- हर्षिता विकास कुमार
अखबार की सुर्खियों में जीवन की साझ दी दिखाई
यूं तो होता है रोज सवेरा पीले रंग से सजा
ये बात नहीं है इंद्रधनुषी हरे, नीले, पीले, लाल की
मैंने जिक्र है किया बारिश की फुहार का
टूटी कच्ची सड़क के किनारे बहती पानी की धार का
जो आगे जाते- जाते कमजोर पड़ जायेगी 
कुछ गर्मी और कुछ गंदगी द्वारा सोख ली जायेगी 
लेकिन कमजोर से कम और कम से खत्म तक 
वो बहेगी बहती-बहती और बहती ही रहेगी।
फिर इंसान क्यों एक परिणाम पर 
दौड़ जाता है पटरियों पर
पंखे पर खुद के वजन को तोलता
चाकू का अधिक इस्तेमाल चाहता है करना 
चंद सफेद गोलियां ज्यादा मीठी 
और असरदार हैं लगती।
सोचनीय है पर सोचने का वक्त किसके पास है
आज एक और परिणाम आ रहा है।
संपर्क-  456 स्कीम नं 2, अलवर (राजस्थान)
 
 
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