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Sep 1, 2024

जीवन दर्शनः सम्मान अपनों का: सुखद सपनों का

 - विजय जोशी 

( पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)

किसी से कोई भी उम्मीद रखना छोड़ कर देखो

फिर देखो किस कदर ये जिंदगी आसान हो जाये

  जीवन उम्मीदों का अपार संसार है और यही हमारी यात्रा की नौका भी है और पतवार भी। लेकिन उम्मीदों से बहुत ज्यादा की आस पाल लेना दुख का कारण भी बन सकता है, यदि हम उस  स्वावलंबन की लक्ष्मण रेखा लांघकर परावलंबन की सरहद में पहुँच जाएँ। जीवन में खुद की उम्मीद पूरा करने की आकांक्षा के दूसरों की उम्मीदों पर खरा उतरने पाने का प्रयास करने से अधिक सुखकारी है।

  इस संदर्भ में एक सुंदर वृत्तांत से मेरा सामना हुआ। पत्नी ने दिनभर की थकान के बाद रात के भोजन के समय थाली में दाल सब्जी के साथ किसी हद जली हुई रोटी पति को परोसी। पुत्र बड़े मनोयोग से सारा दृश्य निहार रहा था। उसके लिए आश्चर्य अभी प्रतीक्षा सूची में तब तक था, जब उसने देखा कि माँ सॉरी कह पाती, उसके पूर्व ही उसके पिता ने जली रोटी के साथ भोजन बिल्कुल आनंदपूर्वक ग्रहण करना आरंभ कर दिया।

पुत्र से रहा नहीं गया। उसने भोजन उपरांत पिता से देर रात्रि अकेले में धीमे स्वर में पूछा कि क्या उन्हें सचमुच में जली रोटी पसंद आई थी। और तब जिस सत्य से उसका साक्षात्कार हुआ उससे उसकी आँखें भर आईं ।

पिता ने कहा - तुम्हारी माँ सारे दिन काम करते हुए थक जाती है। गृहस्थी की गाड़ी खींचने में। सारा दिन काम करते- करते शाम तक थककर निढाल हो जाती है। उसके त्याग से परिपूर्ण प्रेम के सामने मुझे रोटी के जले होने का एहसास ही नहीं हुआ। ऐसे अवसर पर यदि मैं कुछ भी कटु शब्द कह भी देता, तो शायद अपनी नजर में खुद गिर जाता।

पिता ने अपनी बात आगे जारी रखी - सारा संसार और हमारा अपना जीवन अनेक कमियों से परिपूर्ण है। ऐसे में दूसरों में कमियाँ ढूँढकर हम अपनी कमियों पर परदा नहीं डाल सकते। सो श्रेष्ठ यही होगा कि हम सब जैसे भी हैं, एक साथ संतुष्टि का भाव अंतस् में समाकर प्रसन्नतापूर्वक जीने की कला सीखें।

 बात बहुत सरल, सामायिक और सार्थक है। हमें दूसरों से आवश्यकता से अधिक उम्मीद रखने के बजाय अपनी कमियों की ओर अंदर झाँकते हुए सबके साथ जीने की कला को व्यक्तित्व में अंगीकार करना चाहिए। जीवन बहुत छोटा है। उसे दुख, अवसाद, असंतोष के साथ जीने के बजाय उपलब्ध की कद्र करते हुए जीने की कला सीखना चाहिए। याद रखिए, किसी से अत्यधिक उम्मीद भी अंततः निराशा का कारण बन सकती है।

जो चाहते हैं, उनसे प्यार करो, उनका सम्मान करो, उनकी कद्र करो। जो नहीं करते उनसे सहानुभूति रखो। याद रखो, जो आपको पसंद नहीं करते, उन पर समय बर्बाद मत कीजिए। जो चाहते हैं उनकी कद्र कीजिए, उनका सम्मान कीजिए। और कहिए:

कितने हसीन लोग हैं, जो मिलके एक बार

आँखों में जज़्ब हो गए दिल में समा गए।

सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023, मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com

34 comments:

देवेन्द्र जोशी said...

दूसरों के प्रति संवेदनशील होना सम्बधों को प्रगाड़ता देता हैl सहनशीलता संबंधों को मजबूती देती हैl आपने दृष्टांत से ये दोनों पक्ष बहुत ही स्पष्ट उजागर किये है l

Anonymous said...

सुखी और संतुष्ट जीवन के लिए आपने बहुत सरल ढंग से गुरूमंत्र दिए हैं । बहुत सुंदर। साधुवाद । सुदर्शन रत्नाकर

Mahesh Manker said...

आदरणीय सर,
बहुत ही प्रेरणादायक लेख।

"किसी से कोई भी उम्मीद रखना छोड़ कर देखो
फिर देखो किस कदर ये जिंदगी आसान हो जाये"

Anonymous said...

Very nicely brought a very deep thought of tolerance and empathy. Very true we can't, better not to have expectations from others.
S N Roy

Anonymous said...

Very nicely brought out a very deep thought of tolerance and empathy. Very true we can't have perpetual expectations, better not to have.
SN Roy.
S N Roy

Vijay Joshi said...

Thanks very very much sir for your fastest response and blessings. Kind regards

Anonymous said...

प्रिय महेश, त्वरित प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार। सस्नेह

Vijay Joshi said...

आदरणीया,
आपका व्यक्तित्व अद्भुत है। सदा सबको प्रोत्साहित करने वाला। हार्दिक आभार सहित सादर

राजीव अग्रवाल said...

आदरणीय सर, बहुत ही खूबसूरत तरीके से लिखा हुआ है। आपके लेखन का कोई जवाब नहीं है। जीवन को जीने की कला सिखाती हुई छोटी छोटी कहानियां बड़ी बड़ी सीखें बहुत आसान और साधारण तरीके से सिखा देती है। सादर।

राजेश दीक्षित said...

बिना उम्मीद के प्राप्य अपार आनन्द दायी रहा है सदैव और उम्मीद पर पानी फिरना अत्याधिक कष्टदायी। अतः जीवन की समरसता के लिए दोनो हाल मे प्रभु इच्छा समझ कर प्रसन्न रहे यही आपके आलेख का भी मन्तव्य है।सादर

Anonymous said...

अतिसुंदर, सारगर्भित लेख। अपने जीवन को सुगम बनाने में अपनी जीवनसंगिनी के योगदान और सहयोग का संवेदनशील मूल्यांकन।

Sk Agrawal said...

Dr S K AGRAWAL GWALIOR

Sk Agrawal said...

मार्मिक
गंभीर अर्थ
साधुवाद, चिंतन का
सार्थक सोच
जय हो जोशी जी की

Dil se Dilo tak said...

बहुत अच्छी व सार्थक बात कही आपने.. पर यह समझ तभी आ पाती है जब रिश्ते परिपक्व हों.. दोनों एक लम्बा समय साथ गुजार दिए हों.. जैसा कि आपके लेख से भी स्पष्ट है 🙏

ये हर रिश्ते व संस्थान में भी लागू है पर यह एक आदर्श स्थिति है जो धरातल पर विरले ही मिलती है.

लेख हेतु साधूवाद व बधाई आदरणीय सर 🌹💐

Anonymous said...

प्रेरक और दिशाबोध करता...अपना अंतस टटोलने के लिए बाध्य करता आलेख। मेरा भी यही मानना है की भोजन बिना किसी मीन मेख के ग्रहण करना चाहिए पूरे आनंद के साथ।

Anonymous said...

अति उत्तम और प्रेरणा दायक लेख है सर आपका। आपने सही लिखा है कि जीवन रूपी नौका से ज्यादा आश लगाना दुःख का कारण बन जाता है।

Anonymous said...

मननीय चिंतन
जीवन सरल है और कठिन भी है
जो जितना डूबा उसने उतना पाया
जो किनारे पर रहा खडा
उसने उतना ही देखा
अशोक कुलकर्णी ,अकोला

Yogendra Pathak said...

सत्य है. परन्तु कठिन है. कठिन है इसलिए करने योग्य है. करेगें तो जिन्दगी आसान.

मंगल स्वरूप त्रिवेदी said...

बहुत ही हृदय स्पर्शी आलेख के लिए धन्यवाद सर।
पिछले तीन दशकों में जीवन में यह त्रासदी बढ़ी है कि हमने अपनों का सम्मान करना धीरे-धीरे कम कर दिया है और एक काल्पनिक जीवन जीने में व्यस्त हो गए हैं जिसका यथार्थ से कोई लेना-देना नहीं रहा है।
जैसे-जैसे समाज का तथाकथित आधुनिकीकरण होता गया वैसे-वैसे हम अपनों के साथ दूरियां बढ़ाते गए और सुखांत जीवन को दुखमय करते चले जा रहे हैं।
भावनाओं की नाव पर सवार होकर हमने अपनों के जीवन को समझना ही छोड़ दिया है और उनके द्वारा हमारे लिए किए जा रहे प्रयासों को हमने देखा ही नहीं है और यदि देखा भी है तो यह मान करके देखा है कि ऐसा करना उनका दायित्व है और अगर वह ऐसा कर रहे हैं तो कोई मेहरबानी नहीं कर रहे हैं यह हमारा अधिकार है।
और हमारी इसी सोचने हमारे सुखांत जीवन को धीरे-धीरे दुखांत जीवन में परिवर्तित कर दिया है और यह प्रक्रिया कैसे हो गई हम समझ ही नहीं पाए।
हम अपनों के द्वारा हमारे जीवन के लिए किया जा रहे प्रयासों को देखें और उनकी सराहना करें ताकि एक बार पुनः जीवन को सुखांत बनाया जा सके।
स्वर्ग यहीं है, नर्क यहीं हैं; जो चाहे वह पा लो तुम।
एक बार मन की आंखें खोलो; और जीवन को स्वर्ग बना लो तुम।।
बहुत ही हृदय स्पर्शी आलेख के लिए एक बार पुनः आभार!

ANAND KUMAR GOSWAMI said...

प्रेरणादायी एवं बहुत ही सुन्दर लेख, सहीं लिखा है कि सारा संसार और हमारा अपना जीवन अनेक कमियों से परिपूर्ण है। ऐसे में दूसरों में कमियाँ ढूँढकर हम अपनी कमियों पर परदा नहीं डाल सकते।

रवीन्द्र निगम भेल भोपाल said...

जीवन का यथार्थ यही है
जली रोटी.... किसके हाथ की, किस समय, किस समर्पण के साथ.....सब मिलकर थाली मे...स्वयं ही प्रेम का सागर बन जाती है...शहद सी लगती है... लेखनी को साधुवाद🌹🌷🙏

Ananda C said...

Very good article sirji

Mukesh Shrivastava said...

बहुत सुंदर लेख
मुकेश श्रीवास्तव

Anil Markam said...

अति सुन्दर और प्रेरणादायक लेख हमेशा अपनो की कद्र करना एवम उनको समय देना महत्व रखता है

सहज साहित्य said...

जीवन का अनमोल सूत्र! आपके इन छोटे - लेखों में बहुत बड़ी बातें छुपी होती हैं। आपकी लेखनी को नमन! आदरणीय.

Anonymous said...

सदा की भाँति इस लेख में भी आपने सफल शांतिमय जीवन का गूड़ रहस्य समझाया है। वाक़ई जीवन में क्लेश का कारण दूसरों से की गई अपेक्षायें ही हैं । जीवन के चलते हमारी अपेक्षायें भी बड़ती जाती हैं साथ ही जीवन में असंतोष भी । और यही यदि हम अपने आप को क़ाबू कर अपेक्षाएँ छोड़ दें तो जीवन आनन्दमय हो जाएगा । आपने सही मुद्दे को इंगित किया है।
अशोक मिश्रा

Anonymous said...

प्रेरणादाई लेख
जिंदगी भरी पड़ी है अपूर्ण चीजों से .... अपूर्ण चीजों से....कर्मियों से..... दोषोसे... एक दूसरे की गलतियों को स्वीकार करना, नजर अंदाज करना जरूरी है। जिंदगी बहुत छोटी है ...उसे सुबह शाम दुख पछतावे खेदसे बर्बाद नहीं करना चाहिए। जिंदगी को जीना आसान नहीं होता, जिंदगी को जीना आसान बनाना पड़ता है .....कुछ सब्र करके.. कुछ बर्दाश्त करके, और बहुत कुछ नजरअंदाज करके।

सुरेश कासलीवाल

Kishore Purswani said...

अति सुंदर उदाहरण- काश हम सब यही सीख जायें तो रिश्ते कितने मज़बूत हो जाएँगे - स्वयं द्वारा की गयी ग़लतियों पर हम वकील बन जाते हैं और दूसरे द्वारा की गयी ग़लतियों पर न्यायाधीश

विजय जोशी said...

प्रिय किशोर भाई
सही कहा आपने। संबंधों को सशक्त बनाने का एकमात्र सूत्र है आपसी स्नेह। हार्दिक आभार

विजय जोशी said...

आदरणीय कासलीवाल जी
संबंधों की अहमियत दर्शाता क्षमा वाणी पर्व सबसे सार्थक मंच है रिश्तों की नींव की मजबूती का।सो आगत पर्व की प्रतीक्षा कर रहा हूं। हार्दिक आभार। सादर

विजय जोशी said...

आदरणीय
आप तो स्नेह सम्मान सबके साक्षात उदाहरण हैं। सो हार्दिक आभार सहित सादर

Mandwee Singh said...

सादर प्रणाम आदरणीय
सदा सर्वदा की तरह यह आलेख भी कुटुंब और समाज प्रबोधन की नई इबारत है।बहुत ही रोचक अंदाज में प्रेरक उदाहरण के माध्यम से आपने जीवन दर्शन का मंत्र दिया है।इस आलेख को मैं इसे लोगों को शेयर की हूं जहां इसकी नितांत आवश्यकता है।वर्तमान स्थिति में प्रेरक,सारगर्भित एवम् दिशाबोध से परिपूर्ण आलेख।

K.P.Tripathi said...

Satya Vachan

K.P.Tripathi said...

Satya Vachan