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Jan 1, 2024

आलेखः राष्ट्रवाद और समावेशी विकास के परिणाम

 - प्रमोद भार्गव

पाँच राज्यों में हुए चुनाव में भाजपा की बड़ी विजय को मोदी का जादू और लाडली बहनों के आशीर्वाद का परिणाम माना जा रहा है। इसे 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव का सेमिफाइनल भी कहा जा रहा है। जो भी कह लें, यह परिणाम प्रखर राष्ट्रवाद और समावेषी विकास के पर्याय हैं। मतदाताओं के बड़े समूह ने साफ जता दिया है कि वे जाति और धर्म की नकारात्मक राजनीति करने वाले दलों के पक्ष में नहीं है; अतएव उन्हें पनौती जैसे मुद्दे खड़े करने से बाज आना चाहिए। मतदाताओं ने राष्ट्रवाद, सनातन, सुशासन राजनीतिक स्थिरता और ढाँचागत विकास के साथ समावेशी विकास के पक्ष में मतदान किया है। जिससे व्यापक राष्ट्रहित के साथ विकास भी सर्वोपरी रहे। मध्यप्रदेश पिछड़ा वर्ग और जनजाति बहुल राज्य है, लेकिन उसने कांग्रेस और कथित इंडिया अर्थात् आईएनडीआई, गठबंधन के जातिवार गणना के मुद्दे को सर्वथा नकार दिया। अब यह मुद्दा लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे के जनक रहे नीतिश कुमार के बिहार में भी चलने वाला नहीं है। राहुल गांधी जातीय गणना को लेकर बाग-बाग हो रहे थे। जबकि नरेंद्र मोदी ने बड़ा दाँव चलते हुए कह दिया कि मेरी नजर में केवल चार जातियाँ हैं, गरीब महिला, युवा और किसान। उन्हीं के हितों को सर्वोपरि रखते हुए केंद्र और भाजपा शासित राज्यों में लोक-कल्याणकारी योजनाएँ बनाई जा रही हैं। ये योजनाएँ भले ही राजस्व पर असर डाल रही हों, लेकिन गरीबों के जीवन को आसान बनाने में लाभदायी सिद्ध हो रही हैं। यही वजह रही कि मध्यप्रदेश में जिन 1.31 करोड़ लाडली बहनों को जून 2023 से 1000 और फिर 1250 रुपए प्रति माह दिए जा रहे हैं, उनकी बदौलत दीपावली के त्योहार पर ऐसी  रौनक आई कि बाजार गुलजार हो गया। गरीबों को दी गई आर्थिक मदद का यह समावेशी वितरण का कारगर उपाय है।   

इन्हीं मुद्दों का नतीजा रहा कि चुनाव में मतदान के बढ़े प्रतिशत ने इस बार अब तक के सारे मापदण्ड ध्वस्त कर दिए। हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्य राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की गारंटियों और जाति जनगणना जैसे मुद्दे विफल हो गए। मोदी की गारंटी, डबल इंजन सरकार और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद जैसे नारों की गूँज ने मतदाता के भीतर विश्वास पैदा किया और भाजपा को मिले जनादेश ने राजस्थान व छत्तीसगढ़ कांग्रेस से छीन लिए। मध्यप्रदेश को न केवल बचाया बल्कि 163 सीटें जीतकर सत्ता संचालन का मार्ग और प्रशस्त कर दिया। तेलंगाना में 9 सीटें तो जीती हीं, मतदान का प्रतिशत 6 से बढ़कर 14 हो गया। भाजपा की इस चौतरफा बढ़त की प्रमुख वजह यह भी रही कि वह युवा और शिक्षित बेरोजगारों को जहाँ डिजिटलीकरण, कृत्रिम बुद्धिमता और यहाँ तक की एक दम नए तकनीकी हमले से जुड़े विषय डीपफेक जैसे मुद्दों को उछाल रही थी, वहीं विदेशी शिक्षा प्राप्त राहुल गांधी, अंबानी, अडाणी, पनौती और ओबीसी की गिनती जैसे रूढ़ मुद्दों का ही राग अलापते रह गए। युवा पीढ़ी को बेहतर भविष्य की राह दिखाने का उनके पास कोई पाठ ही नहीं था। मोदी के इसी संवाद का कारण रहा कि युवा भाजपा की झोली में जाता दिखा। 

मध्यप्रदेश में लाडली बहनों के मन में जहाँ शिवराज भैया रहे, वहीं अन्य मतदाताओं के मन में मोदी का जादू रहा। जिसने सत्ता की कठिन डगर को सरल कर दिया। लाडली बहनों के वोट 2 प्रतिशत बढ़े वोटों ने भाजपा को फिर से सत्ता की चाबी सौंप दी। इस बार प्रदेश में कुल 77.15 फीसदी हुए मतदान में महिलाओं ने 76.3 प्रतिशत मतदान की आहुति दी। शिवराज ने इसी साल फरवरी में लाडली बहना योजना की थी। इसके बाद अत्यंत फुर्ती से इस योजना की कागजी कार्यवाही पूरी करके इसे 10 जून से खाते में डालने का काम भी शुरू कर दिया। पहले माह 1000 रुपए डाले गए बाद में इसे बढ़ाकर 1250 रुपए प्रतिमाह कर दिया। प्रदेश के इतिहास में यह सबसे तेजी से प्रचलन में आकर लोकप्रिय होने वाली योजना रही। शिवराज ने इसे बढ़ाकर 3000 रुपये कर देने का भरोसा देकर बहनों का समूचा समर्थन पाने का मार्ग खोल दिया। बहनों ने भैया पर भरोसा किया और अपने मत की सौगात देकर भाजपा को भारी बहुमत से अलंकृत कर दिया। जबकि कांग्रेस अति आत्मविश्वास के भ्रम में डूबी रह गई। अन्यथा कमलनाथ को एक अच्छा अवसर सत्तारुढ़ होने का मिला था, जिसमें वे चूक गए। अपने पक्ष में माहौल देख चुनाव के एन वक्त पर कांग्रेस हाथ पे हाथ धरे बैठी रह गई। दिग्विजय सिंह ने जरूर चुनिंदा सीटों पर दौरे किए और प्रत्याशियों का मनोबल बढ़ाया, लेकिन ज्यादातर प्रत्याशी अपने ही संसाधनों से सोशल मीडिया पर इकलौते लड़ते दिखाई दिए। उन्हें संगठन की कोई ठोस मदद नहीं मिली। नतीजतन कांग्रेस 66 सीटों पर सिमट गई। 2003 में जब उमा भारती ने मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को बंटाढार कहते हुए सत्ता से बेदखल किया था, तब भी कांग्रेस की 73 सीटें आई थीं। अलबत्ता भाजपा ने संघ और संगठन से लेकर अपनी पूरी ताकत झोंक दी।      

          इन चुनाव परिणामों के यूँ तो कई संदेश हैं, लेकिन जो सबसे बड़ा संदेश तीनों राज्यों की बड़ी जीत में अंतर्निहित है, उसने साफ कर दिया है कि भाजपा की यह जीत किसी एक जाति, धर्म और धुव्रीकरण की नहीं है, बल्कि सकारात्मकता की है। चुनावी विश्लेषक खासातौर से मध्यप्रदेश में बढ़े मतदान को सत्ता विरोधी रुझान का पर्याय बता रहे थे, जबकि वह सत्ता की रचनात्मकता का सुखद पर्याय बनकर सामने आया है। यह अनिवार्य मतदान की जरूरत की पूर्ति कर रहा है। हालांकि फिलहाल हमारे देश में अनिवार्य मतदान की संवैधानिक बाध्यता नहीं है। मेरी सोच के मुताबिक ज्यादा मतदान की जो बड़ी खूबी है, वह है कि अब अल्पसंख्यक व जातीय समूहों को वोट बैंक की लाचारगी से छुटकारा मिल रहा है। इससे कालांतर में राजनीतिक दलों को भी तुष्टीकरण की मजबूरी से मुक्ति मिलेगी;  क्योंकि जब मतदान का प्रतिशत 75 से 85 होने लगता हैं, तो किसी धर्म, जाति, भाषा या क्षेत्र विशेष से जुड़े मतदाताओं की अहमियत नगण्य हो जाती है।  नतीजतन उनका संख्याबल जीत या हार की गारंटी नहीं रह जाता। लिहाजा सांप्रदायिक व जातीय आधार पर ध्रुवीकरण की राजनीति शून्य हो जाती है। कालांतर में यह स्थिति मतदाता को धन व शराब के लालच से भी मुक्त कर देगी;  क्योंकि कोई प्रत्याशी छोटे मतदाता समूहों को तो लालच का चुग्गा डालकर बरगला सकता है, लेकिन संख्यात्मक दृष्टि से बड़े समूहों को लुभाना मुश्किल होता है ? यही वजह रही कि भाजपा ने मध्यप्रदेश में तो लगातार पाचवीं बार बड़ी जीत हासिल की ही, कांग्रेस से राजस्थान और छत्तीसगढ़ छीनने में भी सफल रही। इन तीनों राज्यों में आदिवासी मतदाताओं के बड़े समूह भाजपा के पक्ष में जाते दिखे हैं और जिस अनुसूचित जाति के मतदाता को बसपा का प्रतिबद्ध मत माना जाता था, वह भी भाजपा की तरफ उन्मुख हुआ है। यही कारण है कि मध्यप्रदेश में आप, सपा और बसपा एक भी सीट जीतने में सफल नहीं रही हैं। मध्यप्रदेश के रतलाम जिले की सैलाना सीट से जरूर ‘भारत आदिवासी पार्टी’ के कमलेश्वर डोडियार जीतने में सफल हुए हैं। इस बार प्रदेश में कोई निर्दलीय प्रत्याशी भी जीतने में सफल नहीं हुआ है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी कमोवेश यही स्थिति रही है। मतदाता की यह जागरूकता जताती है कि वह अब समावेषी विकास और राष्ट्रवादी अवधारणा का पक्षधर बन रहा है। ■ 

सम्पर्कः शब्दार्थ 49  श्रीराम कॉलोनी, शिवपुरी म.प्र., मो. 09425488224, 09981061100


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