श्रद्धा सुमन - डॉ. सुधा गुप्ता
गद्य और काव्य में श्रेष्ट सृजन देने वाली डॉ. सुधा गुप्ता जी का 18 नवम्बर 20123 को देहावसान हो गया। 18 मई को वे नब्बे वर्ष की हो जातीं। जापानी काव्यविधाओं में आपका सृजन बेजोड़ रहा। हाइकु, ताँका, सेदोका, हाइबन उन्हें शिखर पर स्थापित करते हैं। उदंती को भी आपने अपने साहित्य से सदैव सुशोभित किया है। उन्हें श्रद्धांजलि स्वरुप यहाँ प्रस्तुत है काव्य से अलग उनकी एक उत्कृष्ट लघुकथा कन्फ़ेशन-
माइकेल कई बरस से बीमार था। साधारण-सी आर्थिक स्थिति; पत्नी बच्चे सारा भार। जितना सम्भव था इलाज़ कराया गया; किन्तु सब निष्फल। शय्या-क़ैद होकर रह गया। लेटे-लेटे जाने क्या सोचता रहता...अन्ततः परिवार के सदस्य भी अदृष्ट का संकेत समझ कर मौन रह, दुर्घटना की प्रतीक्षा करने लगे। एक बुज़ुर्ग हितैषी ने सुझाया-'अब हाथ में ज़्यादा वक़्त नहीं, फ़ादर को बुला भेजो ताकि माइकेल' कन्फेस'कर ले और शान्ति से जा सके।' बेटा जाकर फ़ादर को बुला लाया। फ़ादर आकर सिरहाने बैठा, पवित्र जल छिड़का और ममता भरी आवाज़ में कहा-'प्रभु ईशू तुम्हें अपनी बाहों में ले लेंगे बच्चे! तुम्हें सब तक़लीफ़ों से मुक्ति मिलेगी, बस एक बार सच्चे हृदय से सब कुछ कुबूल कर लो।'
माइकेल ने मुश्किल से आँखें खोलीं, बोला-'फादर, मैंने कभी किसी को धोखा नहीं दिया।'फादर ने सांत्वना दी- 'यह तो अच्छी बात है, आगे बोलो।'
माइकेल ने डूबती आवाज़ में कहा-'फादर, मैं झूठ, फ़रेब, छल-कपट से हमेशा बचता रहा।'
फादर ने स्वयं को संयमित करते हुए कहा- 'यह तो ठीक है; पर अब असली बात भी बोलो...माइकेल!'
माइकेल की साँस फूल रही थी, सारी ताकत लगाकर उसने कहा- 'फादर, दूसरों के दुःख में दुःखी हुआ, परिवार की परवाह न कर दूसरों की मदद की...'
अब फादर झल्ला उठे- 'माइकेल, कन्फेस करो...कन्फेस करो...गुनाह कुबूलो...वक्त बहुत कम है...'
उखड़ती साँसों के बीच कुछ टूटे फूटे शब्द बाहर आए, 'वही...तो कर...रहा हूँ...फादर...!' ■
1 comment:
कितना सच! सुंदर लघुकथा सुदर्शन रत्नाकर
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