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Sep 1, 2024

उदंती.com, सितम्बर - 2024

वर्ष- 17, अंक- 2

तुम वृक्षों के फूल तोड़कर ईश्वर की मूर्ति पर चढ़ा आते हो, किसको धोखा देते  हो, वह पहले से ही ईश्वर पर चढ़ा था और ज्यादा जीवंत था उस वृक्ष पर ।  - ओशो

इस अंक में-

अनकहीः फिर वही सवाल...  - डॉ. रत्ना वर्मा

पितृ पक्षः दाह-क्रिया एवं श्राद्ध कर्म का विज्ञान - प्रमोद भार्गव

जीवन दर्शनः सम्मान अपनों का: सुखद सपनों का - विजय जोशी

संस्मरणः कस्बों - शहरों की रौनक ...फेरीवाले - शशि पाधा

प्रेरकः शून्य के लिए ही मेरा आमंत्रण – निशांत

शिक्षक दिवसः बहुत याद आते हैं हमारे शिक्षक - डॉ. महेश परिमल

ग़ज़लः ख़ुदा भी उसको खुला आसमान देता है - मीनाक्षी शर्मा ‘मनस्वी’

जल संकट: प्रकृति का प्रकोप या मानव की महत्वाकांक्षा - देवेश शांडिल्य

पर्यावरणः स्वच्छ पानी के लिए बढ़ाना होगा भूजल स्तर - सुदर्शन सोलंकी

कविताः अब विवश शब्द - डॉ. कविता भट्ट

आलेखः हिन्दी के विकास में ख़तरे  - सीताराम गुप्ता

आलेखः साहित्य समाज और पत्रकारिता में भाषायी सौहार्द की भूमिका - डॉ पदमावती पंड्याराम

व्यंग्यः नींद क्यों रात भर नहीं आती ! - जवाहर चौधरी

कविताः मुस्कुराती ज़ेब - रमेश कुमार सोनी

कविताः गाँव की अँजुरी ? - निर्देश निधि

लघुकथाः असली कोयल - स्वप्नमय चक्रबर्ती, अनुवाद/ बेबी कारफरमा

लघुकथाएँः 1-भेड़ें, 2- कैमिस्ट्री, 3- दरकती उम्मीद - डॉ. सुषमा गुप्ता  

कहानीः प्रार्थनाओं के विरुद्ध - सत्या शर्मा कीर्ति

कविताः कभी ऐसा भी हो -  स्वाति बरनवाल

दो कविताएँः 1-  पीड़ा, 2-  पाँव   - सुरभि डागर

किताबेंः मन की वीणा पर सधे संवेदना के गीत-‘गाएगी सदी’ - रश्मि विभा त्रिपाठी

आलेखः अनुवाद एक कठिन कार्य है  - महेंद्र राजा जैन


5 comments:

नम्रता देवी सिंह देव said...

उडीशा में रहते हुए हिन्दी पढने को तरस जाते हैं। ऐसे में जब यह पत्रिका मिली तो ऐसा लगा कोई खजाना मिल गया हो। एक ही बार में बहुत सारी पढ डाली। सभी लेखकों को साधुवाद एवं रत्ना दीदी को बहुत-बहुत धन्यवाद ।

dr. ratna verma said...

शुक्रिया नम्रता जी। आपने पत्रिका के लिए समय निकाला यह मेरे लिए खुशी की बात है। वैसे अहिन्दी भाषी प्रदेशों में हिन्दी पढ़ने- लिखने वालों की संख्या अब बढ़ रही है, यह अच्छा संकेत है।यही नहीं विदेशों में बसे हमारे हिन्दी प्रेमी पाठक भी इंटरनेट के माध्यम से हमारी पत्रिका को आसानी से पढ़ पा रहे हैं । यही वजह है कि हिन्दी की पत्र- पत्रिकाएँ भारत के बाहर भी बहुतायत से पढ़ी जाने लगी हैं। पुनः धन्यवाद और आभार ।

Anonymous said...

उदंती का सितंबर अंक पढ़ा । सम्पादकीय अनकही से लेकर, महत्वपूर्ण आलेख, संस्मरण, कहानी, कविताएँ!, लघुकथाएँ, व्यंग्य , चिंतन, बेहतरीन रचनाओं से सुसज्जित एक उत्कृष्ट अंक के लिए रत्ना जी आप एवं सभी रचनाकार बधाई के पात्र है। विशेष रूप ससे पत्रिका की सुंदरता को बढ़ाता आकर्षक आवरण । बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ । सुदर्शन रत्नाकर

रत्ना वर्मा said...

आपका हार्दिक धन्यवाद सुदर्शन जी l आप जैसी मनीषियों की शुभकामनाओं और आशीर्वाद का ही परिणाम है कि हम विगत 16-17 वर्षों से प्रति माह उदंती का प्रकाशन निरंतर करते आ रहे हैं l सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

dr.surangma yadav said...

हमेशा की तरह सुंदर व संग्रहणीय अंक।हार्दिक बधाई आदरणीय रत्ना जी।