इतिहास के कुछ अनछुए पहलू
भारत भक्त एक अंग्रेज महिला- फैनी पार्कस
(Fanny Parkes)
-प्रताप सिंह राठौर
भारतीय इतिहास के बारे में अनेक विदेशी यात्रियों ने बहुत कुछ लिखा है, उन्हीं में से एक अंगे्रज लेखिका फैनी पाक्र्स ने भी भारत में रहते हुए अपने अनुभवों के माध्यम से भारतीय इतिहास के कुछ अनछुए पहलुओं को उजागर किया है।
अतीत में झांकना सदैव ही है एक लोमहर्षक अनुभव होता है। यही कारण है कि लोग नालंदा, अजंता, एलोरा, चितौडग़ढ़ इत्यादि की ओर आकर्षित होते हैं। संग्रहालयों में रखे प्राचीन अस्त्र-शस्त्र, वस्त्र, चित्र और बर्तन भी इसी कारण हमें आकर्षित करते हैं। प्राचीन काल के इन अवशेषों को देखकर हम अपनी कल्पना से उस काल के जीवन की अपने मन में संरचना करते हैं। लेकिन कहीं न कहीं इस सबको देखकर हमारे मन में अभिलाषा बनी रहती है कि यदि उस समय के जीवन का आंखों देखा हाल पढऩे को मिल जाता तो कितना अच्छा होता।
यही कारण है यात्रा विवरणों की पुस्तकें इतनी लोकप्रिय होती हैं और प्रामाणिक ऐतिहासिक दस्तावेजों के रूप में सम्मानित भी। फाहियान, हुयेत्सांग, मार्कोपोलो, इब्नबतूता और बर्नियर के यात्रा संस्मरण, शताब्दियों पहले के हमारे समाज की दुर्लभ झांकिया प्रस्तुत करते हैं।
अंग्रेजों के भारत में आने के बाद से ऐसी पुस्तकों में अच्छी खासी वृद्धि हुई जिसका मुख्य कारण था कि उस समय पुस्तक छपाई की मशीनों का आविष्कार हो चुका था। भारत में अंग्रेजी राज के समय में बड़ी संख्या में अंग्रेज स्त्री-पुरूष ने भारत में अपने जीवन के संस्मरण लिखे और छपवाये। ऐसे अधिकांश संस्मरण अंग्रेज सिविलियन और फौजी अफसरों द्वारा लिखे भी गये हैं। अत: उनमें अपनी निजी और अंग्रेज नस्ल की श्रेष्ठता जतलाने पर जोर दिया गया है। इसके विपरीत अंग्रेज स्त्रियों के संस्मरण कम संख्या में है परंतु वे भारतीय समाज के काफी विश्वसनीय चित्र प्रस्तुत करते हैं। अंग्रेज स्त्रियां अधिकांशत: पत्नियों के रूप में भारत में आती थीं। उनके सरोकार घर- बार से जुड़े रहते थे। अत: उनका दृष्टिïकोण काफी कुछ शासकीय अहंकार से मुक्त रहता था।
ऐसी ही एक अंग्रेज महिला थी फैनी पाक्र्स (Fanny Parkes) जो एक अंग्रेज अधिकारी की पत्नी के रूप में भारत में 1822 में आई। फैनी एक अत्यंत साहसी और विलक्षण महिला थी। भारत के लिए प्रस्थान करते समय फैनी की मां ने फैनी से प्रण करवाया कि वह भारत में अपने अनुभवों को विस्तार से लिखकर उन्हें भेजती रहेगी। फैनी ने अपनी मां को दिया वादा पूरी निष्ठा से निभाया और अपने अनुभवों को प्रतिदिन डायरी के रूप में लिखा। फैनी पाक्र्स ने भारत में अपने 24 वर्षों के प्रवास की डायरी को 1850 में लंदन में Wanderings of a pilgrim in search of the Picturesque (मनमोहक छबियों की तलाश में एक तीर्थयात्री की यायावरी) शीर्षक से आठ सौ से अधिक पृष्ठों की पुस्तक के रुप में प्रकाशित किया।
फैनी के प्रथम चार वर्ष कलकत्ता में बीते। भारत में पहुंचते ही इस देश ने फैनी का मनमोह लिया। फैनी लिखती है 'भारत एक बहुत आनंददायी देश है। ऐसे मनमोहक देश की सभ्यता, संस्कृति और प्राकृतिक सुषमा को निजी अनुभव से जानने और समझने का फैनी ने प्रण किया। याद रखना होगा कि 1822 में भारत में यातायात के साधन घोड़ा, पालकी, बग्घी और नाव थे। इनमें सबसे तीव्र और विश्वस्त साधन घोड़ा था। अतएव कलकत्ता में पहुंचते ही फैनी ने एक घोड़ा खरीदा और सुबह शाम घुड़सवारी करने लगी और निपुण घुड़सवार बन गई।
चार वर्ष बाद 1826 में फैनी के पति का तबादला कलकत्ता से इलाहाबाद हो गया। इससे फैनी को तो मन मांगी मुराद ही मिल गई। इलाहाबाद को फैनी इसके लोकप्रिय प्राचीन नाम प्रयाग से संबोधित करती हुई कहती है 'हमें बहुत प्रसन्नता हुई कि हमारा सौभाग्य हमें प्रयाग ले आया था।Ó
अपने भारतीय प्रवास को एक तीर्थयात्रा मानने वाली फैनी को इलाहाबाद के स्थान पर प्रयाग नाम अधिक प्रिय लगना उचित ही था। प्रयाग पहुंचने के साथ ही फैनी ने हिंदी और उर्दू भाषाएं सीखी और आराम से मुहावरेदार भाषा में बातचीत करने लगी। इस प्रकार हिंदी, उर्दू बोलने समझने में अभ्यस्त होकर फैनी उत्तर भारत की तीर्थयात्रा पर निकल पड़ी।
कानपुर में दिवाली की जगमगाहट देखकर फैनी मंत्रमुग्ध हो गई। फैनी ने लिखा 'दिवाली का असली आनंद पाने के लिए आपको रात के अंधेरे में गंगाजी पर नाव से (मंदिरों, घाटों की छटा के) दर्शन करना चाहिए। मुझे बहुत आनंद आया, ऐसा परी लोक जैसा भव्य दृश्य मैंने भारत आने के बाद आज से पहले कभी नहीं देखा था। न ही मैंने यह सोचा था कि वैसे नीरस दिखता कानपुर इतना सुंदर भी हो सकता है।
फैनी तत्कालीन मुगल बादशाह अकबर शाह के दिल्ली के लाल किले स्थित हरम के अंदर जाने में भी सफल हुई । वह बताती है कि गद्दी नशीन बादशाह से पहले के बादशाहों की बेगमें तथा शहजादे, शहजादियां बेहद गरीबी और गंदगी के वातावरण में दिन काट रहे थे। फैनी ने बादशाह और नवाब के हरमों से पर्दा उठाकर एक पुरानी कहावत दूर के ढोल सुहावने होते हैं की सच्चाई को साबित किया है। दिलचस्प बात यह है कि फैनी ने अपनी पुस्तक में हिंदी मुहावरों का काफी प्रयोग किया है।
अंग्रेज अधिकारियों द्वारा भारत के बेजोड़ ऐतिहासिक स्मारकों के दुरूपयोग से भी फैनी बहुत क्षुब्ध हुई। आगरा के किले में संगमरमर में बेजोड़ पच्चीकारी से युक्त नूरजहां बुर्ज के साथ अंग्रेजों की बदतमीजी देखकर फैनी कहती है 'कुछ बेहद पतित अंग्रेज अफसरों (भगवान करें वे नरक में जाये) ने इस खूबसूरत कोठे (नूरजहां बुर्ज) को किचन बना दिया। इसलिए छत और बाकी सब रंग-बिरंगे पत्थरों से जड़ा संगमरमर कालिख की परतों में ढंककर विकृत हो गया।
पता: बी. 403, सुमधुर II, अपार्टमेंट्स, अहमदाबाद-380015, , mo. 9428813277
भारत भक्त एक अंग्रेज महिला- फैनी पार्कस
(Fanny Parkes)
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भारतीय इतिहास के बारे में अनेक विदेशी यात्रियों ने बहुत कुछ लिखा है, उन्हीं में से एक अंगे्रज लेखिका फैनी पाक्र्स ने भी भारत में रहते हुए अपने अनुभवों के माध्यम से भारतीय इतिहास के कुछ अनछुए पहलुओं को उजागर किया है।
यही कारण है यात्रा विवरणों की पुस्तकें इतनी लोकप्रिय होती हैं और प्रामाणिक ऐतिहासिक दस्तावेजों के रूप में सम्मानित भी। फाहियान, हुयेत्सांग, मार्कोपोलो, इब्नबतूता और बर्नियर के यात्रा संस्मरण, शताब्दियों पहले के हमारे समाज की दुर्लभ झांकिया प्रस्तुत करते हैं।
अंग्रेजों के भारत में आने के बाद से ऐसी पुस्तकों में अच्छी खासी वृद्धि हुई जिसका मुख्य कारण था कि उस समय पुस्तक छपाई की मशीनों का आविष्कार हो चुका था। भारत में अंग्रेजी राज के समय में बड़ी संख्या में अंग्रेज स्त्री-पुरूष ने भारत में अपने जीवन के संस्मरण लिखे और छपवाये। ऐसे अधिकांश संस्मरण अंग्रेज सिविलियन और फौजी अफसरों द्वारा लिखे भी गये हैं। अत: उनमें अपनी निजी और अंग्रेज नस्ल की श्रेष्ठता जतलाने पर जोर दिया गया है। इसके विपरीत अंग्रेज स्त्रियों के संस्मरण कम संख्या में है परंतु वे भारतीय समाज के काफी विश्वसनीय चित्र प्रस्तुत करते हैं। अंग्रेज स्त्रियां अधिकांशत: पत्नियों के रूप में भारत में आती थीं। उनके सरोकार घर- बार से जुड़े रहते थे। अत: उनका दृष्टिïकोण काफी कुछ शासकीय अहंकार से मुक्त रहता था।
ऐसी ही एक अंग्रेज महिला थी फैनी पाक्र्स (Fanny Parkes) जो एक अंग्रेज अधिकारी की पत्नी के रूप में भारत में 1822 में आई। फैनी एक अत्यंत साहसी और विलक्षण महिला थी। भारत के लिए प्रस्थान करते समय फैनी की मां ने फैनी से प्रण करवाया कि वह भारत में अपने अनुभवों को विस्तार से लिखकर उन्हें भेजती रहेगी। फैनी ने अपनी मां को दिया वादा पूरी निष्ठा से निभाया और अपने अनुभवों को प्रतिदिन डायरी के रूप में लिखा। फैनी पाक्र्स ने भारत में अपने 24 वर्षों के प्रवास की डायरी को 1850 में लंदन में Wanderings of a pilgrim in search of the Picturesque (मनमोहक छबियों की तलाश में एक तीर्थयात्री की यायावरी) शीर्षक से आठ सौ से अधिक पृष्ठों की पुस्तक के रुप में प्रकाशित किया।
फैनी के प्रथम चार वर्ष कलकत्ता में बीते। भारत में पहुंचते ही इस देश ने फैनी का मनमोह लिया। फैनी लिखती है 'भारत एक बहुत आनंददायी देश है। ऐसे मनमोहक देश की सभ्यता, संस्कृति और प्राकृतिक सुषमा को निजी अनुभव से जानने और समझने का फैनी ने प्रण किया। याद रखना होगा कि 1822 में भारत में यातायात के साधन घोड़ा, पालकी, बग्घी और नाव थे। इनमें सबसे तीव्र और विश्वस्त साधन घोड़ा था। अतएव कलकत्ता में पहुंचते ही फैनी ने एक घोड़ा खरीदा और सुबह शाम घुड़सवारी करने लगी और निपुण घुड़सवार बन गई।
चार वर्ष बाद 1826 में फैनी के पति का तबादला कलकत्ता से इलाहाबाद हो गया। इससे फैनी को तो मन मांगी मुराद ही मिल गई। इलाहाबाद को फैनी इसके लोकप्रिय प्राचीन नाम प्रयाग से संबोधित करती हुई कहती है 'हमें बहुत प्रसन्नता हुई कि हमारा सौभाग्य हमें प्रयाग ले आया था।Ó
अपने भारतीय प्रवास को एक तीर्थयात्रा मानने वाली फैनी को इलाहाबाद के स्थान पर प्रयाग नाम अधिक प्रिय लगना उचित ही था। प्रयाग पहुंचने के साथ ही फैनी ने हिंदी और उर्दू भाषाएं सीखी और आराम से मुहावरेदार भाषा में बातचीत करने लगी। इस प्रकार हिंदी, उर्दू बोलने समझने में अभ्यस्त होकर फैनी उत्तर भारत की तीर्थयात्रा पर निकल पड़ी।
कानपुर में दिवाली की जगमगाहट देखकर फैनी मंत्रमुग्ध हो गई। फैनी ने लिखा 'दिवाली का असली आनंद पाने के लिए आपको रात के अंधेरे में गंगाजी पर नाव से (मंदिरों, घाटों की छटा के) दर्शन करना चाहिए। मुझे बहुत आनंद आया, ऐसा परी लोक जैसा भव्य दृश्य मैंने भारत आने के बाद आज से पहले कभी नहीं देखा था। न ही मैंने यह सोचा था कि वैसे नीरस दिखता कानपुर इतना सुंदर भी हो सकता है।
फैनी लखनऊ पहुंची और उन्हें वहां नवाब गाजिउद्दीन हैदर के हरम में भी झांकने का मौका लगा। फैनी बताती है कि हरम में पांच विवाहिता बेगमें है। पहली है दिल्ली के बादशाह अकबर शाह की भतीजी। इस 16 वर्षीय बेहद खूबसूरत बेगम से नवाब का विवाह पांच वर्ष पहले हुआ था। परंतु शुरू से ही नवाब ने उसकी उपेक्षा की है। किसी को उससे मिलने की इजाजत नहीं है और वह बेबसी में कैदी जैसा जीवन बिता रही है। दूसरी बेगम का खिताब है मलिका जमानी। पहले ये हाथी का चारा काटने वाले मुलाजिम रमजानी की बीवी थी। रमजानी घसियारे के घर से जल्दी ही ऊब गई और एक हज्जाम से इश्क लड़ा बैठी। उस इश्क की आंच ठंडी पड़ी तो मिर्जा जावेद अली बेग के घर में आठ आने महीने की तनख्वाह पर नौकरानी हो गई। वहां भी उसका मन न लगा तो वहां से भाग कर एक सराय में पिसनहारी हो गई। सराय में नित नये आशिक मिलते रहते थे। यहां उसने पहले एक लडक़े को जन्म दिया। इस लडक़े का नाम तिलुआ पड़ा। फिर उसने एक लडक़ी को जन्म दिया और इसी के बाद उसे नवाब के महल में एक नवजात बच्ची को दूध पिलाने (धाय मां) की नौकरी मिल गई। इस समय तक उसकी उम्र चालीस वर्ष की हो चुकी थी, उसका रंग काला था पर इसके बावजूद इस औरत ने नवाब पर ऐसा जादू डाला कि उन्होंने उसे बेगम बना लिया और मलिकाए जमानी का खिताब दे दिया।
नवाब की पांचवी सबसे पसंदीदा बेगम का जीवन चरित्र भी काफी दिलचस्प है। नवाब के वजीर हकीम मेंहदी को लगा कि नवाब साहब उनके प्रति बेरूखी दिखा रहे हैं। हकीम मेंहदी ने सोचा कि नवाब साहब को खुश करने के लिए कुछ करना चाहिए उन दिनों नवाब साहब की निगाह दरबार में नाचने वाली एक तवायफ पर थी। हकीम मेंहदी ने उस तवायफ को गोद लेकर अपनी बेटी बना लिया और नवाब साहब से उसका ब्याह करा दिया। तो यही है नवाब साहब की पसंदीदा पांचवीं सबसे नयी बेगम।
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फैनी एक जीवट महिला थीं। उसमें आत्मबल कूट - कूट कर भरा था, उसने पूर्णतया निडर होकर लंबी-लंबी यात्रायें अकेले घोड़े से की। उसने यमुना पर नाव से इलाहाबाद से आगरा और दिल्ली की यात्रा की। इस यात्रा में आठ दस मल्लाहों और नौकरों के बीच वह अकेली महिला थी। फैनी भारत में 24 वर्ष रही और उसने अधिकांश यात्राएं इसी प्रकार अकेले ही की। फैनी को भारत की हर चीज, पेड़-पौधे, पशु पक्षी, नदी पहाड़, वस्त्र, गहने, स्थापत्य सभी कुछ से प्यार था। उसने अपनी यात्राओं में इन सब चीजों के नमूने इक_ïे किये।
एक मेले में भारतीय स्त्री-पुरुषों के रंग-बिरंगे वस्त्रों की तारीफ करती हुई फैनी कहती है कि इनकी तुलना में अंग्रेज स्त्री-पुरुषों के वस्त्र बेहद भद्दे और कुरूचिपूर्ण हैं।
ताजमहल को देखकर फैनी मंत्रमुग्ध हो गई और तारीफ में एक पूरा अध्याय ही लिख डाला। अंत में ताजमहल के साथ अंग्रेजों के बेहूदे आचरण पर फैनी तीखे शब्दों में अपनी वेदना प्रगट करते हुए लिखती है 'क्या आप इससे भी अधिक घृणित बात सोच सकते हैं? अंग्रेज स्त्री-पुरुष (ताजमहल के) संगमरमर के चबूतरे पर बैंड बजवा कर इस मकबरे के सामने नाचते गाते हैं।
अंगे्रज स्त्री-पुरुषों की वेशभूषा तथा आचार व्यवहार की तुलना फैनी भारतीय स्त्री-पुरुषों की वेशभूषा और आचार व्यवहार से बार-बार करती है। अंग्रेज स्त्रियों की कलफ लगी ड्रेस और विचित्र प्रकार के हैटों को वे बदरंग और भद्दे बताती है। माथे पर बिंदी लगाये और साड़ी पहने भारतीय स्त्रियां फैनी को बेहद खूबसूरत लगती हैं। फैनी को भारतीय स्त्रियों के आभूषण भी बहुत ही उत्तम और आकर्षक लगते थे।
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स्पष्टï है कि फैनी को भारत की कला और संस्कृति के प्रति बहुत ही आदर एवं श्रद्धा थी। फैनी ने भारतीय इतिहास का भी गहन अध्ययन किया था। फैनी ने लिखा है, मुुसलमानों के आने के पहले हिन्दू स्त्रियां पर्दा नहीं करती थीं मुसलमान विजेताओं के प्रभाव में हिन्दू स्त्रियां, मुस्लिम स्त्रियों की तरह पर्दा करने को बाध्य हुईं। ज्यादा संभावना यह है कि बिना घूंघट के निकलने पर बेइज्जती होने के कारण हिन्दू स्त्रियां भी पर्दा करने लगीं।
फैनी की ग्वालियर की रानी बैजाबाई से भेंट हुई और वे रानी की घनिष्ठ मित्र बन गईं। अंग्रेज स्त्रियों की सामाजिक स्थिति की चर्चा होने पर फैनी ने बैजाबाई को बताया कि स्त्रियों और खरबूजे की किस्मत एक जैसी होती है। चाहे खरबूजा चाकू पर गिरे या चाकू खरबूजे पर हर हालत में यातना खरबूजे को हो मिलती है। इंग्लैंड के कानून के मुताबिक अंग्रेज पत्नी अपने पति की गुलाम होती है और इस स्थिति से मुक्ति मिलने की कोई उम्मीद नहीं है।
भारत में 24 वर्ष के प्रवास में एक बार मां की बीमारी की खबर पाकर फैनी को कुछ दिन के लिए इंग्लैंड जाना पड़ा। तब तक फैनी भारत में 17 वर्ष रह चुकी थी। इंग्लैंड की धरती पर पांव रखते ही फैनी अपने मन में आये विचार बताती है (जहाज से उतरते ही) सब कुछ कितना घटिया लगता है खासतौर पर मकान जो स्लेट पत्थर के बने हैं ... सर्दी और अंधेरा.... क्या ताज्जुब कि पहुंचते ही मुझे वितृष्णा हुई। भारत की तुलना में फैनी को इंग्लैंड हर तरह से बहुत तुच्छ लगा।
इस प्रकार फैनी ने अपने संस्मरणों में भारतीय समाज की संस्कृति, कला, रीति रिवाज, इतिहास और प्राकृतिक वैभव का इतना विस्तृत वर्णन किया है कि उनकी पुस्तक पढऩे से यह सिद्ध होता है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। फैनी की पुस्तक पढ़ते हुए पाठक को ऐसा महसूस होता है कि वह स्वयं ही तत्कालीन भारत में भ्रमण कर रहा है। उन्होंने अपनी पुस्तक को भारत के प्रति भक्ति और श्रद्धा के भाव से लिखा है और अपने भारतीय प्रवास को अपनी तीर्थयात्रा कहा है। फैनी ने अपने भक्तिभाव का प्रमाण अपनी पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर गणेश वंदना लिख कर किया है। वंदना के ऊपर संस्कृत में 'श्रीÓ लिखा, फिर गणेश वंदना अंग्रेजी में और अंत में दस्तखत उर्दू में कि या है। कुल मिला कर फैनी की पुस्तक बहुमूल्य और अत्यंत रोचक ऐतिहासिक दस्तावेज है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjftF9FT_8WYPLFgLPZ2UJcuzxgJupV_XOcQhB6ToU_J2yeelIEOviPBAmkdHlcMENuz8h3Vl6ao_HMaiF_noex3tgdtnTEfLtiRX6gU2IcJ0NaMF1ZnKALimSq6UTNS4TiA6n8eVzcVqNO/s200/dastaveg.jpg)
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