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Sep 27, 2012

लघुकथाएं - इला प्रसाद


1 . प्रतिद्वन्द्वी


वह उसे देखता और चिढ़ जाता!
वह भी उसे देखती और परेशान हो जाती।
वे दोनों आते- जाते कारीडोर में मिलते और एक-दूसरे  से कतरा कर निकल जाते।
उसे समझ नहीं आता था कि वह हर बार उसे इस स्कूल में कैसे मिल जाता है, वह तो हर रोज यहाँ आती नहीं!
उसे यह भी ठीक से पता था कि वह उसे बिल्कुल पसन्द नहीं करता। एक बार सामने से आ रहे उसके बैज पर उसने उसका नाम पढऩे की कोशिश की थी, तो उसने खट से भाँप लिया और अपना बैज उलट दिया लेकिन वह उस पर नजर रखता था। वह अक्सर उसे काउण्टर पर अपने पीछे खड़ा पाती, जब वह अपने पेपर जमा कर रही होती, कुछ पूछ रही होती। तब उसे भी बेहद चिढ़ होती थी उससे। फिर कुछ महीनों बाद एक दिन वे असिस्टेंट प्रिन्सिपल के ऑफिस में मिल गए। मिस्टर लोगान ने परिचय कराया रूबी सिंह इनसे मिलिए, ये हैं चाल्र्स पेरेज। अगले सेशन में पूर्णकालिक नौकरी के लिए साक्षात्कार देंगे। समाज विज्ञान से हैं।
फिर वे चाल्र्स से मुखातिब हुए- चाल्र्स, ये रूबी सिंह हैं। विज्ञान विषय में पूर्णकालिक नौकरी की उम्मीदवार। वे एक दूसरे को देखकर मुसकुराए। अब दुश्मनी की कोई वजह नहीं थी। वे प्रतिद्वन्द्वी नहीं थे।

2  .  ठंड


उसे गर्मियों में भी ठंड लगती।
वह अपने कमरे में अकेली बैठी काँपती।
दवाएँ बेअसर थीं। पति नाराज वह ठीक क्यों नहीं होती!
फिर एक दिन उसने कमरे से बाहर झाँका। पार्क में बच्चे खेल  रहे थे। उसने पैरों में चप्पल डाली और खुद को घसीटती पार्क में  ले गई। शाम का वक्त था। मौसम खुशनुमा। पार्क गुलजार। थोड़ी ही देर में वह उस हलचल का हिस्सा बन गई। फिर यह रोज का क्रम हो गया। वह घर के काम निबटाती। पति ऑफिस जाता और वह शाम का इंतजार करती।
अब उसे उतनी ठंड नहीं लगती थी।
पति अब भी अपनी दुनिया में था। उसके पास कभी भी अपनी पत्नी से बातें करने की फुरसत नहीं थी। वह शायद उसे इस लायक भी नहीं समझता था, लेकिन तब भी उसकी हालत सुधर रही थी। पार्क में उसे बच्चों और हम उम्र स्त्रियों में कई दोस्त मिल गए थे। फिर एक दिन उसने महसूसा कि ठंड का अहसास गायब हो गया है।
पति अब और नाराज था!
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मेरे बारे में- 

जन्म 21जून 1960 शिक्षा- काशी हिंदू विश्वविद्यालय से भौतिकी में पीएचडी एवं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई में सीएसआईआर की शोधवृत्ति पर शोध परियोजना के अंतर्गत कुछ वर्षों तक शोध कार्य। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक शोध पत्रिकाओं में शोध पत्र प्रकाशित। छात्र जीवन में काव्य  लेखन की शुरुआत।  प्रारंभ में कॉलेज पत्रिका एवं आकाशवाणी तक सीमित। वैज्ञानिक  शोध कार्य के दिनों में लेखन क्षमता भी पल्लवित होती रही। पहली रचना इस कहानी का अंत नहीं जनसत्ता में प्रकाशित। कविता एवं कहानियों का पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशन। धूप का टुकड़ा (कविता-संग्रह) और इस कहानी का अन्त नहीं (कहानी-संग्रह) प्रकाशित। 
Email- ila_prasadv@yahoo.com

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