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Oct 1, 2025

दो कविताएँ

 रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

1.दीप क्या है? 

दीप क्या है, सिर्फ़ मिट्टी से बना है

यह उजालों की सही आराधना है।

 

एक चादर तान ली काली गगन ने

फिर भी सीना दीप का निडर तना है ।

 

आँसुओं की इस धरा पर क्या कमी

पर अधर से कब कहा-हँसना मना है।

 

यह मत कहो, टूटा न तम का दर्प है

टिमटिमाती लौ का संघर्ष ठना है।

 

ज्योति का यह रथ न रोके से रुकेगा

अँधेरों के हौसले भी देखना है।


आलोक की धारा, धरा पर बह उठी

हर आँख में आलोक ही आँजना है। 


2. दीपक जलते रहना

बहुत अँधेरा
दूर सवेरा
दीपक जलते रहना ।

छोटी बाती
एक न साथी
तुझको सब कुछ सहना ।


पथ अनजाना
चलते जाना
दुख न किसी से कहना ।

तुझको घर-घर
बनकर निर्झर
अँधियारो में बहना ।

14 comments:

  1. Anonymous06 October

    बहुत सुंदर संदेश देतीं प्रभावशाली कविताएँ। साधुवाद ।सुदर्शन रत्नाकर

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  2. बहुत सुन्दर....

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  3. Anonymous14 October

    सुंदर कविता !

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  4. Anonymous14 October

    अच्छी कविता

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  5. बहुत सुन्दर 🪔🪔🪔

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  6. सार्थक सृजन.. हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ 🙏

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  7. समसामयिक सृजन- आलोकित करते शब्द जो अँधेरों के लिए चुनौती हैं।
    सुंदर कविता-शुभ दिवाली।

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  8. Dr Sunita Verma14 October

    दीपावली पर सार्थक कविता । हमारा जीवन भी दिये की तरह मुश्किलों से बाहर निकलकर उजाला फैलाने का नाम है ।

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  9. बहुत ही संदेशप्रद कविताएँ...हार्दिक अभिनंदन आपका।

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  10. दोनों कविताएं अत्यंत सारगर्भित और प्रेरणास्पद है।दीप के माध्यम से जीवन दर्शन तथा संदेश प्रेषित करती रचना दिल को छूने वाली है।अशेष शुभकामनाएं और ढेरों बधाइयां।

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  11. बहुत सुंदर! हार्दिक बधाई!

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  12. डॉ. कनक लता15 October

    बहुत सुन्दर और प्रेरक पंक्तियाँ.... 🙏👏👏

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  13. दोनों कविताएँ बहुत सुन्दर, प्रेरक, संदेशप्रद एवं सकारात्मक भाव से संयुक्त हैं। सच ही कहा है कवि ने -"आँसुओं की इस धरा पर क्या कमी
    पर अधर से कब कहा-हँसना मना है।" आदरणीय काम्बोज जी को बहुत बहुत बधाई।

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  14. Anonymous03 November

    बहुत ही सुंदर और मार्मिक कविताएँ हैं. हार्दिक बधाई आदरणीय
    🙏-रीता प्रसाद

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