुलिस के साथ बदसलूकी की जा रही है। कई सारे मामले ऐसे हो रहे हैं जब संक्रमित व्यक्ति को आइसोलेशन में रखा गया तो वे भाग गए या ख़ुद को ख़त्म कर लेने की धमकी दे रहे हैं। कुछ लोग कोई न कोई जुगाड़ लगा कर लॉकडाउन के बावज़ूद घर से बहार निकल रहे हैं। जबकि सभी को मालूम है कि जितना ज्यादा सोशल डिसटेनसिंग रहेगा संक्रमण से बचाव होगा। ऐसे लोग जान बुझकर जनता,सरकारी व्यवस्था और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए परेशानी पैदा कर रहे हैं। लॉकडाउन से कोरोना के रफ़्तार में जो कमी आती उसे इनलोगों ने न सिर्फ़ रोक दिया है बल्कि ख़तरा को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है।  
राजनीति और सियासत का खेल हर हाल में जारी रहता हैभले ही देश में आपात्काकाल की स्थिति हो। एक दिन अख़बार में फोटो के साथ ख़बर छपी कि दिल्ली सरकार एक लड्डूज़रा-सा अचार के साथ सूखी पूड़ी बाँट रही है। अब देश में महा समारोह तो नहीं चल रहा कि पकवान बना-बनाकर सरकार परोसेगी। यहाँ अभी किसी तरह ज़िंदा और सुरक्षित रहने का प्रश्न है। ऐसे हालात में दो वक़्त दो सूखी रोटी और नमक या खिचड़ी मिल जाएतो भी काम चलाया जा सकता है। अगर अच्छा भोजन उपलब्ध हो जाए तो इससे बढ़कर ख़ुशी की बात क्या होगी. अफवाह यह भी फैला कि खाना मिल ही नहीं रहा हैभूख से लोग मर रहे हैं। जबकि दिल्ली सरकारकेंद्र सरकारढ़ेरों संस्थाएँसामाजिक कार्यकर्ता आदि इस काम में पूरी तन्मयता से लगे हुए हैं।  
देश और दुनिया के हालात से सबक लेकर हमें अपनी जीवन शैली में सुधार करना होगा। खान पान हो या अन्य आदतें प्रकृति के नज़दीक जाकर प्रकृति के द्वारा खुद को सुधारना होगा। भले ही कोरोना चमगादड़ से फैला है लेकिन कई सारे जानवरों से दूसरे प्रकार का संक्रमण फैलता है. ऐसे में सदा मांसाहार को त्याग कर शुद्ध शाकाहारी भोजन करना चाहिए। योगव्यायाम तथा उचित दैनिक दिनचर्या का पालन करना चाहिए ताकि हमारे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़े। संचार माध्यमों के इस्तेमाल के साथ ही आपसी रिश्ते को मजबूती से थामे रखा जाए ताकि कहीं कोई अवसाद में न जाए।  

कोरोना के कहर से बचाव के लिए हम सभी को स्वयं खुद का और सरकार का सहयोग देना होगा। सिर्फ सरकार पर दोषारोपण कहीं से जायज नहीं है। हम देशवासियों को भी अपना कर्त्तव्य समझना चाहिए।  जिन्हें संक्रमण की थोड़ी भी आशंका होउन्हें स्वयं ही ख़ुद को आइसोलेट कर लेना चाहिए या क्वारंटाइन के लिए चला जाना चाहिए। इस राष्ट्रीय और वैश्विक आपदा की घड़ी में अपने-अपने घरों में रहकर हम आवश्यक और मनवांछित कार्य कर सकते हैं। मनोरंजन के ढ़ेरों साधन घर पर उपलब्ध हैऐसे में बोरियत का सवाल ही नहीं है। एकांतवास से अच्छा और कोई अवकाश नहीं होता जब हम चिन्तन मनन कर सकते हैं और कार्य योजना बना सकते हैं। आत्मवलोकनआत्मविश्लेषण और कुछ नया सीखने का भी यह बहुत अच्छा मौका है। यूँ तो कोरोना के कारण मन अशांत है और खौफ़ में हैं परन्तु इससे कोरोना का ख़तरा बढ़ेगा ही कम नहीं होगा। बेहतर है कि हम इस समय का सदुपयोग करें स्वयंपरिवारसमाजदेश और विश्व के उत्थान के लिए।