- प्रमोद भार्गव
हम जानते है कि बच्चे और किशोर आतिशबाजी के प्रति अधिक उत्साही होते हैं और उसे चलाकर आनंदित भी होते हैं। जबकि यही बच्चे वायु एवं ध्वनि प्रदूषण से अपना स्वास्थ्य भी खराब कर लेते हैं। खतरनाक पटाखों की चपेट में आकर अनेक बच्चे आँखों की रोशनी और हाथों की अंगुलियाँ तक खो देते हैं। बावजूद समाज के एक बड़े हिस्से को पटाखा- मुक्त दिवाली रास नहीं आती है। इसीलिए अदालती आदेश के बाद यह बहस चल पड़ती है कि दिल्ली-एनसीआर में खतरनाक स्तर 2.5 पीएम पर प्रदूषण पहुँचने का आधार क्या केवल पटाखे हैं ? सच तो यह है कि इस मौसम में हवा को प्रदूषित करने वाले कारणों में बारूद से निकलने वाला धुआँ एक कारण जरूर है; लेकिन दूसरे कारणों में दिल्ली की सड़कों पर वे कारें भी हैं, जिनकी बिक्री निरंतर उछाल पर है। नए भवनों की बढ़ती संख्या भी दिल्ली में प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाया जाना भी दिल्ली की हवा को खराब करने का एक कारण है। इस कारण दिल्ली के वायुमंडल में पीएम 2.5 का स्तर बढ़ जाता है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक स्वास्थ्य के लिए बेहतर वायु का स्तर 10 पीएम से कम होना चाहिए। पीएम वायु में घुले-मिले ऐसे सूक्ष्म कण है, जो सांस के जरिए फेफड़ों में पहुँचकर अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं।
वायु के ताप और आपेक्षिक आर्द्रता का संतुलन गड़बड़ा जाने से हवा प्रदूषण के दायरे में आने लगती है। यदि वायु में 18 डिग्री सेल्सियस ताप और 50 प्रतिशत आपेक्षिक आर्द्रता हो तो वायु का अनुभव सुखद लगता है। लेकिन इन दोनों में से किसी एक में वृद्धि, वायु को खतरनाक रूप में बदलने लगती है। ‘राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मूल्यांकन कार्यक्रम‘ (एनएसीएमपी) के मातहत ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल’ वायु में विद्यमान ताप और आद्रता के घटकों को नापकर यह जानकारी देता है कि देश के किस नगर में वायु की शुद्धता अथवा प्रदूषण की क्या स्थिति है। मापने की इस विधि को ‘पार्टिकुलेट मैटर’ मसलन ‘कणीय पदार्थ’ कहते हैं। प्रदूषित वायु में विलीन हो जाने वाले ये पदार्थ हैं, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड। सीपीसीबी द्वारा तय मापदंडों के मुताबिक उस वायु को अधिकतम शुद्ध माना जाता है, जिसमें प्रदूषकों का स्तर मानक मान के स्तर से 50 प्रतिशत से कम हो। इस लिहाज से दिल्ली समेत भारत के जो अन्य नगर प्रदूषण की चपेट में हैं, उनके वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड का प्रदूषण कम हुआ है, जबकि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर कुछ बड़ा है।सीपीसीबी ने उन नगरों को अधिक प्रदूषित माना है, जिनमें वायु प्रदूषण का स्तर निर्धारित मानक से डेढ़ गुना अधिक है। यदि प्रदूषण का स्तर मानक के तय मानदंड से डेढ़ गुना के बीच हो तो उसे उच्च प्रदूषण कहा जाता है। और यदि प्रदूषण मानक स्तर के 50 प्रतिशत से कम हो, तो उसे निम्न स्तर का प्रदूषण कहा जाता है। वायुमंडल को प्रदूषित करने वाले कणीय पदार्थ, कई पदार्थों के मिश्रण होते हैं। इनमें धातु, खनिज, धुएँ, राख और धूल के कण मिले होते हैं। इन कणों का आकार भिन्न-भिन्न होता है। इसीलिए इन्हें वर्गीकृत करके अलग-अलग श्रेणियों में बाँटा गया है। पहली श्रेणी के कणीय पदार्थों को पीएम-10 कहते हैं। इन कणों का आकार 10 माइक्रोन से कम होता है। दूसरी श्रेणी में 2.5 श्रेणी के कणीय पदार्थ आते हैं। इनका आकार 2.5 माइक्रोन से कम होता है। ये कण शुष्क व द्रव्य दोनों रूपों में होते हैं। वायुमंडल में तैर रहे दोनों ही आकारों के कण मुँह और नाक के जरिए श्वास नली में आसानी से प्रविष्ट हो जाते हैं। ये फेफड़ों तथा हृदय को प्रभावित करके कई तरह के रोगों के जनक बन जाते हैं। आजकल नाइट्रोजन डाइऑक्साइड देश के नगरों में वायु प्रदूषण का बड़ा कारक बन रही है।
औद्योगिक विकास, बढ़ता शहरीकरण और उपभोक्तावादी संस्कृति, आधुनिक विकास के ऐसे नमूने हैं, जो हवा, पानी और मिट्टी को एक साथ प्रदूषित करते हुए समूचे जीव-जगत को संकटग्रस्त बना रहे हैं। लेकिन दिवाली पर रोशनी के साथ आतिशबाजी छोड़कर जो खुशियाँ मनाई जाती है, उनका व्यावहारिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक पक्ष भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अकेली दिल्ली में पटाखों का कई हजार करोड़ का कारोबार होता है, जो कि देश में होने वाले कुल पटाखों के व्यापार का 25 फीसदी हिस्सा है। इससे छोटे-बड़े हजारों थोक व खुदरा व्यापारी और पटाखा उत्पादक मजदूरों की सालभर की रोजी-रोटी चलती है। इस लिहाज से इस व्यापार पर प्रतिबंध के व्यावहारिक पक्ष पर भी गौर करने की जरूरत है? यह अच्छी बात है कि शीर्ष न्यायालय सामान्य पटाखों पर रोक के साथ हरित पटाखे चलाने को प्रोत्साहित कर रही है। इससे स्वदेशी हरित पटाखा उद्योग विकसित होगा और भविष्य में दिल्ली को प्रदूषित महानगर होने की श्रेणी से भी मुक्ति मिल जाएगी।
सम्पर्कः शब्दार्थ 49, श्रीराम कॉलोनी, शिवपुरी म.प्र., मो. 09425488224, 9981061100




दीवाली पर पटाखों का प्रदूषण तो होता है। इससे की गुना अधिक पटाखों का प्रदूषण नव वर्ष पर होता है। फिर आज-कल बड़े नेताओं कोई वीआईपी आगमन पर पटाखे चलाएं जाते हैं। इस पर रोक लगाने के लिए कानूनन प्रावधान होना चाहिए। सबसे बड़ी बात कि पटाखों के निर्माण को धीरे-धीरे कम किया जाना चाहिए और यह सरकार ही कर सकती है।
ReplyDelete