आकाश से टपकता सौंदर्य हिमकण
- नरेन्द्र देवांगन
हिमकण प्रकृति की अनंतता के प्रतीक हैं। ये गिरते हैं, हवा में तैरते हैं और फिर पिघल जाते हैं, दुबारा अनेकानेक रूप बदलकर वापस आने को। कहते हैं कि विल्सन बैंटली मानते थे।
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लड़कपन में विल्सन बैंटली ने एक हिमकण को सूक्ष्मदर्शी से देखा और उन्होंने जो कुछ देखा उसने उनकी जीवन की धारा का रुख ही मोड़ दिया, सर्दियों के प्रति उनका दृष्टिकोण ही बदल गया। बिना किसी से फोटोग्राफी सीखे या विज्ञान पढ़े, पेशे से किसान बैंटली ने अकेले ही तुषार कणों का अध्ययन आरंभ किया। उन्हें एक काले पटल पर रखकर पिघलने से पहले ही वे उनके फोटो उतार लेते। वरमोंट की कड़ाके की 46 सर्दियों में अकेले ही एक झोपड़ी में उन्होंने हिमपात की सुंदरता और रहस्यों पर विचार कर उन्हें कैमरे में कैद कर लिया। 1931 में अपनी मृत्यु तक उन्होंने हिमकणों के और कुछ नहीं तो 6 हजार फोटो खींचे। बैंटली का यह कार्य पत्र-पत्रिकाओं में क्रमबद्ध रूप से छपने से मौसम विज्ञान की एक नई शाखा का जन्म हुआ। जौहरियों ने आभूषणों के लिए नए-नए नमूनों के तौर पर उनके चित्रों को खरीदा और बच्चे उनके चित्रों के आकार-प्रकार में कागज के हिमकण काटने लगे।
हिमकण, जिन्होंने बैंटली को इतना अचंभित किया, प्रकृति की विशिष्ट सृजन शक्ति के उत्कृष्ट नमूने हैं। तुषार के ये कण किसी स्फटिक सदृश होते हैं और अनेक स्फटिकों के समूह भी। ये स्फटिक वायुमंडल के अत्यंत ऊंचे स्थानों पर बनते हैं। तापमान जहां अधिक होता है, वहां यही हिमकण पिघल कर वर्षा की बूंद बन जाते हैं। पर जहां अत्यधिक ठंड हो वहां स्फटिक का कोमल स्वरूप बना रहता है।
धूल, ज्वालामुखी की राख या प्रदूषण का कोई भी कण 'बीज रूप में' स्फटिक का केंद्रक बन जाता है और आसपास के पानी के अणुओं को आकर्षित कर लेता है, जो उसकी सतह पर जम जाते हैं। हवा के कंधों पर सवार यह कण तापमान तथा आर्द्रता की विभिन्न परतों में मंडराता रहता है और हर परत इसे विविध आकार देती रहती है। ऐसे कण बार-बार एक दूसरे से टकराते भी हैं जिससे उनके आकार और स्वरूप बदलते रहते हैं।
हालांकि हम आमतौर पर हिमकणों को 6 कोनों वाला सितारा मात्र समझते हैं, परंतु इंटरनेशनल कमीशन ऑन स्नो एंड आइस के पास हिमकणों की अनेक श्रेणियां हैं और इनमें से प्रत्येक का निर्माण विभिन्न परिस्थितियों में होता है। मसलन, हल्के आर्द्र तूफान में हवा की तेजी कम हो, तो इससे वृक्षों के आकार के त्रिआयामी हिमकण बनते हैं जबकि अधिक ठंडे, शुष्क बादल सूई नुमा विन्यास वाले तुषार कणों को जन्म देते हैं। परंतु हर कण तापमान तथा आद्र्रता का अनूठा उत्पाद होता है, वायुमंडलीय परिस्थितियों की प्राकृतिक छाप।
हिमकणों के प्रति एक प्रश्न आज भी अनुत्तरित है। क्या कोई भी दो हिमकण सचमुच एक-से नहीं होते? आंकड़े इसके विरुद्ध हैं। आधे मीटर मैदान को 25 सेंटीमीटर हिमपात से ढंकने के लिए एक ही बर्फानी तूफान में 10 लाख से अधिक हिमकणों की आवश्यकता होती है। ऐसे में हर कण बेजोड़ हो, संभव नहीं लगता। तो भी अनुमान है कि वायुमंडल में विभिन्न तापमान तथा आर्द्रता वाली कम से कम 10 लाख परतें संभव हैं, जिससे 10 की संख्या पर 50 लाख घात के बराबर विविधता की सृजन क्षमता पैदा होती है। किन्हीं दो हिमकणों को हर लिहाज से एक जैसा होने के लिए एक से 'बीजों' को एक ही समय जीवन आरंभ करके एक-सी परिस्थितियों से एक ही कालावधि तक गुजरते हुए नीचे गिरते समय एक जैसे टकरावों से गुजरना होगा। फिर उन दो तुषार कणों को एक ही वैज्ञानिक द्वारा उठाए जाकर सत्यापित होना होगा। इन मुश्किलों के मद्देनजर हिमकणों के अनूठेपन की अवधारणा शायद बनी ही रहेगी। इसके अलावा हम सब यह विश्वास सीने से लगाए हैं, कि प्रकृति के पास ऐसा अपार खजाना है कि वह अनगिनत संख्या में ये मोती आकाश से बरसाती रह सकती है।
हिमकण प्रकृति की अनंतता के प्रतीक हैं। ये गिरते हैं, हवा में तैरते हैं और फिर पिघल जाते हैं, दुबारा अनेकानेक रूप बदलकर वापस आने को। कहते हैं कि विल्सन बैंटली मानते थे, कि हिमकण 'आकाश से टपकता एक विचार है, अतुल सौंदर्य का खंड जो एक बार खो गया तो सदा के लिए खो गया।' यह अद्भुत संयोग है कि एक हिमकण में हमें क्षणभंगुरता और अमरत्व दोनों की झलक मिलती है। इसी ने बैंटली को भी वर्षों तक ठिठुरने पर विवश किया था। (स्रोत फीचर्स)
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