बुरा मत सुनो,
बुरा मत देखो,
बुरा मत कहो
गांधी जी ने भारत को आजादी तो दिलाई ही साथ ही हमारे लिए जीवन के कुछ सूत्र भी छोड़ गए यदि उनके बताए मार्ग पर मानव चलने लगे तो आज देश भर में जिस तरह हिंसा और अराजकता का माहौल है वह कभी भी न हो।
पिछले साल मैं बच्चों को रायपुर छत्तीसगढ़ में स्थित महंत घासीदास संग्रहालय दिखाने ले गई। पुरातात्विक धरोहरों का अवलोकन करते हुए एक जगह मेरी नजर अचानक रूक गई । मैंने देखा कि वहां पत्थर से बने बापू के तीन बंदर रखें हैं। उसे देख मैं सोचने लगी कि इन पुरातन धरोहरों के बीच बापू के ये तीन बंदर क्या कर रहे हैं। बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो और बुरा मत कहो का संदेश देते बापू के इन तीन बंदरों ने इनके बारे में और अधिक जानने के लिए मुझे आकर्षित कर लिया। यद्यपि ये आकृतियां अत्याधिक परिष्कृत नहीं है।
शोधकर्ताओं के अनुसार गांधी जी का प्रिय भजन वैष्णव जन तो तेने कहिए पीर पराई... गुजरात के नरसिंह मेहता द्वारा लिखे भजन पर आधारित है। एक गाल पर कोई चाटा मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो उन्होंने बाइबल से ली है जबकि अहिंसा परमो धर्म बौद्ध साहित्य से लिया गया है। इसी तरह अभी तक ऐसा माना जाता रहा है कि महात्मा गांधी के तीन बंदर उनका अपना मौलिक चिंतन है। परंतु गांधी जी के इन तीन बंदरों पर हो रहे शोध और अध्ययन कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। और हमें सोचने पर बाध्य करते हैं कि गांधी जी के ये तीन बंदर जो भारतीय जनता के लिए आज सूत्र वाक्य बन गए हैं क्या उपनिषद काल की देन हैं, जिसे बाद में गांधी जी ने भारतीय जनता में प्रचारित प्रसारित किया। क्योंकि रायपुर के महंत घासीदास संग्रहालय में रखी तीन बंदरों की मूर्तियों के बारे में संग्रहालय के अध्यक्ष ने जो जानकारी उपलब्ध कराई है, उसके अनुसार तो हमें अपनी भारतीय संस्कृति को खंगालना होगा।
एक ओर जहां ये मूर्तियां 16 वीं 17वीं शताब्दी की बताई जा रहीं हैं वहीं जब इंटरनेट में इन तीन बंदरों का इतिहास जानने का प्रयास किया गया तो वहां इन बंदरों के बारे में एक और नई जानकारी मिली - जिसमें तीन बंदरों के बारे में कुछ इस तरह बताया गया है - गांधी जी के पास देश- विदेश से लोग अक्सर सलाह लेने के लिए आया करते थे। एक दिन चीन का एक प्रतिनिधिमंडल उनसे मिलने आया। विदेशों से आए लोग गांधी जी को यादगार के लिए अपने देश की कोई न कोई यादगार वस्तु भेंट में देने के लिए लाया करते थे। बातचीत के बाद चीन के इन सदस्यों ने भी गांधी जी को एक भेंट देते हुए कहा कि यह एक बच्चे के खिलौने से बड़ा तो नहीं है लेकिन यह हमारे देश में बहुत ही प्रसिद्ध है।
गांधी जी ने जब इस भेंट को देखा तो उन्होंने पाया कि वह तीन बंदरों का एक सेट है। वे उसे पाकर बहुत खुश हुए, उन्होंने उसे अपने पास रख लिया और जिंदगी भर संभाल कर रखा। इस तरह ये तीन बंदर उनके नाम के साथ हमेशा के लिए जुड़ गए।
इसे पढऩे के बाद यह सोचने पर बाध्य होना पड़ता है कि आखिर ये तीन बंदर बापू के पास आए तो आए कहां से? अगर आपको भी है इसके बारे में कोई नई जानकारी तो आईए उसे सबको बताएं ।
(संकलित- उदंती.com)
गांधी जी के पास कैसे आए ये तीन बंदर
चीन के एक प्रतिनिधिमंडल से मिले तीन बंदरों के सेट को पाकर बापू बहुत खुश हुए, उन्होंने उसे अपने पास बहुत संभाल कर रख लिया।
इन तीन बंदरों के बारे में आपको भी हो कोई नई जानकारी तो हमें जरूर लिखें।
बुरा मत देखो,
बुरा मत कहो
गांधी जी ने भारत को आजादी तो दिलाई ही साथ ही हमारे लिए जीवन के कुछ सूत्र भी छोड़ गए यदि उनके बताए मार्ग पर मानव चलने लगे तो आज देश भर में जिस तरह हिंसा और अराजकता का माहौल है वह कभी भी न हो।
पिछले साल मैं बच्चों को रायपुर छत्तीसगढ़ में स्थित महंत घासीदास संग्रहालय दिखाने ले गई। पुरातात्विक धरोहरों का अवलोकन करते हुए एक जगह मेरी नजर अचानक रूक गई । मैंने देखा कि वहां पत्थर से बने बापू के तीन बंदर रखें हैं। उसे देख मैं सोचने लगी कि इन पुरातन धरोहरों के बीच बापू के ये तीन बंदर क्या कर रहे हैं। बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो और बुरा मत कहो का संदेश देते बापू के इन तीन बंदरों ने इनके बारे में और अधिक जानने के लिए मुझे आकर्षित कर लिया। यद्यपि ये आकृतियां अत्याधिक परिष्कृत नहीं है।
शोधकर्ताओं के अनुसार गांधी जी का प्रिय भजन वैष्णव जन तो तेने कहिए पीर पराई... गुजरात के नरसिंह मेहता द्वारा लिखे भजन पर आधारित है। एक गाल पर कोई चाटा मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो उन्होंने बाइबल से ली है जबकि अहिंसा परमो धर्म बौद्ध साहित्य से लिया गया है। इसी तरह अभी तक ऐसा माना जाता रहा है कि महात्मा गांधी के तीन बंदर उनका अपना मौलिक चिंतन है। परंतु गांधी जी के इन तीन बंदरों पर हो रहे शोध और अध्ययन कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। और हमें सोचने पर बाध्य करते हैं कि गांधी जी के ये तीन बंदर जो भारतीय जनता के लिए आज सूत्र वाक्य बन गए हैं क्या उपनिषद काल की देन हैं, जिसे बाद में गांधी जी ने भारतीय जनता में प्रचारित प्रसारित किया। क्योंकि रायपुर के महंत घासीदास संग्रहालय में रखी तीन बंदरों की मूर्तियों के बारे में संग्रहालय के अध्यक्ष ने जो जानकारी उपलब्ध कराई है, उसके अनुसार तो हमें अपनी भारतीय संस्कृति को खंगालना होगा।
एक ओर जहां ये मूर्तियां 16 वीं 17वीं शताब्दी की बताई जा रहीं हैं वहीं जब इंटरनेट में इन तीन बंदरों का इतिहास जानने का प्रयास किया गया तो वहां इन बंदरों के बारे में एक और नई जानकारी मिली - जिसमें तीन बंदरों के बारे में कुछ इस तरह बताया गया है - गांधी जी के पास देश- विदेश से लोग अक्सर सलाह लेने के लिए आया करते थे। एक दिन चीन का एक प्रतिनिधिमंडल उनसे मिलने आया। विदेशों से आए लोग गांधी जी को यादगार के लिए अपने देश की कोई न कोई यादगार वस्तु भेंट में देने के लिए लाया करते थे। बातचीत के बाद चीन के इन सदस्यों ने भी गांधी जी को एक भेंट देते हुए कहा कि यह एक बच्चे के खिलौने से बड़ा तो नहीं है लेकिन यह हमारे देश में बहुत ही प्रसिद्ध है।
गांधी जी ने जब इस भेंट को देखा तो उन्होंने पाया कि वह तीन बंदरों का एक सेट है। वे उसे पाकर बहुत खुश हुए, उन्होंने उसे अपने पास रख लिया और जिंदगी भर संभाल कर रखा। इस तरह ये तीन बंदर उनके नाम के साथ हमेशा के लिए जुड़ गए।
इसे पढऩे के बाद यह सोचने पर बाध्य होना पड़ता है कि आखिर ये तीन बंदर बापू के पास आए तो आए कहां से? अगर आपको भी है इसके बारे में कोई नई जानकारी तो आईए उसे सबको बताएं ।
(संकलित- उदंती.com)
गांधी जी के पास कैसे आए ये तीन बंदर
चीन के एक प्रतिनिधिमंडल से मिले तीन बंदरों के सेट को पाकर बापू बहुत खुश हुए, उन्होंने उसे अपने पास बहुत संभाल कर रख लिया।
इन तीन बंदरों के बारे में आपको भी हो कोई नई जानकारी तो हमें जरूर लिखें।
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