उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Jan 1, 2024

12 जनवरी जयंतीः वैदिक ज्ञान से विश्व को आलोकित करते महर्षि महेश योगी

  -  रविन्द्र गिन्नौरे

"आओ..! मैं जीवन में झांकने का अवसर देता हूं, ताकि लोग शांति और खुशी के हर क्षण का आनंद ले सकें।" ऐसा आव्हान करते हुए महर्षि महेश योगी ने वैदिक ज्ञान से विश्व को आलोकित करते हुए अपने भावातीत ध्यान की विशिष्ट शैली से व्यक्ति की चेतना को निरंतर विकास की ओर ले जाने का मार्ग प्रशस्त किया।

 ऐसे समय में जब शांति का सूरज पश्चिम में अस्ताचल हो रहा था। पश्चिम के लोगों में अपने जीवन के प्रति एक ऊब गहराने लगी थी और अकारण हिंसा का सैलाब उमड़ रहा था। शांति की तलाशते युवा नशे में डूब रहे थे। एक विकृत संस्कृति का बोलबाला हो उठा जो हिप्पी संस्कृति का चोला पहन शांति, सौंदर्य की आस में कर्म हीन जीवन की ओर अग्रसर हो रहे थे, जहाँ उदय हुआ महर्षि का 'भावातीत ध्यान'।

  1957 से महर्षि महेश योगी ने 150 देशों का भ्रमण कर भारतीय आध्यात्मिक तथा भावातीत ध्यान को एक आंदोलन का रूप दिया। योगी के दर्शन का मूल आधार था कि 'जीवन परम आनंद से भरपूर है और मानव का जन्म इस आनंद उठाने के लिए हुआ है। हर व्यक्ति में उर्जा, ज्ञान और सामर्थ्य अपरिमित है इसका सदुपयोग कर जीवन को सुखद बनाया जा सकता है।' विश्व को शांति और सदाचार की शिक्षा देते हुए योगी ने विश्व भ्रमण करते रहे। भावातीत ध्यान का अलख योगी ने लगाया और दुनिया भर में उनके साठ लाख से ज्यादा अनुयाई बन गए।

महर्षि का भावातीत ध्यान-  

  भावातीत ध्यान में भाव जागृत होकर भावातीत हुआ जाता है क्योंकि संसार भवसागर है। भाव को जानो तो भावातीत हुआ जा सकेगा। भाव को जानकर ही भवसागर से मुक्ति संभव है।  

   जब तक चित्त शांत नहीं होता तब तक ध्यान घटित नहीं होगा। योगनिद्रा प्राप्त करके शांत होना सीखना चाहिएं। शरीर को शिथिल कर के हर अंग को ऊर्जावान बनना चाहिए, यही महर्षि के ध्यान का ध्येय है।

 भावातीत ध्यान (Transcendental Maditation) एक मंत्र है, जो शांत मुद्रा में दोहराए गए मंत्र के ऊपर ध्यान केंद्रित कर के आंतरिक शांति और नवीनीकरण प्राप्त करने की एक आध्यात्मिक तकनीक है। 

ऐसी स्थिति तब आती है, जब मन स्थिर हो जाता है विचार से परे चले जाने में अभ्यास कर्ता सक्षम हो जाता है और तब वह परम सुख और निस्तब्धता की एक मूक अवस्था में प्रवेश करता है। महर्षि का भावतीत ध्यान ऐसी ही सुखद स्थिति में ला खड़ा करता है।

 महर्षि के 'भावातीत ध्यान' से प्रभावित होकर 1968 में ख्याति प्राप्त 'रॉक म्यूजिक ग्रुप बीटल्स' उनके आश्रम पर पहुंचा और सभी उनके अनुयाई बन बैठे। 1975 तक 'भावातीत ध्यान' पश्चिमी देशों में अत्यधिक लोकप्रिय हो गया यही समय था जब पश्चिम के प्रसिद्ध अखबारों और पत्रिकाओं में महर्षि महेश योगी सुर्खियों में आए। 'ध्यान ही सारी समस्याओं का समाधान का समाधान है' और इसे महर्षि ने चरितार्थ कर दिखाया।

 फ्लाइंग योगा-

    महर्षि फिर सुर्खियों में छाए रहे जब उन्होंने अपना अनुयायियों को उड़ना सिखाने का दावा किया। फ्लाइंग योगा- अनुभवातीत ध्यान का एक हिस्सा था जिसने उनके भक्त फुदकते हुए उड़ने की कोशिश करते थे।

 फ्लाइंग योगा को महर्षि ने 'ट्रासेडेंटल मेडिटेशन सिद्धि प्रोग्राम' नाम दिया और इसे ध्यान चिकित्सा के तौर पर प्रायोजित किया।

  1990 में महर्षि हालैंड के व्लोड्राप गांव में अपना आश्रम स्थापित किया जहां से वे अपनी संस्थाओं का संचालन करने लगे। महर्षि ने अपने अनुयायियों के माध्यम से अनेक संस्था बनाई। 2008 तक योगी के 150 देशों में 500 स्कूल, 4 महर्षि विश्वविद्यालय और वैदिक संस्थान संचालित थे। संस्थाओं में आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति और प्राकृतिक तरीके से बनाई हर्बल दवाओं के उपयोग को बढ़ावा दिया गया। महर्षि ने भारत की आध्यात्मिक ज्ञान की प्राचीन परंपरा को दुनिया के सामने रखा। ध्यान को अभ्यास को रहस्यवाद से हटकर अभ्यास को वैज्ञानिक रूप से स्वास्थ्य कार्यक्रम तक बढ़ा दिया।

रामनाम मुद्रा -

 महर्षि महेश योगी ने विदेश में रामनाम की मुद्रा चलाई। रामनाम की इस मुद्रा में भगवान राम के चमकदार चित्र वाले एक,पांच और दस के नोट थे। राम मुद्रा को महेश की महर्षि की संस्था 'ग्लोबल कंट्री आफ द वर्ल्ड पीस' ने अक्टूबर 2002 में जारी किया। 

नीदरलैंड सरकार ने 2003 में रामनाम मुद्रा को कानूनी मान्यता दी। अमेरिका के आईवा राज्य के महर्षि वैदिक सिटी में भी रामनाम की मुद्रा प्रचलित थी। राम पर आधारित बांड्स भी अमरीका के कई राज्यों में प्रचलन में आए।

महाशून्य में विलीन हुए- 

 अपनी अंतिम यात्रा से पहले एकाएक 11 जनवरी 2008 को महर्षि ने घोषणा कर दी कि 'उनका काम पूरा हो गया है और गुरु के प्रति जो कर्तव्य था वह पूरा हो गया है।' ऐसा कहते हुए महर्षि अपने कमरे में सिमट गए। 91 वर्ष की अवस्था में 5 फरवरी 2008 को महर्षि महेश योगी महाशून्य में विलीन हो गए।

जीवन परिचय-

 वैदिक ज्ञान से विश्व को आलोकित करने वाले महर्षि का जन्म छत्तीसगढ़ में राजिम के समीप ग्राम पाण्डुका में 12 जनवरी 1918 को हुआ था। पाण्डुका में इनके पिता राम प्रसाद श्रीवास्तव राजस्व विभाग में कार्यरत थे। पाण्डुका से गाडरवारा में स्थानांतरण हुआ और बालक महेश की शिक्षा हितकारिणी स्कूल जबलपुर में हुई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिक में स्नातक होकर दर्शनशास्त्र में इन्होंने स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की।

जबलपुर की गनकैरिज फैक्ट्री में कार्य के दौरान स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती से इनकी भेंट हुई और यहीं से उनके जीवन में एक नया मोड़ आया। महेश से योगी बन अध्यात्म की ओर अग्रसर हुए थे और फिर ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य ब्रह्मानंद सरस्वती के सानिध्य में 13 वर्ष तक शिक्षा ग्रहण की। इसी के साथ शुरू हुआ आध्यात्मिक योग और साधना की दीक्षा देने का सिलसिला। शंकराचार्य की मौजूदगी में महर्षि महेश योगी ने रामेश्वरम में दस हजार ब्रह्मचारियों को दीक्षा दी। इसके पश्चात हिमालय की उपत्यकाओ में दो वर्ष की मौन साधना के बाद ध्यान को विश्व कल्याण के लिए उसे एक आंदोलन के रूप में चलाया जो जीवन पर्यंत चलता रहा।

    "मेरे ना होने से कुछ नुकसान नहीं होगा। मैं नहीं होकर और भी ज्यादा प्रगाढ़ हो जाऊंगा...!" महर्षि महेश योगी के ये शब्द पहले से ज्यादा आज प्रासंगिक हो गए हैं ऐसे योगी जिन्होंने भारतीय संस्कृति के संदेशवाहक, आध्यात्मिक पुरुष बन कर विश्व बंधुत्व बढ़ाते हुए संसार के महान समन्वयक होने का गौरव प्राप्त किया। ■

ravindraginnore58@gmail.com


No comments: