कोरोना
संक्रमितों की सेवा में अब रोबोट
- जाहिद
खान
दुनिया की आबादी का
एक बड़ा हिस्सा फिलवक्त कोविड-19 से बुरी तरह से जूझ रहा है। डॉक्टर,
नर्स और तमाम स्वास्थ्य कर्मचारी कोरोना संक्रमित मरीज़ों के
इलाज और देखभाल में जी-जान से लगे हुए हैं। समूची मानवजाति के ऊपर आई इस संकट की
घड़ी में अब रोबोट भी इंसान के मददगार बन रहे हैं। उन्हें इस खतरनाक बीमारी से
उबरने में मदद कर रहे हैं।
राजस्थान में जयपुर
स्थित एसएमएस हॉस्पिटल में कोरोना संक्रमित मरीज़ों की सेवा के लिए तीन रोबोट की
ड्यूटी लगाई गई है। ये रोबोट कोरोना संक्रमित व्यक्तियों तक दवा,
पानी व दीगर ज़रूरी सामान ले जाने का काम करेंगे। रोबोट की
ड्यूटी यहाँ लगाए जाने से कोरोना पीड़ितों के आसपास मेडिकल स्टाफ का मूवमेंट कम हो
जाएगा। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि हॉस्पिटल में
इंसानों की वजह से कोविड-19 वायरस के प्रसार की जो संभावना रहती है,
वह काफी कम हो जाएगी। मरीज़ के संपर्क में न आ पाने से बाकी
लोगों में संक्रमण नहीं फैलेगा, वे सुरक्षित रहेंगे। ज़ाहिर है,
जब डॉक्टर, नर्स और तमाम स्वास्थ्य कर्मचारी सुरक्षित रहेंगे,
तो वे अपना काम और भी बेहतर तरीके से कर सकेंगे। देखा जाए
तो यह एक छोटी-सी शुरुआत ही है। देश भर के बाकी अस्पतालों में डॉक्टर और
स्वास्थ्यकर्मी अपने स्वास्थ्य और जान की ज़रा-सी भी परवाह किए बिना मुस्तैदी से
अपने फर्ज़ को अंजाम देने में लगे हुए हैं।
‘रोबोट सोना 2.5’
नामक ये रोबोट पूरी तरह भारतीय तकनीक और मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट के तहत जयपुर में
ही बनाए गए हैं। युवा रोबोटिक्स एक्सपर्ट भुवनेश मिश्रा ने इन्हें तैयार किया
है। सबसे बड़ी खासियत यह है कि ‘सोना 2.5’
रोबोट लाइन फॉलोअर नहीं हैं बल्कि ऑटो नेविगेशन रोबोट हैं। यानी इन्हें मूव कराने
के लिए किसी भी तरह की लाइन बनाने की ज़रूरत नहीं होती है। इंसानों की तरह ये रोबोट
सेंसर की मदद से खुद नेविगेट करते हुए अपना रास्ता बनाते हैं और लक्ष्य तक पहुँच
जाते हैं। इन्हें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, आईओटी और एसएलएएम तकनीक का शानदार इस्तेमाल करके तैयार किया
गया है।
सर्वर के कमांड
मिलने पर ये रोबोट सबसे पहले अपने लिए एक छोटे रास्ते का मैप क्रिएट करते हैं।
अच्छी बात यह है कि ये किसी भी फर्श या फ्लोर पर आसानी से मूव कर सकते हैं। इन्हें
वाई-फाई सर्वर के ज़रिए लैपटॉप या स्मार्ट फोन से भी ऑपरेट किया जा सकता है। ऑटो
नेविगेशन होने से इन्हें अंधेरे में भी मूव कराया जा सकता है।
एक खूबी और है कि
इनमें ऑटो डॉकिंग प्रोग्रामिंग की गई है, जिससे बैटरी डिस्चार्ज होने से पहले ही ये खुद चार्जिंग
पॉइंट पर जाकर ऑटो चार्ज हो जाएँगे। एक बार चार्ज होने पर ये सात घंटे तक काम कर
सकते हैं और इन्हें चार्ज होने में तीन घंटे का समय लगता है। यानी इन रोबोट में वे
सारी खूबियाँ हैं, जिनके दम पर ये अपना काम बिना रुके,
बदस्तूर करते रहेंगे। विज्ञान और वैज्ञानिकों का मानवजाति
के लिए यह वाकई एक चमत्कारिक उपहार है जिसे नमस्कार किया जाना चाहिए।
अकेले राजस्थान में
ही नहीं,
केरल में भी यह अभिनव प्रयोग शुरू किया जा रहा है। कोच्चि
की ऐसी ही स्टार्टअप कंपनी ने अस्पतालों के लिए एक खास रोबोट तैयार किया है जो
मेडिकल स्टाफ की मदद करेगा। तीन चक्कों वाला यह रोबोट खाना और दवाइयाँ पहुँचाने के
काम आएगा। यह पूरे अस्पताल में आसानी से घूम सकता है। इसे सात लोगों ने मिलकर महज
15 दिनों के अंदर तैयार किया है। इसी तरह की पहल नोएडा के फेलिक्स अस्पताल ने भी
की है।
डॉक्टरों एवं
मेडिकल स्टाफ को कोविड-19 जैसे घातक वायरस से बचाने के लिए रोबोट का इस्तेमाल
होगा। कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच दुनिया भर के अस्पताल काम के बोझ से दबे
हुए हैं। मरीज़ों का इलाज और देखभाल करते हुए डॉक्टरों को ज़रा-सी भी फुर्सत नहीं
मिल रही है। मरीज़ों की तादाद रोज़ बढ़ती जा रही है। ऐसे में ज़्यादा से ज़्यादा मेडिकल
स्टाफ की ज़रूरत है।
इसी तरह की
परेशानियों के मद्देनजर आयरलैंड के एक अस्पताल में भी रोबोट्स को काम पर लगाने का
फैसला किया गया है। डबलिन के मेटर मिजरिकॉरडी यूनिवर्सिटी अस्पताल में रोबोट्स
प्रशासनिक और कंप्यूटर का काम कर रहे हैं, जो आम तौर पर नर्सों के ज़िम्मे होता है। ये रोबोट कोविड-19
से जुड़े नतीजों का विश्लेषण भी कर रहे हैं। इन रोबोट को बनाने वाले एक्सपर्ट्स
अपने काम से अभी संतुष्ट नहीं हैं। वे कोशिश कर रहे हैं कि ये रोबोट डिसइन्फेक्शन
करने,
टेंपरेचर नापने और सैंपल कलेक्ट करने का काम भी कुशलता से
कर सकें।
मानव जैसी स्पाइन
टेक्नॉलॉजी वाले दुनिया के पहले रोबोट का सबसे पहले इस्तेमाल,
उत्तर प्रदेश के रायबरेली स्थित रेल कोच फैक्टरी में पिछले
साल 18 नवंबर को किया गया था। ‘सोना 1.5’ नामक इस स्वदेशी ह्यूमनॉयड रोबोट का
निर्माण भी रोबोटिक्स एक्सपर्ट भुवनेश मिश्रा ने किया है। इस रोबोट का इस्तेमाल
दस्तावेज़ों को एक स्थान से दूसरी जगह ला-ले जाने, विज़िटर्स का स्वागत करने, टेक्निकल डिस्कशन और ट्रेनिंग में हो रहा है।
दरअसल आर्टिफिशियल
इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स के विकास के साथ मानव-रोबोटों को ऐसे कार्यों के लिए तेज़ी
से इस्तेमाल किया जा रहा है, जिनमें बार-बार एक-सी क्रियाएँ करनी होती हैं। इस तरह के
कामों में वे पूरी तरह से कारगर साबित होते हैं। निकट भविष्य में इसरो अपने
महत्त्वाकांक्षी मिशन ‘गगनयान’ के लिए भी एक रोबोट ‘व्योम मित्र’ भेजेगा। देखना है
कि रोबोट कैसे हमसफर साबित होते हैं। (स्रोत फीचर्स)
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