कोरोना
के खिलाफ लड़ाई में टेक्नॉलॉजी बना हथियार
-प्रदीप
इस
समय देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया कोरोना वायरस नामक एक ऐसे दुष्चक्र में फंसी है जिससे
निकलने के लिए असाधारण कदमों और उपायों की ज़रूरत है। महामारी कोविड-19 फैलाने वाले कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या दुनिया में हर रोज़ बढ़ती जा रही है और यह महामारी नए
इलाकों में पाँव पसारती जा रही है।
विशेषज्ञों
का मानना है कि हम बिग डैटा, क्लाउड कंप्यूटिंग, सुपर कम्प्यूटर,
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, रोबोटिक्स, 3-डी प्रिंटिंग, थर्मल इमेज़िंग और 5-जी जैसी टेक्नॉलॉजी का इस्तेमाल करते हुए बेहद प्रभावी ढंग से कोरोनावायरस
से मुकाबला कर सकते हैं। इस महामारी से निपटने के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि सरकार
लोगों की निगरानी रखे। आज टेक्नॉलॉजी की बदौलत सभी लोगों पर एक साथ हर समय निगरानी
रखना मुमकिन है।
कोरोना
वायरस के खिलाफ अपनी लड़ाई में कई सरकारों ने टेक्नॉलॉजी को मोर्चे पर लगा दिया है।
टेक्नॉलॉजी का ही इस्तेमाल करते हुए चीन ने इस वायरस पर काफी हद तक काबू पाया है।
लोगों के स्मार्टफोनों, चेहरा पहचानने वाले हज़ारों-लाखों कैमरों, और अपने
शरीर का तापमान रिकॉर्ड करने और अपनी मेडिकल जांच की अनुमति देने की सहज इच्छा
रखने वाली जनता के बल पर चीनी अधिकारियों ने न केवल शीघ्रता से यह पता कर लिया कि
कौन व्यक्ति कोरोना वायरस का संभावित वाहक है बल्कि वह उन पर नज़र भी रख रहे थे कि
वे किस-किस के संपर्क में आते हैं। कई सारे ऐसे मोबाइल ऐप्स हैं जो नागरिकों को
संक्रमित व्यक्ति के आसपास मौजूद होने के बारे में चेतावनी देते हैं।
कोरोनावायरस
को रोकने के लिए चीन ने सबसे पहले ‘कलर कोडिंग टेक्नॉलॉजी’ का इस्तेमाल किया है। इस सिस्टम के लिए चीन की दिग्गज टेक कंपनी अलीबाबा
और टेनसेंट ने साझेदारी की है। यह सिस्टम स्मार्टफोन ऐप के रूप में काम करता है।
इसमें यूज़र्स को उनकी यात्रा के दौरान उनकी मेडिकल हिस्ट्री के मुताबिक ग्रीन,
येलो और रेड कलर का क्यूआर कोड दिया जाता है। ये कलर कोड ही यह
निर्धारित करते हैं कि यूज़र को क्वॉरेंटाइन किया जाना चाहिए या फिर उसे सार्वजनिक
स्थान पर जाने की इजाज़त दी जानी चाहिए। चीनी सरकार ने इस सिस्टम के लिए कई चेक
पॉइंट्स बनाए हैं, जहां लोगों की चेकिंग होती हैं। यहां
उन्हें उनकी यात्रा और मेडिकल हिस्ट्री के मुताबिक क्यूआर कोड दिया जाता है। अगर
किसी को ग्रीन कलर का कोड मिलता है, तो वह इसका उपयोग कर
किसी भी सार्वजनिक स्थान पर जा सकता है। तो दूसरी तरफ अगर किसी को लाल कोड मिलता
है, तो उसे क्वारेंटाइन कर दिया जाता है। इस सिस्टम का
इस्तेमाल 200 से ज़्यादा चीनी शहरों में हुआ है। भारत में भी
ऐप आधारित कलर कोडिंग टेक्नॉलॉजी विकसित करने के प्रयास ज़ोर-शोर से किए जा रहे
हैं।
भारत
में भी रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों और अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों के अधिकारी दूर से तापमान
रिकॉर्ड करने के लिए स्मार्ट थर्मल स्कैनर का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस तरह संभावित
कोरोना वायरस वाहक की पहचान करने में आसानी हो रही है। भारत में बाज़ार-केंद्रित
हेल्थ टेक स्टार्टअप कंपनियां भी रोग के निदान के लिए नवाचार की ओर कमर कस रही हैं,
इससे हेल्थ केयर सिस्टम पर दबाव कम हो रहा है। कन्वर्जेंस कैटालिस्ट
के संस्थापक जयंत कोल्ला बैंगलुरु स्थित स्टार्टअप, वनब्रोथ
का उदाहरण देते हैं। इसने सस्ते और टिकाऊ वेंटिलेटर विकसित किए हैं। ये भारत की
ग्रामीण आबादी को ध्यान में रखकर किया गया है, जहां
अस्पतालों और डॉक्टरों तक पर्याप्त पहुंच का अभाव है। एक अन्य बैंगलुरु-आधारित
स्टार्टअप डे-टु-डे ने घर पर क्वारेंटाइन रोगियों को विभिन्न सुविधाओं और
अस्पतालों में रखने के लिए एक केयर मैनेजमेंट सॉल्यूशन विकसित किया है और इसके
ज़रिए बाद में निदान गतिविधियों जैसे कि स्वास्थ्य जांच, आहार,
अनुवर्ती परीक्षण आदि को भी पूरा किया जाता है।
चीन
सहित विभिन्न देशों ने कोरोना वायरस को मात देने के लिए रोबोट का इस्तेमाल किया
है। ये रोबोट होटल से लेकर ऑफिस तक में साफ-सफाई का काम करते हैं और साथ ही आस-पास
की जगह पर सैनिटाइज़र का छिड़काव भी करते हैं। वहीं, दूसरी तरफ चीन की कई टेक कंपनियां भी इन
रोबोट का उपयोग मेडिकल सैंपल भेजने के लिए करती थीं। कोरोना वायरस को रोकने के लिए
चीन ने ड्रोन का इस्तेमाल किया है। साथ ही इन ड्रोन्स के ज़रिए चीनी सरकार ने लोगों
तक फेस मास्क और दवाइयां पहुंचाई हैं। इसके अलावा इन डिवाइसेस के ज़रिए कोरोना
वायरस से संक्रमित क्षेत्रों में सैनिटाइजर का छिड़काव भी किया गया है।
कोरोना
वायरस को ट्रैक करने के लिए फेस रिकॉग्निशन सिस्टम का इस्तेमाल बेहद कारगर साबित
हो रहा है। इस सिस्टम में इंफ्रारेड डिटेक्शन तकनीक मौजूद है, जो लोगों के शरीर के तापमान
जांचने में मदद करती है। इसके अलावा फेस रिकॉग्निशन सिस्टम यह भी बताता है कि
किसने मास्क पहना है और किसने नहीं।
वैज्ञानिक
कोरोना के टीके और दवाई विकसित करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) का
इस्तेमाल कर रहें हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि एंटीबायोटिक दवाओं के
बैक्टीरिया पर घटते असर को ध्यान में रखते हुए पिछले कुछ वर्षों से वैज्ञानिक एआई
की मदद से ऐसे प्लेटफॉर्म तैयार करने की कोशिश रहे हैं जिससे नए किस्म की दवाओं की
खोज की जा सके और एंटीबायोटिक दवाओं को बेअसर करने वाले बैक्टीरिया का खात्मा किया
जा सके। हाल ही में वैज्ञानिक समुदाय को इस दिशा में एक बड़ी कामयाबी हासिल हुई है।
अमेरिका के एमआईटी के वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशिल इंटेलीजेंस (एआई) के मशीन-लर्निंग
एल्गोरिदम की मदद से पहली बार एक नया और बेहद शक्तिशाली एंटीबायोटिक तैयार किया
है। शोधकर्ताओं का दावा है कि इस एंटीबायोटिक से तमाम घातक बीमारियों को पैदा करने
वाले बैक्टीरिया को भी मारा जा सकता है। इसको लेकर दावे इस हद तक किए जा रहे हैं
कि इस एंटीबायोटिक से उन सभी बैक्टीरिया का खात्मा किया जा सकता है जो सभी ज्ञात
एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता हासिल कर चुके हैं। इस नए
एंटीबायोटिक की खोज ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद से कोरोना के खिलाफ एक कारगर
एंटी वायरल दवा विकसित करने की वैज्ञानिकों की उम्मीदों को बढ़ा दिया है।
कुल
मिलाकर हम कह सकते हैं कि आज टेक्नॉलॉजी ने किसी महामारी से लड़ने के लिए हमारी
क्षमताओं को काफी हद तक बढ़ा दिया है। जिसकी बदौलत हम परंपरागत रक्षात्मक उपायों को
करते हुए महामारी के विरुद्ध कारगर ढंग से लड़ने में सक्षम हुए हैं।(स्रोत फीचर्स)
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