वर्ष- 16, अंक- 4, 5
शत-शत दीप इकट्ठे होंगे
अपनी-अपनी चमक लिये,
अपने-अपने त्याग, तपस्या,
श्रम, संयम की दमक
लिये।
- हरिवंशराय बच्चन
संयुक्तांक
इस अंक में
अनकहीः अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए... - डॉ. रत्ना वर्मा
निबंधः मिट्टी के दीयों से आलोक का सर्जन -
रामधारी सिंह 'दिनकर'
पर्व - संस्कृतिः दीपक संस्कृति की विविधता में
एकता - प्रमोद भार्गव
जीव- जगतः ज्ञान और समृद्धि का प्रतीक उल्लू -
डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन, सुशील चंदानी
पर्व संस्कृतिः लक्ष्मी की सवारी
परसाई जन्म शताब्दी वर्ष परः पूछिए परसाई से -विनोद
साव
व्यंग्यः कबीरा, काहे खड़ा बाजार ! - प्रेम जनमेजय
कहानीः घर का रास्ता - सुदर्शन रत्नाकर
मनोविज्ञानः क्या भलाई का ज़माना नहीं रहा?
हाइबनः दिव्य सम्बन्ध - अनिता ललित
लघुकथाः समाजवाद - उर्मिल कुमार थपलियाल
आलेखः पटाखों का ऐतिहासिक,
सांस्कृतिक व न्यायिक पक्ष - राजेश पाठक
धरोहरः कलचुरी कालीन भगवान शिव का प्राचीन मंदिर
देव बलोदा
प्रकृतिः तितलियाँ क्यों हैं जरूरी - अपर्णा
विश्वनाथ
खान- पानः भारी आहार तो बढ़े विकार – साधना मदान
जीवन दर्शनः 9/11 और ट्वीन टॉवर : एक युद्ध
आतंकवाद के विरुद्ध - विजय जोशी
पर्यावरणः वनों की कटाई के दुष्प्रभाव - डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन
3 comments:
इस अंक में लेखों, कविताओं, लघुकथाओं के दीपों के साथ आपका दीपोत्सव सम्बन्धी सम्पादकीय का आलोक अनुपम है। अंक निकलने में आपका श्रम पत्रिका को ऐतिहासिक बनाएगा , ऐसा विश्वास है।
एक अच्छा दीपावली अंक-सभी रचनाकार एवं संपादकीय टीम को बधाई।
मुझे तितली वाला आलेख एवं पटाखों के इतिहास ने प्रभावित किया।
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