भगवान, इस संसार की उत्पत्ति की घटना किस प्रकार घटी? पृथ्वी पर पहले पुरुष आया कि पहले स्त्री? कृपया हम अज्ञानियों को विस्तारपूर्वक समझाइए!
एच एल जोगन!, तुमने तो सोचा होगा कि बड़ा दार्शनिक प्रश्न पूछ रहे हो। यह दार्शनिक प्रश्न नहीं है- यह बहुत बचकाना प्रश्न है। यह छोटे-छोटे बच्चों की बातें हैं।
अगर कोई तुमसे कह भी दे कि संसार की घटना यूँ घटी, तो तुम पूछोगे कि यूँ ही क्यों घटी! और तरह क्यों न घटी? कोई कहे कि संसार को परमात्मा ने बनाया, तो प्रश्न का हल हो जाएगा! तुम पूछोगे, क्यों बनाया? किसलिए बनाया? क्या परमात्मा लोगों को कष्ट देना चाहता है, दु:ख देना चाहता है? क्यों बनाया?
और धर्मगुरु तो कहते हैं कि संसार से मुक्त होना है, भवसागर से मुक्त होना है और यह परमात्मा क्या अधार्मिक है, जो संसार बनाता है? परमात्मा संसार बनाता है- महात्मा समझाते हैं, संसार से मुक्त होना है! कौन सच्चा है? महात्माओं की सुनें कि परमात्मा की मानें?
और फिर परमात्मा इतने दिन क्या करता रहा! संसार नहीं बनाया होगा, फिर एक दिन बना दिया एकदम! एकदम झक आ गई-क्या हुआ! किस कारण झक आई? भाँग पी गया था? भाँग कहाँ से आई?
सवाल पर सवाल उठते चले आएँगे। इससे कुछ हल नहीं होगा। यह बच्चों जैसी बातें हैं। इसमें दर्शन कुछ भी नहीं है। मगर बहुत से लोग इन्हीं बातों को दार्शनिक ऊहापोह समझते हैं! यह शेख़चिल्लियों की बकवास है। इसमें मत पड़ो।
यह गाय और बछड़ा किसका है? पुलिस वाले ने गाँववालों से पूछा।
गाय का पता नहीं साहब, पर बछड़ा किसका है, यह बता सकता हँ,एक बच्चे ने कहा।
किसका है?
बच्चे ने कहा, गाय का! गाय किसकी है, यह मुझे पता नहीं!
एक गाँव में चोरी हो गई। बहुत लोगों ने खोजबीन की। पुलिस इंस्पेक्टर आए- यह हुआ, वह हुआ, पता ही न चले चोर का। आखिर गाँव के लोगों ने कहा कि हमारे गाँव में लाल बुझक्कड़ जी रहते हैं, वे हर चीज को बूझ दें! जिसको बूझ सके न कोय, उसको लाल बुझक्कड़ तत्क्षण बूझ देते हैं। अरे, एक दफे गाँव से हाथी निकल गया था। गाँव वालों ने कभी हाथी देखा नहीं था; रात निकल गया। सुबह उसके पैर के चिह्न दिखाई पड़े। बड़ी गाँव में चिता फैली कि किसके पैर हैं! इतने बड़े पैर! तो जानवर कितना बड़ा होगा!
फिर लाल बुझक्कड़ ने सूझा दिया। उसने कहा कि कुछ घबड़ाने की बात नहीं। अरे हरिणा चक्की पैर में बाँधकर। सीधी-सी बात है, चक्की के निशान हैं। और उछला है, तो हरिण रहा होगा। पैर में चक्की बाँधकर हरिणा उछला होय!
हल कर दिया मामला लाल बुझक्कड़ ने! आप क्या इधर-उधर पूछ रहे हैं; लाल बुझक्कड़ से पूछ लो!
इंस्पेक्टर ने कहा, यह भी ठीक है। चलो, देखें। शायद कुछ बता दे!
लाल बुझक्कड़ ने कहा, बता तो सकता हूँ, मगर सब के सामने नहीं बताऊँगा; क्योंकि मैं झंझट नहीं लेना चाहता। मैं तो बता दूँ फिर कल मैं मुसीबत में पडूँ ! अरे, किसने चोरी की है, मुझे मालूम है। मगर उसका मैं नाम लूँ, तो फिर मेरी जान आफत में आए। मैं सीधा-सादा आदमी, मैं झंझट में नहीं पड़ना चाहता। कान में कहूँगा, एकांत में कहूँगा। और कसम खाओ कि किसी को कहोगे नहीं।इंस्पेक्टर ने स्वीकृति दी कि किसी को कहूँगा नहीं; कसम खाता हूँ। मगर तुम बता तो दो भैया!
उसको लेकर लाल बुझक्कड़ एकांत में गए, गाँव के बाहर जंगल में ले गए। वे बोले कि अब बता दो। यहाँ कोई भी नहीं है। पशु-पक्षी तक नहीं हैं सुनने को!
तो कान में फुसफुसाकर कहा कि मैं पक्का कहता हूँ- देखो बताना मत। किसी चोर ने चोरी की है!
इस तरह की बकवास में न पड़ो। ये छोटे-छोटे बच्चों की बातें हैं।
अध्यापक ने पूछा, राजेश, बताओ, सारस एक टाँग पर क्यों खड़ा होता है?
राजेश ने कहा, सर उसे पता है कि अगर वह दूसरी टाँग उठाएगा, तो गिर पड़ेगा!
सेठ चंदूलाल गाँव में आए एक महात्मा के पास गए थे। पूछने लगे, महात्मा जी; क्या यह सही है कि हर व्यक्ति को मरना है?
महात्मा ने कहा कि हाँ, यह तो निश्चित ही है। अरे, मृत्यु से कौन बचा है! सभी को मरना है। प्रत्येक मरणधर्मा है।
चंदूलाल ने सिर खुजलाया और कहा कि मैं सोचता हूँ कि जो व्यक्ति आखिर में मरेगा, उसे श्मशानघट कौन ले जाएगा?
देखते हो, कैसे-कैसे कठिन सवाल उठते हैं आदमियों के दिमाग में! यह बात तो बड़े पते की है!
एक मित्र दूसरे से कह रहा था, तुम्हारे उस वैवाहिक विज्ञापन का कोई जवाब आया? जिसमें तुमने छपवाया था कि एक सुंदर, सुशील और कमाऊ युवक जिंदगी में रोशनी की एक किरण चाहता है!
दूसरे ने कहा, हाँ, आया। एक जवाब आया था- बिजलीघर के दफ्तर से!
इस तरह के प्रश्न! तुम पूछते हो कि इस संसार की उत्पत्ति की घटना किस प्रकार घटी?
एक बात पक्की समझो कि शिवजी का धनुष मैंने नहीं तोड़ा!
मैंने नहीं बनाया यह संसार! मैं पहले ही अपने को अलग कर लेता हूँ। नहीं तो लोग तरह-तरह के इल्जाम मेरे ऊपर लगाते हैं! कोई यही कहने लगे कि इसी की हरकत! कि इसी ने उपद्रव किया होगा!
तो एच एल जोगन, इतना मैं पक्का कह देता हूँ, जितना मैं पक्का कह सकता हूँ कि बिलकुल मेरा हाथ ही नहीं है इसमें। दूर का नाता-रिश्ता भी नहीं है, इसके बनाने में। न मुझे इसके बनने में उत्सुकता है, न इसके मिटने में उत्सुकता है। जब नहीं था, तब मुझे कोई अड़चन नहीं थी। जब नहीं होगा, तब मुझे कुछ अड़चन नहीं होगी। है, तो मुझे कोई अड़चन नहीं है। मैं पूरे मजे में हूँ। रहे, तो ठीक, न रहे, तो ठीक।
तुम कैसी चिन्ताओं में पड़े हो! और तुम सोचते हो कि इन बातों को जान लोगे; तो तुम्हारा अज्ञान मिट जाएगा? इन बातों को जान लिया, तो उससे सिर्फ इतना ही सिद्ध होगा कि तुम सच्चे ही पक्के अज्ञानी हो। ये बातें कुछ जानने की नहीं हैं।■
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