उड़ीसा के चंद्रभागा तट से टकराती समुद्र की उत्कट लहरें। कतार में लगे, हवा के साथ दौड़ लगाते नारियल के विशालकाय वृक्ष। इन वृक्षों के समानांतर चलती सीधी-सपाट सड़क, चिल्का झील तक पहुँचती है। चिल्का का विहंगम दृश्य मन को सम्मोहित कर गया। सैलानियों का जमावड़ा और जल- क्रीड़ा करते प्रवासी पक्षी। ईश्वर ने मानो किसी कुशल चितेरे- सा प्रकृति को अनंत तक कैद कर रखा हो। दूर तक फैला जल- क्षेत्र और क्षितिज से मानो होड़ करता, धुँधला- सा नजर आता एशिया का सबसे बड़ा लैगून।
लैगून देखने की उत्सुकता लगभग हर सैलानी को थी। हम भी इतनी दूर लैगून को पास से देखने की इच्छा लेकर ही आए थे। नीली, साफ, स्वच्छ चिल्का झील और समुद्र के पानी का खारापन आपस में मिल, जीवन का एक सुदंर संदेश दे रहे थे। मीठा और खारा भी आपसी सामंजस्य स्थापित कर एक- दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार कर, साथ साथ प्रवाहित हो रहे थे।
चिल्का की झील
प्रवासी पक्षियों को
देती आश्रय ■
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