पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)
जो भी पुरुष नि:ष्पाप, निष्कलंक, निडर है
उसे प्रणाम. कलियुग में वही हमारा ईश्वर है
जीवन में आगे बढ़ने के लिए भाग्य से अधिक आवश्यक है लगन, परिश्रम एवं प्रतिबध्दता। कहा भी गया है : सकल पदारथ हैं जग माहीं / करमहीन नर पावत नाहीं। किंतु असफलता के दौर में मनुष्य भाग्य को कोसने लगता है। यह तो हुई एक बात।
दूसरी यह कि सफलता के पलों में वह स्वयं ही सारा श्रेय लेते हुए खुद को ख़ुदा समझने का भ्रम पाल लेता है और अपने सगे, संबंधियों, सखाओं के मान सम्मान को तिलांजलि दे देता है। जिस सीढ़ी का इस्तेमाल कर आगे बढ़ा उसे हटा देता है ताकि दूसरे उसके कद की बराबरी न कर सकें। यह हुई दूसरी बात; लेकिन यह सार्वभौम सत्य भी नहीं। कुछ बिरले ऐसे भी होते हैं जो अपनी संपत्ति, सुख, संपदा सबके साथ साझा करते हैं। ऐसे ही एक व्यक्तित्व की बानगी का प्रयास
सेंट लियो उसैन बोल्ट (जन्म 21 अगस्त 1986), जमैका के अंतरराष्ट्रीय धावक और आठ बार के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता हैं। वे 100 / 200 मीटर एवं 4x100 मीटर रिले दौड़ के विश्व रिकार्डधारी हैं। इन सभी तीन दौड़ों का ओलंपिक रिकॉर्ड भी बोल्ट के नाम है। 1984 में कार्ल लुईस के बाद 2008 ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक में बोल्ट एक ओलंपिक में तीनों दौड़ जीतने वाले और एक ओलंपिक में ही तीनों दौड़ में विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले पहले व्यक्ति बन गये। इसके साथ ही 2008 में वे 100/ 200 मीटर स्पर्धा में ओलंपिक खिताब पाने वाले भी पहले व्यक्ति बने।
दौड़ में उनकी उपलब्धियों के कारण मीडिया की ओर से उन्हें 'लाइटनिंग बोल्ट' का उपनाम मिला; लेकिन बात यहाँ उनकी विश्व रिकार्ड उपलब्धियों से इतर उस भाव या जज़्बे की है, जिसके लिए उन्हें मानवता के इतिहास में सदा सर्वदा याद रखा जाएगा एवं आने वाले अनंत काल तक प्रेरणा पुंज के रूप में याद रखा जाएगा।
दरअसल हुआ यूँ कि प्रसिद्धि के चरमोत्कर्ष के पलों में भी वे अपने माता पिता को कभी नहीं भूले और जिसके तहत उसैन बोल्ट ने अपने माता-पिता के गाँव को समुचित सुविधाओं वाले एक आधुनिक शहर में बदल दिया।
यह सब तब शुरू हुआ जब उसैन बोल्ट शहर में अपने माता-पिता के लिए एक घर खरीदना चाहते थे। तथापि उनके माता-पिता ने यह कहते हुए इस विचार को खारिज कर दिया कि वे गाँव नहीं छोड़ना चाहते। वे अपने पड़ोसियों और दोस्तों को नहीं छोड़ना चाहते थे।
बोल्ट ने शहर वाली सुविधाएँ गाँव में उपलब्ध कराने, बच्चों के लिए एक स्कूल, मनोरंजन सुविधाएँ, स्वास्थ्य केंद्र और खेल के मैदान जैसे सामाजिक बुनियादी ढांचे का निर्माण करके गाँव को आधुनिक बनाने का फैसला किया ताकि इसे सभी के लिए अधिक रहने योग्य बनाया जा सके। और यह सब पूरे समर्पण के साथ गर्वरहित भाव के साथ विनम्रतापूर्वक किया।
और इस तरह उसैन ने केवल अपने माता-पिता के ही नहीं, बल्कि गाँव के सभी लोगों के जीवन को बेहतर बना दिया। है न कितने आश्चर्य की बात। इस दौर में तो विचित्र, किंतु सत्य।
एक स्वरूप में समा गईं किस भांति सारी सिद्धियाँ,
कब था ज्ञान मुझे इतनी सुंदर होती हैं उपलब्धियाँ । ■
1 comment:
मनुष्य जब ऊँचाइयों को छूता है तो विनम्रता और मानवीय भावनाएँ ही उसकी ऊँचाई को बनाए रखती हैं । उसे अमर बनाती हैं । अहंकारी व्यक्ति की ख्याति बहुत कम समय रहती है। प्रेरणादायक आलेख । हार्दिक बधाई आपको ।सुदर्शन रत्नाकर
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