1.दीप क्या है?
दीप क्या है, सिर्फ़ मिट्टी से बना है
यह उजालों की सही आराधना है।
एक चादर तान ली काली गगन ने
फिर भी सीना दीप का निडर तना है ।
आँसुओं की इस धरा पर क्या कमी
पर अधर से कब कहा-हँसना मना है।
यह मत कहो, टूटा न तम का दर्प है
टिमटिमाती लौ का संघर्ष ठना है।
ज्योति का यह रथ न रोके से रुकेगा
अँधेरों के हौसले भी देखना है।
आलोक की धारा, धरा पर बह उठी
हर आँख में आलोक ही आँजना है।


बहुत सुंदर संदेश देतीं प्रभावशाली कविताएँ। साधुवाद ।सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteसुंदर कविता !
ReplyDeleteअच्छी कविता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर 🪔🪔🪔
ReplyDeleteसार्थक सृजन.. हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ 🙏
ReplyDeleteसमसामयिक सृजन- आलोकित करते शब्द जो अँधेरों के लिए चुनौती हैं।
ReplyDeleteसुंदर कविता-शुभ दिवाली।
दीपावली पर सार्थक कविता । हमारा जीवन भी दिये की तरह मुश्किलों से बाहर निकलकर उजाला फैलाने का नाम है ।
ReplyDeleteबहुत ही संदेशप्रद कविताएँ...हार्दिक अभिनंदन आपका।
ReplyDeleteदोनों कविताएं अत्यंत सारगर्भित और प्रेरणास्पद है।दीप के माध्यम से जीवन दर्शन तथा संदेश प्रेषित करती रचना दिल को छूने वाली है।अशेष शुभकामनाएं और ढेरों बधाइयां।
ReplyDeleteबहुत सुंदर! हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और प्रेरक पंक्तियाँ.... 🙏👏👏
ReplyDeleteदोनों कविताएँ बहुत सुन्दर, प्रेरक, संदेशप्रद एवं सकारात्मक भाव से संयुक्त हैं। सच ही कहा है कवि ने -"आँसुओं की इस धरा पर क्या कमी
ReplyDeleteपर अधर से कब कहा-हँसना मना है।" आदरणीय काम्बोज जी को बहुत बहुत बधाई।
बहुत ही सुंदर और मार्मिक कविताएँ हैं. हार्दिक बधाई आदरणीय
ReplyDelete🙏-रीता प्रसाद