जीवन में हर एक का धरती पर आगमन होता है , ईश्वर प्रदत्त गुणों और मूल्यों सहित। आदमी से अपेक्षा रहती है कि वह अपने आगमन को सार्थक कर योगदान देते हुए विदा हो। किन्तु सोचिए भौतिक सुख के मायाजाल की खोज में उलझे हममें से कितने विवेक का सही उपयोग कर पाते हैं। सत्यनिष्ठा और ईमानदारी का मार्ग कठिन है पर अंततः जीवन में वही सफलता का सोपान बनता है।
- मृत्यु के समय व्यक्ति टॉम स्मिथ ने अपने बच्चों को बुलाया और अपने पद- चिह्नों पर चलने की सलाह दी , ताकि उनको अपने कार्य में मानसिक शांति मिले।
- उसकी बेटी सारा ने कहा : डैडी, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आप एक पैसा भी छोड़े बिना मर रहे हैं। जिनको आप भ्रष्ट बताते हैं वे अपने बच्चों के लिए सम्पत्ति छोड़कर जाते हैं। हमारा तो घर भी किराये का है। आप जाइए। हमें अपना मार्ग स्वयं बनाने दीजिए।
- कुछ क्षण बाद उनके पिता ने अपने प्राण त्याग दिए।
- तीन साल बाद सारा एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में इंटरव्यू देने गई। कमेटी चेयरमैन ने पूछा : तुम कौन सी स्मिथ हो?
- सारा ने उत्तर दिया : मैं सारा स्मिथ हूँ। मेरे पिता टॉम स्मिथ अब नहीं रहे।
- चेयरमैन ने उसकी बात काट दी : हे भगवान, तुम टॉम स्मिथ की पुत्री हो।
- टॉम स्मिथ के बारे पूछने पर वे कमेटी सदस्यों से बोले : वे स्मिथ थे, जिन्होंने मेरे सदस्यता फ़ार्म पर हस्ताक्षर किए और उनकी अनुशंसा से ही मैं वह स्थान पा सका , जहाँ आज हूँ। उन्होंने यह स्वार्थरहित होकर किया था। हम दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे। फिर भी यह किया था।
- फिर वे सारा की ओर मुड़े : तुम स्वयं को इस पद पर चुना हुआ मान लो। तुम्हारा नियुक्ति पत्र तैयार है।
- सारा स्मिथ कम्पनी में कॉरपोरेट मामलों की प्रबंधक बन गई। दो साल बाद कम्पनी चेयरमेन की इच्छा किसी योग्य को अपना पद देने की हुई। उन्हें ऐसा व्यक्ति चाहिए , जो सत्यनिष्ठ और ईमानदार हो। सलाहकार ने उस पद के लिए सारा स्मिथ को नामित किया।
- एक इंटरव्यू में जब सारा से उसकी सफलता का राज पूछा गया , तो उसने मार्मिक उत्तर दिया : मेरे पिता ने मेरे लिए मार्ग खोला था। उनकी मृत्यु के बाद ही मुझे पता चला कि वे भले ही निर्धन थे, लेकिन सत्यनिष्ठा में वे बहुत धनी थे।
- फिर उससे पूछा गया कि वह रो क्यों रही है। उसने उत्तर दिया : मृत्यु के समय मैंने ईमानदार होने के कारण पिता का अपमान किया। मुझे आशा है वे जहाँ भी हैं , मुझे क्षमा कर देंगे। मैंने कुछ नहीं किया। उन्होंने ही मेरे लिए यह सब किया था।
- अन्त में उससे पूछा गया : क्या तुम अपने पिता के पद- चिह्नों पर चलोगी।
- उसका उत्तर था : मैं अब अपने पिता की पूजा करती हूँ। मेरे लिए भगवान के बाद उनका ही स्थान है।
- निष्कर्ष : मित्रों आप भी चिंतन करें कि क्या आप टॉम स्मिथ की तरह हैं। ईमानदारी, आत्मनियंत्रण और पापों से डरना ही किसी व्यक्ति को धनी बनाते हैं, मोटा बैंक खाता नहीं। सो अपने बच्चों के लिए संस्कार रूपी एक अच्छी विरासत छोड़कर जाइए
22 comments:
आदरणीय सर, बेहद भावुक और दिल की छू लेने वाली कहानी है घटना है। पढ़ते हुए आँखें नम हो गईं। आज की भागदौड़ में और एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हमने जीवन का सही रास्ता सच में कहीं खो दिया है। ऐसी प्रेरक घटनाएं पढ़ कर जीवन का असली मजा और असली राष्ट्पत चलता है। बहुत बहुत धन्यवाद सर ।
सत्य और ईमानदारी की राह पर चलना आसान भले ही ना हो लेकिन लोग ऐसे लोगों का बहुत आदर आज भी करते हैl प्रेरणादायक उद्धरणl
सत्य और ईमानदारी की राह पर चलना अवश्य ही मुश्किल है, लेकिन ऐसे लोगों का सम्मान आज भी लोग बहुत करते हैंl बहुत ही उत्तम उद्धरण!
प्रेरणास्पद लेख, धन्यवाद
सर जी जीवन की इस यात्रा मे सच्चाई मे बहुत बड़ी ताकत है सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं हो सकता
बहुत ही ज्ञान बर्धक संस्मरण है 🙏🏻
आदरणीय सर, बेहद भावुक और दिल की छू लेने वाली कहानी है घटना है। पढ़ते हुए आँखें नम हो गईं। आज की भागदौड़ में और एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हमने जीवन का सही रास्ता सच में कहीं खो दिया है। ऐसी प्रेरक घटनाएं पढ़ कर जीवन का असली मजा और असली रास्ते का पता चलता है। बहुत बहुत धन्यवाद सर ।
Very inspirational
Sir....motivational writeup,
ईमानदारी हो जीवन का गहना,
सत्य की राह न छोड़े ये सपना।
आत्मनियंत्रण हो जब मन का दीप,
हर संकट में मिले हमें जीत।
आपकी कलम के कमाल को सलाम।हमेशा इंतेज़ार रहता है आपके हृदय स्पर्शी लेख का सो सीधे दिल को छूते हैं।सत्य की राह पर चलना बहुत मुश्किल है पर खास बात ये है इस राह पे भीड़ बहुत कम रहती है तो मंज़िल तय करने में दिक्कत नहीं आती।क्या लेकर तू आया बंदे,क्या लेकर तू जाएगा।सोच समझ ले re मन मूर्ख।अंत काल पछताएगा।
पिताश्री अप्रतिम व सरल शब्दों में लिखा गया लेख। मेरे पिताश्री तो है ही प्रेरणास्रोत। पिताश्री को सादर प्रणाम व चरण स्पर्श
प्रिय राजीव भाई
यह आपका भावुक मन ही है जो पिघल गया इतने छोटे से उद्धरण पर। इस दौर में आप जिसे दोस्त विरले से मिलते हैं। मेरा सौभाग्य। हार्दिक बधाई। सादर
आदरणीय
बात तो सही है पर अब ऐसे व्यक्तित्व विरले होते जा रहे हैं। यही त्रासदी है। हार्दिक आभार सहित सादर
हार्दिक धन्यवाद प्रिय मित्र मनीष
प्रिय बंधु राजेश
सत्य ही सार्थक है लंबे अरसे में। झूठ अधिक समय नहीं चल पाता। हार्दिक धन्यवाद सहित सस्नेह
Thanks very much Dear Dr. Surinder. Regards
प्रिय जयेश
हार्दिक आभार। सस्नेह
प्रिय अनिल भाई
कमाल तो आपका है इस वाट्सएपि दौर में भी पढ़ पाने का साहस रख पाने का। मनोबल।बढ़ाने का। हार्दिक आभार सहित सादर
प्रिय हेमंत
हमेशा की तरह त्वरित प्रतिक्रिया प्रदान कर लेखन को सार्थक कर पाने का। हार्दिक आभार सहित सस्नेह
प्रिय हेमंत
हमेशा की तरह त्वरित प्रतिक्रिया प्रदान कर लेखन को सार्थक कर पाने का। हार्दिक आभार सहित सस्नेह
आदरणीय सर,
बहुत ही प्रेरणादायक एवं अनुकरणीय लेख । कबीरदास जी द्वारा कहा भी गया है कि
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जिस हिरदे में साँच है, ता हिरदै हरि आप।।
प्रिय बंधु शरद
बहुत गुणी हो इसीलिये सदा साझा करता हूं और प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा भी। झूठ का सफ़र कदम दो कदम। सच का सफ़र उम्र भर। हार्दिक आभार सहित सस्नेह
आदरणीय प्रेरणादायक लेखन है आपका। आपको बारंबार साधुवाद 🙏
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