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Nov 2, 2025

प्रदूषणः दिवाली बाद गहराया देशव्यापी प्रदूषण

 - प्रमोद भार्गव

देशव्यापी प्रदूषण गहराने की रिपोर्ट भले ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने दी है; लेकिन यह आशंका पूर्व से ही थी कि दिल्ली एनसीआर समेत पूरे देश में वायु प्रदूषण में वृद्धि दर्ज की जाएगी?  साँस, दमा और अस्थमा के रोगियों को परेशानी होगी; क्योंकि वायु गुणवत्ता बद से बदतर होने की श्रेणी में पहुँच जाएगी। यह स्थिति तब है, जब दिल्ली में प्रदूषण की समस्या से चिंतित शासन-प्रशासन तो रहता ही है, सर्वोच्च न्यायालय की चिंता भी पटाखों पर प्रतिबंध को लेकर देखी जाती रही है। इसलिए न्यायालय ने हरित पटाखों को चलाने की अनुमति दी थी; लेकिन निगरानी की ऐसी कोई विधि सरकार के पास नहीं है कि हरित पटाखों की ओट में सामान्य पटाखे चलाए ही न जाएँ ? ग्रीन पटाखों को लेकर यह धारणा है कि तुलनात्मक रूप में वे सामान्य पटाखों से प्रदूषण मुक्त हैं; लेकिन इनकी पहचान आसान नहीं है। दरअसल पटाखे इतनी बड़ी मात्रा में पूरे देश में बनते हैं कि इनकी गुणवत्ता एवं मानक की परख करना असंभव है। इस दायित्व के निर्वहन की जवाबदेही ‘राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान’ (नीरी) की है अवश्य; किंतु मानक निर्धारण की नैतिक जिम्मेदारी पटाखे निर्माताओं और फिर उन पर निगरानी सरकारी तंत्र की है, जो अकसर दायित्व निभाने में लापरवाह रहता है; इसीलिए वायु गुणवत्ता प्रदूषण का सूचकांक दिल्ली में कई स्थानों पर एक्यूआई 351 के पार दर्ज किया गया। हरियाणा के जींद में यह प्रदूषण सबसे अधिक 421 पर दर्ज हुआ है। यही हकीकत हर साल बनी रहती है।    

रिपोर्ट के अनुसार राजधानी दिल्ली में सबसे अधिक प्रदूषित हवा बह रही है। दस शहरों में दिल्ली 10वें नंबर पर है। शेष 9 शहरों में 8 हरियाणा और एक राजस्थान का है। यानी दिल्ली के पड़ोसी राज्य हरियाणा की हवा अब देश के राज्यों में सबसे ज्यादा प्रदूषित हो चुकी है। सीपीसीबी देश के 271 नगरों की हवा की गुणवत्ता की निगरानी रखता है। इनमें से 20 नगरों की वायु इस बार दिवाली के बाद अच्छी रही है, जबकि 54 नगरों में संतोषजनक और 103 नगरों में मध्यम स्तर की रही है। दीपावली के बाद दिल्ली में पीएम 2.5 का चौबीस घंटे में औसत 488 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज हुआ, जो पिछले पाँच साल में सबसे अधिक है। यह स्थिति तब है, जब हरियाणा एवं पंजाब में 2024 के अनुपात में पराली जलाने की घटनाएं 77.5 प्रतिशत घटी हैं। यहाँ यह जानने की जरूरत है कि पीएम 2.5 की मात्रा एक्यूआई का ही एक भाग है। एक्यूआई वायु में मौजूद 2.5 पीएम-10 ओजोन व अन्य प्रदूषणकारी गैसों की मात्रा को गणना करके तय किया जाता है। दिल्ली में वैसे भी ठंड की शुरूआत होने के साथ ही हवा गहराने लगती है, और प्रदूषण का संकट बढ़ने लगता है। यह स्थिति लगभग प्रतिवर्ष निर्मित होती है; लेकिन विडंबना है कि इन तथ्यों को जानते-बूझते सरकार नजरअंदाज कर देती है। इसलिए प्रदूषण सुधार के जो चंद उपाय किए जाते हैं, वे बेअसर साबित होते हैं। अतएव प्रदूषण उत्सर्जन के कारण यथावत् बने रहते हैं।

हम जानते है कि बच्चे और किशोर आतिशबाजी के प्रति अधिक उत्साही होते हैं और उसे चलाकर आनंदित भी होते हैं। जबकि यही बच्चे वायु एवं ध्वनि प्रदूषण से अपना स्वास्थ्य भी खराब कर लेते हैं। खतरनाक पटाखों की चपेट में आकर अनेक बच्चे आँखों की रोशनी और हाथों की अंगुलियाँ तक खो देते हैं। बावजूद समाज के एक बड़े हिस्से को पटाखा- मुक्त दिवाली रास नहीं आती है। इसीलिए अदालती आदेश के बाद यह बहस चल पड़ती है कि दिल्ली-एनसीआर में खतरनाक स्तर 2.5 पीएम पर प्रदूषण पहुँचने का आधार क्या केवल पटाखे हैं ? सच तो यह है कि इस मौसम में हवा को प्रदूषित करने वाले कारणों में बारूद से निकलने वाला धुआँ एक कारण जरूर है; लेकिन दूसरे कारणों में दिल्ली की सड़कों पर वे कारें भी हैं, जिनकी बिक्री निरंतर उछाल पर है। नए भवनों की बढ़ती संख्या भी दिल्ली में प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाया जाना भी दिल्ली की हवा को खराब करने का एक कारण है। इस कारण दिल्ली के वायुमंडल में पीएम 2.5 का स्तर बढ़ जाता है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक स्वास्थ्य के लिए बेहतर वायु का स्तर 10 पीएम से कम होना चाहिए। पीएम वायु में घुले-मिले ऐसे सूक्ष्म कण है, जो सांस के जरिए फेफड़ों में पहुँचकर अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं।

वायु के ताप और आपेक्षिक आर्द्रता का संतुलन गड़बड़ा जाने से हवा प्रदूषण के दायरे में आने लगती है। यदि वायु में 18 डिग्री सेल्सियस ताप और 50 प्रतिशत आपेक्षिक आर्द्रता हो तो वायु का अनुभव सुखद लगता है। लेकिन इन दोनों में से किसी एक में वृद्धि, वायु को खतरनाक रूप में बदलने लगती है। ‘राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मूल्यांकन कार्यक्रम‘ (एनएसीएमपी) के मातहत ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल’ वायु में विद्यमान ताप और आद्रता के घटकों को नापकर यह जानकारी देता है कि देश के किस नगर में वायु की शुद्धता अथवा प्रदूषण की क्या स्थिति है। मापने की इस विधि को ‘पार्टिकुलेट मैटर’ मसलन ‘कणीय पदार्थ’ कहते हैं। प्रदूषित वायु में विलीन हो जाने वाले ये पदार्थ हैं, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड। सीपीसीबी द्वारा तय मापदंडों के मुताबिक उस वायु को अधिकतम शुद्ध माना जाता है, जिसमें प्रदूषकों का स्तर मानक मान के स्तर से 50 प्रतिशत से कम हो। इस लिहाज से दिल्ली समेत भारत के जो अन्य नगर प्रदूषण की चपेट में हैं, उनके वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड का प्रदूषण कम हुआ है, जबकि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर कुछ बड़ा है।

सीपीसीबी ने उन नगरों को अधिक प्रदूषित माना है, जिनमें वायु प्रदूषण का स्तर निर्धारित मानक से डेढ़ गुना अधिक है। यदि प्रदूषण का स्तर मानक के तय मानदंड से डेढ़ गुना के बीच हो तो उसे उच्च प्रदूषण कहा जाता है। और यदि प्रदूषण मानक स्तर के 50 प्रतिशत से कम हो, तो उसे निम्न स्तर का प्रदूषण कहा जाता है। वायुमंडल को प्रदूषित करने वाले कणीय पदार्थ, कई पदार्थों के मिश्रण होते हैं। इनमें धातु, खनिज, धुएँ, राख और धूल के कण मिले होते हैं। इन कणों का आकार भिन्न-भिन्न होता है। इसीलिए इन्हें वर्गीकृत करके अलग-अलग श्रेणियों में बाँटा गया है। पहली श्रेणी के कणीय पदार्थों को पीएम-10 कहते हैं। इन कणों का आकार 10 माइक्रोन से कम होता है। दूसरी श्रेणी में 2.5 श्रेणी के कणीय पदार्थ आते हैं। इनका आकार 2.5 माइक्रोन से कम होता है। ये कण शुष्क व द्रव्य दोनों रूपों में होते हैं। वायुमंडल में तैर रहे दोनों ही आकारों के कण मुँह और नाक के जरिए श्वास नली में आसानी से प्रविष्ट हो जाते हैं। ये फेफड़ों तथा हृदय को प्रभावित करके कई तरह के रोगों के जनक बन जाते हैं। आजकल नाइट्रोजन डाइऑक्साइड देश के नगरों में वायु प्रदूषण का बड़ा कारक बन रही है।  

औद्योगिक विकास, बढ़ता शहरीकरण और उपभोक्तावादी संस्कृति, आधुनिक विकास के ऐसे नमूने हैं, जो हवा, पानी और मिट्टी को एक साथ प्रदूषित करते हुए समूचे जीव-जगत को संकटग्रस्त बना रहे हैं। लेकिन दिवाली पर रोशनी के साथ आतिशबाजी छोड़कर जो खुशियाँ मनाई जाती है, उनका व्यावहारिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक पक्ष भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अकेली दिल्ली में पटाखों का कई हजार करोड़ का कारोबार होता है, जो कि देश में होने वाले कुल पटाखों के व्यापार का 25 फीसदी हिस्सा है। इससे छोटे-बड़े हजारों थोक व खुदरा व्यापारी और पटाखा उत्पादक मजदूरों की सालभर की रोजी-रोटी चलती है। इस लिहाज से इस व्यापार पर प्रतिबंध के व्यावहारिक पक्ष पर भी गौर करने की जरूरत है? यह अच्छी बात है कि शीर्ष न्यायालय सामान्य पटाखों पर रोक के साथ हरित पटाखे चलाने को प्रोत्साहित कर रही है। इससे स्वदेशी हरित पटाखा उद्योग विकसित होगा और भविष्य में दिल्ली को प्रदूषित महानगर होने की श्रेणी से भी मुक्ति मिल जाएगी।  

सम्पर्कः शब्दार्थ 49, श्रीराम कॉलोनी, शिवपुरी म.प्र., मो. 09425488224, 9981061100

1 comment:

  1. Anonymous03 November

    दीवाली पर पटाखों का प्रदूषण तो होता है। इससे की गुना अधिक पटाखों का प्रदूषण नव वर्ष पर होता है। फिर आज-कल बड़े नेताओं कोई वीआईपी आगमन पर पटाखे चलाएं जाते हैं। इस पर रोक लगाने के लिए कानूनन प्रावधान होना चाहिए। सबसे बड़ी बात कि पटाखों के निर्माण को धीरे-धीरे कम किया जाना चाहिए और यह सरकार ही कर सकती है।

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