उदंती.com, अक्टूबर 2008

अँधेरे जमाने में
हाँ
गाना बजाना भी होगा,
अँधेरे जमाने के बारे में ।
- ब्रेख्त
अनकही / तमसो माँ ज्योतिर्गमय -डॉ. रत्ना वर्मा
मुद्दा / बम ब्लास्ट : आतंकवादी हमले में घायल देश - विनोद कुमार मिश्रा
आस्था / व्रत उपवास : अपने आप से किया गया एक संकल्प - रंजना सिंह
टीवी / चैनल वार ...न्यूज चैनल को चाहिए सिर्फ सनसनी - विकल्प ब्यौहार
छत्तीसगढ़ / कबीर पंथ : झीनी- झीनी बीनी चदरिया - संजीत त्रिपाठी
लघुकथाएँः अंधेरा- उजाला -फज़ल इमाम मल्लिक कम्पन - राम पटवा
जरा सोचिए/ वक्त की कीमत
कविताः अब दीप नहीं जलाते - सूरज प्रकाश
सफरनामा / बस्तर : कारीगरों के बीच 20 साल - जमील रिज़वी
पर्यटन/ पहाड़ों का दिल : प्रकृति के साज पर धडक़ता शिमला - गुरमीत बेदी
लोक पर्व/ कला : हाथा दीवाली का लोक चित्र - संकलित
परिवार/ बुजूर्ग : जीवित पीतरों से बढ़ती दूरियां - डॉ. राकेश शुक्ल
सीख/ तीन बंदर : बुरा मत सुनो, बुरा मत.... - संकलित
पुरातन/ संग्रहालय : रायपुर संग्रहालय में बापू के तीन बंदर - जे. आर. भगत

आपके पत्र/ मेल बॉक्स :
क्या खूब कही/ हो जाईए खुश!
इस अंक के लेखक
रंग बीरंगी दुनिया
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3 Comments:
उदंती का सितंबर अंक पढ़ा। अनकही- तमसो मां ज्योतिर्गमय से पत्रिका की मूल विचारधारा से अवगत हुआ। सबसे बड़ी बात इस पत्रिका के संबंध में यह है कि एक साहित्यिक पत्रिका को इतना व्यापक स्वरूप रायपुर जैसे शहर से प्राप्त हुआ। अभी भी कई साहित्यिक पत्रिकाएं अस्तित्व इंटरनेट पर उपलब्ध हैं लेकिन उनमें ज्यादातर विदेशों में रहने वाले भारतीयों के भागीदारी की हैं। यह हिन्दी भाषा और साहित्य की निःस्वार्थ सेवा जिसके लिए हिन्दी साहित्य जगत सदैव ऋणी रहेगा। संपादक और समस्त टीम को शुभकामनाएं ।
उदंती का सितंबर अंक पढ़ा। अनकही- तमसो मां ज्योतिर्गमय से पत्रिका की मूल विचारधारा से अवगत हुआ। सबसे बड़ी बात इस पत्रिका के संबंध में यह है कि एक साहित्यिक पत्रिका को इतना व्यापक स्वरूप रायपुर जैसे शहर से प्राप्त हुआ। अभी भी कई साहित्यिक पत्रिकाएं अस्तित्व इंटरनेट पर उपलब्ध हैं लेकिन उनमें ज्यादातर विदेशों में रहने वाले भारतीयों के भागीदारी की हैं। यह हिन्दी भाषा और साहित्य की निःस्वार्थ सेवा जिसके लिए हिन्दी साहित्य जगत सदैव ऋणी रहेगा। संपादक और समस्त टीम को शुभकामनाएं ।
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