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Apr 21, 2020

कोरोना .... देखना हम जीतेंगे

 कोरोना .... देखना हम जीतेंगे

 –डॉ. रत्ना वर्मा
पिछले कुछ दशकों से हम सब सुनते आ रहे हैं  कि महाप्रलय आने वाला है और एक दिन पूरी दुनिया खत्म हो जाएगी। पिछले वर्षों में एक के बाद एक बहुत सारी प्रकृतिक आपदाएँ दुनिया भर में आती रहीं- चाहे वह सुनामी हो , भूकंप हो,  बाढ़ हो, गर्मी हो या सूखा। ये आपदाएँ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में आती रही हैं और दुनिया के अलग अलग हिस्से में आपदा रूपी प्रलय से नुकसान होताहा है। इस बार कोरोना वायरस नामक इस आपदा ने पूरी दुनिया में तबाही मचा दी है।
बाकी सभी आपदाओं में तो तबाही के बाद बचे हुए लोगों को सहायता पहुँचाने का इंतजाम पूरी दुनिया के लोग कर लेते हैं और तबाही वाला इलाका फिर से साँसें लेने लगता है,  लेकिन कोरोना जैसी महामारी में कोई किसी को सहायता नहीं पहुँचा पा रहा है यह एक ऐसा प्रलय है,  जिसमें इंसान को खुद ही अपनी सहायता करनी होगी। इस आपदा से बचने का एकमात्र उपाय मानव से मानव की दूरी ही है। संक्रमित व्यक्ति की पहचान के बाद उसे बाकी लोगों से अलग कर देना ही इस बीमारी से बचने का अभी तक का अकेला तरीका है।
आज जब कोरोना का कहर प्रलय बनकर मानव जीवन को खत्म करने पर उतारू है और बचने का कोई और उपाय दिखाई नहीं दे रहा है, तब सबको घर में कैद रहना ही इस वायरस के संक्रमण से  बचने का सबसे बड़ा उपाया र आता है। यही वजह है कि सब घरों में कैद हैं कोरोना से अपने को दूर रखने का प्रयास कर रहे हैं।
आज हम सब जिस मानसिकता में जी रहे हैं, उससे  हम सबको अपने और अपनों के  जीवन का मोल समझ में आ रहा है। य बात अलग है कि सबके बाद भी कुछ लोग जीवन का मतलब समझना नहीं चाहते और अपने साथ- साथ दूसरों को भी मुसीबत में डाल रहे हैं। यदि  जमात और तबलीग के मामले नहीं होते, तो आज भारत अधिक सुरक्षित होता। भारत में इतने लम्बे समय तक लॉकडाउन की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। तब हमें बस इतना करना होता कि बाहरी देशों के यात्रियों को भारत आने से रोक दिया जाता। इतनी-सी सावधानी हम भारतवासियों को  कोरोना से मुक्त रख सकती थी; पर अफसोस ऐसा हो सका।
इसके बाद भी  भारत ने जो उपाय  करोना से बचने के लिए अपनाए हैं, उसकी सराहना पूरी दुनिया कर रही है। ऐसी विकट घड़ी में भारतवासियों ने जिस धैर्य और शांति के साथ इस आपदा का सामना किया है और  वे शासन द्वारा जारी गाइडलाइन का पालन  कर रहे हैं,वह सराहनीय है। चूँकि इस वायरस से बचाव के लिए कोई दवाई नहीं है; अतः सामाजिक दूरी इससे बचाव का एकमात्र उपाय है। इस विषम संकट की घड़ी में, जब तक लाकडाउन  है, जब तक हम घरों में हैं, तब तक इस वायरस से बचे रहेंगे। लेकिन प्रश्न फिर भी उठता है कि कब तक?  क्या कुछ समय में इस वायरस से बचाव की दवाई खोज ली जाएगी? क्या यह वायरस कुछ समय बाद खत्म हो जाएगा? चीन में  जहाँ इस वायरस के खत्म होने का दावा किया जा रहा था, वहाँ फिर इस बेमुराद ने  पाँव पसार लिये हैं। 
दूसरी तरफ हम सब देख ही रहे हैं कि विश्व के सबसे विकसित देशों में कोरोना से लगातार बढ़ते मौत के आँकड़ें इस बात की ओर इशारा करते हैं कि आर्थिक प्रगति के मायने सुरक्षित जीवन नहीं होता। एक दूसरे से होड़ लगाते हुए आगे बढ़ते जाना, उन्नति का प्रतीक नहीं है। ऐसी उन्नति, ऐसी प्रगति किस काम की,  जिससे जीवन ही खतरे में पड़ जाए। लोग बस धन कमाने में लगे रहते हैं बगैर यह सोचे समझे कि इस धन को जोड़ते हुए, वे कौन-सा  बहुमूल्य धन खो रहे हैं!
कोरोना ने आज सबको जीवन का एक बहुत बड़ा सबक दिया है कि जितनी आवश्यकता हो, उतना अर्जन करते हुए, प्रकृति के अनुकूल जीवन जीना ही असली जीवन है। कोरोना के चलते जीवन कितना सहज हो चला है, सब अनुभव कर रहे हैं। वाहनों का चलना बंद हैं , ट्रेन बंद हैं, हवाई जहाज बंद हैं और पर्यावरण के लिए सबसे नुकसानदेह कल-कारखाने बंद हैं, तो जाहिर है कि जानलेवा प्रदूषण भी बंद है। लोगों ने अपनी आवश्यकताएँ कम कर ली हैं। घर के सारे काम सब मिलकर खुद कर रहे हैं। बाहर के जं फूड बंद हैं, तो लोगों की सेहत अच्छी हो गई है। डाक्टर, नर्स, पुलिस , प्रशासन सब कोरोना से लड़ाई लड़ रहे हैं । खबरों की ओर नर दौड़ाओ तो लूट -खसोट, मार -काट, चोरी डकैती सब जैसे अपराध कम हो गए हैं। है न अच्छी बात! जब हम अपने देश के लिए लड़ते हैं, तो सिर्फ देश नजर आता है, ऐसे ही हालात अभी भी हैं, हम इस समय भी देश के लिए लड़ रहे हैं। मन्दिर, गुरुद्वारे , धार्मिक संस्थान, स्वयंसेवी संस्थाएँ  हज़ारों लोगों को भोजन करा रहे हैं या राशन भिजवा रहे हैं। प्रशासन अपने स्तर से जनसेवा के लिए जुटा है। डॉकटर, पुलिस , सफ़ाई कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की सहायता कर रहे हैं। पुलिस का आज जैसा समर्पण कभी देखने में  नहीं आया। बस दु:ख  है तो इस बात का कि जब आशाराम, राम रहीम से लेकर  रामपाल तक तथाकथित धर्मगुरु सलाखों के पीछे  पहुँचा दिये, तो राष्ट्र्द्रोही गतिविधियों में लिप्त लोग लुकाछिपी  का खेल क्यों खेल रहे हैं! कोरोना योद्धा पत्थर खा रहे हैं, मानवता के तथाकथित छद्म बुद्धिजीवियों की बोलती बन्द है। इसके विरोध में अब कोई पुरस्कार  नहीं लौटा रहा। धनराशि को लौटाने की हिम्मत इन लोगों ने कभी नहीं दिखाई। अब यह संकट एक सकारात्मक सोच भी लेकर आया है, वह है एकजुटता। हमारा दृढ़  विश्वास है कि भारत कोरोना को पछाड़ने में ज़रूर सफल होगा।

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