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Jan 1, 2024

जीवन दर्शनः फोमो:खो जाने का भय

  - विजय जोशी,  पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)

जो प्राप्त है वही पर्याप्त है। 

इन शब्दों में सुख बेहिसाब है।।

        जीवन में किस बात का भय है। सब कुछ आवश्यकता से भी अधिक उपलब्ध है हमें । पर विवेकशील होते हुए भी हम जो उपलब्ध है उसका महत्त्व नहीं समझ पाते और जो नहीं है उस मृगतृष्णा के पीछे भागते रहते हैं और इस तरह जो है उसे भी खो देते हैं। यही कारण कि पास में सुख होकर भी उसकी अनुभूति से विस्मृत और अज्ञात की अनुपलब्धता के भय से ग्रसित।

        जरा सोचिये जीवन में डर किस बात का। भला क्या खोया है जो भाग्य में ही नहीं था। सांस लगातार आ जा रही है। उसे कौन छीन सकता है भला। इसीलिये तो जो पास में है उस पर ध्यान केंद्रित करो और आनंद लो। एक विचार :

-       JOY :  Joy is Love for available अर्थात प्रेम उससे जो उपलब्ध है  

-       SORROW : Sorrow is Love for what is not available दुख जो उपलब्ध नहीं उसके प्रति आसक्ति

         इसी संदर्भ में एक नवीनतम सूत्र की खोज की है एक स्वामीजी ने, जिसका नाम है FOMO : खो जाने का भय (Fear of missing out)। इसे कुछ  यूँ समझा जा सकता है :

            उदाहरण 1 : सोचिए एक कमरे में कई लोग हैं और वहाँ चाकलेट उछाली दी गई हैं। सब लोग अधिकांश पाने के चक्कर में उछलते हैं पर कुछ नहीं पाते। पर सोचिये केवल एक पर ध्यान केंद्रित किया होता तो अवश्य ही मिल जाती। इस तरह जो एक मिली उसका आनंद लो, न कि जो छूट गईं उसका अफसोस। जीवन में यही हो रहा है : ये छूटा, वो छूटा। भला सोचिये हमारा था ही क्या जो छूट गया।

         उदाहरण 2 : इस मामले में सर्वोत्तम उदाहरण तो बैंक के कैशियर का है। उसके पास हर दिन लाखों की राशि आती और जाती है, पर वह निरपेक्ष बना रहता है, क्योंकि उसे मालूम है कि  वह उसका स्वामी नहीं है। वह प्राप्त करने वाला भाव भी मन में उपजने नहीं देता,  क्योंकि उसे भली भांति मालूम है  कि वह उसका था ही नहीं।

         निष्कर्ष : अगर हमें इस बात का भान मात्र हो कि हम धरती पर किसी भी चीज के स्वामी नहीं हैं, तो उसे संग्रहित या पाने का भाव मन में रख क्यों दुखी होते रहें। रोयें नहीं बल्कि यह सोचें कि जो छूटा वो तो हमारा था ही नहीं।    

गोधन, गज धन, बाजि धन और रतन धन खान।

जब आवे सन्तोष धन, सब धन धूरि समान।।

सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023,
 मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com

38 comments:

Anonymous said...

बहुत सुन्दर और सच्ची बात लिखी आपने 👌❤️

Aparna Vishwanath said...

बिल्कुल सही। जमा करने की प्रवृत्ति ही सारी समस्याओं की जड़ है 🙏👌❤️

Hemant Borkar said...

पिताश्री अप्रतिम लेखन। साथ कुछ भी नहीं जाना सब यही रह जाना है (FOMO) खो जाने का भय उदाहरण के साथ अच्छा समझाया। पिताश्री को सादर प्रणाम व चरण स्पर्श 🙏🌹🙏
regards,
(हेमंत बोरकर ) इंदौर

Mahesh Manker said...

आदरणीय सर,
अति उत्तम रचना।
FOMO : खो जाने का भय, हर जगह व्यापत है।

Vandana Vohra said...

Very well explained, it's a matter of perception.....
Vandana Vohra

Mandwee Singh said...

सादर अभिवादन आदरणीय
बहुत सारगर्भित आलेख।वाकई जीवन इसी कशमकश में बीत जाता है।खोने के भय से भयभीत हम अपने पास प्राप्त अनमोल धन की कीमत समझ नहीं पाते।कभी कभी तो यह खोने का भय मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर देता है,और जीवन के आनंद से मनुष्य स्वयं को वंचित कर देता है।
यह आलेख अपने ज्ञान ज्योति से खोने के भय को दूर कर दिव्य ज्योति से प्रकाशित करेगा।
जय हो।

Anonymous said...

मोहन चौहान

Anonymous said...

सर आपने जीवन की सच्चाई के दर्शन अपने लेख के माध्यम से करवा दिए . आपको कोटिशः सादर naman

Anonymous said...

डॉ पी पी मिश्रा (वरिष्ठ चिकित्स)
बहुत ही सुन्दर और सच्ची बात को उदाहरण के साथ आदरणीय जोशी जी ने आम जनता तक पहुंचाने का
प्रयास किया है ! आज की जनरेशन को ऐसे लेख/ लेखन से सीख लेना चाहिए और अपने दैनिक जीवन में अमल करने की कोशिश करना चाहिए
बहुत ही सराहनीय कार्य है हम तहेदिल से आदरणीय जोशी जी का आदर और सम्मान करते है और आग्रह करते है की ऐसे ही लेख/ लेखन लिखते रहे और समाज को मार्ग दर्शन देते रहे
आप हमेशा सुखी रहे स्वस्थ रहे इसी आशा के साथ ....

Anonymous said...

सर आपने जीवन का कढवा सच अपने लेख के माध्यम से प्रस्तुत किया है इसी तरह से आप हम सभी को मार्गदर्शन देते रहे एवं सच्चाई से रुबरू कराते रहे आपका आशीर्वाद बना रहे ।🙏

Daisy C Bhalla said...

W’ful saying quoted at the end - if we are satisfied with what is with us- rest all is dust and can just be forgotton….. the immense beauty of life then emerges from within n that is kindness🙏🏼

Anonymous said...

सब जानते हैं फिर भी अनजाने से होते हैं.

Sharad Jaiswal said...

आदरणीय सर,

बिल्कुल सही बात समझाई गई है इस लेख द्वारा की जो प्राप्त है वही पर्याप्त है ।
सुखी रहने के लिए दो ही रास्ते है,
या तो जो प्राप्त है उसे ही पर्याप्त मान लिया जाए या फिर जो आपके लिए पर्याप्त है उसे प्राप्त करने का सच्चा प्रयास किया जाए, परंतु खुश हर हाल में रहा जाए ।

धन्यवाद

सुरेश कासलीवाल said...

आशा पास महा दुखदानी,
सुख पावे संतोषी प्रानी।
आपका लेख अपरिग्रह की सीख देता है ।उत्तम लेख के लिए साधुवाद।

Sorabh Khurana said...

अति उत्तम संदेश।

जो मेरे पास है, बस वही खास है।

राजेश दीक्षित said...

जीवन मे जो प्राप्त है उसे ही प्रसाद स्वरूप स्वीकार कर तत्सम भाव से जीना यदि आप गया तो सब धन धूल समान ही लगेगे। आप ने भलीभांति विस्तार से इस तथ्य को समझाया है जिसके लिए साधुवाद स्वीकारे। सादर

Dil se Dilo tak said...

संतोषम परम सुखम 🙏🏼🙏🏼
जो है उसके लिए ईश्वर का आभार 🙏🏼💐
बहुत अच्छी व्याख्या सर 💐🙏🏼

Dr.Archana Trivedi said...

ऐसे उत्तम विचार हमेशा आपसे मिलते रहे यही ईश्वर से प्रार्थना करती हुं. बड़े भाई सादर प्रणाम !

विजय जोशी said...

हार्दिक आभार

विजय जोशी said...

आदरणीया, हार्दिक आभार

विजय जोशी said...

Dear Vandana, Thanks very much.

विजय जोशी said...

प्रिय मोहन, हार्दिक आभार

विजय जोशी said...

Dear Daisy, Rightly analysed. Thanks very much

विजय जोशी said...

प्रिय शरद, सही कहा। खुशी की कुंजी तो अंतस में ही है। धन्यवाद

विजय जोशी said...

राजेश भाई, बिल्कुल सही। जब आवे संतोष धन सब धन धूरी समान। हार्दिक आभार

विजय जोशी said...

आभार प्रिय रजनीकांत।

विजय जोशी said...

प्रिय बहन अर्चना, स्नेह में ही होती है शक्ति। सो आभार

विजय जोशी said...

प्रिय सौरभ, हार्दिक धन्यवाद

विजय जोशी said...

आदरणीय, स्नेह के लिये हार्दिक आभार

विजय जोशी said...

प्रह्लाद भाई, इतनी व्यस्तता के बावजूद आप इतने मनोयोग से पढ़कर प्रतिक्रिया देते हैं, यह बात मन को अद्भुत सुख देती है। सो हार्दिक आभार सहित

विजय जोशी said...

शिक्षाविद प्रिय हेमंत, हार्दिक आभार

विजय जोशी said...

प्रिय महेश, हार्दिक आभार। सस्नेह

विजय जोशी said...

हार्दिक आभार मित्र

Anonymous said...

ऐ हमारा सौभाग्य है की हमे बहुत कुछ सीखने का मौका हमेशा आप देते रहते हैं
आप अदभुत विद्या के धनी है,और ज्ञान का भंडार है
हदय से आदर एवं आभार

विजय जोशी said...

प्रिय माण्डवी जी, आपका सोच तो सदैव से अद्भुत रहा है। मनोबल वृद्धि का आधार। सो हार्दिक आभार सहित सादर

सहज साहित्य said...

प्रेरक लेख 🌹🌷

विजय जोशी said...

आदरणीय,
हार्दिक आभार। आप तो खुद बहुत विद्वान हैं। व्यक्ति नहीं, अपितु एक संस्था। सादर

सहज साहित्य said...

🌹🌷🙏 आपकी विनम्रता को नमन!!